लखनऊ : पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के बीच विधानसभा में हुई तल्ख टिप्पणियों के बाद एक बार फिर संसदीय भाषा पर सवाल उठ गया है. कई बार शिकायतों के बावजूद माननीय अपनी भाषा पर संयम नहीं रखते हैं. बुधवार को उत्तर प्रदेश की विधानसभा में सदन में चर्चा के दौरान कई वर्जित शब्द इस्तेमाल किए गए हैं. दलाली, लूट, गिरोह, गोरखधंधा, झूठा, चोर और ऐसे कई शब्द विधायकों के लिए सदन में बोलना वर्जित हैं. सदन में ऐसे शब्दों का इस्तेमाल न करने को लिए विधायकों को लिखित तौर पर निर्देशित किया गया है.
मर्यादा, शिष्टता और सद व्यवहार के लिए यह अपेक्षित है कि सभा में बोलते समय सदस्यों को व्यंग्यात्मक, अपमानजनक और अशोभनीय शब्दों या अभिव्यक्तियों का इस्तेमाल न किया जाए. इसके लिए जो शब्द प्रतिबंधित हैं, उनकी सूची नए विधायकों को उपलब्ध करवा दी गई है. उदाहरण के तौर पर अगर पीठ अध्यक्ष के लिए कहा जाए कि 'एक महान न्यायाधीश निर्णय देने आए हैं', तो यह एक गंभीर आक्षेप माना जाएगा. अनाप-शनाप बोलना और भ्रष्ट तरीके अपनाना दोनों ही बातें आपत्तिजनक हैं. सदस्यों को एक दूसरे को 'ब्लैकमेलर' या 'चोर बाजारियों' नहीं कहना चाहिए. सभा में 'भांड' शब्द असंसदीय है.
किसी सदस्य के मामले में 'चुनौती' शब्द उतना ही बुरा है जितना 'धोखेबाज'. मंत्रियों के वक्तव्य को 'मनगढंत' नहीं कहा जा सकता है. सभा को 'वाद-विवाद' की संस्था नहीं बताया जा सकता है. विधिक संघों को 'कूट साक्ष्य के अड्डे' नहीं कहा जा सकता है. किसी भी वित्त मंत्री को 'वित्तीय मगरमच्छ' नहीं कहा जा सकता. कोई सदस्य यह तो कह सकता है कि किसी मामले का 'सत्यानाश हो रहा है', लेकिन किसी सदस्य के मामले में नहीं कहा जा सकता. सदन में किसी को 'गुण्डा' नहीं कहा जा सकता. अगर कोई मंत्री ऐसी बात कहे जो किसी सदस्य को अच्छी न लगे तो उस मंत्री के लिए यह नहीं कहा जा सकता कि 'उसको डाक्टरी जांच की' आवश्यकता है.
सरकार के लिए यह नहीं कहा जा सकता कि 'नरक में जाओ' और सभा को भी कभी 'जड़बद्ध' नहीं कहा जा सकता. सभा के किसी भी वर्ग को 'गैर जिम्मेदार' नहीं कहा जा सकता. सभा में किसी को न तो 'वानर' कहा जा सकता है और न 'दानव'. सदस्यों के लिए न तो यह कहा जा सकता है के वो 'अनाप-शनाप' बोल रहे हैं और न ही यह कि वो 'बेतुका झूठ' बोल रहे हैं. सदस्यों में न तो किसी को 'बदमाश' कहा जा सकता है और न 'दुर्जन' और कोई सदस्य 'उपहासपात्र' तो हो ही नहीं सकता. किसी सदस्य के प्रश्न की 'सदस्यता' को चुनौती नहीं दी जा सकती. इसके साथ ही किसी सदस्य की किसी बात को मूर्खतापूर्ण' नहीं कहा जा सकता है.
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सदस्यों के लिए यह नहीं कहा जा सकता कि उन्होंने अपनी आत्मा बेच दी है. यदि शब्द और वाक्यांश अपमानजनक, अश्लील, असंसदीय या अशोभनीय हैं तो पीठासीन अधिकारी उन्हें निकालने का आदेश दे सकता है. ये शब्द और वाक्यांश, आरोप, कटाक्ष, अपमान, अश्लील शब्द माने जाते हैं.
भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता मनीष शुक्ला का कहना है कि सदन में सभी पार्टियों के विधायकों को सही व्यवहार करना चाहिए. मगर समाजवादी पार्टी और उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष ने तो सभी हदें पार कर दीं हैं. वो कई तरह की अनर्गल टिप्पणियां और अभद्र भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं जो कि लोकतंत्र में स्वीकार्य नहीं है.
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