ETV Bharat / state

प्रदेश में धड़ल्ले से किया जा रहा भूगर्भ जल का दोहन, सरकारी तंत्र मौन

author img

By

Published : Jun 10, 2023, 9:10 PM IST

Updated : Jun 10, 2023, 10:06 PM IST

उत्तर प्रदेश में भूगर्भ जल का दोहन दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है. अत्याधिक जल दोहन के चलते भूजल स्तर कम हो रहा है. ऐसे में जल की काफी किल्लत हो रही है. कई शहरों में जल बोरिंग कर भूगर्भ जल टैंकरों से खुलेआम बेचा जाता है, लेकिन सरकार इस पर ध्यान नहीं दे रही है. पढ़ें यूपी के ब्यूरो चीफ आलोक त्रिपाठी का विश्लेषण.

etv bharat
भूगर्भ जल का दोहन

लखनऊ: प्रदेश में भूगर्भ जल का दोहन चरम पर है. इसे रोकने के लिए बनाए गए कानून धूल फांक रहे हैं. हाल यह है कि अति दोहन के कारण राजधानी लखनऊ में ही प्रतिवर्ष भूजल स्तर एक मीटर तक नीचे गिर रहा है. इस दोहन को रोकने के लिए अगस्त 2019 में प्रावधान किए गए थे, लेकिन सरकारी तंत्र इस ओर कतई ध्यान नहीं दे रहा है. इस अधिनियम की धारा 12 की उपधारा 2 में स्पष्ट तौर पर वर्णित है कि भूगर्भ जल व्यावसायिक अथवा सामूहिक उपयोग के लिए विक्रय करने का अधिकार किसी व्यक्ति अथवा संस्था को अधिकार नहीं होगा और ऐसा कार्य अध्याय आठ के अधीन दंडनीय माना जाएगा. लखनऊ के तमाम स्थानों पर बोरिंग कर भूगर्भ जल टैंकरों से खुलेआम बेचा जाता है, लेकिन इस पर किसी की नजर नहीं है.

भूजल विशेषज्ञ एवं ग्राउंड वाटर एक्शन ग्रुप के संयोजक डॉ. आरएस सिन्हा बताते हैं कि प्रदेश के भूजल दोहन में राजधानी लखनऊ प्रथम स्थान पर है. यहां जल संस्थान के जलापूर्ति करने वाले नलकूपों के अलावा अन्य व्यावसायिक, औद्योगिक, संस्थागत, व्यक्तिगत, आवासीय योजनाओं, समरसेबल बोरिंग आदि के माध्यम से प्रतिदिन लगभग 160 करोड़ लीटर पानी निकाला जा रहा है. शहर में अधाधुंध दोहन का आकलन इसी से होता है कि एक वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में हर दिन भारी भरकम मात्रा में लगभग 40 लाख लीटर भूजल निकाला जा रहा है, जिसकी भरपाई नामुमकिन है. गंभीर स्थिति यह है कि ऊपर का स्तर पूरी तरह सूख चुका है और अब गहरे स्तर से भूजल निकाला जा रहा है, जिसका रिचार्ज हो पाना वैज्ञानिक दृष्टि से संभव प्रतीत नहीं होता है.

etv bharat
भूगर्भ जल का दोहन

डॉ. सिन्हा बताते हैं कि यदि भूजल स्तर गिरावट की औसत दर देखें तो प्रतिवर्ष एक मीटर से अधिक की गिरावट राजधानी में दर्ज की जा रही है, जो एक अलार्म की स्थिति है, क्योंकि विगत 15 वर्ष में शहर के तमाम क्षेत्रों में 15 से 20 मीटर तक की भूजल स्तर में गिरावट हुई है. चिंता की बात यह है कि के अत्याधिक दोहन और भूजल स्तर की खतरनाक गिरावट के कारण जमीन के भीतर छोटी-छोटी खाइयां बन गई हैं, जो एक गंभीर स्थिति है और लैंड सब्सिडेंस जैसी घटनाएं हो सकती हैं.

लखनऊ में भूजल दोहन से भूजल संसाधनों को अपूरणीय क्षति पहुंची है और इस स्थिति को देखते हुए यह आवश्यक हो गया है कि नलकूपों, बोरिंग आदि से भूजल दोहन में प्रभावी कमी लाई जाए और पेयजल आपूर्ति के विकल्प के तौर पर सतही जल पर निर्भरता बढ़ाई जाए. शहर में भूजल पर निर्भरता कम करते हुए सीमावर्ती क्षेत्रों में नलकूपों का निर्माण करके शहर में आपूर्ति का वैकल्पिक प्रबंध किया जाना भी जरूरी हो गया है.

etv bharat
राजधानी के सीतापुर रोड स्थिति केशवनगर में व्यावसायिक उपयोग के लिए भूजल से भरे जा रहे टैंकर

भूगर्भ जल दोहन पर नियंत्रण के लिए हर जिले में जिलाधिकारी की अध्यक्षता में जिला स्तरीय 'भूजल प्रबंधन परिषद' का गठन एक्ट के अधीन किया गया है. इसी प्रकार एक्ट के अधीन हर शहर में 'नगर पालिका भूजल प्रबंधन समिति' का भी गठन किया गया है. हालांकि जमीनी स्तर पर कहीं भी कोई समिति काम करती दिखाई नहीं देती. राजधानी लखनऊ में तमाम स्थानों पर भूगर्भ से पानी निकालकर टैंकरों से बेचा जा रहा है, लेकिन जिला प्रशासन को न तो इसकी खबर है और नहीं इस पर कोई कार्रवाई ही की जा रही है. यह तो केवल राजधानी की स्थिति है. प्रदेश के हर शहर में इसी प्रकार भूजल निकाला जा रहा है. कृषि कार्य के लिए भी हमारी सर्वाधिक निर्भरता भूजल पर है. व्यावसायिक उपयोग का भी अधिकांश पानी जमीन से ही निकाला जाता है. ऐसे में आने वाले वक्त में भूजल की स्थिति गंभीर होने वाली है. चिंता इस बात की है कि इसे लेकर कोई भी संजीदा नहीं है.

पढ़ेंः ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के लिए सरकार को करने होंगे और काम

लखनऊ: प्रदेश में भूगर्भ जल का दोहन चरम पर है. इसे रोकने के लिए बनाए गए कानून धूल फांक रहे हैं. हाल यह है कि अति दोहन के कारण राजधानी लखनऊ में ही प्रतिवर्ष भूजल स्तर एक मीटर तक नीचे गिर रहा है. इस दोहन को रोकने के लिए अगस्त 2019 में प्रावधान किए गए थे, लेकिन सरकारी तंत्र इस ओर कतई ध्यान नहीं दे रहा है. इस अधिनियम की धारा 12 की उपधारा 2 में स्पष्ट तौर पर वर्णित है कि भूगर्भ जल व्यावसायिक अथवा सामूहिक उपयोग के लिए विक्रय करने का अधिकार किसी व्यक्ति अथवा संस्था को अधिकार नहीं होगा और ऐसा कार्य अध्याय आठ के अधीन दंडनीय माना जाएगा. लखनऊ के तमाम स्थानों पर बोरिंग कर भूगर्भ जल टैंकरों से खुलेआम बेचा जाता है, लेकिन इस पर किसी की नजर नहीं है.

भूजल विशेषज्ञ एवं ग्राउंड वाटर एक्शन ग्रुप के संयोजक डॉ. आरएस सिन्हा बताते हैं कि प्रदेश के भूजल दोहन में राजधानी लखनऊ प्रथम स्थान पर है. यहां जल संस्थान के जलापूर्ति करने वाले नलकूपों के अलावा अन्य व्यावसायिक, औद्योगिक, संस्थागत, व्यक्तिगत, आवासीय योजनाओं, समरसेबल बोरिंग आदि के माध्यम से प्रतिदिन लगभग 160 करोड़ लीटर पानी निकाला जा रहा है. शहर में अधाधुंध दोहन का आकलन इसी से होता है कि एक वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में हर दिन भारी भरकम मात्रा में लगभग 40 लाख लीटर भूजल निकाला जा रहा है, जिसकी भरपाई नामुमकिन है. गंभीर स्थिति यह है कि ऊपर का स्तर पूरी तरह सूख चुका है और अब गहरे स्तर से भूजल निकाला जा रहा है, जिसका रिचार्ज हो पाना वैज्ञानिक दृष्टि से संभव प्रतीत नहीं होता है.

etv bharat
भूगर्भ जल का दोहन

डॉ. सिन्हा बताते हैं कि यदि भूजल स्तर गिरावट की औसत दर देखें तो प्रतिवर्ष एक मीटर से अधिक की गिरावट राजधानी में दर्ज की जा रही है, जो एक अलार्म की स्थिति है, क्योंकि विगत 15 वर्ष में शहर के तमाम क्षेत्रों में 15 से 20 मीटर तक की भूजल स्तर में गिरावट हुई है. चिंता की बात यह है कि के अत्याधिक दोहन और भूजल स्तर की खतरनाक गिरावट के कारण जमीन के भीतर छोटी-छोटी खाइयां बन गई हैं, जो एक गंभीर स्थिति है और लैंड सब्सिडेंस जैसी घटनाएं हो सकती हैं.

लखनऊ में भूजल दोहन से भूजल संसाधनों को अपूरणीय क्षति पहुंची है और इस स्थिति को देखते हुए यह आवश्यक हो गया है कि नलकूपों, बोरिंग आदि से भूजल दोहन में प्रभावी कमी लाई जाए और पेयजल आपूर्ति के विकल्प के तौर पर सतही जल पर निर्भरता बढ़ाई जाए. शहर में भूजल पर निर्भरता कम करते हुए सीमावर्ती क्षेत्रों में नलकूपों का निर्माण करके शहर में आपूर्ति का वैकल्पिक प्रबंध किया जाना भी जरूरी हो गया है.

etv bharat
राजधानी के सीतापुर रोड स्थिति केशवनगर में व्यावसायिक उपयोग के लिए भूजल से भरे जा रहे टैंकर

भूगर्भ जल दोहन पर नियंत्रण के लिए हर जिले में जिलाधिकारी की अध्यक्षता में जिला स्तरीय 'भूजल प्रबंधन परिषद' का गठन एक्ट के अधीन किया गया है. इसी प्रकार एक्ट के अधीन हर शहर में 'नगर पालिका भूजल प्रबंधन समिति' का भी गठन किया गया है. हालांकि जमीनी स्तर पर कहीं भी कोई समिति काम करती दिखाई नहीं देती. राजधानी लखनऊ में तमाम स्थानों पर भूगर्भ से पानी निकालकर टैंकरों से बेचा जा रहा है, लेकिन जिला प्रशासन को न तो इसकी खबर है और नहीं इस पर कोई कार्रवाई ही की जा रही है. यह तो केवल राजधानी की स्थिति है. प्रदेश के हर शहर में इसी प्रकार भूजल निकाला जा रहा है. कृषि कार्य के लिए भी हमारी सर्वाधिक निर्भरता भूजल पर है. व्यावसायिक उपयोग का भी अधिकांश पानी जमीन से ही निकाला जाता है. ऐसे में आने वाले वक्त में भूजल की स्थिति गंभीर होने वाली है. चिंता इस बात की है कि इसे लेकर कोई भी संजीदा नहीं है.

पढ़ेंः ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के लिए सरकार को करने होंगे और काम

Last Updated : Jun 10, 2023, 10:06 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.