लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने सोमवार को राजभवन से वेबिनार को संबोधित किया. इसमें उन्होंने जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय बलिया और मुरली मनोहर टाउन स्नातकोत्तर महाविद्यालय बलिया के कृषि संकाय की ओर से आयोजित वेबिनार में हिस्सा लिया. इसका विषय जलवायु परिवर्तन के काल में पोषण एवं खाद्य सुरक्षा चुनौतियां एवं समाधान रखा गया था. इस दौरान राज्यपाल ने कहा कि पर्यावरण प्रदूषण के कारण जलवायु परिवर्तन मानव के लिए खतरा बनता जा रहा है. चक्रवात, सूखा, बाढ़, भूस्खलन, लू और समुद्र का बढ़ता जलस्तर जलवायु परिवर्तन के लिए सबसे बड़ा कारक है.
राज्यपाल ने कहा कि भारतीय परंपरा में पेड़-पौधों में परमात्मा, जल में जीवन, चांद और सूरज में परिवार का भाव देखने को मिलता है. वेदों में पृथ्वी और पर्यावरण को शक्ति का मूल माना जाता है. उन्होंने कहा कि मानव की लालची प्रवृत्ति ने जिस निर्ममता से प्रकृति का शोषण किया है, उसका परिणाम यह है कि आज पृथ्वी और मानव स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ रहे हैं. जब प्राकृतिक आपदा आती है तो सबसे ज्यादा परेशानी समाज के निर्धन एवं वंचित लोगों पर ही पड़ती है, इसलिए वर्तमान प्राकृतिक संपदा को सुरक्षित रखने का प्रयास करें.
राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने कहा कि जलवायु परिवर्तन कृषि के लिए एक बड़ी चुनौती है, जिसका कृषि उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है. जलवायु परिवर्तन से दृष्टिगत हो रहे दुष्प्रभावों का सामना करने में जैव प्रौद्योगिकी अपनी भूमिका निभा सकती है. राज्यपाल ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि हमारे किसान दिन-रात मेहनत करके देश की खाद्य सुरक्षा को बनाए रखने के लिए प्रयासरत हैं. आज किसानों और कृषि वैज्ञानिकों की कड़ी मेहनत के फलस्वरुप हमारे खाद्य भंडार भरे रहते हैं. हमारा देश खाद्यान्न के क्षेत्र में अब आत्मनिर्भर है. उन्होंने कहा कि कोविड-19 के दौरान देश में खाद्यान्न आपूर्ति की निरंतरता इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है.
राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने कहा कि पोषण सुरक्षा के लिए संतुलित आहार में पोषक तत्वों की पर्याप्त उपस्थिति की आवश्यकता होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न कल्याणकारी नीतियों और योजनाओं के माध्यम से महिलाओं एवं बच्चों के पोषण के लिए प्रयास किए जा रहे हैं. भारत में 5 साल से कम उम्र के 43.5 प्रतिशत बच्चे और 50% महिलाएं कुपोषण एवं एनीमिया की शिकार हैं. उन्होंने यह भी कहा कि कुपोषण हमारे अस्तित्व, विकास, स्वास्थ्य, उत्पादकता और आर्थिक स्थिति को भी प्रभावित करता है.