लखनऊ : उत्तर प्रदेश में हायर एजुकेशन महंगी हो गई है. कहने को प्रदेश सरकार भले ही 19 राज्य विश्वविद्यालयों का संचालन कर रही है लेकिन इनमें से ज्यादातर स्टेट यूनिवर्सिटीज की पढ़ाई गरीब और जरूरतमंद परिवारों की जेब के बाहर है. जी हां, सरकारी पैसे पर चलने वाली इन यूनिवर्सिटी में प्राइवेट कॉलेज और यूनिवर्सिटी जैसी फीस ली जा रही है. कुछ विश्वविद्यालयों में एमबीए, बीबीए डी.फार्मा जैसे प्रोफेशनल कोर्सेज तो प्राइवेट यूनिवर्सिटी की फीस से भी ज्यादा हैं. सेल्फ फाइनेंस कोर्स के नाम पर यह पढ़ाई अभिभावकों की जेब पर भारी पड़ रही है.
उत्तर प्रदेश में इस समय 19 राज्य विश्वविद्यालय का संचालन किया जा रहा है. इनमें सबसे पुराना राज्य विश्वविद्यालय लखनऊ विश्वविद्यालय है. यह विश्वविद्यालय तेजी से महंगा होता जा रहा है. हालत यह है कि कुछ कोर्सेज की फीस तो शहर में ही चलने वाले प्राइवेट यूनिवर्सिटी से ज्यादा महंगी हो गई है.
लखनऊ विश्वविद्यालय में इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट साइंसेस के अधीन संचालित एमबीए पाठ्यक्रम की प्रति सेमेस्टर शुल्क ₹81000 है. यानी एक साल में करीब ₹162000 शुल्क निर्धारित किया गया है जबकि शहर में ही संचालित इंटीग्रल यूनिवर्सिटी में एमबीए का साल भर की फीस ₹1,25,000 है. इसी तरह, शहर के दूसरे प्राइवेट विश्वविद्यालय श्री रामस्वरूप मेमोरियल यूनिवर्सिटी में पहले साल ₹1,45,000 एमबीए की फीस ली जाती है.
यह भी पढ़ें- लखनऊ विश्वविद्यालय में छात्र कल्याण छात्रवृत्ति के लिए 50 छात्रों का चयन
कोर्स एक फीस अलग-अलग : विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के दिशा निर्देशों के चलते पढ़ाने वाले शिक्षकों की न्यूनतम योग्यता भी समान है. यहां के शिक्षकों के वेतन से लेकर दूसरे अनुदान आम जनता के टैक्स दिया जाता है. फिर भी फीस को लेकर इन में एकरूपता बिल्कुल भी नहीं है. इसकी एक तस्वीर लखनऊ में ही नजर आती है.
लखनऊ विश्वविद्यालय में बीबीए की फीस ₹35000 प्रति सेमेस्टर है जबकि लखनऊ के दूसरे राज्य विश्वविद्यालय ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय में बीबीए की फीस प्रति सेमेस्टर ₹25000 निर्धारित की गई है. दोनों ही विश्वविद्यालयों में यह पाठ्यक्रम सेल्फ फाइनेंस मोड पर संचालित किया जा रहा है. शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय में सामान्य वर्ग के बच्चों के लिए बीबीए की फीस ₹24405 प्रति सेमेस्टर निर्धारित है.
बीबीए की तरह ही बीसीए का भी हाल कुछ ऐसा ही है. लखनऊ विश्वविद्यालय में बीसीए की फीस ₹35080 प्रति सेमेस्टर है जबकि ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय में यह ₹25000 प्रति सेमेस्टर निर्धारित की गई है. एमबीए की फीस भाषा विश्वविद्यालय में ₹65000 प्रति सेमेस्टर है जबकि लखनऊ विश्वविद्यालय में सन फाइनेंस मोड पर यह ₹81080 प्रति सेमेस्टर है जबकि शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय में सामान्य वर्ग के बच्चों के लिए यह शुल्क ₹40800 प्रति सेमेस्टर निर्धारित किया गया.
लखनऊ यूनिवर्सिटी, शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय और ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय तीनों में बीटेक पाठ्यक्रम सेल्फफाइनेंस मोड पर संचालित किया जा रहा है. ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय में बीटेक की 4 साल की पढ़ाई की फीस करीब तीन लाख आठ हजार के आसपास बनती है. शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय में यदि 3.50 लाख के आसपास है जबकि लखनऊ विश्वविद्यालय में करीब ₹1,25,000 प्रति वर्ष यानी 5 लाख के आसपास बी.टेक फीस ली जाती है.
लखनऊ विश्वविद्यालय में अगर बीकॉम सेल्फ फाइनेंस पाठ्यक्रम में दाखिला लेना हो तो छात्र को करीब ₹58000 प्रति वर्ष के हिसाब से शुल्क देना होगा जबकि काशी विद्यापीठ में यह करीब 13 से ₹15000 प्रति वर्ष और बुंदेलखंड विश्वविद्यालय में यह करीब ₹20000 प्रति वर्ष है. कहने को यह तीनों ही राज्य विश्वविद्यालय है.
Fees में कहीं कोई एकरूपता नहीं : उत्तर प्रदेश में संचालित सभी 19 राज्य विश्वविद्यालयों की फीस में काफी अंतर है. लखनऊ विश्वविद्यालय ने वर्ष 2018 में सेमेस्टर प्रणाली लागू करने के नाम पर अपने परीक्षा शुल्क को कई गुना बढ़ा दिया. वर्तमान में यहां ढाई हजार से लेकर ₹4000 तक प्रति सेमेस्टर परीक्षा शुल्क विश्वविद्यालय के स्तर पर लिया जा रहा है जबकि कानपुर के छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय, अयोध्या के डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय से लेकर महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ वाराणसी और चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ तक में इतना परीक्षा शुल्क नहीं लिया जाता. अयोध्या विश्वविद्यालय में परीक्षा शुल्क ₹500 से लेकर ₹2000 तक है. रोहिलखंड विश्वविद्यालय में यह ढाई हजार तक जाता है.
युवा नेता लालू कनौजिया का कहना है कि राज्य विश्वविद्यालयों को सरकार से अनुदान मिल रहा है. पैसा आम जनता का खर्च हो रहा है. उसके बावजूद भी यह विश्वविद्यालय गरीब और जरूरतमंद लोगों की पहुंच से बाहर होते जा रहे हैं. छात्रा प्रिंस प्रकाश और हसनैन अहमद का कहना है कि उच्च शिक्षा में वैसे ही बच्चे कम पहुंच पाते हैं. ऐसे में जब शिक्षा इतनी ज्यादा महंगी होगी तो गरीब और जरूरतमंद परिवार के बच्चे आ ही नहीं पाएंगे. केंद्रीय विश्वविद्यालयों की तरह राज्य विश्वविद्यालयों को भी सरकार से मदद मिलनी चाहिए ताकि प्रदेश के हर जरूरतमंद परिवार के बच्चे को अच्छी शिक्षा पाने का मौका मिले.
ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत ऐप