लखनऊ: अपने ही एक अधिकारी को विभागीय दंड दिलाने के प्रयास में राज्य सरकार को झटका लगा है. हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने इस सम्बंध में राज्य सरकार की याचिका को खारिज कर दिया है. न्यायालय ने सम्बंधित विभाग द्वारा अधिकारी को अनियमितताओं का दोषी पाए जाने को विधिसम्मत नहीं पाया है.
यह आदेश न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति वेद प्रकाश वैश की खंडपीठ ने राज्य सरकार की याचिका पर पारित किया गया है. याचिका में सरकार ने ट्रिब्युनल के 26 फरवरी 2019 के फैसले को चुनौती दी थी. उक्त फैसले में स्टेट पब्लिक सर्विस ट्रिब्युनल ने बलरामपुर में तैनात रहे जिला आबकारी अधिकारी नीरज वर्मा के खिलाफ विभागीय कार्रवाई में पारित आदेश को खारिज कर दिया था. दरअसल अधिकारी पर लाइसेंस शुल्क में अनियमितता, पांच लाख 64 हजार 250 रुपये का चालान शुल्क न जमा करना और शराब की तमाम दुकानों पर चालान शुल्क न लागू करने के आरोप थे. मामले की प्राथमिक जांच संयुक्त आबकारी आयुक्त, गोरखपुर ने की और नीरज वर्मा को क्लीन चिट दे दी. हालांकि विभाग की अनुशासनिक अथॉरिटी जांच अधिकारी से सहमत नहीं हुई और नीरज वर्मा का एक साल का इंक्रीमेंट रोकने, सेंसर एंट्री का आदेश दिया.
न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि अनुशासनिक अथॉरिटी ने जांच रिपोर्ट से सहमत न होने का कोई कारण नहीं बताया है. अधिकारी के खिलाफ उसके पास क्या साक्ष्य थे, इसका भी जिक्र अपने आदेश में नहीं किया है. न्यायालय ने अथॉरिटी के आदेश को विधिसम्मत न पाते हुए, राज्य सरकार की याचिका को खारिज कर दिया.