लखनऊ: उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले गोमती रिवरफ्रंट घोटाले (gomti river front scam) का जिन्न बाहर आ चुका है. CBI एक्शन में है. CBI की कार्रवाई से केवल अखिलेश ही नहीं, बल्कि शिवपाल यादव (Shivpal Singh Yadav) का सिरदर्द भी बढ़ सकता है. रिवर फ्रंट घोटाले में CBI की छापेमारी के जरिए सरकार तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के साथ ही शिवपाल सिंह पर भी फंदा कसने की तैयारी में है. सपा सरकार के समय यह घोटाला हुआ, तब शिवपाल सिंचाई मंत्री थे. भारतीय जनता पार्टी (bjp) घोटाले के मुद्दे पर सपा को घेरने में जुट गई. 2022 में विधानसभा चुनाव(up assembly elections 2022) में बड़ा मुद्दा बन सकता है.
CBI की कार्रवाई की वजह ये तो नहीं
यूपी विधानसभा चुनाव (up assembly elections) की घड़ी के करीब आने के साथ ही सभी दलों ने दांव-पेच आजमाने शुरू कर दिए हैं. अखिलेश भी सत्तारूढ़ बीजेपी के साथ मुकाबले की तैयारियों में लगे हुए हैं, लेकिन मुलायम परिवार के लिए सबसे बड़ी समस्या आपसी पारिवारिक फूट है. जब तक मुलायम सिंह यादव सर्वेसर्वा थे, तब तक तो सब ठीक था, लेकिन उनके बाद चाचा शिवपाल और भतीजे अखिलेश की लड़ाई से समाजवादी पार्टी को बड़ा नुकसान हुआ. शिवपाल ने समाजवादी पार्टी से अलग होकर प्रगतिशील समाज पार्टी तो बना ली है, लेकिन अभी भी वह अखिलेश के साथ आने की कोशिश में लगे रहते हैं. इसका संकेत वह अक्सर मंच से देते रहे हैं. वह पार्टी का विलय तो नहीं करेंगे, लेकिन सम्मानजनक सीटें मिलने पर अखिलेश के साथ गठबंधन कर सकते हैं. दोनों के साथ आने की स्थिति में बीजेपी के स्थिति चुनौतीपूर्ण हो सकती है. सीबीआई की ये कार्रवाई कहीं दोनों को करीबी आने से रोकने के लिए तो नहीं हैं ये सवाल भी उठ रहे हैं.
चुनाव नजदीक तो चला CBI का डंडा
2022 में यूपी में विधानसभा चुनाव होना है. चुनाव के नजदीक आते ही लखनऊ हुए गोमती रिवर फ्रंट घोटाले में एंटी करप्शन ब्रांच ने गोमती रिवर फ्रंट घोटाले में आरंभिक जांच के बाद तत्कालीन अधीक्षण अभियंता रूप सिंह यादव, शिवमंगल यादव, चीफ इंजीनियर काजिम अली, असिस्टेंट इंजीनियर सुशील कुमार यादव समेत 190 लोगों के विरुद्ध नया केस दर्ज किया है. इस एफआईआर के आधार पर CBI ने पांच जुलाई को पश्चिम बंगाल, राजस्थान, उत्तर प्रदेश समेत एक साथ 40 जगहों पर छापेमारी की. छापेमारी में CBI ने उत्तर प्रदेश में लखनऊ के अलावा, नोएडा, गाजियाबाद, बुलंदशहर, रायबरेली, सीतापुर, इटावा, आगरा में छापेमारी की है. सिर्फ लखनऊ में 20 स्थानों पर सीबीआई ने दबिश दी और आरोपियों के घर और ऑफिस को खंगाला. सीबीआई विशेष अदालत में फरवरी 2021 में 6 लोगों के खिलाफ पहले ही चार्जशीट दाखिल भी कर चुकी है.
1437 करोड़ में 40 फीसदी पैसा खा गए जिम्मेदार
गोमती रिवर फ्रंट के लिए सपा सरकार ने 1513 करोड़ स्वीकृत किए थे, जिसमें से 1437 करोड़ रुपये जारी होने के बाद भी मात्र 60 फीसदी काम ही हुआ. रिवर फ्रंट का काम करने वाली संस्थाओं ने 95 फीसदी बजट खर्च करके भी पूरा काम नहीं किया. इस घोटाले में समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के कई करीबी नेता भी आरोपी हैं.
क्या हैं आरोप
आरोप है कि डिफाल्टर कंपनी को ठेका देने के लिए टेंडर की शर्तों में बदलाव किया गया था. इस बड़े प्रोजेक्ट में करीब 800 टेंडर निकाले गए थे, जिसका अधिकार चीफ इंजीनियर को दे दिया गया था. CBI गिरफ्त में आये रूप सिंह यादव समेत कई आरोपितों की संपत्तियां ईडी पहले ही अटैच कर चुकी है. ED और भी आरोपियों के सम्पतियों की जांच कर रही है. मई 2017 में रिटायर्ड जज आलोक कुमार सिंह की अध्यक्षता में इसकी न्यायिक जांच में कई खामियां उजागर हुईं थी. इसके बाद रिपोर्ट के आधार पर योगी आदित्यनाथ सरकार ने सीबीआइ जांच की सिफारिश की थी.
एक ही काम के लिए पति-पत्नी दोनों ने डाले टेंडर
गोमती रिवर फ्रंट परियोजना में सीबीआई की प्रारंभिक जांच में खुलासा हुआ है कि सिल्ट सफाई के एक ही काम के लिए पति-पत्नी दोनों ने अलग-अलग टेंडर डाले. इसमें पत्नी ने 1.88 करोड़ रुपये का ठेका हथिया लिया. अफसरों ने जिन्हें ठेका देना चाहा, उन्हें टेंडर प्रक्रिया में एल-1 ग्रेड में (सबसे कम रेट देने वाली फर्म) लाने के लिए खूब खेल किया गया. गोमती रिवर की 1.2 किमी लंबाई में सिल्ट सफाई का काम सुनीता यादव की ग्लोबल कंस्ट्रक्शन कंपनी को दिया गया था. इसकी अनुबंधित लागत 1.88 करोड़ रुपये थी. सुनीता का बिजिनेस उनके पति त्रुशन पाल सिंह यादव देखते हैं. इस टेंडर में दूसरी बिड मेसर्स मा अवंतिका बिल्डर्स ने डाली, जिसके प्रोपराइटर सुनीता के पति त्रुशन पाल ही थे, यानी, पति और पत्नी ही एक-दूसरे से एल-1 आने के लिए कॉम्प्टीशन कर रहे थे.
सांठगांठ कर छापे समाचार पत्रों में विज्ञापन
सीबीआई कीजांच में कहा गया कि परियोजना में कुल 673 कामों के लिए अलग-अलग अनुबंध किए गए. इनमें से 519 काम टेंडर से दिए गए. 115 काम कोटेशन, 29 काम सीधी आपूर्ति, 9 काम मिश्रित खर्च और एक काम एमओयू के आधार पर दिए गए. अधिकांश टेंडर नियमानुसार, राष्ट्रीय समाचार पत्रों में नहीं छपवाए गए. साठगांठ करके फर्जी लेटर सूचना विभाग को भेजे गए. आपूर्ति आदेश और चयन बांड संदिग्ध लाभार्थी फर्मों और कंपनियों को दिए गए.
निर्माण के साथ ही विवादों से घिर गया था प्रोजेक्ट
अखिलेश सरकार का यह प्रोजेक्ट निर्माण के साथ ही विवादों में घिर गया था. इसमें प्रोजेक्ट की लागत तीन गुना तक बढ़ाने, दागी कंपनियों को काम देने, विदेश से महंगा सामान खरीदने, चैनलाइजेशन के काम में घोटाले, नेताओं और अधिकारियों के विदेश दौरे पर फिजूलखर्ची करने सहित वित्तीय लेनेदेन के तमाम आरोप लगे थे. योगी सरकार ने सत्ता संभालते ही इसकी जांच के आदेश दिए थे. इन इंजीनियरों पर भी शिकंजाइस मामले में आठ इंजीनियर्स के खिलाफ पुलिस के साथ सीबीआइ और ईडी केस दर्ज कर जांच कर रही हैं. इसमें तत्कालीन चीफ इंजीनियर गोलेश चन्द्र गर्ग, एसएन शर्मा, काजिम अली, शिवमंगल सिंह, कमलेश्वर सिंह, रूप सिंह यादव, सुरेन्द्र यादव शामिल हैं. यह सभी सिंचाई विभाग के इंजीनियर हैं, जिनके खिलाफ जांच चल रही है.
तत्कालीन मुख्य सचिव आलोक रंजन भी रडार पर
इसके अलावा तत्कालीन मुख्य सचिव आलोक रंजन का भी नाम इस घोटाले में शामिल है. हालांकि ईटीवी भारत से फोन पर हुई बातचीत में पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन ने कहा कि उन्हें इस घोटाले से कोई मतलब नहीं है और इसकी जिम्मेदारी विभागीय स्तर पर थी. ऐसे में उनका नाम इस घोटाले से अगर कोई जोड़ रहा है तो गलत है. वह किसी भी प्रकार की जांच का सामना करने के लिए तैयार हैं. उन्होंने कैमरे पर कुछ भी बोलने से इंकार कर दिया.
इसी प्रकार तत्कालीन प्रमुख सचिव वित्त विभाग राहुल भटनागर का नाम भी चर्चा में है. कहा जा रहा है कि इन बड़े अफसरों ने अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन ठीक ढंग से नहीं किया और इतनी बड़ी अनियमितता की गई. अगर इन अफसरों के स्तर पर बेहतर ढंग से अपने प्रशासनिक दायित्व का निर्वहन किया गया होता तो इतना बड़ा घोटाला नहीं होता.
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शिवपाल सिंह यादव की अध्यक्षता में तैयार किया गया था खाका
आपको बता दें कि रिवर फ्रंट का खाका अखिलेश यादव की सरकार में तत्कालीन सिंचाई मंत्री शिवपाल सिंह यादव की अध्यक्षता में तैयार किया गया था. कैबिनेट से बकायदा इसका प्रस्ताव पास किया गया था. उस समय रिवर फ्रंट प्रोजेक्ट को लेकर सिंचाई विभाग ने टेंडर प्रक्रिया अपनाई थी, जिसमें विभाग के तमाम बड़े अभियंताओं और अधिकारियों के भी नाम शामिल हैं.
5 जुलाई 2021 को 40 ठिकानों पर छापेमारी
सीबीआई ने 5 जुलाई 2021 को यूपी में लखनऊ के अलावा, नोएडा, गाजियाबाद, बुलंदशहर, रायबरेली, सीतापुर, इटावा, आगरा में छापेमारी की है. सीबीआई की टीम ने उत्तर प्रदेश के अलावा राजस्थान और पश्चिम बंगाल में 40 जगहों पर एक साथ छापेमारी शुरू की है. माना जा रहा है कि घोटाले में जांच की सुई समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेताओं के तरफ भी जाएगी.
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गोमती रिवर फ्रंट घोटाला... कब क्या हुआ?
- गोमती रिवर फ्रंट परियोजना अखिलेश सरकार का ड्रीम प्रोजेक्ट था.
- यह 1513 करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट, जिसमें से 1437 करोड़ रुपये खर्च हो जाने के बाद भी 40 प्रतिशत काम पूरा नहीं हो सका.
- जिस कंपनी को इस काम का ठेका दिया गया था, वह पहले से काली सूची में दर्ज थी.
- वर्ष 2017 में योगी आदित्यनाथ सरकार के सत्ता में आने के बाद घोटाले की बात सामने आई.
- तत्कालीन मुख्य सचिव राहुल भटनागर ने प्रोजेक्ट में गड़बड़ी का संदेह व्यक्त करते हुए इसकी जांच की अनुशंसा की थी.
- इस पर सरकार ने न्यायिक जांच बैठा दी थी.
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय के रिटायर्ड न्यायमूर्ति आलोक सिंह की अध्यक्षता में जांच समिति गठित की गई.
- समिति ने जांच में दोषी पाए गए इंजीनियरों और अफसरों के खिलाफ केस दर्ज कराने की संस्तुति की थी.
- 19 जून 2017 को सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता डॉ. अंबुज द्विवेदी ने गोमतीनगर थाने में धोखाधड़ी सहित अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज कराया था.
- इस प्रोजेक्ट में हुई गड़बड़ियों की विस्तृत जांच की जिम्मेदारी सीबीआई को सौंप दी गई.
- सीबीआई की एंटी करप्शन ब्रांच ने सिंचाई विभाग की ओर से गोमतीनगर थाने में दर्ज मुकदमे को आधार बनाकर 30 नवंबर 2017 को नया मुकदमा दर्ज किया.
- सीबीआई अब जांच कर रही है कि प्रोजेक्ट के कार्य पूर्ण कराए बगैर ही स्वीकृत बजट की 95 प्रतिशत धनराशि कैसे खर्च हो गई?
- प्रारंभिक जांच के अनुसार, प्रोजेक्ट में मनमाने तरीके से खर्च दिखाकर सरकारी धन का बंदरबांट हुआ है.
- प्रारम्भिक जांच के आधार पर सीबीआई ने 20 नवम्बर 2020 को इसमें मुख्य आरोपी सिंचाई विभाग के तत्कालीन मुख्य अभियन्ता रूप सिंह यादव और वरिष्ठ सहायक राम कुमार यादव को गिरफ्तार कर लिया था. इस केस में यह पहली गिरफ्तारी थी.
- इस मामले में शामिल आधे से अधिक अभियन्ता सेवानिवृत्त हो चुके हैं.
- पूर्व में सीबीआई जांच में सिंचाई विभाग की ओर से पूरा सहयोग नहीं किए जाने का भी आरोप लगा था.
- इस आधार पर शासन की ओर से विभाग को पूरा सहयोग करने के निर्देश दिए गए.
- बीते तीन सालों से शासन की ओर से बार-बार लिखा जा रहा है कि जो अधिकारी-कर्मचारी गोमती रिवर फ्रंट के कार्यों से जुड़े रहे हैं, उन्हें अन्यत्र सम्बद्ध किया जाए, लेकिन विभाग की ओर से इस बारे में अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई.
- पांच जुलाई को पश्चिम बंगाल, राजस्थान, उत्तर प्रदेश समेत एक साथ 40 जगहों पर छापेमारी की है. CBI ने उत्तर प्रदेश में लखनऊ के अलावा, नोएडा, गाजियाबाद, बुलंदशहर, रायबरेली, सीतापुर, इटावा, आगरा में छापेमारी की है.