लखनऊ: नई शिक्षा नीति लागू होने से शिक्षा जगत में बड़े बदलाव देखने को मिलेंगे. खासकर उच्च शिक्षा में जो लोग लकीर के फकीर बने हुए थे, उन्हें अब बदलाव करना पड़ेगा. उनके लिए यह बदलाव का एक अवसर भी कहा जा सकता है. नई शिक्षा नीति पर लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर एसपी सिंह ने ईटीवी भारत के साथ विशेष बातचीत की.
नई शिक्षा नीति को लेकर बोले पूर्व कुलपति
प्रोफेसर एसपी सिंह ने कहा कि नई शिक्षा नीति की बड़ी बात यह है कि पहली बार शिक्षा के सभी सोपानों को एक साथ जोड़ने का काम किया गया है. यानी सचमुच शिक्षा किसी व्यक्ति के लिए टुकड़ों में नहीं हो सकती है. उन्होंने कहा कि शिक्षा अगर होगी तो समग्र होगी, समग्रता में होगी. इसके तहत शिक्षा का कार्यक्रम होगा. एसपी सिंह ने कहा कि यह नीति कुछ उसी तरह से है, जिसमें प्राथमिक शिक्षा से लेकर माध्यमिक शिक्षा और उच्च शिक्षा को एक साथ जोड़ने का कार्य किया गया है.
प्रोफेसर एसपी सिंह ने बताया कि स्नातक 3 के बजाय अब 4 वर्ष में पूरा होगा. पूर्व कुलपति प्रोफेसर एसपी सिंह इसे विदेशों का पैटर्न मान रहे हैं. उन्होंने कहा कि यह पैटर्न दिल्ली विश्वविद्यालय ने कुछ वर्ष पूर्व ही शुरू किया था, जिसका बहुत विरोध हुआ था. छात्रों के विरोध के बाद इसे वापस ले लिया गया था. फिर 4 के बजाय इसे 3 साल का कर दिया गया था. चार साल का यदि ग्रेजुएशन होगा तो इसी नीति में पीजी को दो साल के बजाय एक वर्ष का किया जाएगा. प्रोफेसर एसपी सिंह ने बताया कि एक और नई बात इसमें की जा रही है कि स्नातक के साथ ही युवाओं को ट्रेनिंग प्रोग्राम के तहत प्रशिक्षण दिया जाएगा.
शिक्षकों के बारे में बात करते हुए प्रोफेसर एसपी सिंह ने बताया कि अब शिक्षकों को आसानी से प्रमोशन भी नहीं मिलेगा. नई नीति के तहत यह निर्धारण किया गया है कि शिक्षकों के प्रदर्शन के आधार पर ही उनका प्रमोशन किया जाएगा. सरकार शिक्षकों के प्रदर्शन का कैसे आकलन कर पाएगी. इस सवाल के जवाब में एसपी सिंह का कहना है कि इसके लिए सरकार को कई बिंदुओं पर एक एक्शन प्लान बनाना होगा, जिसके लिए अभी काफी मंथन करना होगा. वह कार्य सरकार की तरफ से किया जाएगा. इनमें तमाम इंडिकेटर्स दिए जाएंगे, जिनके माध्यम से गुणवत्तापरक शिक्षा को बढ़ावा देने और शिक्षकों के प्रदर्शन का आकलन करने के लिए कार्य किया जाए. ऐसे ही तमाम विषयों का मूल्यांकन किया जाएगा. उन्होंने कहा कि बड़ी बात यह है कि शिक्षकों का प्रमोशन किसी मूल्यांकन के आधार पर किया जाएगा.
पूर्व कुलपति ने बताया कि संरचनात्मक परिवर्तन करने की योजना का एक दर्शन इस नई शिक्षा नीति में है. इसमें एक योजना यह भी है कि 15 सालों के बाद विश्वविद्यालयों से महाविद्यालयों को दी जाने वाली संबद्धता समाप्त कर दी जाए. इसके स्थान पर उन कॉलेजों को ही इतना सक्षम बनाया जाए, ताकि वे अपना शिक्षा पाठ्यक्रम अपने स्तर पर तय करें और अपनी गुणवत्ता प्रमाणित कर ऑटोनॉमस बॉडी के रूप में शिक्षा क्षेत्र में कार्य करें. उन्होंने बताया कि इसमें योजना यहां तक है कि यदि वह इसमें बहुत अच्छा करते हैं तो उन महाविद्यालयों को डिग्री देने का भी अधिकार दिया जाएगा. इसके साथ ही इसमें क्लस्टर महाविद्यालयों की योजना भी है, जिसके तहत छोटे-छोटे महाविद्यालय एक साथ जुड़ जाएंगे.
प्रोफेसर एसपी सिंह ने जानकारी देते हुए बताया कि ऑटोनॉमी के लिए केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर एक व्यवस्था दी है. वहीं राज्यों को भी राज्यस्तरीय ऑटोनॉमी प्लान बनाकर कार्य करने की व्यवस्था दी गई है. राज्य भी अपना अलग से प्लान बनाकर काम कर सकेंगे. उन्हें अपने स्तर पर डेवलपमेंट का प्लान बनाना होगा. उन्होंने बताया कि अपनी संस्था का एक अल्पकालिक, एक दीर्घकालिक प्लान तैयार करना होगा. इस प्लान के साथ अपने आपको स्थापित करना होगा कि वे कितना अच्छा कर ले रहे हैं और इस योजना के साथ कितना आगे बढ़ रहे हैं. इस योजना से कॉलेज प्रबंधकों में एक लीडरशिप विकसित होगी और जोखिम लेने की क्षमता बढ़ेगी. प्रोफेसर एसपी सिंह ने बताया कि वह अपने अनुभव के आधार पर कह सकते हैं कि उच्च शिक्षा में लोगों की आदत घिसी पिटी लकीर के आधार पर ही चलने की है. उन्होंने बताया कि नई शिक्षा नीति के तहत अगर काम होगा तो बदलाव देखने को जरूर मिलेगा.
लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर ने बताया कि कोई परिवर्तन नहीं चाहता है, लेकिन हम मानते हैं कि पीढ़ियां बदलती चली जा रही हैं. पीढ़ियों का गैप बदलता जा रहा है, शिक्षा व्यवस्था को हम जंजीरों में बांधकर रखे हुए हैं, उसमें परिवर्तन को जोड़ना चाहिए. उन्होंने कहा कि छोटे-छोटे पाठ्यक्रम को जोड़ने की बात आती है तो वह भी विवाद का कारण बनता है, उसे नहीं जोड़ा जाता है. बड़ी-बड़ी परीक्षा पद्धति में बदलाव, पढ़ाई के तरीके में बदलाव लाने की जरूरत है.