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प्रदूषण की रोकथाम के गुर सिखा रहे लखनऊ के मंदिर

राजधानी लखनऊ के मंदिरों में भगवान को चढ़ने वाले फूलों का पुन: प्रयोग कर प्रदूषण में कमी लाने का प्रयास किया जा रहा है. इन फूलों को एक जगह इकट्ठा कर उससे अगरबत्ती व खाद बनाई जाती है. मंदिर के फूलों का इस प्रकार प्रयोग कर प्रदूषण से बचा जा सकता है.

फूलों से बनती है अगरबत्ती व खाद
फूलों से बनती है अगरबत्ती व खाद
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Published : Nov 13, 2020, 2:31 PM IST

लखनऊ: नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने बीते दिनों प्रदूषण का हवाला देते हुए राजधानी में पटाखों की बिक्री व आतिशबाजी पर रोक लगा दी है. राजधानी में तेजी से बढ़ता प्रदूषण जिम्मेदार अधिकारियों के लिए सरदर्द बना हुआ है, लेकिन अगर हम छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखें तो काफी हद तक प्रदूषण की समस्या से निजात पाई जा सकती है. इसके लिए राजधानी के मंदिरों में भगवान को चढ़ने वाले फूलों का पुन: प्रयोग कर प्रदूषण में कमी लाने का प्रयास किया जा रहा है.

स्पेशल रिपोर्ट
लखनऊ के यह मंदिर दे रहे सीखइच्छाशक्ति व मैनेजमेंट से किस तरह से प्रदूषण फैलाने वाली वस्तुओं का सकारात्मक प्रयोग कर सकते हैं. इसका उदाहरण राजधानी के मंदिर दे रहे हैं. आपको बता दें, राजधानी के हनुमान सेतु मंदिर व मां चंद्रिका देवी मंदिर में चढ़ाए जाने वाले फूलों का बेहतर तरीके से प्रयोग किया जा रहा है. सामान्यता मंदिरों में प्रयोग किए जाने वाले फूलों को नदियों में प्रवाहित कर दिया जाता है. प्रयोग किए गए फूलों से बनती है खाद व अगरबत्तीचंद्रिका देवी मंदिर में फूलों का बेहतर तरह से मैनेजमेंट किया जाता है. मंदिर में श्रद्धालुओं द्वारा चलाए गए फूलों को इकट्ठा कर इसे डंपिंग एरिया में ले जाया जाता है. जहां पर फूलों से खाद बनाई जाती है. इस खाद का प्रयोग खेतों में फसल को मजबूती प्रदान करने के लिए किया जाता है. साथ ही फूलों का प्रयोग संस्था के साथ मिलकर अगरबत्ती और धूपबत्ती बनाने में भी किया जाता है. चंद्रिका देवी मंदिर में स्वयं सहायता समूह की मदद से प्रयोग किए गए फूलों से अगरबत्ती व धूपबत्ती बनाने का काम कर रहे हैं. हनुमान सेतु मंदिर में फूलों का बेहतर प्रयोगहनुमान सेतु मंदिर की बात करें तो यहां वर्तमान में फूलों से खाद व अगरबत्ती नहीं बनाई जा रही है, लेकिन पहले प्रयोग किए गए फूलों की मदद से अगरबत्ती व खाद बनाने का काम किया जाता था. हालांकि, यह फूल प्रदूषण का हिस्सा न बनें इसलिए फूलों के निस्तारण के लिए बेहतर व्यवस्था लागू की गई है. बजरंगबली को चढ़ाए जाने वाले फूलों को एक जगह इकट्ठा किया जाता है और फिर इन फूलों को नगर निगम को सौंप दिया जाता है. ऐसे में यह फूल इधर-उधर नहीं पड़े रहते और गोमती नदी व मंदिर का आसपास का इलाका गंदगी व प्रदूषण से बचता है.

लखनऊ: नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने बीते दिनों प्रदूषण का हवाला देते हुए राजधानी में पटाखों की बिक्री व आतिशबाजी पर रोक लगा दी है. राजधानी में तेजी से बढ़ता प्रदूषण जिम्मेदार अधिकारियों के लिए सरदर्द बना हुआ है, लेकिन अगर हम छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखें तो काफी हद तक प्रदूषण की समस्या से निजात पाई जा सकती है. इसके लिए राजधानी के मंदिरों में भगवान को चढ़ने वाले फूलों का पुन: प्रयोग कर प्रदूषण में कमी लाने का प्रयास किया जा रहा है.

स्पेशल रिपोर्ट
लखनऊ के यह मंदिर दे रहे सीखइच्छाशक्ति व मैनेजमेंट से किस तरह से प्रदूषण फैलाने वाली वस्तुओं का सकारात्मक प्रयोग कर सकते हैं. इसका उदाहरण राजधानी के मंदिर दे रहे हैं. आपको बता दें, राजधानी के हनुमान सेतु मंदिर व मां चंद्रिका देवी मंदिर में चढ़ाए जाने वाले फूलों का बेहतर तरीके से प्रयोग किया जा रहा है. सामान्यता मंदिरों में प्रयोग किए जाने वाले फूलों को नदियों में प्रवाहित कर दिया जाता है. प्रयोग किए गए फूलों से बनती है खाद व अगरबत्तीचंद्रिका देवी मंदिर में फूलों का बेहतर तरह से मैनेजमेंट किया जाता है. मंदिर में श्रद्धालुओं द्वारा चलाए गए फूलों को इकट्ठा कर इसे डंपिंग एरिया में ले जाया जाता है. जहां पर फूलों से खाद बनाई जाती है. इस खाद का प्रयोग खेतों में फसल को मजबूती प्रदान करने के लिए किया जाता है. साथ ही फूलों का प्रयोग संस्था के साथ मिलकर अगरबत्ती और धूपबत्ती बनाने में भी किया जाता है. चंद्रिका देवी मंदिर में स्वयं सहायता समूह की मदद से प्रयोग किए गए फूलों से अगरबत्ती व धूपबत्ती बनाने का काम कर रहे हैं. हनुमान सेतु मंदिर में फूलों का बेहतर प्रयोगहनुमान सेतु मंदिर की बात करें तो यहां वर्तमान में फूलों से खाद व अगरबत्ती नहीं बनाई जा रही है, लेकिन पहले प्रयोग किए गए फूलों की मदद से अगरबत्ती व खाद बनाने का काम किया जाता था. हालांकि, यह फूल प्रदूषण का हिस्सा न बनें इसलिए फूलों के निस्तारण के लिए बेहतर व्यवस्था लागू की गई है. बजरंगबली को चढ़ाए जाने वाले फूलों को एक जगह इकट्ठा किया जाता है और फिर इन फूलों को नगर निगम को सौंप दिया जाता है. ऐसे में यह फूल इधर-उधर नहीं पड़े रहते और गोमती नदी व मंदिर का आसपास का इलाका गंदगी व प्रदूषण से बचता है.
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