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परंपरागत कृषि विकास योजना के अंतर्गत किसान को किया गया जागरूक

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Published : Jan 10, 2021, 8:37 AM IST

राजधानी लखनऊ में किसानों को जैविक उत्पादन के लिए आवश्यक इनपुट का प्रशिक्षण दिया गया. किसानों की जमीन का पीजीएस के माध्यम से प्रमाणीकरण कराने का कार्य किया जा रहा है. जिससे उन्हें देश के विभिन्न भागों में प्रमाणित जैविक उत्पादों को बेचने में सुविधा मिलेगी.

किसानों को खेतों में दिया गया प्रशिक्षण.
किसानों को खेतों में दिया गया प्रशिक्षण.

लखनऊ: केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान लगभग 200 हेक्टेयर खेत में दस जैविक किसान उत्पादक समूह के 211 किसानों के माध्यम से परंपरागत कृषि विकास योजना के तहत जैविक उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत है. शनिवार को राजधानी लखनऊ में किसानों को जैविक उत्पादन के लिए आवश्यक इनपुट का प्रशिक्षण दिया गया. बता दें कि किसानों की जमीन का पीजीएस के माध्यम से प्रमाणीकरण कराने का कार्य किया जा रहा है, जिससे उन्हें देश के विभिन्न भागों में प्रमाणित जैविक उत्पादों को बेचने में सुविधा मिलेगी.

जैविक खेती कर किसान बने स्वावलंबी

अपने ही खेत में जैविक उत्पादन के लिए आवश्यक सामग्री का उत्पादन करने के लिए दस जैविक उत्पादन समूहों के लिए ट्रेनिंग प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना की गई है. शनिवार को राजधानी लखनऊ में किसानों को उनके खेत में ही वर्मी कंपोस्ट, बायोडायनेमिक एवं नाडेप खाद तथा बायो-इनहासर को बनाने के लिए आवश्यक इनपुट का प्रशिक्षण दिया गया. यह जैविक उत्पादक समूह बाराबंकी, बांदा और हमीरपुर जिले में भी चुने गए हैं. यहां जाकर भी किसानों को ट्रेनिंग दी जाएगी. इससे उत्पादन की लागत में कमी आएगी और मुनाफा भी बढ़ेगा. साथ ही किसानों को फसल तैयार होने पर उनके उत्पाद को ग्रेडिंग, पैकिंग, ब्रांडिंग और मार्केटिंग की ट्रेनिंग भी दी जाएगी.


आवश्यक वस्तुएं की गई वितरित

इसी कड़ी में एक ट्रेनिंग संस्थान के वैज्ञानिकों ने शैली किरतपुर गांव (बाराबंकी) में 21 रजिस्टर्ड किसानों को प्रशिक्षण दिया. जरूरी जैविक उत्पादन के लिए आवश्यक वस्तुएं जैसे- नीम की खली, स्प्रेयर, स्टिकी इंसेक्ट ट्रैप, नीम का तेल, वर्मी कंपोस्ट बेड और केंचुए बांटे गए.

जैविक खेती के बारे में किया गया जागरूक

संस्थान ने एक विशेष प्रकार के जैविक इनपुट सीआईएसएच-बायो-इनहासर का विकास किया है. जिसे छोटे और सीमांत किसानों के बीच में वितरित किया गया, ताकि वे मिट्टी का स्वास्थ्य सुधार सकें. इससे जैविक उत्पादन में अच्छी उपज प्राप्त होगी. यह एक विशेष प्रकार का फॉर्मूलेशन है, जिसमें परंपरागत रूप से इस्तेमाल किए जाने वाले पंचगव्य, वर्मीवाश, अमृतवाणी और काऊ पेट पिट के लाभकारी बैक्टीरिया का समावेश किया गया है.

इस दौरान डॉ. राम अवध ने परंपरागत कृषि विकास योजना के तहत विभिन्न प्रकार के जैविक इनपुट के उत्पादन को प्रदर्शित किया. जबकि डॉ. आशीष यादव ने इस ट्रेनिंग प्रोग्राम का संयोजन किया तथा किसानों को जैविक उत्पादन के विशेष तकनीकी एवं सावधानियों से अवगत कराया.

व्यावसायिक और सफल जैविक उत्पादन के लिए हमें अपनी सोच में परिवर्तन करना पड़ेगा. बागवानी फसलों में जैविक उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं. फसल का सही चुनाव और अच्छी मात्रा में उत्पादन करके ही मार्केटिंग में सफलता प्राप्त की जा सकती है. अच्छी मार्केटिंग कर जैविक उत्पादों से प्राप्त होने वाली आय में जोखिम को कम किया जा सकता है.

-डॉ. शैलेंद्र राजन, संस्थान के निदेशक

लखनऊ: केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान लगभग 200 हेक्टेयर खेत में दस जैविक किसान उत्पादक समूह के 211 किसानों के माध्यम से परंपरागत कृषि विकास योजना के तहत जैविक उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत है. शनिवार को राजधानी लखनऊ में किसानों को जैविक उत्पादन के लिए आवश्यक इनपुट का प्रशिक्षण दिया गया. बता दें कि किसानों की जमीन का पीजीएस के माध्यम से प्रमाणीकरण कराने का कार्य किया जा रहा है, जिससे उन्हें देश के विभिन्न भागों में प्रमाणित जैविक उत्पादों को बेचने में सुविधा मिलेगी.

जैविक खेती कर किसान बने स्वावलंबी

अपने ही खेत में जैविक उत्पादन के लिए आवश्यक सामग्री का उत्पादन करने के लिए दस जैविक उत्पादन समूहों के लिए ट्रेनिंग प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना की गई है. शनिवार को राजधानी लखनऊ में किसानों को उनके खेत में ही वर्मी कंपोस्ट, बायोडायनेमिक एवं नाडेप खाद तथा बायो-इनहासर को बनाने के लिए आवश्यक इनपुट का प्रशिक्षण दिया गया. यह जैविक उत्पादक समूह बाराबंकी, बांदा और हमीरपुर जिले में भी चुने गए हैं. यहां जाकर भी किसानों को ट्रेनिंग दी जाएगी. इससे उत्पादन की लागत में कमी आएगी और मुनाफा भी बढ़ेगा. साथ ही किसानों को फसल तैयार होने पर उनके उत्पाद को ग्रेडिंग, पैकिंग, ब्रांडिंग और मार्केटिंग की ट्रेनिंग भी दी जाएगी.


आवश्यक वस्तुएं की गई वितरित

इसी कड़ी में एक ट्रेनिंग संस्थान के वैज्ञानिकों ने शैली किरतपुर गांव (बाराबंकी) में 21 रजिस्टर्ड किसानों को प्रशिक्षण दिया. जरूरी जैविक उत्पादन के लिए आवश्यक वस्तुएं जैसे- नीम की खली, स्प्रेयर, स्टिकी इंसेक्ट ट्रैप, नीम का तेल, वर्मी कंपोस्ट बेड और केंचुए बांटे गए.

जैविक खेती के बारे में किया गया जागरूक

संस्थान ने एक विशेष प्रकार के जैविक इनपुट सीआईएसएच-बायो-इनहासर का विकास किया है. जिसे छोटे और सीमांत किसानों के बीच में वितरित किया गया, ताकि वे मिट्टी का स्वास्थ्य सुधार सकें. इससे जैविक उत्पादन में अच्छी उपज प्राप्त होगी. यह एक विशेष प्रकार का फॉर्मूलेशन है, जिसमें परंपरागत रूप से इस्तेमाल किए जाने वाले पंचगव्य, वर्मीवाश, अमृतवाणी और काऊ पेट पिट के लाभकारी बैक्टीरिया का समावेश किया गया है.

इस दौरान डॉ. राम अवध ने परंपरागत कृषि विकास योजना के तहत विभिन्न प्रकार के जैविक इनपुट के उत्पादन को प्रदर्शित किया. जबकि डॉ. आशीष यादव ने इस ट्रेनिंग प्रोग्राम का संयोजन किया तथा किसानों को जैविक उत्पादन के विशेष तकनीकी एवं सावधानियों से अवगत कराया.

व्यावसायिक और सफल जैविक उत्पादन के लिए हमें अपनी सोच में परिवर्तन करना पड़ेगा. बागवानी फसलों में जैविक उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं. फसल का सही चुनाव और अच्छी मात्रा में उत्पादन करके ही मार्केटिंग में सफलता प्राप्त की जा सकती है. अच्छी मार्केटिंग कर जैविक उत्पादों से प्राप्त होने वाली आय में जोखिम को कम किया जा सकता है.

-डॉ. शैलेंद्र राजन, संस्थान के निदेशक

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