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काली खेती में रच दिया इतिहास, फिर भी सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहा ये किसान

राजधानी लखनऊ के इस किसान ने काली खेती में महारत हासिल कर प्रदेश भर में अपनी एक अलग पहचान बनाई है. बावजूद इसके आज भी इस किसान को बीज प्रमाणीकरण को लेकर दर-दर भटकना पड़ रहा है.

किसान ने काली खेती में रचा इतिहास.
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Published : Jul 26, 2019, 6:24 PM IST

लखनऊ: कभी आपने काले रंग की फसलों के बारे में सुना है. काले रंग का गेहूं, काले रंग का चावल, काले रंग की मूली और काले रंग का टमाटर. अगर नहीं तो हम आज आपको बताते हैं एक ऐसे ही किसान के बारे में जिसने काली खेती में इतिहास रच प्रदेश में अपनी एक अलग पहचान बनाई है.

किसान ने काली खेती में रचा इतिहास.

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के मोहनलालगंज विकासखंड के अंतर्गत आने वाले मोती पुरवा गांव के रहने वाले ज्ञानेंद्र जो पेशे से किसान हैं, उन्होंने पहली सबसे पहले काली मूली और काला टमाटर बोया. उसके बाद काला चावल और अब काले गेहूं की पैदावार करके आज ज्ञानेंद्र राजधानी लखनऊ के अकेले ऐसे किसान हैं, जो काले रंग की खेती करने में माहिर बन गए हैं.

आखिर क्यों होते हैं फसलों के रंग काले?
काले रंग की फसलों में एंथोसायनिन नाम के पिगमेंट होते हैं, जिसकी अधिकता से फलों, सब्जियों और अनाजों का रंग नीला, बैंगनी और काला हो जाता है. आम गेहूं में एंथोसायनिन महज पांच प्रतिशत होता है, लेकिन काले गेहूं में ये 100 से 200% के आसपास पाया जाता है. काले गेहूं में आम गेहूं की तुलना में 60 फीसदी आयरन ज्यादा होता है.

ज्ञानेंद्र ने बताया कि उन्होंने हरियाणा के सिरसा से 250 रुपये प्रति किलो के हिसाब से काले गेहूं का बीज मंगवाकर फसल की बुआई की थी. वहीं काले धान की बुआई हिमाचल प्रदेश से 2,200 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बीज मंगवाकर किया है. इसके साथ ही साथ चिया सीड की भी फसल की खेती कर रहे हैं, लेकिन अभी तक सरकार द्वारा ज्ञानेंद्र को कोई मदद नहीं मिली है. यहां तक बीज प्रमाणीकरण के लिए भी उन्हें चक्कर काटने पड़ रहे हैं, लेकिन आज तक बीज भी प्रमाणित नहीं किया गया. जिसके चलते उन्हें अपनी फसल बेचने में भी तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

सेहत के लिए है फायदेमंद-
काले रंग का अनाज सेहत के लिए काफी फायदेमंद होता है. ये शरीर से फ्री रेडिकल्स निकालकर हार्ट, कैंसर, डायबिटीज, मोटापा और अन्य बीमारियों की संभावनाओं को कम करता है. इसमें जिंक की मात्रा भी अधिक है. साथ ही एंथोसायनिन नामक नेचुरल एंटी ऑक्सीडेंट भी प्रचुर मात्रा में मौजूद होता है.

लखनऊ: कभी आपने काले रंग की फसलों के बारे में सुना है. काले रंग का गेहूं, काले रंग का चावल, काले रंग की मूली और काले रंग का टमाटर. अगर नहीं तो हम आज आपको बताते हैं एक ऐसे ही किसान के बारे में जिसने काली खेती में इतिहास रच प्रदेश में अपनी एक अलग पहचान बनाई है.

किसान ने काली खेती में रचा इतिहास.

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के मोहनलालगंज विकासखंड के अंतर्गत आने वाले मोती पुरवा गांव के रहने वाले ज्ञानेंद्र जो पेशे से किसान हैं, उन्होंने पहली सबसे पहले काली मूली और काला टमाटर बोया. उसके बाद काला चावल और अब काले गेहूं की पैदावार करके आज ज्ञानेंद्र राजधानी लखनऊ के अकेले ऐसे किसान हैं, जो काले रंग की खेती करने में माहिर बन गए हैं.

आखिर क्यों होते हैं फसलों के रंग काले?
काले रंग की फसलों में एंथोसायनिन नाम के पिगमेंट होते हैं, जिसकी अधिकता से फलों, सब्जियों और अनाजों का रंग नीला, बैंगनी और काला हो जाता है. आम गेहूं में एंथोसायनिन महज पांच प्रतिशत होता है, लेकिन काले गेहूं में ये 100 से 200% के आसपास पाया जाता है. काले गेहूं में आम गेहूं की तुलना में 60 फीसदी आयरन ज्यादा होता है.

ज्ञानेंद्र ने बताया कि उन्होंने हरियाणा के सिरसा से 250 रुपये प्रति किलो के हिसाब से काले गेहूं का बीज मंगवाकर फसल की बुआई की थी. वहीं काले धान की बुआई हिमाचल प्रदेश से 2,200 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बीज मंगवाकर किया है. इसके साथ ही साथ चिया सीड की भी फसल की खेती कर रहे हैं, लेकिन अभी तक सरकार द्वारा ज्ञानेंद्र को कोई मदद नहीं मिली है. यहां तक बीज प्रमाणीकरण के लिए भी उन्हें चक्कर काटने पड़ रहे हैं, लेकिन आज तक बीज भी प्रमाणित नहीं किया गया. जिसके चलते उन्हें अपनी फसल बेचने में भी तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

सेहत के लिए है फायदेमंद-
काले रंग का अनाज सेहत के लिए काफी फायदेमंद होता है. ये शरीर से फ्री रेडिकल्स निकालकर हार्ट, कैंसर, डायबिटीज, मोटापा और अन्य बीमारियों की संभावनाओं को कम करता है. इसमें जिंक की मात्रा भी अधिक है. साथ ही एंथोसायनिन नामक नेचुरल एंटी ऑक्सीडेंट भी प्रचुर मात्रा में मौजूद होता है.

Intro:कभी आपने काले रंग की फसलों के बारे में सुना है काले रंग का गेहूं काले रंग का चावल काले रंग की मूली और काले टमाटर अगर नहीं तो हम आज आपको इसके बारे में बताएंगे।

पहले यह जान लीजिए कि आखिर क्यों होते हैं फसलों के रंग काले?

काले रंग की फसलों में एंथोसायनिन नाम के पिगमेंट होते हैं जिसकी अधिकता से फलों सब्जियों अनाजों का रंग नीला, बैंगनी और काला हो जाता है। आम गेहूं में एंथोसायनिन महज 5 प्रतिशत होता है लेकिन काले गेहूं में या 100 से 200% के आसपास पाया जाता है। काले गेहूं में आम गेहूं की तुलना में 60 फ़ीसदी आयरन ज्यादा होता है।


Body:उत्तर प्रदेश की राजधानी में रहने वाले किसान ने काले रंग की फसलों का साम्राज्य तैयार किया है इसके सामने काली मूली और काला टमाटर उगा कर शुरुआत की थी और आज काला गेहूं और काला चावल भी अपने खेतों से उगा कर अपनी अलग पहचान बना ली है। राजधानी लखनऊ का अकेला वह किसान है जो काले रंग की खेती करने में माहिर बन गया है।


आपको बता दें काफी दिनों से सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है काले गेहूं के वीडियो का सच यह है कि काला गेहूं पहली बार भारत में आया है जो कई औषधीय गुणों से भरपूर है। सोशल मीडिया सहित देखकर राजधानी लखनऊ के मोहनलालगंज विकासखंड के अंतर्गत आने वाले मोती पुरवा गांव के रहने वाले ज्ञानेंद्र जो पेशे से किसान हैं उन्होंने पहली बार इसकी शुरुआत की। सबसे पहले काली मूली और काला टमाटर बोया उसके बाद काला चावल और अब काले गेहूं की पैदावार करके पूरे जनपद में काली फसलों की खेती करने वाले इकलौते किसान बन गए हैं। हरियाणा के सिरसा से ढाई ₹100 प्रति किलो के हिसाब से काले गेहूं का बीज मंगवा कर फसल की बुवाई की थी वही काले धान की बुवाई हिमाचल प्रदेश से 2200 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बीज मंगवा कर किया है। इसके साथ ही साथ चिया सीड की भी फसल की खेती कर रहे हैं। लेकिन अभी तक सरकार द्वारा ज्ञानेंद्र को कोई मदद नहीं मिल पाई है। यहां तक बीज प्रमाणीकरण के लिए चक्कर पर चक्कर काटने पड़ रहे हैं लेकिन आज तक बीज भी प्रमाणित नहीं किया गया जिसके चलते उसे अपनी फसल बेचने में भी तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

सेहत के लिए है फायदेमंद-

काले रंग का अनाज सेहत के लिए काफी फायदेमंद होता है या शरीर से फ्री रेडिकल्स निकालकर हार्ट, कैंसर, डायबिटीज, मोटापा और अन्य बीमारियों की रोकथाम करता है। इसमें जिंक की मात्रा भी अधिक है साथ ही एंथोसायनिन नामक नेचुरल एंटी ऑक्सीडेंट भी मौजूद है।

वॉक थ्रू- योगेश मिश्रा (किसान ज्ञानेंद्र के साथ)


Conclusion:सुबह की राजधानी में इसके सामने जमीन से काला सोना होगा कर अपनी अलग पहचान बनाई है लेकिन सरकारी अधिकारियों की लापरवाही कहें या ढीला रवैया आज भी ज्ञानेंद्र को बीज प्रमाणीकरण के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है जहां एक तरफ सरकार द्वारा किसानों को उन्नत बनाने के लिए तमाम प्रयास किए जा रहे हैं वहीं एक किसान जिसने कुछ अलग कर गुजरने का जज्बा दिखाया उसे सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं।

योगेश मिश्रा लखनऊ
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