लखनऊ: कभी आपने काले रंग की फसलों के बारे में सुना है. काले रंग का गेहूं, काले रंग का चावल, काले रंग की मूली और काले रंग का टमाटर. अगर नहीं तो हम आज आपको बताते हैं एक ऐसे ही किसान के बारे में जिसने काली खेती में इतिहास रच प्रदेश में अपनी एक अलग पहचान बनाई है.
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के मोहनलालगंज विकासखंड के अंतर्गत आने वाले मोती पुरवा गांव के रहने वाले ज्ञानेंद्र जो पेशे से किसान हैं, उन्होंने पहली सबसे पहले काली मूली और काला टमाटर बोया. उसके बाद काला चावल और अब काले गेहूं की पैदावार करके आज ज्ञानेंद्र राजधानी लखनऊ के अकेले ऐसे किसान हैं, जो काले रंग की खेती करने में माहिर बन गए हैं.
आखिर क्यों होते हैं फसलों के रंग काले?
काले रंग की फसलों में एंथोसायनिन नाम के पिगमेंट होते हैं, जिसकी अधिकता से फलों, सब्जियों और अनाजों का रंग नीला, बैंगनी और काला हो जाता है. आम गेहूं में एंथोसायनिन महज पांच प्रतिशत होता है, लेकिन काले गेहूं में ये 100 से 200% के आसपास पाया जाता है. काले गेहूं में आम गेहूं की तुलना में 60 फीसदी आयरन ज्यादा होता है.
ज्ञानेंद्र ने बताया कि उन्होंने हरियाणा के सिरसा से 250 रुपये प्रति किलो के हिसाब से काले गेहूं का बीज मंगवाकर फसल की बुआई की थी. वहीं काले धान की बुआई हिमाचल प्रदेश से 2,200 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बीज मंगवाकर किया है. इसके साथ ही साथ चिया सीड की भी फसल की खेती कर रहे हैं, लेकिन अभी तक सरकार द्वारा ज्ञानेंद्र को कोई मदद नहीं मिली है. यहां तक बीज प्रमाणीकरण के लिए भी उन्हें चक्कर काटने पड़ रहे हैं, लेकिन आज तक बीज भी प्रमाणित नहीं किया गया. जिसके चलते उन्हें अपनी फसल बेचने में भी तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
सेहत के लिए है फायदेमंद-
काले रंग का अनाज सेहत के लिए काफी फायदेमंद होता है. ये शरीर से फ्री रेडिकल्स निकालकर हार्ट, कैंसर, डायबिटीज, मोटापा और अन्य बीमारियों की संभावनाओं को कम करता है. इसमें जिंक की मात्रा भी अधिक है. साथ ही एंथोसायनिन नामक नेचुरल एंटी ऑक्सीडेंट भी प्रचुर मात्रा में मौजूद होता है.