लखनऊ: राजधानी के प्रसिद्ध रंगकर्मी राजा अवस्थी ने 'लगान' फिल्म में लीड रोल करने वाले प्रसिद्ध अभिनेता आमिर खान को अवधी बोली सिखाई थी. यह बात उन्होंने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी के अभिलेखागार में हुई वार्ता में कही. वार्ता का आयोजन अकादमी की ओर से एक अभिलेख के तौर पर रखने के लिए किया गया था. वार्ता में राजा अवस्थी ने अपने बहुत से अनुभव साझा किए. वार्ताकार दुर्गा शर्मा ने उनसे बातचीत की.
उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी अवार्ड से नवाजे जा चुके हरिशंकर अवस्थी उर्फ राजा अवस्थी ने बताया कि कई महोत्सवों में पुरस्कृत हुई फिल्म 'यथार्थ' से उन्होंने अपने फिल्मी सफर की शुरुआत की. वार्ता में उन्होंने 'लगान' फिल्म में प्रसिद्ध अभिनेता आमिर खान को अवधी संवाद सिखाने के अनुभव सामने रखे. उन्होंने बताया कि 'स्वदेश' फिल्म में निर्देशक आशुतोष गोवारिकर ने शाहरुख खान से परिचय कराते हुए कहा था कि ये वही राजा अवस्थी हैं, जिन्हें 'लगान' में डायरेक्टर के अलावा सीन कट कहने का अधिकार था.
इससे पहले उन्होंने बताया कि चंदरनगर, आलमबाग लखनऊ में रामलीला में भरत की छोटी सी भूमिका से मेरा अभिनय शुरू हुआ. फिर आगे जाकर रामलीला में शायद ही कोई भूमिका छूटी हो. रामलीला का यही स्थल उनकी लगन, मेहनत और निरंतर अभ्यास का प्रेरणा स्रेात रहा, जिसने परम्परागत रामलीला से आधुनिक रंगमंचीय प्रयोगों के लिए उन्हें आत्मविश्वास दिया.
कुंवर कल्याण सिंह, राजेश्वर बच्चन जैसे नाट्य निर्देशकों के साथ रंगमंच करने का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि नार्वे में सन 1991 में हुए विश्व नाट्य समारोह में भाग लेना उनके रंगमंचीय जीवन का चरम था, जहां 35 देशों के बीच वरिष्ठ सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ द्वारा निर्देशित 'मेघदूत' लखनऊ के इस नाटक को प्रथम स्थान मिला और रंगजगत के संग उन्हें ख्याति मिली. मुंशी प्रेमचंद की कहानी 'कफन' के अवधी रूपांतरण और निर्देशन का अनुभव सामने रखते हुए उन्होंने बताया कि यह नाटक देखकर कुमुद नागर ने इसे दूरदर्शन में प्रस्तुत करने के लिए चुना.
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उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान के साथ निर्देशित किए संस्कृत नाटकों का लंबा अनुभव सामने रखते हुए राजा अवस्थी ने बताया कि संस्कृत नाटकों में अभिनेता की तल्लीनता उन्हें बेहद आकर्षित करती है, जबकि ये तल्लीनता हिंदी या अन्य भाषाओं में उतनी नहीं दिखती.
दूरदर्शन के साथ किये नाटकों व 'नीम का पेड़' व 'आधा गांव' जैसे टीवी धारावाहिकों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि आज के कलाकारों की नई पीढ़ी तो पहले टीवी धारावाहिकों में अभिनय की सोचती है और फिर इसी सोच के साथ रंगमंच से जुड़ती है. इससे पहले स्वागत करते हुए अकादमी सचिव तरुण राज ने कहा कि रंगमंचीय अनुभव ही रंगकर्मियों की धरोहर होते हैं, जिनसे आगे की पीढ़ी बहुत कुछ सीख सकती है. उम्मीद है यह रिकार्डिंग भी उसी शृंखला में एक महत्वपूर्ण कड़ी साबित होगी.