लखनऊ : अजीम शायर मुनव्वर राना गंगा-जमुनी तहजीब के पैरोकार थे, उनके पास मुस्लिम से ज्यादा अन्य धर्मों के लोग आते थे और उनसे लिखने पढ़ने की प्रेरणा लेकर जाते थे. वे कोलकाता के बाद जिस शहर को चाहते थे, वह लखनऊ था. यहां की तहजीब, खासकर गंगा-जमुनी रवायत उन्हें बहुत पसंद थी. उनकी बेटी सुमैया राना ने उनसे जुड़ी बातें-यादें साझा करते हुए बताया कि लखनऊ के लिए उनके प्यार की इंतिहा थी. वे चाहते थे कि उन्हें लखनऊ में ही दफनाया जाए. हमने उनकी वसीयत के हिसाब से ही उन्हें दफनाया.
कहा कि कुछ साल से वे प्रदेश के माहौल से दुखी जरूर थे, लेकिन उनका प्यार कभी भी देश और प्रदेश के लिए कम नहीं हुआ. वे चाहते थे कि उन्हें बंटवारे से पहले वाला हिंदुस्तान मिले. नहीं तो कम से कम 50 के दशक वाला हिंदुस्तान मिले, जिसमें वे पैदा हुए थे. उनकी यादों को साझा करते हुए सुमैया कहती हैं कि घर में एक फूलों का पेड़ था. घर के पास कई हिंदू भाई रहते थे. हर रोज कुछ बच्चियां फूल बीनने आती थीं. एक रोज जब मेरे पिता ने देखा तो बच्चियों से पूछा. उन्होंने बताया की फूल मंदिर में चढ़ाते हैं. उसके बाद पापा ने मम्मी से कहा था कि तुम जब सुबह नमाज पढ़ने उठा करो तो ये दरवाजा खोल दिया करो, ताकि वे फूल आसानी से ले जा सकें. तब से हर रोज हमारे आंगन के फूल बगल के घर में भगवान को चढ़ाए जाने लगे.
वे कहते भी थे, मुझे मुनव्वर बनाने वाले गैर मुस्लिम ज्यादा हैं. इसके पीछे आशय हिंदु-मुस्लिम के भेद से इतर एक देश के नागरिक होने का भाव. वे एक देशभक्त शायर थे. बड़ी बेबाकी से लिखते थे. उनमें सही को सही और गलत को गलत लिखने की हिम्मत थी. वही हिम्मत हम लोगों को मिली है. उन्होंने आखिरी वक्त में भी बहुत कुछ लिखा है. सामाजिक मसलों पर काफी कुछ लिख रखा है, जिसे लोगों तक पहुंचाने की हमारी कोशिश रहेगी. गर्व है कि मैं मुनव्वर राना की बेटी हूं. उनके जैसा इंसान होना बहुत बड़ी बात है. उन्होंने हम सब को सही दिशा दी है. गम के माहौल में पूरा परिवार उनकी मगफिरत की दुआ कर रहा है.
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