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AK-47 और SLR की गोलियां भी नहीं भेद सकती मुख्तार की 'बुलेट प्रूफ एंबुलेंस' को

माफिया डॉन मुख्तार अंसारी की बुलेट प्रूफ एंबुलेंस को बम, एसएलआर और एके-47 की गोलियां भी नहीं भेद सकतीं. मुख्तार के साथ सिर्फ एंबुलेंस ही नहीं अवैध तरीके से तैयार कराई गई करीब तीन-चार बुलेटप्रूफ गाड़ियो का काफिला चलता था.

गोलियां भी नहीं भेद सकती मुख्तार की 'बुलेट प्रूफ एंबुलेंस' को
गोलियां भी नहीं भेद सकती मुख्तार की 'बुलेट प्रूफ एंबुलेंस' को
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Published : Apr 2, 2021, 1:50 PM IST

लखनऊ: माफिया डॉन मुख्तार अंसारी की बुलेट प्रूफ एंबुलेंस को बम, एसएलआर और एके-47 की गोलियां भी नहीं भेद सकतीं. मुख्तार के साथ सिर्फ एंबुलेंस ही नहीं अवैध तरीके से तैयार कराई गई करीब तीन-चार बुलेटप्रूफ गाड़ियां का काफिला चलता था. बुलेट प्रूफ सभी गाड़ियों का नंबर भी 0786 है. ये सनसनीखेज खुलासा करते हुए रिटायर्ड डीजी एके जैन ने कहा कि बुलेटप्रूफ एंबुलेंस गाड़ी देश के प्रधानमंत्री, प्रदेश के मुख्यमंत्री और डीजीपी के पास भी नहीं है. खुफिया एजेंसियों ने भी कई बार इस बारे में सरकार को चेताया है.

गोलियां भी नहीं भेद सकती मुख्तार की 'बुलेट प्रूफ एंबुलेंस' को

रिटायर्ड डीजी एके जैन का कहना है कि, पंजाब के रोपड़ जेल में बंद माफिया डॉन मुख्तार अंसारी जेल से कोर्ट आने-जाने में यूपी नंबर की निजी एंबुलेंस का प्रयोग कर रहा है. यह पंजाब सरकार व जेल विभाग की बिना संलिप्तता के संभव नहीं है. इसकी गंभीरता से जांच होनी चाहिए. वैसे भी किसी गाड़ी को बुलेट प्रूफ बनाने के लिए गवर्नमेंट से परमिशन लेनी होती है. हाईटेक बुलेटप्रूफ गाड़ियां बनाने का कारोबार भी पंजाब व जालंधर में ही ज्यादा होता है. पहले भी खुफिया एजेंसियों ने मुख्तार के काफिले में बुलेट प्रूफ गाड़ियों की चलने की सूचना दी थी. जांच भी कराई गई लेकिन तत्कालीन सरकारों ने कोई कार्रवाई नहीं की गई. इससे इन अपराधियों का हौसला बुलंद हो गया और इनके कई गुर्गों भी बुलेट प्रूफ गाड़ियों से चलने लगे.


जालंधर स्थित एक फैक्ट्री में तैयार कराई गई एंबुलेंस

मुख्तार के विरोधी गैंग के सदस्य रहे एक शख्स की माने तो मुख्तार के काफिले में चल रही बुलेट प्रूफ गाड़ियों को जालंधर स्थित एक फैक्ट्री में तैयार कराई गई है. इन गाड़ियों का कोई गवर्नमेंट से परमिशन भी नहीं लिया गया है. इस कारोबार से जुड़े पंजाब के शख्स ने बताया कि, कोई भी बुलेट प्रूफ गाड़ियां तैयार करवा सकता है. इसके लिए गाड़ी संबंधित व्यक्ति के नाम पर होनी चाहिए. जिसकी गाड़ी है उसे केवल बुलेट प्रूफ गाड़ी बनाने के लिए यह तय करना होता है कि गाड़ी में क्या-क्या बुलेट प्रूफ करवाना है. इसके बाद उक्त गाड़ी की डिटेल सुरक्षा एजेंसीज को दे दी जाती है. जिससे कहीं उक्त गाड़ी का इस्तेमाल देश की सुरक्षा के खिलाफ न किया जा सके.

सुरक्षा के लिए अलग-अलग प्रकार से बनती हैं गाड़ियां

बुलेट प्रूफ गाड़ियां तैयार करने के लिए उसे तैयार करवाने वाले को ही बताना होता है कि वह कैसा मैटेरियल इस्तेमाल करवाना चाहता है. पिस्टल की गोली, एके-47 की गोली, एसएलआर या किस प्रकार के विस्फोटक से सुरक्षा चाहिए, उसी प्रकार का मैटेरियल इस्तेमाल किया जाता है.


आरटीओ ऑफिस से रिकॉर्ड गायब

बाराबंकी आरटीओ ऑफिस से एंबुलेंस (यूपी 41AT 7171) के कागजात वाली फाइल गायब है. गाड़ी का आज तक कभी फिटनेस भी नहीं कराया गया. फिटनेस वैधता और इंश्योरेंस समाप्त होने के बावजूद एंबुलेंस पांच साल तक कहां रही? इसकी जानकारी परिवहन और स्वास्थ्य विभाग के पास नहीं है. उत्तर प्रदेश से एंबुलेंस पंजाब पहुंच गई, पर इसका कभी कहीं चालान नहीं हुआ. इन सारे खुलासे के बाद बाराबंकी पुलिस पूरे मामले को मुख्तार अंसारी के बाराबंकी निवासी खास हिस्ट्रीशीटर गुर्गे की जांच पड़ताल में जुट गया है. पुलिस का कहना है कि मुख्तार ने बाराबंकी से एंबुलेंस का रजिस्ट्रेशन कराया है तो कहीं न कहीं मुख्तार का गुर्गा उसमें शामिल है. उसका नाम बाराबंकी में एक जेलर की हत्या में भी आ चुका है.

मुख्तार के गुर्गे भी चल रहे बुलेटप्रूफ गाड़ियों से

दो साल पहले बागपत जेल में मुन्ना बजरंगी की हत्या के बाद सबसे ज्यादा दहशत में आए बाहुबली मुख्तार अंसारी के करीब दो दर्जन गुर्गों ने अपनी गाड़ियां बुलेटप्रूफ करवा ली. बेहद गुपचुप तरीके से स्कार्पियो और फार्च्यूनर गाड़ियों को मेरठ व पंजाब से बुलेटप्रूफ कराया गया. दिलचस्प यह कि अधिकतर गुर्गों ने गाड़ियां करीबियों के नाम से खरीदी हैं. यह खुलासा लखनऊ के सुरेन्द्र कालिया के अपनी बुलेटप्रूफ गाड़ी पर हमला कराने और मुख्तार के करीबी बने प्रदीप सिंह के पास ऐसी गाड़ी बरामद होने से हुआ. दोनों के पास बुलेटप्रूफ करवाने के कोई दस्तावेज नहीं मिले.

मोटर व्हीकल एक्ट के तहत गाड़ी मॉडिफाई कराना गलत

आरटीओ अफसरों की माने तो मोटर व्हीकल एक्ट के तहत गाड़ी के स्वरूप में परिवर्तन नहीं किया जा सकता. बुलेटप्रूफ गाड़ी को लेकर अलग से कोई दिशा-निर्देश नहीं है. लेकिन गाड़ी के स्वरूप में परिवर्तन होता है तो कार्रवाई की जाती है. गाड़ी के किसी दूसरे प्रदेश में पंजीकृत होने रजिस्ट्रेशन निरस्त करने का अधिकार उसी प्रदेश के परिवहन विभाग को होता है. यहां पर रजिस्ट्रेशन निलंबन तक की कार्रवाई की जा सकती है.

15-40 लाख रुपये तक खर्च कर तैयार हो रही बुलेट प्रूफ गाड़ियां

वर्ष 2003 में वाराणसी में एक कंपनी के माध्यम से कई माफियाओं ने अपनी गाड़ियों को बुलेटप्रूफ करवाया. इस कम्पनी का कार्यालय कुछ दिन के लिए ही वाराणसी में खुला था. यहां से एजेन्ट मेरठ में बुलेटप्रूफ बनाने वाली इकलौती कम्पनी से काम कराते थे. एक गाड़ी को बुलेटप्रूफ करने का खर्च 15 से 20 लाख रुपये आता है. वहीं, हाईटेक फुल बुलेट प्रूफ गाड़ियां तैयार कराने के लिए बड़े माफिया पंजाब को ही चुनते हैं. वहां तैयार की गई गाड़ियों पर एसएलआर और AK-47 की गोलियां भी काम नहीं करती हैं. इसमें करीब ₹40 लाख का खर्च आता है.

लखनऊ: माफिया डॉन मुख्तार अंसारी की बुलेट प्रूफ एंबुलेंस को बम, एसएलआर और एके-47 की गोलियां भी नहीं भेद सकतीं. मुख्तार के साथ सिर्फ एंबुलेंस ही नहीं अवैध तरीके से तैयार कराई गई करीब तीन-चार बुलेटप्रूफ गाड़ियां का काफिला चलता था. बुलेट प्रूफ सभी गाड़ियों का नंबर भी 0786 है. ये सनसनीखेज खुलासा करते हुए रिटायर्ड डीजी एके जैन ने कहा कि बुलेटप्रूफ एंबुलेंस गाड़ी देश के प्रधानमंत्री, प्रदेश के मुख्यमंत्री और डीजीपी के पास भी नहीं है. खुफिया एजेंसियों ने भी कई बार इस बारे में सरकार को चेताया है.

गोलियां भी नहीं भेद सकती मुख्तार की 'बुलेट प्रूफ एंबुलेंस' को

रिटायर्ड डीजी एके जैन का कहना है कि, पंजाब के रोपड़ जेल में बंद माफिया डॉन मुख्तार अंसारी जेल से कोर्ट आने-जाने में यूपी नंबर की निजी एंबुलेंस का प्रयोग कर रहा है. यह पंजाब सरकार व जेल विभाग की बिना संलिप्तता के संभव नहीं है. इसकी गंभीरता से जांच होनी चाहिए. वैसे भी किसी गाड़ी को बुलेट प्रूफ बनाने के लिए गवर्नमेंट से परमिशन लेनी होती है. हाईटेक बुलेटप्रूफ गाड़ियां बनाने का कारोबार भी पंजाब व जालंधर में ही ज्यादा होता है. पहले भी खुफिया एजेंसियों ने मुख्तार के काफिले में बुलेट प्रूफ गाड़ियों की चलने की सूचना दी थी. जांच भी कराई गई लेकिन तत्कालीन सरकारों ने कोई कार्रवाई नहीं की गई. इससे इन अपराधियों का हौसला बुलंद हो गया और इनके कई गुर्गों भी बुलेट प्रूफ गाड़ियों से चलने लगे.


जालंधर स्थित एक फैक्ट्री में तैयार कराई गई एंबुलेंस

मुख्तार के विरोधी गैंग के सदस्य रहे एक शख्स की माने तो मुख्तार के काफिले में चल रही बुलेट प्रूफ गाड़ियों को जालंधर स्थित एक फैक्ट्री में तैयार कराई गई है. इन गाड़ियों का कोई गवर्नमेंट से परमिशन भी नहीं लिया गया है. इस कारोबार से जुड़े पंजाब के शख्स ने बताया कि, कोई भी बुलेट प्रूफ गाड़ियां तैयार करवा सकता है. इसके लिए गाड़ी संबंधित व्यक्ति के नाम पर होनी चाहिए. जिसकी गाड़ी है उसे केवल बुलेट प्रूफ गाड़ी बनाने के लिए यह तय करना होता है कि गाड़ी में क्या-क्या बुलेट प्रूफ करवाना है. इसके बाद उक्त गाड़ी की डिटेल सुरक्षा एजेंसीज को दे दी जाती है. जिससे कहीं उक्त गाड़ी का इस्तेमाल देश की सुरक्षा के खिलाफ न किया जा सके.

सुरक्षा के लिए अलग-अलग प्रकार से बनती हैं गाड़ियां

बुलेट प्रूफ गाड़ियां तैयार करने के लिए उसे तैयार करवाने वाले को ही बताना होता है कि वह कैसा मैटेरियल इस्तेमाल करवाना चाहता है. पिस्टल की गोली, एके-47 की गोली, एसएलआर या किस प्रकार के विस्फोटक से सुरक्षा चाहिए, उसी प्रकार का मैटेरियल इस्तेमाल किया जाता है.


आरटीओ ऑफिस से रिकॉर्ड गायब

बाराबंकी आरटीओ ऑफिस से एंबुलेंस (यूपी 41AT 7171) के कागजात वाली फाइल गायब है. गाड़ी का आज तक कभी फिटनेस भी नहीं कराया गया. फिटनेस वैधता और इंश्योरेंस समाप्त होने के बावजूद एंबुलेंस पांच साल तक कहां रही? इसकी जानकारी परिवहन और स्वास्थ्य विभाग के पास नहीं है. उत्तर प्रदेश से एंबुलेंस पंजाब पहुंच गई, पर इसका कभी कहीं चालान नहीं हुआ. इन सारे खुलासे के बाद बाराबंकी पुलिस पूरे मामले को मुख्तार अंसारी के बाराबंकी निवासी खास हिस्ट्रीशीटर गुर्गे की जांच पड़ताल में जुट गया है. पुलिस का कहना है कि मुख्तार ने बाराबंकी से एंबुलेंस का रजिस्ट्रेशन कराया है तो कहीं न कहीं मुख्तार का गुर्गा उसमें शामिल है. उसका नाम बाराबंकी में एक जेलर की हत्या में भी आ चुका है.

मुख्तार के गुर्गे भी चल रहे बुलेटप्रूफ गाड़ियों से

दो साल पहले बागपत जेल में मुन्ना बजरंगी की हत्या के बाद सबसे ज्यादा दहशत में आए बाहुबली मुख्तार अंसारी के करीब दो दर्जन गुर्गों ने अपनी गाड़ियां बुलेटप्रूफ करवा ली. बेहद गुपचुप तरीके से स्कार्पियो और फार्च्यूनर गाड़ियों को मेरठ व पंजाब से बुलेटप्रूफ कराया गया. दिलचस्प यह कि अधिकतर गुर्गों ने गाड़ियां करीबियों के नाम से खरीदी हैं. यह खुलासा लखनऊ के सुरेन्द्र कालिया के अपनी बुलेटप्रूफ गाड़ी पर हमला कराने और मुख्तार के करीबी बने प्रदीप सिंह के पास ऐसी गाड़ी बरामद होने से हुआ. दोनों के पास बुलेटप्रूफ करवाने के कोई दस्तावेज नहीं मिले.

मोटर व्हीकल एक्ट के तहत गाड़ी मॉडिफाई कराना गलत

आरटीओ अफसरों की माने तो मोटर व्हीकल एक्ट के तहत गाड़ी के स्वरूप में परिवर्तन नहीं किया जा सकता. बुलेटप्रूफ गाड़ी को लेकर अलग से कोई दिशा-निर्देश नहीं है. लेकिन गाड़ी के स्वरूप में परिवर्तन होता है तो कार्रवाई की जाती है. गाड़ी के किसी दूसरे प्रदेश में पंजीकृत होने रजिस्ट्रेशन निरस्त करने का अधिकार उसी प्रदेश के परिवहन विभाग को होता है. यहां पर रजिस्ट्रेशन निलंबन तक की कार्रवाई की जा सकती है.

15-40 लाख रुपये तक खर्च कर तैयार हो रही बुलेट प्रूफ गाड़ियां

वर्ष 2003 में वाराणसी में एक कंपनी के माध्यम से कई माफियाओं ने अपनी गाड़ियों को बुलेटप्रूफ करवाया. इस कम्पनी का कार्यालय कुछ दिन के लिए ही वाराणसी में खुला था. यहां से एजेन्ट मेरठ में बुलेटप्रूफ बनाने वाली इकलौती कम्पनी से काम कराते थे. एक गाड़ी को बुलेटप्रूफ करने का खर्च 15 से 20 लाख रुपये आता है. वहीं, हाईटेक फुल बुलेट प्रूफ गाड़ियां तैयार कराने के लिए बड़े माफिया पंजाब को ही चुनते हैं. वहां तैयार की गई गाड़ियों पर एसएलआर और AK-47 की गोलियां भी काम नहीं करती हैं. इसमें करीब ₹40 लाख का खर्च आता है.

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