लखनऊ: कोरोना वायरस की महामारी के इस दौर में स्वास्थ्य कर्मी मानवता के सबसे बड़े रक्षक के रूप में सामने आए हैं. स्वास्थ्य कर्मियों में सबसे बड़ी भूमिका नर्सों की होती है, जो दिन-रात अपनी सेवा करके इस आपदा को मात देने में जुटी हुई हैं. यही वजह है कि 'वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन' ने इस वर्ष विश्व स्वास्थ्य दिवस पर नर्सों को ही समर्पित करने का फैसला किया था. नर्सों के इस योगदान को देखते हुए हर साल 12 मई को 'अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस' मनाया जाता है. मौजूदा माहौल में इस दिन के मायने और अधिक बढ़ गए हैं. अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस पर ईटीवी भारत ने कुछ नर्सिंग स्टाफ से उनके अनुभव जानने की कोशिश की.
इस प्रोफेशन को मानती हैं तपस्या
किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में स्टाफ नर्स की पोस्ट पर कार्यरत शची मिश्रा कहती हैं कि नर्सिंग के इस प्रोफेशन को वह अपनी तपस्या मानती हैं. उन्हें लगता है कि इस महामारी के दौर में डॉक्टर्स के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अगर कोई चलने को तैयार होता है तो वह नर्स हैं. नर्सों ने बड़ी से बड़ी महामारियों में डॉक्टर्स के साथ मिलकर उसका सामना किया है. कितनी ही ऐसी बीमारियों और महामारियों को जड़ से खत्म किया है. अपनी कोरोना वॉर्ड में ड्यूटी के दौरान के अनुभव के बारे में शची कहती हैं कि जब उनकी ड्यूटी के दौरान कोई मरीज ठीक होकर अस्पताल से घर गया है तो उन्हें एक गर्व की अनुभूति होती है.
बेहद मुश्किल होता है पीपीई किट पहने रहना
कोविड-19 वॉर्ड में इस समय ड्यूटी कर रहीं नर्स श्रुति अपनी आठ महीने की दूधमुंही बच्ची और चार साल की बच्ची से दूर रहकर अस्पताल में हैं. वह कहती हैं कि पीपीई किट पहनकर 12 से 13 घंटे करोना वॉर्ड में नर्सेज लगातार ड्यूटी करती हैं. इसे लगातार पहने रहना एक बेहद मुश्किल टास्क होता है. उनके पति भी एक नर्सिंग ऑफिसर हैं, लेकिन इस समय वह दोनों बच्चों को पूरी तरह से संभाल रहे हैं. दोनों पति-पत्नी अपनी ड्यूटी के लिए कटिबद्ध हैं. इसलिए श्रुति की ड्यूटी पूरी होते ही उनके पति कोरोना वॉर्ड में ही ड्यूटी ज्वाइन करेंगे. तर्राष्ट्रीय नर्स दिवस पर श्रुति संदेश देते हुए कहती हैं कि वह अपने देश से प्यार करती हैं. इसी वजह से इस महामारी के दौर में भी वह ड्यूटी करने को तत्पर हैं.
किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में सीनियर नर्सिंग स्टाफ के पद पर कार्यरत सुनील कुशवाहा ने बताया कि कोविड-19 लिए उन्हें अचानक बुलाया गया और वह तैयार हो गए. उन्होंने और उनकी टीम में ड्यूटी के दौरान सात दिन के एक्टिव क्वारंटाइन में मरीजों से घुलने-मिलने की कोशिश की ताकि उनके दर्द को समझ सकें. इस दौरान चार कोरोना वायरस से संक्रमित मरीज स्वस्थ होकर अस्पताल से डिस्चार्ज हुए.
उन्हें देखकर ही सुनील को लगा कि उनकी ड्यूटी सफल हो रही है. इसके बाद उन्हें पैसिव क्वारंटाइन के लिए 14 दिन तक अलग रहना पड़ा. उनके घर में उनकी पत्नी के अलावा तीन साल का बेटा है. पत्नी बैंक में कार्यरत है. उन्होंने कहा कि उनका समझ पाना भी मुश्किल है कि उस बच्चे को लेकर वह ड्यूटी करने कैसे जाती होंगी. इसके बावजूद उन्होंने मुझे कभी ड्यूटी से विमुख होने के लिए नहीं कहा. वह अपने परिवार के बेहद शुक्रगुजार हैं.
पिता-भाई ने किया प्रोत्साहित
केजीएमयू के वृद्धावस्था मानसिक स्वास्थ्य विभाग में स्टाफ नर्स के पद पर तैनात रेनू पटेल ने कोविड-19 की आइसोलेशन टीम में काम किया है. वह कहती हैं कि उन्हें वहां ड्यूटी करने में थोड़ी दिक्कत हुई. पहले वहां ड्यूटी करने के दौरान उन्हें डर भी लगता था, लेकिन परिवार में उनके पिता और भाई ने उन्हें समझाया और प्रोत्साहित किया कि वह जो कर रही हैं, वह देश के लिए है. इस कोविड-19 के महामारी में उनकी पूरी टीम को समान रूप से सम्मान मिला.
जिम्मेदारियां और देश पहले है
लोकबंधु अस्पताल में कोविड-19 टीम के साथ काम कर रहीं स्टाफ नर्स अंजना पांडे कहती हैं कि वह लगातार कोरोना वॉर्ड में ड्यूटी कर रही हैं. ऐसा नहीं है उन्हें अपने परिवार की या बच्चों की याद नहीं आती, लेकिन उनके लिए जिम्मेदारियां और देश पहले है.