लखनऊ: करगिल युद्ध में देश की रक्षा करते हुए तमाम वीर जवान हंसते-हंसते शहीद हो गए. इन जवानों में इंदिरा नगर निवासी जाट रेजिमेंट के मेजर रितेश शर्मा भी शामिल थे. मेजर रितेश शर्मा ने करगिल विजय ऑपरेशन के दौरान दो चोटियों पर विजय पताका फहराई थी. देश का झंडा फहराने के बाद कुपवाड़ा में आतंकी ऑपरेशन के दौरान वे देश के लिए शहीद हो गए. ईटीवी भारत ने शहीद मेजर रितेश शर्मा के माता-पिता से खास बातचीत की. इस दौरान मेजर के माता-पिता ने सरकार से कश्मीर मसले के स्थायी समाधान की मांग की.
बचपन से सेना में जाना चाहते थे रितेश शर्मा-
सत्य प्रकाश शर्मा बताते हैं कि जब रितेश 6वीं कक्षा में थे तभी उन्होंने सैनिक स्कूल में एडमिशन की इच्छा जताई थी. जब 12वीं में पहुंचे तब एनडीए में जाने की बात की. ग्रेजुएशन करने के बाद पहले ही प्रयास में वे सीडीएस में सेलेक्ट हो गए. इस दौरान उनका मैनेजमेंट डिग्री में भी चयन हुआ था, लेकिन उन्होंने सेना को ही तरजीह दी.
मेजर रितेश की मां दीपा ने बताया कि करगिल युद्ध से पहले रितेश 15 दिन की छुट्टी के लिए घर आए थे, लेकिन जब युद्ध छिड़ गया तो वह अचानक तैयार होकर जाने लगे. उन्होंने कहा था कि आर्मी में बहुत से लोग जाते हैं, लेकिन ऐसा बहुत कम होता है कि वे युद्ध देख पाएं. इसके 3 ही दिन बाद वे चले गए. वह बड़े खुश हो कर गए थे.
आतंकियों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए थे मेजर रितेश शर्मा-
बता दें कि करगिल युद्ध के दौरान मेजर रितेश शर्मा ने साहस का परिचय देते हुए दुश्मनों को खदेड़ दिया और जीत के नायक बन गए. जाट रेजीमेंट में मेजर रितेश शर्मा ने यूनिट के साथ दुश्मनों से मोर्चा लिया था और दो चोटियों पर तिरंगा फहरा दिया था. मश्कोह घाटी जीतते हुए वे घायल हो गए थे. करगिल के हीरो बने मेजर रितेश शर्मा को मश्कोह सेवियर के रूप में पहचान मिली थी. साल 1999 में ही कुपवाड़ा में आतंकवादियों से लोहा लेते हुए वे देश के लिए शहीद हो गए.