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करगिल के हीरो शहीद मेजर के माता-पिता ने सरकार से मांगा कश्मीर मसले का 'परमानेंट सॉल्यूशन'

करगिल युद्ध को 20 साल गुजर चुके हैं. इस युद्ध में शहीद हुए सैनिकों की याद में हर साल 26 जुलाई को 'विजय दिवस' मनाया जाता है. इस मौके पर ईटीवी भारत ने करगिल युद्ध में भारत की पताका फहराने वाले शहीद मेजर रितेश शर्मा के माता-पिता से खास बातचीत की.

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Published : Jul 26, 2019, 6:13 AM IST

करगिल के हीरो मेजर रितेश शर्मा के माता-पिता ने ईटीवी भारत से की खास बातचीत.

लखनऊ: करगिल युद्ध में देश की रक्षा करते हुए तमाम वीर जवान हंसते-हंसते शहीद हो गए. इन जवानों में इंदिरा नगर निवासी जाट रेजिमेंट के मेजर रितेश शर्मा भी शामिल थे. मेजर रितेश शर्मा ने करगिल विजय ऑपरेशन के दौरान दो चोटियों पर विजय पताका फहराई थी. देश का झंडा फहराने के बाद कुपवाड़ा में आतंकी ऑपरेशन के दौरान वे देश के लिए शहीद हो गए. ईटीवी भारत ने शहीद मेजर रितेश शर्मा के माता-पिता से खास बातचीत की. इस दौरान मेजर के माता-पिता ने सरकार से कश्मीर मसले के स्थायी समाधान की मांग की.

करगिल के हीरो मेजर रितेश शर्मा के माता-पिता ने ईटीवी भारत से की खास बातचीत.
करगिल के बीस साल बाद पूरे होने के मौके पर मेजर रितेश शर्मा के पिता सत्य प्रकाश शर्मा ने कहा कि अब सेना के हालात बेहतर हैं. सरकार भी बदल गई है. सरकार अपने हिसाब से काम कर रही है. वर्तमान सरकार सैनिकों और शहीद परिवारों के लिए भी काम कर रही है. इसके बावजूद पाकिस्तान की तरफ से अभी भी घुसपैठ जारी है. मिसाल के तौर पर पाकिस्तान ने पुलवामा और उरी में घुसपैठिए भेजकर भारतीय सेना और अर्धसैनिक बलों को नुकसान पहुंचाया. बॉर्डर की स्थिति अभी भी तनाव ग्रस्त बनी हुई है. सरकार को कश्मीर मसले का परमानेंट सॉल्यूशन निकालना चाहिए. 1989 में कश्मीर की समस्या शुरू हुई जो अब तक जारी है. इतने सालों से इस समस्या का कोई समाधान नहीं निकल पाया है. सैनिक बिना युद्ध के ही लगातार मारे जा रहे हैंं.
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करगिल युद्ध के हीरो मेजर रितेश शर्मा.


बचपन से सेना में जाना चाहते थे रितेश शर्मा-

सत्य प्रकाश शर्मा बताते हैं कि जब रितेश 6वीं कक्षा में थे तभी उन्होंने सैनिक स्कूल में एडमिशन की इच्छा जताई थी. जब 12वीं में पहुंचे तब एनडीए में जाने की बात की. ग्रेजुएशन करने के बाद पहले ही प्रयास में वे सीडीएस में सेलेक्ट हो गए. इस दौरान उनका मैनेजमेंट डिग्री में भी चयन हुआ था, लेकिन उन्होंने सेना को ही तरजीह दी.

मेजर रितेश की मां दीपा ने बताया कि करगिल युद्ध से पहले रितेश 15 दिन की छुट्टी के लिए घर आए थे, लेकिन जब युद्ध छिड़ गया तो वह अचानक तैयार होकर जाने लगे. उन्होंने कहा था कि आर्मी में बहुत से लोग जाते हैं, लेकिन ऐसा बहुत कम होता है कि वे युद्ध देख पाएं. इसके 3 ही दिन बाद वे चले गए. वह बड़े खुश हो कर गए थे.

आतंकियों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए थे मेजर रितेश शर्मा-

बता दें कि करगिल युद्ध के दौरान मेजर रितेश शर्मा ने साहस का परिचय देते हुए दुश्मनों को खदेड़ दिया और जीत के नायक बन गए. जाट रेजीमेंट में मेजर रितेश शर्मा ने यूनिट के साथ दुश्मनों से मोर्चा लिया था और दो चोटियों पर तिरंगा फहरा दिया था. मश्कोह घाटी जीतते हुए वे घायल हो गए थे. करगिल के हीरो बने मेजर रितेश शर्मा को मश्कोह सेवियर के रूप में पहचान मिली थी. साल 1999 में ही कुपवाड़ा में आतंकवादियों से लोहा लेते हुए वे देश के लिए शहीद हो गए.

लखनऊ: करगिल युद्ध में देश की रक्षा करते हुए तमाम वीर जवान हंसते-हंसते शहीद हो गए. इन जवानों में इंदिरा नगर निवासी जाट रेजिमेंट के मेजर रितेश शर्मा भी शामिल थे. मेजर रितेश शर्मा ने करगिल विजय ऑपरेशन के दौरान दो चोटियों पर विजय पताका फहराई थी. देश का झंडा फहराने के बाद कुपवाड़ा में आतंकी ऑपरेशन के दौरान वे देश के लिए शहीद हो गए. ईटीवी भारत ने शहीद मेजर रितेश शर्मा के माता-पिता से खास बातचीत की. इस दौरान मेजर के माता-पिता ने सरकार से कश्मीर मसले के स्थायी समाधान की मांग की.

करगिल के हीरो मेजर रितेश शर्मा के माता-पिता ने ईटीवी भारत से की खास बातचीत.
करगिल के बीस साल बाद पूरे होने के मौके पर मेजर रितेश शर्मा के पिता सत्य प्रकाश शर्मा ने कहा कि अब सेना के हालात बेहतर हैं. सरकार भी बदल गई है. सरकार अपने हिसाब से काम कर रही है. वर्तमान सरकार सैनिकों और शहीद परिवारों के लिए भी काम कर रही है. इसके बावजूद पाकिस्तान की तरफ से अभी भी घुसपैठ जारी है. मिसाल के तौर पर पाकिस्तान ने पुलवामा और उरी में घुसपैठिए भेजकर भारतीय सेना और अर्धसैनिक बलों को नुकसान पहुंचाया. बॉर्डर की स्थिति अभी भी तनाव ग्रस्त बनी हुई है. सरकार को कश्मीर मसले का परमानेंट सॉल्यूशन निकालना चाहिए. 1989 में कश्मीर की समस्या शुरू हुई जो अब तक जारी है. इतने सालों से इस समस्या का कोई समाधान नहीं निकल पाया है. सैनिक बिना युद्ध के ही लगातार मारे जा रहे हैंं.
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करगिल युद्ध के हीरो मेजर रितेश शर्मा.


बचपन से सेना में जाना चाहते थे रितेश शर्मा-

सत्य प्रकाश शर्मा बताते हैं कि जब रितेश 6वीं कक्षा में थे तभी उन्होंने सैनिक स्कूल में एडमिशन की इच्छा जताई थी. जब 12वीं में पहुंचे तब एनडीए में जाने की बात की. ग्रेजुएशन करने के बाद पहले ही प्रयास में वे सीडीएस में सेलेक्ट हो गए. इस दौरान उनका मैनेजमेंट डिग्री में भी चयन हुआ था, लेकिन उन्होंने सेना को ही तरजीह दी.

मेजर रितेश की मां दीपा ने बताया कि करगिल युद्ध से पहले रितेश 15 दिन की छुट्टी के लिए घर आए थे, लेकिन जब युद्ध छिड़ गया तो वह अचानक तैयार होकर जाने लगे. उन्होंने कहा था कि आर्मी में बहुत से लोग जाते हैं, लेकिन ऐसा बहुत कम होता है कि वे युद्ध देख पाएं. इसके 3 ही दिन बाद वे चले गए. वह बड़े खुश हो कर गए थे.

आतंकियों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए थे मेजर रितेश शर्मा-

बता दें कि करगिल युद्ध के दौरान मेजर रितेश शर्मा ने साहस का परिचय देते हुए दुश्मनों को खदेड़ दिया और जीत के नायक बन गए. जाट रेजीमेंट में मेजर रितेश शर्मा ने यूनिट के साथ दुश्मनों से मोर्चा लिया था और दो चोटियों पर तिरंगा फहरा दिया था. मश्कोह घाटी जीतते हुए वे घायल हो गए थे. करगिल के हीरो बने मेजर रितेश शर्मा को मश्कोह सेवियर के रूप में पहचान मिली थी. साल 1999 में ही कुपवाड़ा में आतंकवादियों से लोहा लेते हुए वे देश के लिए शहीद हो गए.

Intro:शहीद मेजर रितेश शर्मा के माता-पिता का अभिमान: बेटे ने देश के लिए दी जान, मेरे लिए गर्व की बात

लखनऊ। करगिल युद्ध में देश की रक्षा करते हुए तमाम वीर जवान हंसते-हंसते शहीद हो गए। इस युद्ध में उत्तर प्रदेश के भी पांच जवानों ने अपनी जान की जरा भी परवाह न करते हुए अदम्य साहस और पराक्रम का परिचय दिया। इन्हीं वीर जवानों की बहादुरी के चलते पाकिस्तानी सेना युद्ध मैदान छोड़कर भाग खड़ी हुई। इन जवानों में एक जवान थे इंदिरा नगर निवासी जाट रेजिमेंट में मेजर रितेश शर्मा। मेजर रितेश शर्मा ने करगिल विजय ऑपरेशन के दौरान दो चोटियों पर विजय पताका फहराई थी। देश का झंडा फहराने के बाद कुपवाड़ा में आतंकी ऑपरेशन के दौरान वे देश के लिए शहीद हो गए। कल करगिल विजय दिवस के 20 साल पूरे होने पर शहीदों को देश याद करेगा। आज 'ईटीवी भारत' ने शहीद मेजर रितेश शर्मा के माता-पिता से खास बातचीत की।


Body:प्रश्न: 2 साल बाद आपकी नजर में देश के हालात क्या हैं?

उत्तर: 20 साल में सेना के हालात सही हैं। सरकार भी बदल गई है। सरकार अपने हिसाब से काम कर रही है। वर्तमान सरकार सैनिकों के लिए और शहीद परिवारों के लिए भी काम कर रही है। जो हालात अभी हैं तो पाकिस्तान की तरफ से अभी भी घुसपैठ जारी है। कुछ माह पहले पुलवामा और उरी में पाकिस्तान ने घुसपैठिए भेजकर हमारे काफी सैनिक और अर्धसैनिक बालों को नुकसान पहुंचाया। बॉर्डर की स्थिति अभी भी तनाव ग्रस्त बनी हुई है। इसका परमानेंट सॉल्यूशन सरकार को निकालना चाहिए। 1989 में कश्मीर की समस्या शुरू हुई जो आज भी है। कश्मीर का कोई सॉल्यूशन अभी तक नहीं निकल पाया है। सैनिक बिना युद्ध के ही बराबर मारे जा रहे हैं। युद्ध जरूरी नहीं छद्म युद्ध में आतंकवादी घटनाओं में सैनिक मर रहे हैं। उनके सैनिक भी मर रहे हैं, लेकिन उनसे ज्यादा हमारे सैनिक शहीद हो रहे हैं। इसका सरकार को जल्द से जल्द परमानेंट सॉल्यूशन निकालना होगा।

प्रश: क्या मेजर रितेश शर्मा का शुरू से ही सेना में जाने का लक्ष्य था?

उत्तर: जी हां वे शुरू से सेना में ही जाना चाहते थे। जब वह क्लास 6 में थे तभी उन्होंने सैनिक स्कूल में ऐडमिशन की इच्छा जताई थी। जब 12वीं में पहुंचे तब एनडीए में जाने की बात की, लेकिन ग्रेजुएशन करने के बाद पहले ही प्रयास में वे सीडीएस में सिलेक्ट हो गए। उन्होंने एमबीए भी किया था उसमें भी सिलेक्शन हुआ था, लेकिन उन्होंने आर्मी में ही जाना बेहतर समझा क्योंकि उनका शुरू से यही लक्ष्य था।

प्रश्न: जब आपको मेजर रितेश शर्मा के शहीद होने की सूचना मिली?

उत्तर: मेजर रितेश शर्मा की मां इस सवाल का जवाब देते हुए कहती हैं कि करगिल युद्ध से पहले रितेश 15 दिन की छुट्टी के लिए घर आए थे, लेकिन जब युद्ध छिड़ गया तो वह अचानक तैयार होकर जाने लगे। उन्होंने कहा था कि आर्मी में बहुत से लोग जाते हैं लेकिन ऐसा बहुत कम होता है कि वे युद्ध देख पाएं। मेरे लिए यह सौभाग्य की बात है। 3 ही दिन बाद वे चले गए। हमने कहा भी था कि बेटा तुम्हें तो बुलाया भी नहीं गया तो वो कहने लगे कि मां बुलाया नहीं जाता। बड़े खुश हो कर गए थे। जिसके लिए वो बने थे उन्होंने अपना काम पूरा किया। एक मां बाप के लिए। मां तो सबसे बड़ी होती है। मां न चाहे तो बच्चे को बोल्ड नहीं बना सकती। रोना-धोना शुरू कर दे, पर मैं ऐसी मां नहीं हूं। मैंने अपने बच्चे को हंसी-खुशी भेजा। मेरे लिए गर्व की बात है कि मेरा बच्चा देश के लिए शहीद हुआ।

प्रश्न: युवा पीढ़ी को सेना में जाने के लिए आप क्या संदेश देना चाहेंगी?
उत्तर: सेना में किसी के कहने से कोई नहीं जाता है जब तक बच्चे की अंदर से इच्छा न हो। इच्छा हो और अगर मदर फादर का सपोर्ट मिले। फादर का भले ही कम ही स्पोर्ट हो पर मदर का पूरा सपोर्ट मिलना चाहिए, क्योंकि अगर मां कमजोर पड़ेगी तो बच्चा सोचेगा, लेकिन मां कमजोर नहीं पड़ेगी तभी वह अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ेगा। इच्छा पूरी करेगा। तो मां को कमजोर नहीं पड़ना चाहिए।

प्रश्न: क्या ऐसा भी होता है कि सरकार शहीदों के परिवारों की समस्या नहीं सुनती है?

उत्तर: ऐसा बहुत कम केसेस होते हैं कि सरकार शहीद परिवारों की समस्या न सुने। कुछ एक केस ऐसे हो सकते हैं जिनमें इस तरह की समस्या हो। कुछ हैं भी ऐसे केस। कम ही सामने आता है कि सरकार ने उनकी तरफ ध्यान नहीं दिया। कोई सुनवाई नहीं की, पर बहुत कम ही ऐसे केस हैं।




Conclusion:बता दें कि करगिल युद्ध के दौरान मेजर रितेश शर्मा ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए करगिल में दुश्मनों को खदेड़ा और जीत के नायक बने थे। जाट रेजीमेंट में मेजर रितेश शर्मा ने यूनिट के साथ दुश्मनों से मोर्चा लिया था और दो चोटियों पर तिरंगा फहरा दिया था। मश्कोह घाटी जीतते हुए घायल हो गए थे। कारगिल के हीरो बने मेजर रितेश शर्मा को मश्कोह सेवियर के रूप में पहचान मिली थी। 1999 में कुपवाड़ा में आतंकवादियों से लोहा लेते हुए वे देश के लिए शहीद हो गए।
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