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लालजी टण्डन परिवार में सियासत की अगली पीढ़ी की एंट्री, भाजपा में सक्रिय हुए आशुतोष टंडन के भाई अमित

लखनऊ पूर्व से विधायक आशुतोष टण्डन गोपाल जी की मृत्यु के बाद उनके छोटे भाई अमित टण्डन ने राजनीतिक कदम बढ़ाया है. अगले साल मार्च अप्रैल में होने उपचुनाव को लेकर अमित टण्डन ने टिकट के लिए दावेदारी की है.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 8, 2023, 4:50 PM IST

लखनऊ : लाल जी टण्डन के परिवार की राजनीतिक विरासत समाप्त नहीं हुई है. आशुतोष टण्डन गोपाल जी के निधन के बाद अब उनके छोटे भाई अमित टण्डन सक्रिय हो गए हैं. लखनऊ पूर्व क्षेत्र का उप चुनाव मार्च-अप्रैल में होगा. जिसके लिए अमित टण्डन टिकट की दावेदारी पेश कर रहे हैं. उनका कहना है कि गोपाल जी के जीवित रहते क्षेत्र का सारा काम वह ही देख रहे थे. कार्यकर्ताओं की समस्याओं और आम नागरिकों की समस्याओं का निस्तारण करवाने में मदद करते थे. इसके साथ ही अब भारतीय जनता पार्टी के अनेक अभियानों से जुड़ चुके हैं. मतदाता चेतना अभियान में वे लगे हुए हैं. लखनऊ पूरक क्षेत्र के सभी वार्डों में काम कर रहे हैं. दूसरी ओर लखनऊ पूरक क्षेत्र का उपचुनाव लोकसभा चुनाव के साथ संपन्न हो सकता है. जिसको लेकर भारतीय जनता पार्टी में 10 से अधिक नेता दावेदार नजर आ रहे हैं.चुनाव में भले ही अभी 3 महीने का समय बाकी हो मगर सभी नेता उसका नाम अपने-अपने दरबारों में हाजिरी लगाने लगे हैं.

लखनऊ की राजनीति में अमित टण्डन की पैठ.
लखनऊ की राजनीति में अमित टण्डन की पैठ.

अमित टण्डन संभाल रहे विरासत : पहले यह माना जा रहा था कि लालजी टण्डन और उसके बाद आशुतोष टण्डन गोपाल जी की मृत्यु के बाद पुराने लखनऊ के टण्डन परिवार का राजनीतिक भविष्य समाप्त हो चुका है, मगर जिस तरह से गोपाल जी टण्डन के छोटे भाई अमित टण्डन लखनऊ पूर्व क्षेत्र में सक्रिय हो चुके हैं उसको देखते हुए कहा जा रहा है कि टण्डन परिवार अभी भी उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी राजनीति में अपने आप को जीवित रखने का प्रयास करने में लगा हुआ है. गोपाल जी की श्रद्धांजलि सभा के बाद से ही अमित टण्डन ने उनकी विरासत को संभाल लिया है. ईटीवी भारत से बातचीत में उन्होंने बताया कि निश्चित तौर पर वह क्षेत्र से उपचुनाव में अपने भाई की जगह दावेदार होंगे. मैं लगातार गोपाल जी के साथ सक्रिय रहता था. क्षेत्र का पूरा काम देखा था. उन्होंने बताया कि महानगर और प्रदेश संगठन के नेताओं के साथ वह अब अपनी बात रखेंगे. इसके अलावा भाजपा के विभिन्न कार्यक्रमों से जुड़ चुके हैं.


लखनऊ की राजनीति में अमित टण्डन की पैठ.
लखनऊ की राजनीति में अमित टण्डन की पैठ.

लगभग 60 साल तक रहा यूपी की सियासत में टण्डन परिवार का दखल : लालजी टण्डन 2020 में दिवंगत हुए थे. उस समय वे मध्य प्रदेश के राज्यपाल थे. इससे पहले टण्डन बिहार के राज्यपाल रहे. जबकि उत्तर प्रदेश में जब भारतीय जनता पार्टी की सरकारी रही तो उन्होंने नगर विकास आवास और बिजली मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों पर मंत्रालय संभाले थे. 2014 के चुनाव में लालजी टण्डन ने अपनी सीट राजनाथ सिंह के लिए छोड़ी थी. इसके बाद में 2017 के विधानसभा चुनाव में जब उनके बेटे गोपाल जी ने लखनऊ पूरक क्षेत्र से जीत हासिल की तो उनको उत्तर प्रदेश में कैबिनेट मंत्री बनाया गया था. गोपाल जी ने कैबिनेट मंत्री में स्वास्थ्य चिकित्सा और नगर विकास जैसे महत्वपूर्ण विभागों की जिम्मेदारी 2017 से 22 के बीच संभाली थी. 2022 की विधानसभा चुनाव में उनका टिकट जरूर दिया गया था, मगर खराब सेहत को देखते हुए किसी मंत्रालय की जिम्मेदारी नहीं दी गई थी. इस तरह से लालजी टण्डन ने पार्षद से राजपाल तक का सफर तय किया था. जबकि गोपाल जी ने विधायक से मंत्री तक की यात्रा की. लगभग 60 साल तक लखनऊ की राजनीति में टण्डन परिवार का दखल रहा. ऐसे में टण्डन परिवार अपनी इस विरासत को इतनी आसानी से नहीं खोना चाहता.



यह भी पढ़ें : लालजी टंडन की प्रतिमा अनावरण करते हुए राजनाथ और योगी ने कही ये बड़ी बात

लखनऊ के व्यंजनों के शौकीन थे लालजी टण्डन

लखनऊ : लाल जी टण्डन के परिवार की राजनीतिक विरासत समाप्त नहीं हुई है. आशुतोष टण्डन गोपाल जी के निधन के बाद अब उनके छोटे भाई अमित टण्डन सक्रिय हो गए हैं. लखनऊ पूर्व क्षेत्र का उप चुनाव मार्च-अप्रैल में होगा. जिसके लिए अमित टण्डन टिकट की दावेदारी पेश कर रहे हैं. उनका कहना है कि गोपाल जी के जीवित रहते क्षेत्र का सारा काम वह ही देख रहे थे. कार्यकर्ताओं की समस्याओं और आम नागरिकों की समस्याओं का निस्तारण करवाने में मदद करते थे. इसके साथ ही अब भारतीय जनता पार्टी के अनेक अभियानों से जुड़ चुके हैं. मतदाता चेतना अभियान में वे लगे हुए हैं. लखनऊ पूरक क्षेत्र के सभी वार्डों में काम कर रहे हैं. दूसरी ओर लखनऊ पूरक क्षेत्र का उपचुनाव लोकसभा चुनाव के साथ संपन्न हो सकता है. जिसको लेकर भारतीय जनता पार्टी में 10 से अधिक नेता दावेदार नजर आ रहे हैं.चुनाव में भले ही अभी 3 महीने का समय बाकी हो मगर सभी नेता उसका नाम अपने-अपने दरबारों में हाजिरी लगाने लगे हैं.

लखनऊ की राजनीति में अमित टण्डन की पैठ.
लखनऊ की राजनीति में अमित टण्डन की पैठ.

अमित टण्डन संभाल रहे विरासत : पहले यह माना जा रहा था कि लालजी टण्डन और उसके बाद आशुतोष टण्डन गोपाल जी की मृत्यु के बाद पुराने लखनऊ के टण्डन परिवार का राजनीतिक भविष्य समाप्त हो चुका है, मगर जिस तरह से गोपाल जी टण्डन के छोटे भाई अमित टण्डन लखनऊ पूर्व क्षेत्र में सक्रिय हो चुके हैं उसको देखते हुए कहा जा रहा है कि टण्डन परिवार अभी भी उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी राजनीति में अपने आप को जीवित रखने का प्रयास करने में लगा हुआ है. गोपाल जी की श्रद्धांजलि सभा के बाद से ही अमित टण्डन ने उनकी विरासत को संभाल लिया है. ईटीवी भारत से बातचीत में उन्होंने बताया कि निश्चित तौर पर वह क्षेत्र से उपचुनाव में अपने भाई की जगह दावेदार होंगे. मैं लगातार गोपाल जी के साथ सक्रिय रहता था. क्षेत्र का पूरा काम देखा था. उन्होंने बताया कि महानगर और प्रदेश संगठन के नेताओं के साथ वह अब अपनी बात रखेंगे. इसके अलावा भाजपा के विभिन्न कार्यक्रमों से जुड़ चुके हैं.


लखनऊ की राजनीति में अमित टण्डन की पैठ.
लखनऊ की राजनीति में अमित टण्डन की पैठ.

लगभग 60 साल तक रहा यूपी की सियासत में टण्डन परिवार का दखल : लालजी टण्डन 2020 में दिवंगत हुए थे. उस समय वे मध्य प्रदेश के राज्यपाल थे. इससे पहले टण्डन बिहार के राज्यपाल रहे. जबकि उत्तर प्रदेश में जब भारतीय जनता पार्टी की सरकारी रही तो उन्होंने नगर विकास आवास और बिजली मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों पर मंत्रालय संभाले थे. 2014 के चुनाव में लालजी टण्डन ने अपनी सीट राजनाथ सिंह के लिए छोड़ी थी. इसके बाद में 2017 के विधानसभा चुनाव में जब उनके बेटे गोपाल जी ने लखनऊ पूरक क्षेत्र से जीत हासिल की तो उनको उत्तर प्रदेश में कैबिनेट मंत्री बनाया गया था. गोपाल जी ने कैबिनेट मंत्री में स्वास्थ्य चिकित्सा और नगर विकास जैसे महत्वपूर्ण विभागों की जिम्मेदारी 2017 से 22 के बीच संभाली थी. 2022 की विधानसभा चुनाव में उनका टिकट जरूर दिया गया था, मगर खराब सेहत को देखते हुए किसी मंत्रालय की जिम्मेदारी नहीं दी गई थी. इस तरह से लालजी टण्डन ने पार्षद से राजपाल तक का सफर तय किया था. जबकि गोपाल जी ने विधायक से मंत्री तक की यात्रा की. लगभग 60 साल तक लखनऊ की राजनीति में टण्डन परिवार का दखल रहा. ऐसे में टण्डन परिवार अपनी इस विरासत को इतनी आसानी से नहीं खोना चाहता.



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