लखनऊ: ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ पावर डिप्लोमा इंजीनियर्स संगठन ने विद्युत अधिनियम संशोधन के समय पर सवालिया निशान लगाते हुए कहा है कि जिस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पूरा देश एकजुट होकर कोविड-19 महामारी के खिलाफ लड़ रहा है, किसी भी सूरत में मौजूदा विद्युत अधिनियम 2003 में संशोधन करना ठीक नहीं है. संगठन ने 30 सितंबर या जब तक जन-जीवन सामान्य नहीं हो जाता तब तक के लिए इलेक्ट्रिसिटी अमेंडमेंट बिल की अवधि बढ़ाई जाए. इस संबंध में सभी स्टेकहोल्डर्स की तरफ से टिप्पणी प्रस्तुत करने के लिए दी गई 21 दिन की अवधि को तत्काल स्थगित कर जन-जीवन सामान्य होने तक इस पर अमल न किया जाए.
ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ पावर डिप्लोमा इंजीनियर्स के अध्यक्ष आरके त्रिवेदी ने बताया कि केंद्रीय विद्युत मंत्रालय ने सभी राज्य सरकारों के बीच 17 अप्रैल को मसौदा बिजली (संशोधन) विधेयक परिचालित किया है. और 21 दिनों के अंदर उनकी टिप्पणी मांगी है. उन्होंने कहा कि देश भर में बिजली क्षेत्र सहित सभी क्षेत्रों का राष्ट्रीयकरण किया जाना चाहिए था, लेकिन विद्युत अधिनियम 2003 में प्रस्तावित संशोधनों के माध्यम से बिजली क्षेत्र के निजीकरण के विद्युत मंत्रालय द्वारा उठाया गया यह कदम एक बुद्धिमानी भरा कदम नहीं है. जब पूरा देश महामारी से लड़ने में व्यस्त है तो ऐसे नाजुक दौर में किसी भी कानून में संशोधन लागू करने के लिए यह समय बिल्कुल उपयुक्त नहीं है. ये सरकार की मंशा पर सवाल खड़े करता है. बिजली (संशोधन) विधेयक 2020 को तत्काल ठंडे वस्ते में डाला जाना चाहिए.
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संगठन के महासचिव अभिमन्यु धनखड़ ने कहा कि यहां एक तरफ़ इस संकट के दौर में प्रधानमंत्री के देश को एकजुटता का संदेश देने के आह्वान पर बिजली इंजीनियरों ने पांच अप्रैल को पावर ग्रिड को सुरक्षित रूप से संभाल कर अपनी तकनीकी योग्यता दिखाई है, वहीं दूसरी तरफ निजीकरण के लिए ऐसे समय पर इलेक्ट्रिकल अमेंडमेंट बिल 2020 के पेश किए गए मसौदा बिल को देखकर देश भर के पावर डिप्लोमा इंजीनियर्स हैरान हैं. उन्होंने बताया कि संगठन ने केंद्रीय ऊर्जा मंत्री को एक पत्र लिखा है, जिसमें कहा गया है कि ऊर्जा मंत्रालय द्वारा स्टेकहोल्डर्स से टिप्पणियों की प्राप्ति की प्रस्तावित तिथि 30 सितंबर, 2020 तक बढ़ा दी जानी चाहिए.