लखनऊ : उत्तर प्रदेश की सभी बिजली कंपनियों की तरफ से नौ जनवरी को विद्युत नियामक आयोग में दाखिल वार्षिक राजस्व आवश्यकता वर्ष 2023-24 व ट्रू-अप याचिका पर विद्युत नियामक आयोग ने तमाम खामियां निकाली हैं. 100 से ज्यादा कमियां निकालते हुए प्रदेश की सभी बिजली कंपनियों के प्रबंध निदेशक से सात दिन में जवाब मांगा है. बता दें कि बिजली कंपनियों ने प्रदेश के उपभोक्ताओं की बिजली दरों में 18 से 23 प्रतिशत तक वृद्धि का प्रस्ताव दिया था. विद्युत नियामक आयोग ने बिजली कंपनियों से अनेकों सवाल करते हुए यह मुद्दा भी उठा दिया है कि बिजली कंपनियां बताएं कि अलग-अलग श्रेणीवार बिजली दरों में बढ़ोतरी का जो प्रस्ताव दिया है उसका आधार क्या है? सब्सिडी को निकालते हुए प्रस्तावित प्रस्ताव से कितना राजस्व प्राप्त होगा?
नियामक आयोग ने प्रदेश की बिजली कंपनियों से जहां विभागीय कर्मचारियों के यहां लगने वाले मीटर के संबंध में भी पूरी जानकारी तलब की है और उनका पूरा ब्योरा भी मांगा है, वहीं स्मार्ट प्रीपेड मीटर प्रोजेक्ट पर होने वाले खर्च की भरपाई कैसे होगी, का ब्योरा भी तलब किया है. प्रदेश की बिजली कंपनियों से बिजली खरीद के पूरे मामले पर भी रिपोर्ट मांगी है, साथ ही यह भी कहा है कि सभी बिजली कम्पनियों ने मुआवजा कानून लागू अभी तक क्यों नहीं किया. दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम से टोरेंट पावर के मामले में भी पूरी जानकारी तलब की गई है. विद्युत नियामक आयोग ने महंगी बिजली खरीद पर भी सवाल उठाते हुए जवाब मांगा है. आयोग ने यह भी सवाल-जवाब किया है कि बिजली कंपनियां यह भी बताएं कि उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से कितनी सब्सिडी दी जा रही है, साथ ही बिजली कंपनियों को यह भी बताना होगा कि वर्ष 2021-22 से लेकर वर्ष 2023-24 में विद्युत आपूर्ति के घंटों की उनकी क्या स्थिति रही है?
उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा 'विद्युत नियामक आयोग ने जिस प्रकार से बिजली कंपनियों से हर मुद्दे पर सवाल-जवाब किया है उससे यह स्थिति साफ हो गई है कि बिजली कंपनियों के प्रस्तावित बिजली दरों में बढ़ोतरी का प्रस्ताव प्रथम दृष्टया खारिज होना तय है.' उपभोक्ता परिषद ने एक बार फिर अपनी मांग को दोहराते हुए कहा कि 'प्रदेश के उपभोक्ताओं का बिजली कंपनियों पर लगभग 25,133 करोड़ सरप्लस निकल रहा है. ऐसे में अगले पांच वर्षों तक बिजली दरों में सात प्रतिशत कमी करके विद्युत नियामक आयोग को बिजली कंपनियों और उपभोक्ताओं के बीच में सरप्लस रकम का हिसाब बराबर करना चाहिए. देश में पहली बार ऐसा हुआ है कि उस राज्य के विद्युत उपभोक्ताओं का बिजली कंपनियों पर ही हजारों करोड़ सरप्लस निकल रहा है, इसके बावजूद बिजली कंपनियों ने भारी बिजली दर बढ़ोतरी का प्रस्ताव दाखिल कर दिया, जो अपने आप में चौंकाने वाला मामला है. देश का कोई भी कानून इस बात की इजाजत नहीं देता कि जिस प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं का बिजली कंपनियों पर सरप्लस निकल रहा है, उस प्रदेश में उपभोक्ताओं की बिजली दरों में व्यापक बढ़ोतरी का प्रस्ताव दिया गया है.'
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