लखनऊ: राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 ने विषय विशेषज्ञों को अपने विषय के बारे में नए सिरे से सोचने का अवसर प्रदान किया है. जिससे हमारे छात्र डिग्री लेने के बाद रोजगार के लिए भटके नहीं. वह स्वयं इतने स्किल्ड हो कि नौकरी न मिलने की स्थिति में स्वरोजगार कर सकें. यह बातें अपर मुख्य सचिव उच्च शिक्षा मोनिका एस गर्ग ने पाठ्यक्रम समिति एवं विषय विशेषज्ञों के ओरियंटेशन प्रोग्राम में शुक्रवार को कही. कार्यक्रम में 100 विषय विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया.
अपर मुख्य सचिव उच्च शिक्षा ने कहा कि समिति का मुख्य उद्देश्य प्रोफेसर सुरेंद्र दुबे समिति द्वारा बनाए गए न्यूनतम समान पाठ्यक्रम को राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के अनुरूप पुनः संयोजित करना है. जिससे उसे आगामी सत्र से प्रदेश में लागू किया जा सके. उन्होंने कहा कि पाठ्यक्रम दोबारा संयोजित करने को त्रिस्तरीय समिति बनाई गई है. इसमें एक राज्य स्तरीय समिति, 5 सुपरवाइजर समिति बनाई गई हैं और प्रत्येक सुपरवाइजर समिति विभिन्न विषयों के लिए विषय विशेषज्ञ की तीन सदस्य समिति बनाएगी.
ऐच्छिक व अनिवार्य विषय भी होंगे शामिल
सुपरवाइजर समिति प्रो.सुरेंद्र दुबे समिति की ओर से बनाए गए 25 विषयों के पाठ्यक्रमों को राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के अनुरूप तैयार करेगी. इसके बाद अन्य विषयों एवं स्नातकोत्तर स्तर के पाठ्यक्रम का निर्धारण करेगी. समिति विभिन्न विषयों के पाठ्यक्रम को एक समान संरचना पर तैयार करेगी, जिससे कि विद्यार्थी आसानी से विभिन्न कक्षाओं में प्रवेश पा सकें. उन्होंने कहा कि पाठ्यक्रम में राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के अनुरूप मेजर एवं माइनर विषयों के साथ ऐच्छिक एवं अनिवार्य विषय भी शामिल होंगे. अब छात्रों को मुख्य विषय के अलावा रोजगार परक पाठ्यक्रम, नैतिक शिक्षा एवं मूल्यों, स्वास्थ्य पोषण एवं स्वच्छता, डिजिटल साक्षरता, व्यक्तित्व विकास, कम्युनिकेशन स्किल का भी अध्ययन करना होगा. इससे छात्रों का सर्वांगीण विकास होगा और रोजगार भी मिल सकेगा. अपर मुख्य सचिव उच्च शिक्षा ने कहा कि हमें पाठ्यक्रम निर्धारित करते समय अपनी आधारभूत संरचना एवं लिमिटेशन का ध्यान रखना होगा. जिससे कि आने वाले समय में ऑनलाइन पाठ्यक्रम भी छात्र कर सकेंगे और उनके क्रेडिट ट्रांसफर द्वारा वह उनका प्रयोग अपनी डिग्री में कर सकेंगे.
रोजगार परक पाठ्यक्रम बनाने पर जोर
मोनिका एस गर्ग ने विषय विशेषज्ञों से कहा कि एक उच्च स्तरीय, रोजगार परक एवं नैतिक मूल्यों को ध्यान में रखते हुए पाठ्यक्रम बनाया जाए, ताकि यह वर्तमान एवं भविष्य के छात्रों के लिए लाभकारी हो सके. अगर ऐसे किसी विषय के बारे में अध्यापक सोचते हैं लेकिन वह किसी कारण लागू न हो सका हो, तो उसे अपने पाठ्यक्रम के अंत में लिखकर दें. जिसका शासन स्तर पर विचार किया जाएगा. उन्होंने साफ निर्देश दिए कि जिन विषयों में प्रैक्टिकल नहीं थे. ऐसे विषयों में प्रैक्टिकल के बारे में भी सोचें. जैसे हिंदी, संस्कृत भाषा में स्क्रिप्ट राइटिंग, फोनिक्स, अनुवाद, लैंग्वेज लैब आदि को प्रैक्टिकल के रूप में देखा जा सकता है.