लखनऊ : राजधानी लखनऊ में तमाम ऐसी ऐतिहासिक इमारतें हैं इसका एक अलग ही महत्व है. गदर के निशान देखने हों तो रेजीडेंसी से ज्यादा मकबूल जगह और कहीं नहीं मिलेगी. मौजूदा समय में बहुत बदलाव हुआ हैं. जिससे रेजीडेंसी का पूरा माहौल खराब हो रहा है. लखनऊ के रहने वाले 50 साल बाद सभी बुजुर्ग जो एक साथ पढ़े थे, रेजीडेंसी में रियूनियन के लिए पहुंचे. इनका कहना है कि 50 साल पहले और आप में काफी बदलाव हुआ है.
याद आते हैं वे दिन : सेंट फ्रांसिस स्कूल में पढ़े वेंकटरमन काफी सालों से बेंगलूरू में रह रहे हैं. करीब 28 साल बाद वह लखनऊ वापस अपने मित्रों से मिलने आए. उन्होंने बताया कि फिलहाल कुछ दोस्तों के संपर्क में आने से पता चला कि बाकी के दोस्त भी संपर्क में हैं. जिनसे सोशल मीडिया के जरिए बातचीत हुई और उन्हें एक रियूनियन के लिए कहा. एक बार पुराने दोस्त फिर मिल गए काफी अच्छा लग रहा है. यहां पर हम सभी अपने अपने जीवन से संबंधित सारे पहलुओं पर बात कर रहे हैं. हमने क्या खोया क्या पाया लखनऊ की यादें हमारी लिए बहुत खास हैं. रेजीडेंसी में क्लास बंद करके आते थे और यहां पर काफी खेलकूद हुआ करता था वह सभी दिन हमें हमेशा याद रहे.
![झूलन बत्रा व तरुण बत्रा.](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/up-luc-02-heritage-routine-7209871_04122022145549_0412f_1670145949_643.jpg)
![वेंकटरमन .](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/up-luc-02-heritage-routine-7209871_04122022145549_0412f_1670145949_614.jpg)
इतिहासकार रवि भट्ट (Historian Ravi Bhatt) ने बताया कि 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की साथी रेजीडेन्सी का निर्माण 1774 ई में नवाब शुजाउद्दौला द्वारा अवध में अंग्रेज रेज़ीडेन्ट के रखे जाने के लिए दी गई स्वीकृति के फलस्वरूप हुआ. नवाब आसफुद्दौला ने 1775 ई में अवध की राजधानी फैजाबाद से लखनऊ स्थानान्तरित करने के बाद रेजीडेन्ट के निवास के लिए इसका निर्माण प्रारंभ किया और नवाब सआदत अली खां (17581814 ई.) ने इसे पूरा किया. कालान्तर में आवश्यकतानुसार यहां अन्य इमारतों का निर्माण हुआ. उन्होंने बताया कि 1857 में क्रांतिकारियों द्वारा पांच महीनों की ऐतिहासिक घेराबंदी के दौरान रेजीडेन्सी की इमारतें गोलाबारी से बुरी तरह क्षतिग्रस्त या पूरी तरह धराशायी हो गई.
लगभग 33 एकड़ क्षेत्र में फैले इन ध्वंसावशेषों को इनके उपयोग यहां रहने वालों तथा मोर्चों पर उनके कमान्डर के नाम से जाना जाता है जैसे- मुख्य रेजीडेंसी भवन, बैंक्वेट हॉल, गबिन का घर, कोषागार डॉ. फेयर का घर एण्डरसन का मोर्चा आदि रेजीडेन्सी के भग्नावशेषों को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने 1920 ई. में अपने संरक्षण में लिया और यथावत संरक्षित रखा है ताकि अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए दिए गए शहीदों की यादें ताजा रखी जा सकें. साथ ही घेरेबंदी में फंसे अंग्रेजों के धैर्य और रणनीति को समझा जा सके. इस काम में 2003 में मॉडल कक्ष में '1857 स्मृति संग्रहालय की भी स्थापना की गई. जिसमें 1857 की क्रांति से पूर्व की स्थिति को दर्शाता 1873 में निर्मित रेजीडेन्सी परिसर का एक प्रतिरूप एवं रेजीडेन्सी भवन का तैलचित्र प्रदर्शित है. रेजीडेन्सी के निर्माण से संबंधित अवध के नवाबों और स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नायकों, ब्रिटिश अधिकारियों, महत्वपूर्ण भवनों के चैनपत्र, लियोग्राफ, ट्रांसलाइट्स के अतिरिक्त यहां अनेक दस्तावेज, रेखाचित्र, तोपें तोप के गोले, बंदूकें, तलवार एवं ढाल आदि भी प्रदर्शित है.