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RLD और सपा की लड़ाई ने निकाय चुनाव में डुबोई लुटिया, फिसड्डी रहा प्रदर्शन

राष्ट्रीय लोक दल और समाजवादी पार्टी की आपसी लड़ाई का खामियाजा निकाय चुनाव के प्रत्याशियों को भुगतना पड़ गया. इस बार उनका प्रदर्शन फिसड्डी रहा. चलिए जानते हैं इस बारे में.

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Published : May 15, 2023, 5:25 PM IST

Updated : May 15, 2023, 6:56 PM IST

लखनऊ: राष्ट्रीय लोक दल और समाजवादी पार्टी की आपसी लड़ाई का खामियाजा प्रत्याशियों को भुगतना पड़ गया. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उम्मीदवारों को उतारने में आरएलडी और सपा की आपसी सहमति ही नहीं बन पाई. लिहाजा, दोनों पार्टियों ने कई जगह अपने-अपने प्रत्याशी उतार दिए और इसके बाद गठबंधन टूटने तक की चर्चाएं तेज हो गईं. अब जब चुनाव नतीजे आए हैं तो इससे यह साबित हो गया कि दोनों पार्टियों की आपसी लड़ाई में प्रत्याशी पिस गए. आरएलडी को यह झटका और भी तेजी से लगा है, क्योंकि पहले ही कई चुनावों में लगातार मत प्रतिशत कम होने के चलते पार्टी का राज्य स्तरीय दर्जा निर्वाचन आयोग ने छीन लिया है. अब निकाय चुनाव से लोकसभा चुनाव के लिए आरएलडी की कुछ उम्मीद जागने वाली थी, लेकिन प्रत्याशियों के हारने और वोट न मिलने के चलते निकाय चुनाव में भी पार्टी को झटका ही लगा है. इसका नुकसान आरएलडी को लोकसभा चुनाव में उठाना पड़ सकता है.

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विधानसभा चुनाव की तरह ही उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोक दल और समाजवादी पार्टी ने निकाय चुनाव भी मिलकर लड़ा. हालांकि समाजवादी पार्टी से राष्ट्रीय लोकदल की तरफ से लगातार मेरठ और मथुरा मेयर की सीटें मांगी जाती रहीं, लेकिन अखिलेश ने एक भी सीट जयंत को नहीं दी. नतीजा यह हुआ कि दोनों पार्टियों में नाराजगी बढ़ने लगी. हालांकि किसी तरह अखिलेश यादव ने जिन सीटों पर नगर पालिका और नगर पंचायत में प्रत्याशी उतारे थे उनमें से कई को वापस लिया जिसके बाद कुछ हद तक नाराजगी दूर हुई, लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोक दल के कार्यकर्ताओं को टिकट न मिलने से नाराजगी बढ़ी और समाजवादी पार्टी से दूरियां भी बढ़ गई.

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चुनाव तो किसी तरह संपन्न हो गया लेकिन नतीजों ने यह जरूर दर्शा दिया कि दोनों पार्टियों की आपसी लड़ाई में प्रत्याशियों का नुकसान हो गया. समाजवादी पार्टी की बात करें तो 17 महापौर की सीटों में से समाजवादी पार्टी 10 सीटों पर अपनी जमानत ही जब्त करा बैठी. सात सीटों में से छह सीटों पर भाजपा से पार्टी की टक्कर हुई. अगर इस निकाय चुनाव में सपा के नुकसान की बात करें तो पार्षद, नगर पालिका परिषद, अध्यक्ष, सदस्य नगर पंचायत, अध्यक्ष और सदस्यों की हिस्सेदारी पिछले चुनावों से घट गई. नगर पालिका परिषद के चुनाव में समाजवादी पार्टी की करारी हार हुई.

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इस बार समाजवादी पार्टी के कुल अध्यक्षों में 17.30 फीसद अध्यक्ष जीतने में कामयाब हो पाए जबकि पिछले चुनाव में यह आंकड़ा तकरीबन 23% तक था. ऐसे में माना जा सकता है कि समाजवादी पार्टी की निकाय चुनाव में करारी हार ही हुई है. समाजवादी पार्टी के गढ़ माने जाने वाले मैनपुरी नगर पालिका परिषद अध्यक्ष पद के मुकाबले में भी भाजपा ने सपा को धूल चटा दी. इससे समाजवादी पार्टी को बड़ा झटका लगा है. क्योंकि मैनपुरी लोकसभा सीट से अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव ही उप चुनाव जीती थीं. समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल का आपसी गठबंधन का लाभ दोनों ही पार्टियों को मिलता नजर नहीं आया.

निकाय चुनाव में अगर हिस्सेदारी की बात करें तो 2017 में नगर निगम में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशियों के जीतने का प्रतिशत 15.54 था जबकि 2023 में घटकर 13.45 रह गया. नगर पालिका परिषद सदस्य की बात करें तो 2017 में 9.07 प्रतिशत जीत का आंकड़ा रहा था जबकि इस बार घटकर 7.89 रह गया. नगर पंचायत अध्यक्ष की बात की जाए तो पिछले चुनाव में आंकड़ा 18.95 था. जो इस बार के चुनाव में घटकर 14.52 रह गया. नगर पंचायत सदस्य की बात की जाए तो 2017 के चुनाव में आंकड़ा 8.34% था जो 2023 में घटकर 6. 67 फीसद ही रह गया. जाहिर है कि समाजवादी पार्टी को निकाय चुनाव में बड़ा नुकसान हुआ है.

राष्ट्रीय लोक दल मेयर की किसी भी सीट पर चुनाव नहीं लड़ा था, लेकिन नगर पालिका की बात करें तो यहां पर पार्टी ने अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे थे. इसमें से कई जीतने में सफल भी हुए हैं. बागपत नगरपालिका सीट पर राष्ट्रीय लोक दल ने कब्जा किया. मुजफ्फरनगर की खतौली और बिजनौर की धामपुर के साथ ही नटहौर पर पार्टी के उम्मीदवार जीते. शामली जो राष्ट्रीय लोक दल का गढ़ माना जाता है वहां से पार्टी का उम्मीदवार हार गया. कई सीटों पर नजदीकी मुकाबले में पार्टी के प्रत्याशियों को हार का सामना करना पड़ा. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और रालोद के गठबंधन का असर नजर भी आया. मुजफ्फरनगर में कुल 10 सीटों में से एक सीट पर ही भारतीय जनता पार्टी चुनाव जीत पाई. नौ सीटों पर भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी चुनाव हार गए. हालांकि हारी हुई सीटों पर भी बात करें तो इसका सीधा फायदा समाजवादी पार्टी और रालोद को न मिलकर निर्दलीय प्रत्याशियों को मिला. पांच सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवार जीते जबकि तीन पर समाजवादी पार्टी और रालोद के प्रत्याशी जीतने में कामयाब हो पाए. एक सीट आम आदमी पार्टी के खाते में चली गई. कुल मिलाकर भारतीय जनता पार्टी ने दो सीटें गंवाई. उसमें भी रालोद सपा गठबंधन के हिस्से में सिर्फ एक तिहाई सीट ही आईं. राष्ट्रीय लोक दल के मत प्रतिशत की बात करें तो उम्मीद के मुताबिक पार्टी को कामयाबी नहीं मिली. पार्टी के पदाधिकारियों का कहना है हम आगे और भी मेहनत करेंगे. लोकसभा चुनाव में सब कुछ बेहतर होगा.

निकाय चुनाव के नतीजों से राष्ट्रीय लोक दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष व राज्यसभा सांसद जयंत चौधरी खुश हैं. उनका मानना है कि पार्टी के कार्यकर्ताओं की मेहनत रंग लाई है. कई जगह प्रत्याशी जीते हैं. जो प्रत्याशी चुनाव हार भी गए हैं उन्होंने भी अच्छा मुकाबला किया है. आगे हम और मेहनत करेंगे जिससे परिणाम बेहतर हो सकें.

ये भी पढ़ेंः रामपुर में आजम खान अपना 'घर' भी हारे, जानिए कौन ले उड़ा वोट

लखनऊ: राष्ट्रीय लोक दल और समाजवादी पार्टी की आपसी लड़ाई का खामियाजा प्रत्याशियों को भुगतना पड़ गया. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उम्मीदवारों को उतारने में आरएलडी और सपा की आपसी सहमति ही नहीं बन पाई. लिहाजा, दोनों पार्टियों ने कई जगह अपने-अपने प्रत्याशी उतार दिए और इसके बाद गठबंधन टूटने तक की चर्चाएं तेज हो गईं. अब जब चुनाव नतीजे आए हैं तो इससे यह साबित हो गया कि दोनों पार्टियों की आपसी लड़ाई में प्रत्याशी पिस गए. आरएलडी को यह झटका और भी तेजी से लगा है, क्योंकि पहले ही कई चुनावों में लगातार मत प्रतिशत कम होने के चलते पार्टी का राज्य स्तरीय दर्जा निर्वाचन आयोग ने छीन लिया है. अब निकाय चुनाव से लोकसभा चुनाव के लिए आरएलडी की कुछ उम्मीद जागने वाली थी, लेकिन प्रत्याशियों के हारने और वोट न मिलने के चलते निकाय चुनाव में भी पार्टी को झटका ही लगा है. इसका नुकसान आरएलडी को लोकसभा चुनाव में उठाना पड़ सकता है.

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विधानसभा चुनाव की तरह ही उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोक दल और समाजवादी पार्टी ने निकाय चुनाव भी मिलकर लड़ा. हालांकि समाजवादी पार्टी से राष्ट्रीय लोकदल की तरफ से लगातार मेरठ और मथुरा मेयर की सीटें मांगी जाती रहीं, लेकिन अखिलेश ने एक भी सीट जयंत को नहीं दी. नतीजा यह हुआ कि दोनों पार्टियों में नाराजगी बढ़ने लगी. हालांकि किसी तरह अखिलेश यादव ने जिन सीटों पर नगर पालिका और नगर पंचायत में प्रत्याशी उतारे थे उनमें से कई को वापस लिया जिसके बाद कुछ हद तक नाराजगी दूर हुई, लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोक दल के कार्यकर्ताओं को टिकट न मिलने से नाराजगी बढ़ी और समाजवादी पार्टी से दूरियां भी बढ़ गई.

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चुनाव तो किसी तरह संपन्न हो गया लेकिन नतीजों ने यह जरूर दर्शा दिया कि दोनों पार्टियों की आपसी लड़ाई में प्रत्याशियों का नुकसान हो गया. समाजवादी पार्टी की बात करें तो 17 महापौर की सीटों में से समाजवादी पार्टी 10 सीटों पर अपनी जमानत ही जब्त करा बैठी. सात सीटों में से छह सीटों पर भाजपा से पार्टी की टक्कर हुई. अगर इस निकाय चुनाव में सपा के नुकसान की बात करें तो पार्षद, नगर पालिका परिषद, अध्यक्ष, सदस्य नगर पंचायत, अध्यक्ष और सदस्यों की हिस्सेदारी पिछले चुनावों से घट गई. नगर पालिका परिषद के चुनाव में समाजवादी पार्टी की करारी हार हुई.

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इस बार समाजवादी पार्टी के कुल अध्यक्षों में 17.30 फीसद अध्यक्ष जीतने में कामयाब हो पाए जबकि पिछले चुनाव में यह आंकड़ा तकरीबन 23% तक था. ऐसे में माना जा सकता है कि समाजवादी पार्टी की निकाय चुनाव में करारी हार ही हुई है. समाजवादी पार्टी के गढ़ माने जाने वाले मैनपुरी नगर पालिका परिषद अध्यक्ष पद के मुकाबले में भी भाजपा ने सपा को धूल चटा दी. इससे समाजवादी पार्टी को बड़ा झटका लगा है. क्योंकि मैनपुरी लोकसभा सीट से अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव ही उप चुनाव जीती थीं. समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल का आपसी गठबंधन का लाभ दोनों ही पार्टियों को मिलता नजर नहीं आया.

निकाय चुनाव में अगर हिस्सेदारी की बात करें तो 2017 में नगर निगम में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशियों के जीतने का प्रतिशत 15.54 था जबकि 2023 में घटकर 13.45 रह गया. नगर पालिका परिषद सदस्य की बात करें तो 2017 में 9.07 प्रतिशत जीत का आंकड़ा रहा था जबकि इस बार घटकर 7.89 रह गया. नगर पंचायत अध्यक्ष की बात की जाए तो पिछले चुनाव में आंकड़ा 18.95 था. जो इस बार के चुनाव में घटकर 14.52 रह गया. नगर पंचायत सदस्य की बात की जाए तो 2017 के चुनाव में आंकड़ा 8.34% था जो 2023 में घटकर 6. 67 फीसद ही रह गया. जाहिर है कि समाजवादी पार्टी को निकाय चुनाव में बड़ा नुकसान हुआ है.

राष्ट्रीय लोक दल मेयर की किसी भी सीट पर चुनाव नहीं लड़ा था, लेकिन नगर पालिका की बात करें तो यहां पर पार्टी ने अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे थे. इसमें से कई जीतने में सफल भी हुए हैं. बागपत नगरपालिका सीट पर राष्ट्रीय लोक दल ने कब्जा किया. मुजफ्फरनगर की खतौली और बिजनौर की धामपुर के साथ ही नटहौर पर पार्टी के उम्मीदवार जीते. शामली जो राष्ट्रीय लोक दल का गढ़ माना जाता है वहां से पार्टी का उम्मीदवार हार गया. कई सीटों पर नजदीकी मुकाबले में पार्टी के प्रत्याशियों को हार का सामना करना पड़ा. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और रालोद के गठबंधन का असर नजर भी आया. मुजफ्फरनगर में कुल 10 सीटों में से एक सीट पर ही भारतीय जनता पार्टी चुनाव जीत पाई. नौ सीटों पर भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी चुनाव हार गए. हालांकि हारी हुई सीटों पर भी बात करें तो इसका सीधा फायदा समाजवादी पार्टी और रालोद को न मिलकर निर्दलीय प्रत्याशियों को मिला. पांच सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवार जीते जबकि तीन पर समाजवादी पार्टी और रालोद के प्रत्याशी जीतने में कामयाब हो पाए. एक सीट आम आदमी पार्टी के खाते में चली गई. कुल मिलाकर भारतीय जनता पार्टी ने दो सीटें गंवाई. उसमें भी रालोद सपा गठबंधन के हिस्से में सिर्फ एक तिहाई सीट ही आईं. राष्ट्रीय लोक दल के मत प्रतिशत की बात करें तो उम्मीद के मुताबिक पार्टी को कामयाबी नहीं मिली. पार्टी के पदाधिकारियों का कहना है हम आगे और भी मेहनत करेंगे. लोकसभा चुनाव में सब कुछ बेहतर होगा.

निकाय चुनाव के नतीजों से राष्ट्रीय लोक दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष व राज्यसभा सांसद जयंत चौधरी खुश हैं. उनका मानना है कि पार्टी के कार्यकर्ताओं की मेहनत रंग लाई है. कई जगह प्रत्याशी जीते हैं. जो प्रत्याशी चुनाव हार भी गए हैं उन्होंने भी अच्छा मुकाबला किया है. आगे हम और मेहनत करेंगे जिससे परिणाम बेहतर हो सकें.

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Last Updated : May 15, 2023, 6:56 PM IST
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