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शहरों मे किराये के मकान की समस्या पर व्यंग्य है नाटक 'बड़े हुज़ूर' - लखनऊ खबर

मंगलवार को डीएवी पी जी कॉलेज के भृगुदत्त ऑडिटोरियम में आत्माराम सावंत के मूल नाटक का श्रीधर जोशी के नाट्य रूपांतरण में नाटक 'बड़े हुजूर' का मंचन हुआ. नाटक में बड़े शहरों में किराए के मकान की समस्या को उजागर किया गया, नाटक बड़े हुजूर ने जहां एक ओर इस समस्या की ओर लोगों का ध्यानाकर्षण करवाया वहीं दूसरी ओर नाटक के परिस्थितिजन्य हास्य ने दर्शकों को हंसा कर लोटपोट किया.

किराये के मकान की समस्या पर व्यंग्य है नाटक 'बड़े हुज़ूर'
किराये के मकान की समस्या पर व्यंग्य है नाटक 'बड़े हुज़ूर'
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Published : Mar 3, 2021, 10:28 AM IST

लखनऊ: सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्था देवशु थियेटर आर्ट्स सोसाइटी के तत्वावधान में मंगलवार को डीएवी पी जी कॉलेज के भृगुदत्त ऑडिटोरियम में आत्माराम सावंत के मूल नाटक का श्रीधर जोशी के नाट्य रूपांतरण में नाटक' बड़े हुजूर 'का मंचन हुआ. निर्देशन अशोक लाल ने किया. नाटक का उद्घाटन डीएवी पीजी कॉलेज के प्रबंधक मनमोहन तिवारी और बीएन ओझा ने दीप प्रज्वलित कर किया.

नाटक का कथानक

बड़े शहरों में किराए के मकान की समस्या को उजागर करते नाटक बड़े हुजूर ने जहां एक ओर इस समस्या की ओर लोगों का ध्यानाकर्षण करवाया वहीं दूसरी ओर नाटक के परिस्थितिजन्य हास्य ने दर्शकों को हंसा कर लोटपोट किया. नाटक के कथा अनुसार शराफत हुसैन जो कि वास्तव में एक विवाहित है और दूसरे शहर में नौकरी करने आया है. उसे उस शहर में किराए का मकान लेना था. उसे एक ऐसा मकान किराए पर मिला, जहां का मकान मालिक नवाब साहब (बड़े हुजूर) अपनी शर्तों पर मकान किराए पर देता है. उसकी शर्त होती है कि जो व्यक्ति कुंवारा होगा उसे ही मकान किराए पर रहने के लिए दिया जाएगा.

बड़े हुजूर की एक बेटी जिसका नाम पम्मी है, उसकी शादी करके बड़े हुजूर उसके पति को अपना घर जमाई बनाना चाहता है. शराफत मियां अपने आप को कुंवारा बताकर उस मकान में रहने लगता है, लेकिन एक दिन शराफत मियां की पत्नी शमीम जो उस शहर में अपने पति शराफत का पता लगाते हुए आ जाती हैं. शराफत मियां की बीवी को इस झूठ का पता नहीं रहता. बस मुसीबत यहीं से शुरू हो जाती है. एक ओर वह मकान मालिक से मकान खाली कराए जाने के डर से अपनी बीवी को अपनी बहन के रूप में मकान मालिक बड़े हुजूर से परिचय कराता है, तो दूसरी ओर बड़े हुजूर मन ही मन पम्मी की शादी शराफत हुसैन से कराने की सोचता है. वहीं, नाटक में असल मोड़ तब आता है जब विधुर बड़े हुजूर स्वयं शमीम पर आशिक हो जाते हैं और उससे शादी करने का सपना देखते हैं. कई दिलचस्प घटनाओं के बाद शमीम, अब्बू (पिता) मीर साहब अपने बेटे इमरान मियां के साथ वहां आ धमकते हैं. अंत में बड़े ही नाटकीय परिस्थितियों में संपूर्ण घटना का रहस्योद्घाटन होता है. एक दिलचस्प मोड़ पर आकर नाटक समाप्त हो जाता है.

ये थे कलाकार

सशक्त कथानक से परिपूर्ण नाटक बड़े हुजूर में अशोक लाल, शेखर पांडे, विजय मिश्रा, अचला बोस, आनंद प्रकाश शर्मा, श्रद्धा बोस, गिरीश अभीष्ट, सचिन कुमार शाक्य ने अपने दमदार अभिनय से रंग प्रेमी दर्शकों को देर तक अपने आकर्षण के जाल में बांधे रखा. नाट्य नेपथ्य में आनंद प्रकाश (सेट परिकल्पना) शेखर पांडे (सेट डिजाइनिंग) शिव कुमार श्रीवास्तव शिब्बू (रूप सज्जा) श्रद्धा बोस (वस्त्र विन्यास) प्रभात कुमार बोस और बीएन ओझा का योगदान नाटक को सफल बनाने में महत्वपूर्ण साबित हुआ.





लखनऊ: सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्था देवशु थियेटर आर्ट्स सोसाइटी के तत्वावधान में मंगलवार को डीएवी पी जी कॉलेज के भृगुदत्त ऑडिटोरियम में आत्माराम सावंत के मूल नाटक का श्रीधर जोशी के नाट्य रूपांतरण में नाटक' बड़े हुजूर 'का मंचन हुआ. निर्देशन अशोक लाल ने किया. नाटक का उद्घाटन डीएवी पीजी कॉलेज के प्रबंधक मनमोहन तिवारी और बीएन ओझा ने दीप प्रज्वलित कर किया.

नाटक का कथानक

बड़े शहरों में किराए के मकान की समस्या को उजागर करते नाटक बड़े हुजूर ने जहां एक ओर इस समस्या की ओर लोगों का ध्यानाकर्षण करवाया वहीं दूसरी ओर नाटक के परिस्थितिजन्य हास्य ने दर्शकों को हंसा कर लोटपोट किया. नाटक के कथा अनुसार शराफत हुसैन जो कि वास्तव में एक विवाहित है और दूसरे शहर में नौकरी करने आया है. उसे उस शहर में किराए का मकान लेना था. उसे एक ऐसा मकान किराए पर मिला, जहां का मकान मालिक नवाब साहब (बड़े हुजूर) अपनी शर्तों पर मकान किराए पर देता है. उसकी शर्त होती है कि जो व्यक्ति कुंवारा होगा उसे ही मकान किराए पर रहने के लिए दिया जाएगा.

बड़े हुजूर की एक बेटी जिसका नाम पम्मी है, उसकी शादी करके बड़े हुजूर उसके पति को अपना घर जमाई बनाना चाहता है. शराफत मियां अपने आप को कुंवारा बताकर उस मकान में रहने लगता है, लेकिन एक दिन शराफत मियां की पत्नी शमीम जो उस शहर में अपने पति शराफत का पता लगाते हुए आ जाती हैं. शराफत मियां की बीवी को इस झूठ का पता नहीं रहता. बस मुसीबत यहीं से शुरू हो जाती है. एक ओर वह मकान मालिक से मकान खाली कराए जाने के डर से अपनी बीवी को अपनी बहन के रूप में मकान मालिक बड़े हुजूर से परिचय कराता है, तो दूसरी ओर बड़े हुजूर मन ही मन पम्मी की शादी शराफत हुसैन से कराने की सोचता है. वहीं, नाटक में असल मोड़ तब आता है जब विधुर बड़े हुजूर स्वयं शमीम पर आशिक हो जाते हैं और उससे शादी करने का सपना देखते हैं. कई दिलचस्प घटनाओं के बाद शमीम, अब्बू (पिता) मीर साहब अपने बेटे इमरान मियां के साथ वहां आ धमकते हैं. अंत में बड़े ही नाटकीय परिस्थितियों में संपूर्ण घटना का रहस्योद्घाटन होता है. एक दिलचस्प मोड़ पर आकर नाटक समाप्त हो जाता है.

ये थे कलाकार

सशक्त कथानक से परिपूर्ण नाटक बड़े हुजूर में अशोक लाल, शेखर पांडे, विजय मिश्रा, अचला बोस, आनंद प्रकाश शर्मा, श्रद्धा बोस, गिरीश अभीष्ट, सचिन कुमार शाक्य ने अपने दमदार अभिनय से रंग प्रेमी दर्शकों को देर तक अपने आकर्षण के जाल में बांधे रखा. नाट्य नेपथ्य में आनंद प्रकाश (सेट परिकल्पना) शेखर पांडे (सेट डिजाइनिंग) शिव कुमार श्रीवास्तव शिब्बू (रूप सज्जा) श्रद्धा बोस (वस्त्र विन्यास) प्रभात कुमार बोस और बीएन ओझा का योगदान नाटक को सफल बनाने में महत्वपूर्ण साबित हुआ.





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