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एंटीबायोटिक की तय डोज को ब्रेक करना घातक: डॉ. वेद प्रकाश

एंटीबायोटिक का बेजा इस्तेमाल बड़ी समस्या खड़ी कर रहा है. एक तरफ जहां छोटी-छोटी बीमारियों में हाई एंटीबायोटिक की डोज दे दे जाती है, वहीं कई मरीज तय डोज का अधूरा कोर्स ही करते हैं. ऐसे में ड्रग रजिस्टेन्स का खतरा बढ़ जाता है. ये बातें केजीएमयू के पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. वेद प्रकाश ने कही.

एंटीबायोटिक का बेजा इस्तेमाल बड़ी समस्या
एंटीबायोटिक का बेजा इस्तेमाल बड़ी समस्या
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Published : Sep 15, 2021, 10:47 AM IST

लखनऊ: दुनियाभर में वर्ल्ड सेप्सिस डे मनाया जाता है. इस बार की थीम 'द ग्लोबल थ्रेट' रही. ऐसे में केजीएमयू के पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर विभाग में 'एंटीबायोटिक के दुरुपयोग' के प्रति सजग करने के लिए कार्यशाला का आयोजन किया गया. इसमें देशभर से एक हजार डॉक्टर ऑनलाइन जुड़े. इस दौरान विभागाध्यक्ष डॉ. वेद प्रकाश ने कहा कि तमाम लोग बिना चिकित्सकीय परामर्श के एंटीबायोटिक का सेवन कर लेते हैं. वहीं तमाम दवा तो डॉक्टर की सलाह पर शुरू करते हैं. मगर, राहत मिलने पर खुद दवा छोड़ देते हैं. एंटीबायोटिक का अधूरा कोर्स करने पर बैक्टीरिया पूरी तरह खत्म नहीं होता है और वह अपने स्वरूप में बदलाव करने लगता है. इससे मरीज पर यह एंटीबायोटिक रजिस्टेन्स हो जाती है. उसे एंटीबायोटिक की डोज देने पर असर ही नहीं करती है.

एंटीबायोटिक का बेजा इस्तेमाल बड़ी समस्या
आईसीयू में पहुंचा देगा एंटीबायोटिक का गलत सेवन
एंटीबायोटिक का गलत सेवन मरीजों में कई समस्या खड़ी करता है. कारण, मरीज में इंफेक्शन होने पर बॉडी का रिस्पांस तेज हो जाता है और इसे सिस्टेमिक इन्फ्लेमेटरी रिस्पांस सिंड्रोम (सर्स) कहते हैं. इस दौरान शरीर को सामान्य करने के लिए इम्यून सिस्टम संघर्ष करता है. ऐसे में इम्यूननसिस्टम और इन्फेक्शन के बीच संघर्ष के दौरान शरीर के जो सेल क्षतिग्रस्त हो जाते हैं. उससे सेप्सिस पनपने लगता है. यह सब मौत का कारण बन जाते हैं. स्थिति यह है किआईसीयू के 50 फीसद मरीज सेप्सिस के आते है. इनमें भी 50 फीसद 50 मल्टीड्रग रेजिस्टेंस के होते हैं.
कब होता है ऑर्गन फेल
माइक्रोबायोलॉजी की डॉ. शीतल वर्मा के मुताबिक पहले मरीज में सर्स बनता है, इसके बाद सेप्सिस होने लगता है. कंट्रोल न होने पर उसे सीवियर सेप्सिस हो जाता है. इसके बाद सेप्टिक शॉक में मरीज चला जाता है. रिकवरी न होने पर मरीज में मल्टी ऑर्गन फेल्योर की समस्या हो जाती है.

लखनऊ: दुनियाभर में वर्ल्ड सेप्सिस डे मनाया जाता है. इस बार की थीम 'द ग्लोबल थ्रेट' रही. ऐसे में केजीएमयू के पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर विभाग में 'एंटीबायोटिक के दुरुपयोग' के प्रति सजग करने के लिए कार्यशाला का आयोजन किया गया. इसमें देशभर से एक हजार डॉक्टर ऑनलाइन जुड़े. इस दौरान विभागाध्यक्ष डॉ. वेद प्रकाश ने कहा कि तमाम लोग बिना चिकित्सकीय परामर्श के एंटीबायोटिक का सेवन कर लेते हैं. वहीं तमाम दवा तो डॉक्टर की सलाह पर शुरू करते हैं. मगर, राहत मिलने पर खुद दवा छोड़ देते हैं. एंटीबायोटिक का अधूरा कोर्स करने पर बैक्टीरिया पूरी तरह खत्म नहीं होता है और वह अपने स्वरूप में बदलाव करने लगता है. इससे मरीज पर यह एंटीबायोटिक रजिस्टेन्स हो जाती है. उसे एंटीबायोटिक की डोज देने पर असर ही नहीं करती है.

एंटीबायोटिक का बेजा इस्तेमाल बड़ी समस्या
आईसीयू में पहुंचा देगा एंटीबायोटिक का गलत सेवन
एंटीबायोटिक का गलत सेवन मरीजों में कई समस्या खड़ी करता है. कारण, मरीज में इंफेक्शन होने पर बॉडी का रिस्पांस तेज हो जाता है और इसे सिस्टेमिक इन्फ्लेमेटरी रिस्पांस सिंड्रोम (सर्स) कहते हैं. इस दौरान शरीर को सामान्य करने के लिए इम्यून सिस्टम संघर्ष करता है. ऐसे में इम्यूननसिस्टम और इन्फेक्शन के बीच संघर्ष के दौरान शरीर के जो सेल क्षतिग्रस्त हो जाते हैं. उससे सेप्सिस पनपने लगता है. यह सब मौत का कारण बन जाते हैं. स्थिति यह है किआईसीयू के 50 फीसद मरीज सेप्सिस के आते है. इनमें भी 50 फीसद 50 मल्टीड्रग रेजिस्टेंस के होते हैं.
कब होता है ऑर्गन फेल
माइक्रोबायोलॉजी की डॉ. शीतल वर्मा के मुताबिक पहले मरीज में सर्स बनता है, इसके बाद सेप्सिस होने लगता है. कंट्रोल न होने पर उसे सीवियर सेप्सिस हो जाता है. इसके बाद सेप्टिक शॉक में मरीज चला जाता है. रिकवरी न होने पर मरीज में मल्टी ऑर्गन फेल्योर की समस्या हो जाती है.
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