लखनऊ: हजरतगंज स्थित वीरांगना झलकारी बाई अस्पताल की जूनियर डॉ. अनीता गुप्ता ने नॉर्मल डिलीवरी पर एक रिसर्च थीसिस बनाई. उन्होंने कहा कि आज महिलाएं नॉर्मल डिलीवरी कराने से बच रही हैं. पहले महिलाएं सिजेरियन कराने से बचती थी, लेकिन अब अस्पताल आकर प्रसूता खुद सिजेरियन विधि से डिलीवरी के लिए कहती हैं. डॉ. अनीता बताती हैं कि रिसर्च के बेस पर डॉक्टर थीसिस तैयार करते हैं. मैंने अपनी थीसिस में इस टॉपिक को इसलिए लिया, ताकि इसके प्रति लोग जागरूक हो सकें. नॉर्मल डिलीवरी के लिए गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान रोजाना कसरत और व्यायाम करना चाहिए, ताकि नॉर्मल डिलीवरी के समय बच्चे का सिर घूमने न पाए.
उन्होंने कहा कि सरकारी अस्पताल में बहुत ज्यादा कॉम्प्लिकेशन होने पर ही सिजेरियन विधि से महिला की डिलीवरी कराई जाती है, लेकिन मौजूदा समय में प्रसूता खुद सिजेरियन के लिए कहती है. ऐसे में दो पहलू हो सकते हैं या तो गर्भवती महिला दर्द बर्दाश्त नहीं करना चाहती हैं या फिर उन्हें सरकारी अस्पताल पर भरोसा नहीं है. अस्पताल में ही महिलाओं की डिलीवरी करवाते समय ही बहुत सारी गर्भवती महिलाओं से बातचीत की. उनसे जानने की कोशिश की कि आखिर किस लिए वह सिजेरियन के लिए कह रही हैं, क्योंकि सिजेरियन विधि से डिलीवरी कराने पर महिला का शरीर (फिगर) खराब होता है. उन्होंने बताया कि 87 गर्भवती महिलाओं से बातचीत की. अगस्त में झलकारी बाई महिला अस्पताल में कुल 117 सिजेरियन डिलीवरी हुईं, जबकि 92 नॉर्मल डिलीवरी कराई गई.
क्वीन मेरी अस्पताल केजीएमयू में सिजेरियन विधि द्वारा डिलीवरी अधिक कराई गई हैं, जबकि अस्पताल की महिला रोग विशेषज्ञ व मीडिया पर्सन डॉ. रेखा सचान ने बताया कि हमारे अस्पताल में सिजेरियन विधि द्वारा अधिक डिलीवरी इसलिए होती है, क्योंकि राजधानी के जो छोटे महिला अस्पताल हैं वहां से के सीरियस केस रेफर होकर केजीएमयू के क्वीन मेरी अस्पताल में आते हैं. यही वजह है कि सीरियस केस को हम सिजेरियन विधि द्वारा ही डिलीवरी करवाते हैं.
मार्च में हुईं सबसे अधिक सिजेरियन डिलीवरी
हजरतगंज स्थित वीरांगना झलकारी बाई महिला अस्पताल की सीएमएस डॉ रंजना खरे बताती हैं कि जनवरी से जून तक के आंकड़े अस्पताल ने जारी किए हैं. उन्होंने बातया कि हमारे यहां ऐसा होता है कि जब भी आंकड़े जारी होते हैं तो उन्हें बोर्ड पर लगा दिया जाता है. जनवरी से अगस्त तक के महीने की बात करें तो मार्च में 158 सिजेरियन डिलीवरी हुईं. इसके अलावा फरवरी में 125 और अप्रैल में 108 सिजेरियन डिलीवरी हुईं. नॉर्मल डिलीवरी अप्रैल में 99 सबसे अधिक हुई हैं. उसके बाद मई में 90 और जून में 79 डिलीवरी हुईं. 117 सिजेरियन डिलीवरी हुईं, जबकि 92 नॉर्मल डिलीवरी कराई गई.
क्वीन मेरी अस्पताल में सिजेरियन डिलीवरी अधिक
रेखा सचान बताती हैं कि अगर रोजाना के हिसाब से देखें तो करीब 200 गर्भवती महिलाएं ओपीडी में परामर्श के लिए आती हैं और रोजाना सात से आठ नॉर्मल डिलीवरी और 10 से अधिक सिजेरियन द्वारा डिलीवरी करवाई जाती हैं. आखिरी महीने जुलाई में अस्पताल में नॉर्मल 123 डिलीवरी हुईं थीं, जबकि सिजेरियन 187 डिलीवरी हुईं थीं. रेफर की वजह से अस्पताल में सिजेरियन डिलीवरी नॉर्मल डिलीवरी की तुलना में अधिक होती हैं.
अवंतीबाई अस्पताल में नॉर्मल डिलीवरी अधिक
बलरामपुर अस्पताल के अवंतीबाई महिला अस्पताल में मार्च में सबसे अधिक 158 नॉर्मल डिलीवरी हुईं, जबकि जुलाई में 121 और अगस्त में 106 नॉर्मल डिलीवरी हुईं. वहीं, सिजेरियन की बात की जाए तो जुलाई में 78 और अगस्त में 91 सिजेरियन डिलीवरी हुईं. महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. पल्लवी बताती हैं कि अस्पताल के सभी डॉक्टरों की पहली कोशिश होती है कि महिलाओं की नॉर्मल डिलीवरी कराई जाए. जब कॉन्प्लिकेशन अधिक होते हैं, तक सिजेरियन डिलीवरी कराई जाती है.
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गर्भावस्था में कसरत के समय इन बातों का रखें ध्यान
गर्भावस्था में कसरत या व्यायाम करते समय कुछ बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए. जैसे ढीले और आरामदेह कपड़े पहनें, आरामदेह जूते पहनें, वातावरण न ज्यादा गरम हो न ज्यादा ठंडा, पर्याप्त पानी पिएं, जो व्यायाम या योगासन असज और तकलीफदेह लगें उन्हें न किया जाए, एक ही जगह पर ज्यादा देर स्थिर न खड़े रहा जाए. इसके अलावा सभी कसरतें किसी योग्य विशेषज्ञ से सलाह लेकर किसी परिजन की निगरानी में की जाएं, ताकि जरूरत पड़ने पर आप को मदद मिल सके.
ये दो व्यायाम करें
तितली आसन
जमीन पर बैठकर दोनों पैरों के तलवों को आपस में मिलाया जाए. इसके बाद दोनों तलवों, दोनों हाथों से पकड़कर घुटनों को तितली के पंख की तरह ऊपर-नीचे हिलाएं. ऐसा 10 से 15 बार किया जा सकता है. इसके बाद पैरों को दोबारा सामान्य स्थिति में रखें. ऐसा पांच से दस बार करें.
सैर करना
अगर प्रेग्नेंट महिला सुबह-शाम आधे घंटे तक सैर करती है तो इससे शरीर में लचीलापन बना रहता है. मन में ताजगी आती है. साथ ही बढ़ते वजन पर भी रोक लगती है. सैर गर्भावस्था के आखिरी महीनों में भी की जा सकती है.