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मैनपुरी में पत्नी की जीत से पूरी तरह आश्वस्त नहीं हैं अखिलेश यादव, डोर टू डोर प्रचार और क्षेत्र में डाले हैं डेरा

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पत्नी डिंपल यादव की मैनपुरी उपचुनाव में जीत को लेकर पूरी तरह आश्वस्त नहीं दिख रहे हैं. शायद यही कारण है कि वह लीक से हटकर पहली बार पत्नी के लिए उपचुनाव के लिए न सिर्फ प्रचार कर रहे हैं, बल्कि डोर टू डोर संपर्क कर रहे हैं.

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Published : Nov 22, 2022, 7:27 PM IST

लखनऊ : समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पत्नी डिंपल यादव की मैनपुरी उपचुनाव में जीत को लेकर पूरी तरह आश्वस्त नहीं दिख रहे हैं. शायद यही कारण है कि वह लीक से हटकर पहली बार पत्नी के लिए उपचुनाव के लिए न सिर्फ प्रचार कर रहे हैं, बल्कि डोर टू डोर संपर्क कर रहे हैं. डिंपल यादव के नामांकन के बाद से अखिलेश यादव पूरी तरह से मैनपुरी क्षेत्र में डेरा डाले हुए हैं. इसके अलावा अपने नाराज चाचा को मनाकर उनसे आशीर्वाद लिया है और उनके साथ साथ प्रचार कर रहे हैं. एक मंच पर तीन बार पैर छूकर आशीर्वाद भी लिया.


दरअसल अखिलेश यादव अपनी पूरी राजनीति में उपचुनाव से लगातार दूर रहते रहे हैं. इससे पहले होने वाले रामपुर आजमगढ़ या अन्य उपचुनाव में अखिलेश यादव चुनाव प्रचार के लिए नहीं गए. आजमगढ़ में जब उपचुनाव हुए तो उनके भाई धर्मेंद्र यादव चुनाव में मैदान में थे, लेकिन अखिलेश यादव चुनाव प्रचार के लिए जाना मुनासिब नहीं समझा. अब राजनीतिक परिस्थितियां कुछ ऐसी बनी है कि मुलायम सिंह यादव के ना रहने के बाद अखिलेश यादव ने अपनी पत्नी डिंपल यादव को मैनपुरी उप चुनाव में उम्मीदवार बनाया है. ऐसे में अखिलेश यादव ने पत्नी की जीत सुनिश्चित करने के लिए पूरी तरह से मैनपुरी में डेरा डाल दिया है. वह लगातार मैनपुरी में चुनाव प्रचार कर रहे हैं डोर टू डोर कैंपेन कर रहे हैं.

जानकारी देते संवाददाता धीरज त्रिपाठी.



वरिष्ठ पत्रकार राजनीतिक विश्लेषक विजय शंकर पंकज (Senior Journalist Political Analyst Vijay Shankar Pankaj) कहते हैं कि अखिलेश यादव के लिए मैनपुरी का चुनाव उनके पूरे राजनीतिक अस्तित्व के लिए संक्रमण काल है. पिता की मृत्यु के बाद अखिलेश को पहली बार एहसास हुआ है कि राजनीति का ककहरा इतना आसान नहीं होता है. अभी तक मुलायम के नाम पर बहुत सारी चीजें चल रही थीं जो अखिलेश झटके में आर पार कर देते थे. मुलायम सिंह यादव के रहते हुए ही अखिलेश यादव की हिम्मत हुई थी कि वह शिवपाल सिंह यादव से तनातनी कर सकें. मुलायम का हाथ नहीं होता तो शिवपाल की तनातनी उन्हें काफी भारी पड़ती. शिवपाल सिंह यादव ने बड़ा दिल दिखाते हुए यह कहा है कि बड़ा भाई के ना रहने पर भतीजे के सभी गलतियों को माफ कर दिया है और पूरा समर्थन दे दिया है.


शिवपाल के राजनीतिक अस्तित्व के लिए भी यह जो घटनाक्रम हो रहे हो काफी महत्वपूर्ण हैं. वह अपने बेटे को स्थापित करना चाहते हैं. अखिलेश यादव के लिए मैनपुरी के उपचुनाव पूरे उनके अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है. अखिलेश यादव की पत्नी अगर मैनपुरी चुनाव हार जाती हैं, तो यह उनके लिए हैट्रिक होगी. इससे पहले भी वह लोकसभा के दो चुनाव हार चुकी हैं. सबसे बड़ी बात है कि 2024 में अखिलेश यादव कुछ करने के लिए रह नहीं जाएगा. यही कारण है कि वह पूरी राजनीतिक अस्मिता को दांव पर लगाकर अखिलेश यादव मैनपुरी में घर घर जाने के लिए बाध्य हो गए हैं. वह पत्नी की जीत को लेकर पूरी तरह आश्वस्त बिल्कुल नहीं हैृ. आश्वस्त होने का सवाल भी नहीं है और वह आश्वस्त हो भी नहीं सकते मुलायम सिंह यादव जब अपना आखिरी चुनाव लड़े थे तो उनकी जीत का मार्जिन बहुत कम हो गया था. मुलायम सिंह के साथ मैनपुरी की जनता यह कर सकती है तो अखिलेश यादव डिंपल यादव को तो कोई अस्तित्व ही नहीं है. वहां जो शाक्य बिरादरी है उसकी यादव के साथ तनातनी रहती है. यादव बनाम शाक्य बिरादरी रहती है शाक्य के साथ लोध बिरादरी भी महत्वपूर्ण मानी जाती है. भाजपा ने यादव मुसलमान छोड़कर अच्छी नाकेबंदी की है. ऐसे में मैनपुरी का चुनाव यादव मुस्लिम के सहारे जीत पाना अखिलेश यादव के लिए आसान नहीं है.

यह भी पढ़ें : राजकीय पॉलिटेक्निक में इंडस्ट्री की मांग के अनुसार खोले गए पाठ्यक्रमों में भी नहीं भरी सीटें

लखनऊ : समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पत्नी डिंपल यादव की मैनपुरी उपचुनाव में जीत को लेकर पूरी तरह आश्वस्त नहीं दिख रहे हैं. शायद यही कारण है कि वह लीक से हटकर पहली बार पत्नी के लिए उपचुनाव के लिए न सिर्फ प्रचार कर रहे हैं, बल्कि डोर टू डोर संपर्क कर रहे हैं. डिंपल यादव के नामांकन के बाद से अखिलेश यादव पूरी तरह से मैनपुरी क्षेत्र में डेरा डाले हुए हैं. इसके अलावा अपने नाराज चाचा को मनाकर उनसे आशीर्वाद लिया है और उनके साथ साथ प्रचार कर रहे हैं. एक मंच पर तीन बार पैर छूकर आशीर्वाद भी लिया.


दरअसल अखिलेश यादव अपनी पूरी राजनीति में उपचुनाव से लगातार दूर रहते रहे हैं. इससे पहले होने वाले रामपुर आजमगढ़ या अन्य उपचुनाव में अखिलेश यादव चुनाव प्रचार के लिए नहीं गए. आजमगढ़ में जब उपचुनाव हुए तो उनके भाई धर्मेंद्र यादव चुनाव में मैदान में थे, लेकिन अखिलेश यादव चुनाव प्रचार के लिए जाना मुनासिब नहीं समझा. अब राजनीतिक परिस्थितियां कुछ ऐसी बनी है कि मुलायम सिंह यादव के ना रहने के बाद अखिलेश यादव ने अपनी पत्नी डिंपल यादव को मैनपुरी उप चुनाव में उम्मीदवार बनाया है. ऐसे में अखिलेश यादव ने पत्नी की जीत सुनिश्चित करने के लिए पूरी तरह से मैनपुरी में डेरा डाल दिया है. वह लगातार मैनपुरी में चुनाव प्रचार कर रहे हैं डोर टू डोर कैंपेन कर रहे हैं.

जानकारी देते संवाददाता धीरज त्रिपाठी.



वरिष्ठ पत्रकार राजनीतिक विश्लेषक विजय शंकर पंकज (Senior Journalist Political Analyst Vijay Shankar Pankaj) कहते हैं कि अखिलेश यादव के लिए मैनपुरी का चुनाव उनके पूरे राजनीतिक अस्तित्व के लिए संक्रमण काल है. पिता की मृत्यु के बाद अखिलेश को पहली बार एहसास हुआ है कि राजनीति का ककहरा इतना आसान नहीं होता है. अभी तक मुलायम के नाम पर बहुत सारी चीजें चल रही थीं जो अखिलेश झटके में आर पार कर देते थे. मुलायम सिंह यादव के रहते हुए ही अखिलेश यादव की हिम्मत हुई थी कि वह शिवपाल सिंह यादव से तनातनी कर सकें. मुलायम का हाथ नहीं होता तो शिवपाल की तनातनी उन्हें काफी भारी पड़ती. शिवपाल सिंह यादव ने बड़ा दिल दिखाते हुए यह कहा है कि बड़ा भाई के ना रहने पर भतीजे के सभी गलतियों को माफ कर दिया है और पूरा समर्थन दे दिया है.


शिवपाल के राजनीतिक अस्तित्व के लिए भी यह जो घटनाक्रम हो रहे हो काफी महत्वपूर्ण हैं. वह अपने बेटे को स्थापित करना चाहते हैं. अखिलेश यादव के लिए मैनपुरी के उपचुनाव पूरे उनके अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है. अखिलेश यादव की पत्नी अगर मैनपुरी चुनाव हार जाती हैं, तो यह उनके लिए हैट्रिक होगी. इससे पहले भी वह लोकसभा के दो चुनाव हार चुकी हैं. सबसे बड़ी बात है कि 2024 में अखिलेश यादव कुछ करने के लिए रह नहीं जाएगा. यही कारण है कि वह पूरी राजनीतिक अस्मिता को दांव पर लगाकर अखिलेश यादव मैनपुरी में घर घर जाने के लिए बाध्य हो गए हैं. वह पत्नी की जीत को लेकर पूरी तरह आश्वस्त बिल्कुल नहीं हैृ. आश्वस्त होने का सवाल भी नहीं है और वह आश्वस्त हो भी नहीं सकते मुलायम सिंह यादव जब अपना आखिरी चुनाव लड़े थे तो उनकी जीत का मार्जिन बहुत कम हो गया था. मुलायम सिंह के साथ मैनपुरी की जनता यह कर सकती है तो अखिलेश यादव डिंपल यादव को तो कोई अस्तित्व ही नहीं है. वहां जो शाक्य बिरादरी है उसकी यादव के साथ तनातनी रहती है. यादव बनाम शाक्य बिरादरी रहती है शाक्य के साथ लोध बिरादरी भी महत्वपूर्ण मानी जाती है. भाजपा ने यादव मुसलमान छोड़कर अच्छी नाकेबंदी की है. ऐसे में मैनपुरी का चुनाव यादव मुस्लिम के सहारे जीत पाना अखिलेश यादव के लिए आसान नहीं है.

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