लखनऊ : उत्तर प्रदेश की राजधानी में कभी सड़क पर सरेराह चेन स्नेचिंग या टप्पेबाजी की घटनाएं आम हो गई थीं. हालांकि पुलिस काफी हद तक ऐसे अपराध कम करने के कामयाब हुई है, लेकिन स्ट्रीट क्राइम की अपेक्षा सबसे अधिक होने वाले नए तरीके के क्राइम में लोगों की खून पसीने की कमाई कम ही बचाई जा सकी. हम बात कर रहे हैं साइबर फ्राड की, जिसकी गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि साइबर अपराध बीते एक दशक में 20 गुना तक बढ़ गया है. साइबर क्राइम की अपेक्षा स्ट्रीट क्राइम 20 फीसदी भी नहीं है.
लखनऊ पुलिस कमिश्नरेट में 52 थाने हैं. इसमें दो महिला थाने भी शामिल हैं. बीते तीन साल के आंकड़े देखें तो स्ट्रीट क्राइम के मामले महज 50 थानों में ही दर्ज होते हैं. इन थानों में स्ट्रीट क्राइम जैसे स्नेचिंग, लूट, छिनौती आदि के 20 फीसदी से अधिक केस दर्ज नहीं हुए हैं, बल्कि इन थानों में सबसे ज्यादा ठगी, जालसाजी, लेन-देन के विवाद, वर्चस्व की झगड़े और आपसी विवाद केस अधिक दर्ज होते हैं. दरअसल, मौजूदा समय अपराधी सड़कों पर लोगों को लूटने से बेहतर इंटरनेट के जरिए कहीं दूर बैठ कर ठगने पर अधिक भरोसा कर रहे हैं. ऐसे में इस क्राइम को लेकर स्ट्रीट क्राइम की अपेक्षा अधिकारी ज्यादा गंभीर नहीं दिखते हैं. राज्य हर जिलों के थानों में साइबर क्राइम सेल बना दिया गया और 18 मंडल में साइबर थाने खोल दिए गए हैं, लेकिन सवाल यह खड़ा होता है कि क्या उन थानों व सेल में साइबर अपराधियों से लड़ने के पर्याप्त संसाधन व फोर्स मौजूद है? जबकि साइबर क्रिमिनल्स का चेहरा और उनकी लोकेशन तलाशना सबसे मुश्किल है.
यूपी में पुलिस की अन्य विंग के हेल्पलाइन नंबर का प्रमोशन कई स्तरों पर किया जाता है, जबकि साइबर हेल्पलाइन नंबर 1930 का प्रमोशन नहीं किया जा रहा. इसके अलावा, चौराहों पर लगने वाले बोर्ड, पर्चे व अन्य माध्यम से भी साइबर हेल्पलाइन नंबर का प्रमोशन उस स्तर से नहीं किया जा रहा. जिसके चलते आम लोगों को साइबर हेल्पलाइन 1930 की जानकारी नहीं हो पा रही है. दरअसल, साइबर क्राइम के प्रति लोगों को जागरूक करना सबसे अहम है. एक्सपर्ट मानते है कि लोगों को जागरूक करने से साइबर क्राइम से 50 फीसदी मामले घट सकते हैं, लेकिन प्रमोशन न होने व जागरूकता अभियान न चलाए जाने से बहुत से लोग इसका खामियाजा उठा रहे हैं.
10 फीसदी भी नहीं साइबर फ्राड की रिकवरी : राजधानी की ही बात करें तो साइबर फ्राड की रिकवरी के मामले में पुलिस अधिक गंभीर नहीं दिखती है. बीते दो साल में 35 करोड़ का साइबर फ्रॉड हुआ है. जबकि सिर्फ 4.5 करोड़ की रकम ही रिकवर की जा सकी. हालांकि यह पहले महज तीन प्रतिशत तक ही सीमित था. साइबर एक्सपर्ट अमित दुबे मानते हैं कि साइबर अपराध को लेकर पुलिस का अभी तक माइंडसेट नहीं हो पाया है. उन्हें लगता है कि चेन स्नेचिंग की घटना में शोर मचता है, उससे लॉ एंड आर्डर बिगडऩे की स्थिति बन सकती है. इसलिए वे ज्यादा सक्रिय दिखते हैं और साइबर ठगी के मामलों को ज्यादा तवज्जो नहीं देते हैं. क्योंकि ये एक तरह का साइलेंट क्राइम है. अमित बताते है कि पूरी दुनिया आर्थिक अपराध को काफी गंभीरता से ले रही है, जबकि राजधानी की पुलिस इस पर सतर्क ही नहीं है. वे मानते हैं कि इसके लिए टॉप लेवल के अफसरों को सिस्टम तैयार करना होगा तभी वर्तमान समय में बड़ी मुसीबत बन चुके साइबर क्राइम को कंट्रोल किया जा सकेगा. लखनऊ पुलिस कमिश्नरेट की प्रवक्ता डीसीपी अपर्णा रजत कौशिक के मुताबिक साइबर क्राइम टेक्नोलॉजी बेस्ड होता, ऐसे में हम इन अपराधियों को पकड़ने के लिए इन्ही की जैसे टेक्नोलॉजी पर काम करते हैं. हालांकि यह काम लोगों को नहीं दिखता है. हां यह जरूर है कि कुछ उपकरणों की कमी है जिन्हें जल्द से जल्द पूरी कर इस पर प्रभावी कार्रवाई की जाएगी.
यह भी पढ़ें : President Dr. Irfan Ali का फैसला, गुयाना में बिकेंगे अब यूपी के फल और सब्जियां
Cyber Crime in Lucknow : स्ट्रीट क्राइम से तीन गुना अधिक बढ़ गया है साइबर क्राइम, पुलिस सिस्टम क्यों है लाचार - साइबर एक्सपर्ट अमित दुबे
पुलिस डाल डाल तो अपराधी पात पात वाली कहावत साइबर क्राइम (Cyber Crime in Lucknow) के बारे में पुलिस पर सटीक बैठ रही है. बीत कई महीनों में राजधानी लखनऊ में साइबर अपराध के कई मामले दर्ज हुए, लेकिन पुलिस अधिकतर मामलों में अभी तक खाली हाथ है. हालांकि स्ट्रीट क्राइम रेट में काफी सुधार हुआ है.
लखनऊ : उत्तर प्रदेश की राजधानी में कभी सड़क पर सरेराह चेन स्नेचिंग या टप्पेबाजी की घटनाएं आम हो गई थीं. हालांकि पुलिस काफी हद तक ऐसे अपराध कम करने के कामयाब हुई है, लेकिन स्ट्रीट क्राइम की अपेक्षा सबसे अधिक होने वाले नए तरीके के क्राइम में लोगों की खून पसीने की कमाई कम ही बचाई जा सकी. हम बात कर रहे हैं साइबर फ्राड की, जिसकी गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि साइबर अपराध बीते एक दशक में 20 गुना तक बढ़ गया है. साइबर क्राइम की अपेक्षा स्ट्रीट क्राइम 20 फीसदी भी नहीं है.
लखनऊ पुलिस कमिश्नरेट में 52 थाने हैं. इसमें दो महिला थाने भी शामिल हैं. बीते तीन साल के आंकड़े देखें तो स्ट्रीट क्राइम के मामले महज 50 थानों में ही दर्ज होते हैं. इन थानों में स्ट्रीट क्राइम जैसे स्नेचिंग, लूट, छिनौती आदि के 20 फीसदी से अधिक केस दर्ज नहीं हुए हैं, बल्कि इन थानों में सबसे ज्यादा ठगी, जालसाजी, लेन-देन के विवाद, वर्चस्व की झगड़े और आपसी विवाद केस अधिक दर्ज होते हैं. दरअसल, मौजूदा समय अपराधी सड़कों पर लोगों को लूटने से बेहतर इंटरनेट के जरिए कहीं दूर बैठ कर ठगने पर अधिक भरोसा कर रहे हैं. ऐसे में इस क्राइम को लेकर स्ट्रीट क्राइम की अपेक्षा अधिकारी ज्यादा गंभीर नहीं दिखते हैं. राज्य हर जिलों के थानों में साइबर क्राइम सेल बना दिया गया और 18 मंडल में साइबर थाने खोल दिए गए हैं, लेकिन सवाल यह खड़ा होता है कि क्या उन थानों व सेल में साइबर अपराधियों से लड़ने के पर्याप्त संसाधन व फोर्स मौजूद है? जबकि साइबर क्रिमिनल्स का चेहरा और उनकी लोकेशन तलाशना सबसे मुश्किल है.
यूपी में पुलिस की अन्य विंग के हेल्पलाइन नंबर का प्रमोशन कई स्तरों पर किया जाता है, जबकि साइबर हेल्पलाइन नंबर 1930 का प्रमोशन नहीं किया जा रहा. इसके अलावा, चौराहों पर लगने वाले बोर्ड, पर्चे व अन्य माध्यम से भी साइबर हेल्पलाइन नंबर का प्रमोशन उस स्तर से नहीं किया जा रहा. जिसके चलते आम लोगों को साइबर हेल्पलाइन 1930 की जानकारी नहीं हो पा रही है. दरअसल, साइबर क्राइम के प्रति लोगों को जागरूक करना सबसे अहम है. एक्सपर्ट मानते है कि लोगों को जागरूक करने से साइबर क्राइम से 50 फीसदी मामले घट सकते हैं, लेकिन प्रमोशन न होने व जागरूकता अभियान न चलाए जाने से बहुत से लोग इसका खामियाजा उठा रहे हैं.
10 फीसदी भी नहीं साइबर फ्राड की रिकवरी : राजधानी की ही बात करें तो साइबर फ्राड की रिकवरी के मामले में पुलिस अधिक गंभीर नहीं दिखती है. बीते दो साल में 35 करोड़ का साइबर फ्रॉड हुआ है. जबकि सिर्फ 4.5 करोड़ की रकम ही रिकवर की जा सकी. हालांकि यह पहले महज तीन प्रतिशत तक ही सीमित था. साइबर एक्सपर्ट अमित दुबे मानते हैं कि साइबर अपराध को लेकर पुलिस का अभी तक माइंडसेट नहीं हो पाया है. उन्हें लगता है कि चेन स्नेचिंग की घटना में शोर मचता है, उससे लॉ एंड आर्डर बिगडऩे की स्थिति बन सकती है. इसलिए वे ज्यादा सक्रिय दिखते हैं और साइबर ठगी के मामलों को ज्यादा तवज्जो नहीं देते हैं. क्योंकि ये एक तरह का साइलेंट क्राइम है. अमित बताते है कि पूरी दुनिया आर्थिक अपराध को काफी गंभीरता से ले रही है, जबकि राजधानी की पुलिस इस पर सतर्क ही नहीं है. वे मानते हैं कि इसके लिए टॉप लेवल के अफसरों को सिस्टम तैयार करना होगा तभी वर्तमान समय में बड़ी मुसीबत बन चुके साइबर क्राइम को कंट्रोल किया जा सकेगा. लखनऊ पुलिस कमिश्नरेट की प्रवक्ता डीसीपी अपर्णा रजत कौशिक के मुताबिक साइबर क्राइम टेक्नोलॉजी बेस्ड होता, ऐसे में हम इन अपराधियों को पकड़ने के लिए इन्ही की जैसे टेक्नोलॉजी पर काम करते हैं. हालांकि यह काम लोगों को नहीं दिखता है. हां यह जरूर है कि कुछ उपकरणों की कमी है जिन्हें जल्द से जल्द पूरी कर इस पर प्रभावी कार्रवाई की जाएगी.
यह भी पढ़ें : President Dr. Irfan Ali का फैसला, गुयाना में बिकेंगे अब यूपी के फल और सब्जियां