लखनऊ : यूपी की राजधानी लखनऊ में गोमती नदी की सफाई के नाम पर करोड़ों खर्च होने के बाद भी हाल जस का तस बना हुआ है. अफसरों की लापरवाही लचर कार्यशैली के चलते गोमती की स्थिति बदहाल हो गई है. नदी में कूड़ा, करकट और खुलेआम नालों का कचरा सहित गंदा पानी गोमती में प्रवाहित हो रहा है. जलकुंभी ने गोमती को पूरी तरह से ढक लिया है. ईटीवी भारत ने आज गोमती नदी की साफ सफाई की पड़ताल की तो स्थिति काफी चौंकाने वाली नजर आई. राजधानी के कई इलाकों से गुजरने वाली गोमती नदी की हालत दयनीय हो चुकी है. गोमती में इस समय गंदगी ही गंदगी नजर आ रही है. जलकुंभी ने गोमती नदी को पूरी तरह से ढक रखा है और कई नालों का गंदा पानी भी गिर रहा है. केंद्र सरकार हो या फिर राज्य सरकार, दोनों की तरफ से गंगा और उसकी सहायक नदियों को अविरल और निर्मल बनाने को लेकर दावे तो तमाम किए गए, लेकिन धरातल पर सच्चाई कुछ एकदम विपरीत है. सूत्रों के मुताबिक, पिछले कई वर्षों में गोमती सफाई के नाम पर पांच हजार करोड़ के करीब बजट खर्च हुआ है. सिंचाई विभाग व नगर निगम के स्तर पर सफाई व्यवस्था कराये जाने का काम होता है.
जलकुंभी ने गोमती को पूरी तरह से पाट कर रख दिया है. ऐसा लग रहा है कि गोमती नदी के पानी पर जलकुंभी नहीं बल्कि ग्रीन कारपेट बिछा हुआ है. कूड़ा कचरे के साथ गन्दा पानी भी नदी में प्रवाहित हो रहा है, जो गोमती को पूरी तरह से दूषित कर रहा है. कई बार स्थानीय लोगों ने शिकायत भी की है, लेकिन हालत जस की तस बनी हुई है. यह हालत तब है जब सफाई अभियान के नाम पर हजारों करोड़ रुपए पानी की तरह बर्बाद कर दिए गए. बिना किसी बेहतर कार्ययोजना के हजारों करोड़ों रुपए फूंक देने पर भी सवाल उठ रहे हैं. लोगों का कहना है कि 'जिन लोगों को गोमती की सफाई का काम दिया गया, वह पैसा भ्रष्टाचार का शिकार हो गया अगर ईमानदारी पूर्वक सफाई अभियान चला होता तो गोमती नदी साफ हो जाती.'
गोमती एक्शन प्लान की शुरुआत : वर्ष 1984 में सबसे पहले कांग्रेस की सरकार में गोमती एक्शन प्लान की शुरुआत की गई. जिसमें गोमती की ड्रेजिंग की बात थी. कुछ काम हुआ और फिर नदी अपनी पुरानी हालत में आ गई. 90 के दशक से लेकर 2000 तक एक बार फिर जब उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आई फिर से गोमती पर काम शुरू हुआ. घाटों का सौंदर्यीकरण हुआ और ड्रेजिंग के लिए मशीनें लाई गईं, मगर हालात नहीं बदले. बहुजन समाज पार्टी की सरकार उत्तर प्रदेश में आई. एक बार फिर गोमती को निर्मल करने के लिए 300 करोड़ रुपये की लागत से भरवारा में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण किया गया. बालागंज स्थित जलकल केंद्र की क्षमता को भी बढ़ाया गया, मगर नतीजा सिफर रहा.
गोमती नदी को साफ सुथरा करने की मुहिम में जुटे समाजसेवी रिद्धि गौड़ कहते हैं कि 'गोमती नदी को साफ सुथरा करने के लिए हजारों करोड़ रुपए पानी में बहा दिए गए हैं. बरसात से पहले कई जगह पर जो जाली लगी थी, जिससे कूड़ा नदी में नहीं जाता था उसे हटा दिया गया है. इससे अब नदी में पानी के साथ कूड़ा मलबा भी जा रहा है. सरकार को एक बेहतर कार्ययोजना बनाकर गोमती नदी को साफ बनाना होगा. जलकुम्भी भी इस समय खूब है. इसे हटाने की कार्रवाई करनी चाहिए.'
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