लखनऊः देश की बढ़ती आबादी की वजह से आने वाले समय में मुसलमानों के कब्रिस्तान में मुर्दों को दफनाने के लिए जगह कम पड़ सकती है. जिसका बड़ा कारण कब्रिस्तान की जमीन पर अवैध कब्जे और कब्रिस्तानों के दायरे सीमित होना बताया जा रहा है. देश के साथ उत्तर प्रदेश में भी मुसलमानों के शव को दफनाने के लिए बड़ी संख्या में कब्रिस्तान हैं लेकिन आने वाले कुछ वर्षों के बाद शव को दफनाने के लिए इन कब्रिस्तान में जगह कम पड़ने का अंदेशा लगाया जा रहा है.
कब्रिस्तान में कम हो रही जगह
लगातार बढ़ती जनसंख्या न केवल रहने के लिए जगह को कम कर रही है बल्कि मुसलमानों के कब्रिस्तान में भी जगह सिकुड़ रही है. जानकारों के मुताबिक वह दिन ज्यादा दूर नहीं जब मुर्दों को सम्मानजनक दफनाने के लिए संघर्ष करना पड़ सकता है. कब्रिस्तान में कम होती जगह का बड़ा कारण कब्रिस्तान की जमीन पर अवैध कब्जे और उनकी जमीनों की अनदेखी और रख रखाव भी है.
जल्द खड़ी हो सकती है समस्या
लखनऊ के सबसे बड़े कब्रिस्तान और कर्बला तालकटोरा के मुतावल्ली सैयद फैजी के मुताबिक अभी लखनऊ शहर में कई ऐसे कब्रिस्तान हैं. जहां मुर्दों को दफनाने के लिए काफी जगह है लेकिन कुछ ऐसे भी कब्रिस्तान हैं, जो अवैध कब्जे और छोटे होने के कारण वहां पर मुर्दों को दफनाने में परेशानियां जल्द खड़ी हो सकती हैं. उन्होंने कहा कि हमारी कर्बला तालकटोरा में 51 बीघा में कब्रिस्तान है. जहां पर आने वाले तकरीबन 50 से 100 वर्षों तक किसी परेशानी का सामना नहीं करना होगा. सैय्यद फैजी ने बताया कि काफी स्थानों पर अवैध कब्जे के चलते उनके दायरे सीमित होते जा रहे हैं जिस पर सभी को गौर करने की जरूरत है.
कब्रिस्तान की जगहों पर हुए अवैध कब्जे
वहीं दारुल उलूम फरंगी महल के प्रवक्ता और मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना सुफियान निजामी का कहना है कि स्थानीय प्रशासन और वक्फ बोर्ड के जिम्मेदारों की अनदेखी के चलते कब्रिस्तानों की जगह पर बड़ी तादाद में अवैध कब्जे हुए हैं. यही वजह है कि उनकी जगह सीमित होकर रह गई है. उन्होंने बताया कि कई इलाकों में कब्रिस्तान की जमीन पर स्थानीय लोगों ने कब्जा कर रखा है. यहां तक कि कब्रिस्तान की जमीन पर कॉलोनियां तक बस गई हैं. जिसकी वजह से आने वाले वर्षो में मुर्दों को दफनाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है. मौलाना ने कहा कि अगर वक्त रहते वक्फ के जिम्मेदार और स्थानीय प्रशासन इसका संज्ञान ले तो आने वाले वक्त में कब्रिस्तान में होने वाली मुश्किलों को कम किया जा सकता है.
क्या कहती है शरीयत
दारुल उलूम फरंगी महल के प्रवक्ता और मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना सुफियान निजामी ने बताया कि शरीयत के लिहाज से जिन कब्रों के निशान बाकी हैं, वह कब्रें सुरक्षित रखी जाती हैं. लेकिन जो कब्रे काफी पुरानी हो गई हों और उनके निशान गायब हो चुके हों, उस जगह पर दोबारा मुर्दे को कब्रिस्तान में दफन किया जा सकता है.
सपा ने उठाया था कब्रिस्तानों की बाउंड्री वॉल का कदम
देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में मुसलमानों की आबादी के लिहाज से कई कब्रिस्तान मौजूद हैं. जिसका रख रखाव का जिम्मा शिया और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अलावा कुछ सोसायटियों के पास भी है. यूपी में समाजवादी पार्टी की अखिलेश सरकार ने कब्रिस्तानों की बाउंड्री वॉल के लिए कदम उठाए तो थे लेकिन उसमें भी कई शिकायतें सामने आई थीं. जिसके बाद से अब तक उत्तर प्रदेश के कब्रिस्तान अवैध कब्जे और अनदेखी का शिकार हैं. बढ़ती आबादी के लिहाज से इन कब्रिस्तानों के रखरखाव में अगर कोई बेहतर कदम नहीं उठाया जाता है तो आने वाले कुछ वर्षों के बाद कब्रिस्तान में शवों को दफनाने में कठिनाइयां सामने आएंगी जो गहरी चिंता का विषय है.