लखनऊः मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट सुशील कुमारी ने कथित गिरधारी एनकाउंटर मामले में पुलिसवालों के खिलाफ सुसंगत धाराओं में FIR दर्ज करने के आदेश दिए हैं. कोर्ट ने थाना हजरतगंज को आदेश दिया है कि वह पुलिस कर्मियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करे. साथ ही सात दिन में इसकी प्रति कोर्ट में जमा करें.
कोर्ट ने यह आदेश आजमगढ़ के वकील सर्वजीत यादव की अर्जी पर दिया है. अर्जी में डीसीपी पूर्वी संजीव सुमन और थाना विभूति खंड के प्रभारी निरीक्षक चंद्रशेखर सिंह के साथ ही अन्य सम्बंधित पुलिसवालों के विरुद्ध गिरधारी की हत्या का आरोप लगाया था.
आत्मरक्षा में यह कृत्य किया या आत्मरक्षा में विवेचना का विषय
सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि पुलिस का कहना है कि उसने आत्मरक्षा में यह एनकाउंटर किया, लेकिन वास्तव में उन्होंने आत्मरक्षा में यह कृत्य किया या आत्मरक्षा की परिधि के बाहर जाकर, यह विवेचना का विषय है.
आरोपी पुलिस कर्मियों के खिलाफ नहीं दर्ज है कोई एफआईआर
वहीं पुलिस ने कोर्ट में दाखिल की अपनी आख्या में कहा था कि इस घटना के सम्बंध में आईपीसी की धारा 224, 307, 394, और 411 के तहत एक एफआईआर और दूसरी एफआईआर आयुध अधिनियम की धारा 25/27 में विभूति खंड थाने में दर्ज है. लिहाजा उसी घटना की एक और एफआईआर दर्ज करना नियम विरुद्ध होगा. हालांकि वादी की ओर से इस दलील का विरोध करते हुए कहा गया कि पुलिस अपनी आख्या में कोर्ट को बरगलाने का प्रयास कर रही है. दोनों एफआईआर दर्ज किए जाने की बात कही जा रही है, उनमें मृतक को आरोपी बनाया गया है. जबकि उसकी मृत्यु के सम्बंध में कथित एनकाउंटर में शामिल पुलिसकर्मियों के विरुद्ध कोई एफआईआर नहीं दर्ज की गई है.
एफआईआर दर्ज किया जाना संज्ञान के बाहर
कोर्ट ने भी इस दलील से सहमति जताते हुए कहा कि दोनों ही एफआईआर मृतक गिरधारी के विरुद्ध दर्ज हैं. जबकि घटना में खुद को पीड़ित मानने वाले व्यक्ति को भी अपनी बात रखने का पूरा अधिकार है. कोर्ट ने पुलिस आख्या में आई इस दलील को भी अस्वीकार कर दिया कि लोकसेवक के विरुद्ध बिना अभियोजन स्वीकृति में न्यायालय संज्ञान नहीं ले सकता. कोर्ट ने कहा कि एफआईआर दर्ज किया जाना संज्ञान लेने की परिधि में नहीं आता.
की जा रही विवेचना
कोर्ट ने पाया कि प्रभारी निरीक्षक विभूति खंड द्वारा दर्ज मामलों की विवेचना सहायक पुलिस आयुक्त हजरतगंज द्वारा की जा रही है. लिहाजा कोर्ट हजरतगंज थाने में ही एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है. उल्लेखनीय है कि पुलिस अधिकारियों के खिलाफ दाखिल उक्त अर्जी में कहा गया था कि 14-15 फरवरी की रात्रि में पुलिस अभिरक्षा के दौरान एक सुनियोजित षडयंत्र के तहत गिरधारी की निर्मम तरीके से हत्या कर दी गई. हत्या के जुर्म से बचने के लिए कुछ मिथ्या लेखन कर सरकारी दस्तावेज भी तैयार किए गए. कहा गया कि घटना के दिन वादी सर्वजीत यादव बतौर अधिवक्ता थाने में ही मौजूद था, लेकिन घटना की रात्रि उसे जबरन थाने पर ही रोक दिया गया.