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सुन लो इनका भी दर्द! उधार पर चल रहा कैब-ऑटो चालकों का घर - auto rickshaw three wheeler association

देश में बढ़ते कोरोना के डर से लोग यातायात साधनों का इस्तेमाल ही नहीं कर रहे हैं. ऐसे में कैब, ऑटो मालिक और ड्राइवर रोजी-रोटी के लिए संघर्ष कर रहे हैं. 'ईटीवी भारत' ने शहर के तमाम कैब संचालकों, ऑटो ड्राइवरों और यूनियन से इस मुद्दे पर बात की...

कैब-ऑटो चालकों पर कोरोना का प्रभाव.
कैब-ऑटो चालकों पर कोरोना का प्रभाव.
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Published : Jul 30, 2020, 12:50 PM IST

लखनऊ: कोरोना की वजह से पहले 21 मार्च से तीन माह से ज्यादा तक लॉकडाउन और उसके बाद एक जून से अनलॉक की शुरुआत. लॉकडाउन के दौरान गाड़ियों का चक्का हिला नहीं. वहींं अनलॉक में भी कैब ऑपरेटर्स, ऑटो मालिकों और ड्राइवरों की हालत खस्ता है. आलम ये है कि अनलॉक में भी कैब और ऑटो ड्राइवरों को सवारियां न के बराबर मिल रही हैं, जिससे उनके ईंधन का खर्चा तक नहीं निकल पा रहा है. कमाई का जरिया बिल्कुल खत्म है. अपना खर्च चल नहीं रहा है ऊपर से फाइनेंस कंपनियां लगातार मंथली इंस्टॉलमेंट भरने का दबाव बना रही हैं, जिससे कैब, ऑटो मालिक और ड्राइवर काफी परेशान हैं. प्रदेश के दूरदराज जिलों से लखनऊ में किराए पर रहकर ड्राइवर शहर में ऑटो चलाते हैं. अब उन पर किराए का भी दबाव मकान मालिक की तरफ से पड़ रहा है. ऐसे में स्थितियां दिन-ब-दिन सुधरने के बजाय बिगड़ती जा रही हैं.

देखें खास रिपोर्ट.
lucknow news
स्टैंड पर खड़ीं ऑटो.
lucknow news
सवारी के इंतजार में कैब.

नहीं मिल रहीं सवारियां
वाहन मालिक और चालक वीरेंद्र कुमार पिछले 30 सालों से गाड़ी चला रहे हैं, लेकिन कोरोना के कारण लॉकडाउन ने जो स्थिति कर दी है. ऐसी स्थिति का सामना उन्हें कभी नहीं करना पड़ा. अब सवारियों के लिए जूझना पड़ रहा है. ईटीवी भारत से बात करते हुए वीरेंद्र बताते हैं कि सवारियां मिल ही नहीं रही हैं. अगर सवारी मिल भी जाती है तो पुलिस वाले चालान काट देते हैं. कहते हैं कि लॉकडाउन में गाड़ी चला रहे हो. इस समय कोई सवारी गाड़ी में बैठना नहीं चाहती है. खर्चा तो चल ही नहीं पा रहा है. कर्जा लेकर किसी तरह गुजर बसर हो रही है. पड़ोसियों के कर्जदार हो गए हैं. फाइनेंस कंपनियां दिन में चार-पांच बार फोन करती हैं. समझाना पड़ता है कि जब अपना ही खर्चा नहीं चल रहा है तो कहां से किस्त भरी जाए?

उधार पर चल रही जिंदगी
नफीस अहमद साल 1982 से गाड़ी चला रहे हैं, उन्हें भी इस तरह की स्थितियों का कभी सामना नहीं करना पड़ा. अब उन्हें अपना ही खर्च चलाना मुश्किल पड़ रहा है. उनका कहना है कि अब रिश्तेदारों और दोस्तों से उधार मांगना पड़ रहा है. पेट्रोल और डीजल के दाम लगातार बढ़ते चले जा रहे हैं और सवारियां मिल नहीं रही हैं. ऐसे में दिक्कतों में लगातार इजाफा हो रहा है. गाड़ी फाइनेंस कराई है तो फाइनेंस कंपनियां बहुत ज्यादा दबाव बना रही हैं. परेशान कर रही हैं. कुछ लोग गाड़ियां बेचने को भी मजबूर हैं, लेकिन उनकी गाड़ी भी नहीं बिक रही है. उधार पर जिंदगी चल रही है.

फाइनेंस कंपनियां बना रहीं दबाव
चारबाग रेलवे स्टेशन के सामने से रेडियो टैक्सी चला रहे सईद हसन का कहना है कि 1991 से गाड़ी चलाने का काम करते हैं. ऐसी परिस्थितियों का कभी सामना नहीं करना पड़ा. सवारियां तो बिल्कुल मिल ही नहीं रही हैं. खर्चा तो चल नहीं रहा. उधार लेकर ही काम चल पा रहा है. बाकी हालात से तो सभी वाकिफ हैं. जब गाड़ी फाइनेंस कराई है तो वह तो दबाव बनाएगी ही. कंपनी को कोरोना से क्या लेनादेना, उसने पैसे दिए हैं तो वसूल करेगी.

ऑटो चालाक की स्थिति बदतर

कैब ऑपरेटर्स की तरह ही स्थिति ऑटो चालकों की भी है. ऑटो मालिक भी कोरोना से परेशान हो गए हैं. ऑटो चालक अमित का कहना है कि 10 साल से ऑटो चला रहे हैं, लेकिन पहली बार इस तरह सवारियों का टोटा है, सवारी बिल्कुल नहीं मिलती हैं. कभी-कभी सवारियां मिलती हैं तो उसी से खर्चा मैनेज होता है. घर में मां और भाई हैं उनकी भी जिम्मेदारी है. आम दिनों में 500 कमा लेते थे, लेकिन अब टोटल मिलाकर 500 कमा लें तो भी बहुत बड़ी बात है. गैस के दाम भी लगातार बढ़ रहे हैं, किराया स्थिर है. बहुत ज्यादा दिक्कत हो रही है. मालिक ने गाड़ी फाइनेंस कराई थी तो फाइनेंसर किस्त के पीछे पड़े हैं.

पहली बार ऐसी स्थिति
ऑटो चालक सोनू का कहना है कि छह साल से ऑटो चला रहे हैं. पहली बार इस तरह की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है. सवारी तो बिल्कुल नहीं मिल रही है. खर्चा भी नहीं निकल पा रहा है. मोटर मालिक को कमा कर दे पा रहे हैं, उतना ही खर्च निकल पा रहा है. 50 रुपये भी बचना मुश्किल हो जा रहा है. सीएनजी के दाम भी बढ़ गए हैं. वह भी निकालना है. कोटा भी निकालना है. इसलिए अपना बच नहीं पा रहा है. किराया देने में लोग हिचकिचाते हैं. कोरोना के कारण सवारी ही नहीं हैं, सभी दिक्कतें हैं.

रोटी को मोहताज
लखनऊ ऑटो रिक्शा थ्री व्हीलर संघ के अध्यक्ष पंकज दीक्षित का कहना है कि संचालन तो शुरू हो गया है, लेकिन वह पूरी तरह से पटरी पर नहीं आ पाया. पर्याप्त संख्या में यात्री बाहर नहीं निकल रहे हैं. वह अपने साधन से ही चलना पसंद करते हैं या फिर वह गाड़ी को रिजर्व लेकर चलना पसंद करते हैं. उतनी संख्या में हमें यात्री नहीं मिल रहे हैं. इसलिए पूरी गाड़ियां नहीं चल पा रही हैं. ड्राइवरों के रोजी-रोटी नहीं चल पा रही. सुबह पांच बजे से लेकर रात 10 बजे तक ही अब ऑटो चला सकते हैं. कई क्षेत्रों में कंटेनमेंट जोन बने हुए हैं. उन क्षेत्रों में भी गाड़ी लेकर जा नहीं सकते. इसकी वजह से ऑटो रिक्शा का संचालन बुरी तरह प्रभावित है. इसके अलावा अभी गाड़ियों की जो ईएमआई थी, उसके लिए लगातार फाइनेंसर प्रेशर बिल्डअप कर रहे हैं. ब्याज सहित पैसा दीजिए नहीं तो गाड़ी खींच ली जाएगी. लोग मानसिक दबाव में हैं. लगातार सीएनजी की कीमतों में बढ़ोतरी हो रही है. 2014 से ऑटो का किराया रिवाइज नहीं हुआ है. ईंधन की बढ़ती दरें मुश्किल खड़ी कर रही हैं.

लखनऊ: कोरोना की वजह से पहले 21 मार्च से तीन माह से ज्यादा तक लॉकडाउन और उसके बाद एक जून से अनलॉक की शुरुआत. लॉकडाउन के दौरान गाड़ियों का चक्का हिला नहीं. वहींं अनलॉक में भी कैब ऑपरेटर्स, ऑटो मालिकों और ड्राइवरों की हालत खस्ता है. आलम ये है कि अनलॉक में भी कैब और ऑटो ड्राइवरों को सवारियां न के बराबर मिल रही हैं, जिससे उनके ईंधन का खर्चा तक नहीं निकल पा रहा है. कमाई का जरिया बिल्कुल खत्म है. अपना खर्च चल नहीं रहा है ऊपर से फाइनेंस कंपनियां लगातार मंथली इंस्टॉलमेंट भरने का दबाव बना रही हैं, जिससे कैब, ऑटो मालिक और ड्राइवर काफी परेशान हैं. प्रदेश के दूरदराज जिलों से लखनऊ में किराए पर रहकर ड्राइवर शहर में ऑटो चलाते हैं. अब उन पर किराए का भी दबाव मकान मालिक की तरफ से पड़ रहा है. ऐसे में स्थितियां दिन-ब-दिन सुधरने के बजाय बिगड़ती जा रही हैं.

देखें खास रिपोर्ट.
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स्टैंड पर खड़ीं ऑटो.
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सवारी के इंतजार में कैब.

नहीं मिल रहीं सवारियां
वाहन मालिक और चालक वीरेंद्र कुमार पिछले 30 सालों से गाड़ी चला रहे हैं, लेकिन कोरोना के कारण लॉकडाउन ने जो स्थिति कर दी है. ऐसी स्थिति का सामना उन्हें कभी नहीं करना पड़ा. अब सवारियों के लिए जूझना पड़ रहा है. ईटीवी भारत से बात करते हुए वीरेंद्र बताते हैं कि सवारियां मिल ही नहीं रही हैं. अगर सवारी मिल भी जाती है तो पुलिस वाले चालान काट देते हैं. कहते हैं कि लॉकडाउन में गाड़ी चला रहे हो. इस समय कोई सवारी गाड़ी में बैठना नहीं चाहती है. खर्चा तो चल ही नहीं पा रहा है. कर्जा लेकर किसी तरह गुजर बसर हो रही है. पड़ोसियों के कर्जदार हो गए हैं. फाइनेंस कंपनियां दिन में चार-पांच बार फोन करती हैं. समझाना पड़ता है कि जब अपना ही खर्चा नहीं चल रहा है तो कहां से किस्त भरी जाए?

उधार पर चल रही जिंदगी
नफीस अहमद साल 1982 से गाड़ी चला रहे हैं, उन्हें भी इस तरह की स्थितियों का कभी सामना नहीं करना पड़ा. अब उन्हें अपना ही खर्च चलाना मुश्किल पड़ रहा है. उनका कहना है कि अब रिश्तेदारों और दोस्तों से उधार मांगना पड़ रहा है. पेट्रोल और डीजल के दाम लगातार बढ़ते चले जा रहे हैं और सवारियां मिल नहीं रही हैं. ऐसे में दिक्कतों में लगातार इजाफा हो रहा है. गाड़ी फाइनेंस कराई है तो फाइनेंस कंपनियां बहुत ज्यादा दबाव बना रही हैं. परेशान कर रही हैं. कुछ लोग गाड़ियां बेचने को भी मजबूर हैं, लेकिन उनकी गाड़ी भी नहीं बिक रही है. उधार पर जिंदगी चल रही है.

फाइनेंस कंपनियां बना रहीं दबाव
चारबाग रेलवे स्टेशन के सामने से रेडियो टैक्सी चला रहे सईद हसन का कहना है कि 1991 से गाड़ी चलाने का काम करते हैं. ऐसी परिस्थितियों का कभी सामना नहीं करना पड़ा. सवारियां तो बिल्कुल मिल ही नहीं रही हैं. खर्चा तो चल नहीं रहा. उधार लेकर ही काम चल पा रहा है. बाकी हालात से तो सभी वाकिफ हैं. जब गाड़ी फाइनेंस कराई है तो वह तो दबाव बनाएगी ही. कंपनी को कोरोना से क्या लेनादेना, उसने पैसे दिए हैं तो वसूल करेगी.

ऑटो चालाक की स्थिति बदतर

कैब ऑपरेटर्स की तरह ही स्थिति ऑटो चालकों की भी है. ऑटो मालिक भी कोरोना से परेशान हो गए हैं. ऑटो चालक अमित का कहना है कि 10 साल से ऑटो चला रहे हैं, लेकिन पहली बार इस तरह सवारियों का टोटा है, सवारी बिल्कुल नहीं मिलती हैं. कभी-कभी सवारियां मिलती हैं तो उसी से खर्चा मैनेज होता है. घर में मां और भाई हैं उनकी भी जिम्मेदारी है. आम दिनों में 500 कमा लेते थे, लेकिन अब टोटल मिलाकर 500 कमा लें तो भी बहुत बड़ी बात है. गैस के दाम भी लगातार बढ़ रहे हैं, किराया स्थिर है. बहुत ज्यादा दिक्कत हो रही है. मालिक ने गाड़ी फाइनेंस कराई थी तो फाइनेंसर किस्त के पीछे पड़े हैं.

पहली बार ऐसी स्थिति
ऑटो चालक सोनू का कहना है कि छह साल से ऑटो चला रहे हैं. पहली बार इस तरह की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है. सवारी तो बिल्कुल नहीं मिल रही है. खर्चा भी नहीं निकल पा रहा है. मोटर मालिक को कमा कर दे पा रहे हैं, उतना ही खर्च निकल पा रहा है. 50 रुपये भी बचना मुश्किल हो जा रहा है. सीएनजी के दाम भी बढ़ गए हैं. वह भी निकालना है. कोटा भी निकालना है. इसलिए अपना बच नहीं पा रहा है. किराया देने में लोग हिचकिचाते हैं. कोरोना के कारण सवारी ही नहीं हैं, सभी दिक्कतें हैं.

रोटी को मोहताज
लखनऊ ऑटो रिक्शा थ्री व्हीलर संघ के अध्यक्ष पंकज दीक्षित का कहना है कि संचालन तो शुरू हो गया है, लेकिन वह पूरी तरह से पटरी पर नहीं आ पाया. पर्याप्त संख्या में यात्री बाहर नहीं निकल रहे हैं. वह अपने साधन से ही चलना पसंद करते हैं या फिर वह गाड़ी को रिजर्व लेकर चलना पसंद करते हैं. उतनी संख्या में हमें यात्री नहीं मिल रहे हैं. इसलिए पूरी गाड़ियां नहीं चल पा रही हैं. ड्राइवरों के रोजी-रोटी नहीं चल पा रही. सुबह पांच बजे से लेकर रात 10 बजे तक ही अब ऑटो चला सकते हैं. कई क्षेत्रों में कंटेनमेंट जोन बने हुए हैं. उन क्षेत्रों में भी गाड़ी लेकर जा नहीं सकते. इसकी वजह से ऑटो रिक्शा का संचालन बुरी तरह प्रभावित है. इसके अलावा अभी गाड़ियों की जो ईएमआई थी, उसके लिए लगातार फाइनेंसर प्रेशर बिल्डअप कर रहे हैं. ब्याज सहित पैसा दीजिए नहीं तो गाड़ी खींच ली जाएगी. लोग मानसिक दबाव में हैं. लगातार सीएनजी की कीमतों में बढ़ोतरी हो रही है. 2014 से ऑटो का किराया रिवाइज नहीं हुआ है. ईंधन की बढ़ती दरें मुश्किल खड़ी कर रही हैं.

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