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'आजाद' की नाराजगी के बाद 2 ब्राह्मण समागम आयोजित कर शांत हो गई थी कांग्रेस!

उत्तर प्रदेश में 2022 में होने वाला विधानसभा चुनाव नजदीक है. सभी राजनीतिक पार्टियां चुनावी तैयारियों में लग चुकी हैं. सूबे की जातीय सियासत का केंद्र एक बार फिर ब्राह्मण बन चुके हैं और ब्राह्मणों को रिझाने के लिए सियासी दलों द्वारा तमाम हथकंडे अपनाए जा रहे हैं, लेकिन ब्राह्मण वोटरों को लेकर कांग्रेस पार्टी की खामोशी 'आजाद' की नाराजगी के बाद अभी तक बनी हुई है.

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Published : Jul 27, 2021, 6:36 PM IST

डिजाइन इमेज.
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लखनऊ: उत्तर प्रदेश में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव के लिए विभिन्न पार्टियां ब्राह्मण सम्मेलन पर फोकस कर रही हैं, लेकिन कांग्रेस पार्टी का पिछड़ा वर्ग सम्मेलन और दलित सम्मेलन पर ही पूरा फोकस है. इन वर्गों के अंदर आने वाली जातियों के सम्मेलन आयोजित करने पर ध्यान दिया जा रहा है. हालांकि ऐसा नहीं है कि पार्टी ब्राह्मण सम्मेलन आयोजित करना नहीं चाहती, लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान घटनाक्रम का ध्यान कर पार्टी ब्राह्मण सम्मेलन कराने के बारे में सोच भी नहीं पा रही. दरअसल, 2017 में राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर 'पीके' की रणनीति पर कांग्रेस ने दो ब्राह्मण सम्मेलन आयोजित किए थे. पार्टी के विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि और भी इस तरह के समागम आयोजित करने का प्लान था, लेकिन तत्कालीन उत्तर प्रदेश कांग्रेस प्रभारी गुलाम नबी आजाद के विरोध के बाद इस तरह के आयोजन पर रोक लग गई थी.

देखें ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट.

पिछले विधानसभा चुनाव के ब्राह्मण समागम अभी भी जेहन में
उत्तर प्रदेश के विभिन्न राजनीतिक दलों बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी की तरह कांग्रेस के ब्राह्मण वर्ग से ताल्लुक रखने वाले नेताओं का पूरा मन है कि कांग्रेस पार्टी भी ब्राह्मण सम्मेलन का आयोजन करे, जिससे पार्टी से रूठे ब्राह्मण एक बार फिर कांग्रेस पार्टी की तरफ आकर्षित हो सकें, लेकिन बड़े नेताओं की ये ख्वाहिश 2017 के उस किस्से को याद कर पूरी नहीं हो पा रही है. दरअसल, कांग्रेस पार्टी ने 2017 के विधानसभा चुनाव के लिए राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर को मैदान में उतारा था. प्रशांत किशोर ने जब यूपी की नब्ज टटोली तो उन्हें समझ आ गया कि ब्राह्मण को साथ लिए बिना उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का कायाकल्प नहीं हो सकता है. लिहाजा, प्रशांत किशोर ने ब्राह्मणों को साधना शुरू कर दिया.

ब्राह्मणों का किया गया सम्मान
इतना ही नहीं प्रशांत किशोर के दखल से ही कांग्रेस पार्टी ने 2017 में मुख्यमंत्री के ब्राह्मण चेहरे के रूप में शीला दीक्षित को उतारा. इससे ब्राह्मणों का रुझान भी कांग्रेस पार्टी की तरफ होने लगा. इतना ही नहीं राजनीतिक तौर पर न सही, लेकिन अराजनैतिक ब्राह्मण समागम शुरू कराए गए. लखनऊ के अलावा कानपुर में ब्राह्मण समागम का आयोजन भी किया गया, जिसमें उत्तर प्रदेश भर से तमाम ब्राह्मणों को बुलाया गया. अच्छी खासी तादाद में ब्राह्मण इस समागम में हिस्सा लेने पहुंचे भी थे. कार्यक्रम में कई ब्राह्मणों का कांग्रेस नेताओं ने मंच पर शाल ओढ़ाकर और स्मृति चिन्ह देकर सम्मान भी किया.

कांग्रेस पार्टी के बड़े नेता कैमरे पर तो न सही लेकिन अनौपचारिक बातचीत में बताते हैं कि इस तरह के समागम से पार्टी के साथ ब्राह्मण वर्ग जुड़ने भी लगा, लेकिन इसी बीच कांग्रेस ने जो ब्राह्मणों को संजोने का सपना देखा था वह पार्टी के एक बड़े दिग्गज नेता गुलाम नबी आजाद के अलावा कांग्रेस के अन्य फ्रंटल के नेताओं की नाराजगी के बाद चकनाचूर हो गया. कहा जाने लगा कि अगर इस तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे तो अन्य वर्ग कांग्रेस पार्टी से रूठ जाएंगे, जिसका कांग्रेस पार्टी को खामियाजा भुगतना पड़ेगा. यही वजह थी कि दो समागम होने के बाद आगे के सभी कार्यक्रम स्थगित हो गए.

नेताओं ने बना डाला गठबंधन का प्लान
उधर रणनीतिकार प्रशांत किशोर ब्राह्मणों को कांग्रेस पार्टी के साथ जोड़ने की कवायद में जुटे थे, इधर कांग्रेस पार्टी के बड़े नेता समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन की नींव रख रहे थे. यही वजह है कि प्रशांत किशोर को बैकफुट पर जाना पड़ गया और इन बड़े नेताओं की रणनीति सफल हो गई. कांग्रेस पार्टी और समाजवादी पार्टी का गठबंधन हो गया. इसके बाद जो ब्राह्मण कांग्रेस की तरफ आने का मूड बना रहे थे, उन्होंने फिर अपना फैसला वापस ले लिया. इसका खामियाजा कांग्रेस को 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में उठाना भी पड़ा. कांग्रेस पार्टी और ब्राह्मणों के बीच यह खाई अब तक भर नहीं पाई है. अभी भी ब्राह्मण कांग्रेस की तरफ आता हुआ नजर नहीं आ रहा है.

कांग्रेस के इन नेताओं का था अहम योगदान
कांग्रेस पार्टी ने जिन ब्राह्मण समागमों का आयोजन किया था, उसकी जिम्मेदारी कांग्रेस की अनदेखी से रूठ कर हाल ही में भाजपा में शामिल हुए जितिन प्रसाद के कंधों पर थी. इसके साथ ही कांग्रेस की नेता विधानमंडल दल आराधना मिश्रा 'मोना' की भी इन ब्राह्मण समागमों में अहम भूमिका रही थी. मंच पर इन दोनों बड़े नेताओं के साथ पार्टी के तमाम अन्य ब्राह्मण नेता और प्रदेश भर के कार्यकर्ता और ब्राह्मण मौजूद थे.

पार्टी ने उपलब्ध कराया था बजट
कांग्रेस पार्टी के विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि ब्राह्मण समागमों का आयोजित करने के लिए बाकायदा ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी की तरफ से धनराशि भी उपलब्ध कराई गई थी. इसी बजट से दो जगहों पर समागम आयोजित भी हुए थे. हालांकि अब कांग्रेस के ही नेता कहते हैं कि वह समागम पूरी तरह से अराजनैतिक थे.

क्या कहती हैं कांग्रेस की नेता विधानमंडल दल
कांग्रेस पार्टी की नेता विधानमंडल दल आराधना मिश्रा 'मोना' कांग्रेस पार्टी की तरफ से 2017 में इस तरह के ब्राह्मण समागमों को लेकर कहती हैं कि यह पूरी तरह से अराजनैतिक थे. कांग्रेस पार्टी अभी भी सम्मेलनों का आयोजन कर रही है, लेकिन पार्टी में विभिन्न सेल हैं उनके सम्मेलन आयोजित होते हैं. जो पार्टियां ब्राह्मणों को रिझाने के लिए ब्राह्मण सम्मेलन आयोजित कर रही हैं उनमें समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और भारतीय जनता पार्टी से वह पूछना चाहती हैं कि उन्होंने कई बार सरकार बनने के बावजूद क्या किसी ब्राह्मण चेहरे को मुख्यमंत्री के रूप में आगे पेश किया? क्या उनमें 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए इतनी हिम्मत है कि वे मुख्यमंत्री के रूप में ब्राह्मण चेहरा पेश कर सकें? कांग्रेस पार्टी ने अब तक कई ब्राह्मण मुख्यमंत्री प्रदेश को दिए हैं. ऐसे में जो पार्टियां ब्राह्मण सम्मेलन आयोजित कर रही हैं, वह सिर्फ ब्राह्मणों को ठगने का काम कर रही हैं.

इस तरह के आयोजन का विचार नहीं
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ओंकार नाथ सिंह ने बताया कि फिलहाल ब्राह्मण सम्मेलन आयोजित करने का कोई विचार नहीं है. पार्टी में जो सम्मेलन आयोजित होते हैं, उनमें किसी तरह का कोई प्रलोभन नहीं दिया जाता है. कांग्रेस पूरी तरह से सेक्यूलर पार्टी है. वह सभी वर्गों को साथ लेकर चलती है.

इसे भी पढ़ें:- ब्राह्मण सम्मेलन की सफलता से उड़ी विरोधियों की नींद : मायावती

राष्ट्रीय लोक दल के वरिष्ठ नेता सुरेंद्रनाथ त्रिवेदी ने बताया कि उत्तर प्रदेश में पांच साल तक पार्टियां ढोंग करती हैं कि वे जाति की राजनीति नहीं करती हैं. किसी जाति के साथ नहीं हैं बल्कि सभी जातियों को साथ लेकर चलती हैं, लेकिन सभी पार्टियों का एजेंडा पहले से ही सेट होता है. चुनाव आते ही जातियों की बात होने लगती है और यह सभी पार्टियां करती हैं. सिर्फ राष्ट्रीय लोक दल ऐसी पार्टी है, जो पांच नहीं पिछले 50 सालों से लगातार किसान हित की ही बात करती है. किसान के साथ वह सभी वर्गों को साथ लेकर चलती है. रालोद को न जातीय सम्मेलन से मतलब होता है और न ही जातीय जनगणना से.

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव के लिए विभिन्न पार्टियां ब्राह्मण सम्मेलन पर फोकस कर रही हैं, लेकिन कांग्रेस पार्टी का पिछड़ा वर्ग सम्मेलन और दलित सम्मेलन पर ही पूरा फोकस है. इन वर्गों के अंदर आने वाली जातियों के सम्मेलन आयोजित करने पर ध्यान दिया जा रहा है. हालांकि ऐसा नहीं है कि पार्टी ब्राह्मण सम्मेलन आयोजित करना नहीं चाहती, लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान घटनाक्रम का ध्यान कर पार्टी ब्राह्मण सम्मेलन कराने के बारे में सोच भी नहीं पा रही. दरअसल, 2017 में राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर 'पीके' की रणनीति पर कांग्रेस ने दो ब्राह्मण सम्मेलन आयोजित किए थे. पार्टी के विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि और भी इस तरह के समागम आयोजित करने का प्लान था, लेकिन तत्कालीन उत्तर प्रदेश कांग्रेस प्रभारी गुलाम नबी आजाद के विरोध के बाद इस तरह के आयोजन पर रोक लग गई थी.

देखें ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट.

पिछले विधानसभा चुनाव के ब्राह्मण समागम अभी भी जेहन में
उत्तर प्रदेश के विभिन्न राजनीतिक दलों बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी की तरह कांग्रेस के ब्राह्मण वर्ग से ताल्लुक रखने वाले नेताओं का पूरा मन है कि कांग्रेस पार्टी भी ब्राह्मण सम्मेलन का आयोजन करे, जिससे पार्टी से रूठे ब्राह्मण एक बार फिर कांग्रेस पार्टी की तरफ आकर्षित हो सकें, लेकिन बड़े नेताओं की ये ख्वाहिश 2017 के उस किस्से को याद कर पूरी नहीं हो पा रही है. दरअसल, कांग्रेस पार्टी ने 2017 के विधानसभा चुनाव के लिए राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर को मैदान में उतारा था. प्रशांत किशोर ने जब यूपी की नब्ज टटोली तो उन्हें समझ आ गया कि ब्राह्मण को साथ लिए बिना उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का कायाकल्प नहीं हो सकता है. लिहाजा, प्रशांत किशोर ने ब्राह्मणों को साधना शुरू कर दिया.

ब्राह्मणों का किया गया सम्मान
इतना ही नहीं प्रशांत किशोर के दखल से ही कांग्रेस पार्टी ने 2017 में मुख्यमंत्री के ब्राह्मण चेहरे के रूप में शीला दीक्षित को उतारा. इससे ब्राह्मणों का रुझान भी कांग्रेस पार्टी की तरफ होने लगा. इतना ही नहीं राजनीतिक तौर पर न सही, लेकिन अराजनैतिक ब्राह्मण समागम शुरू कराए गए. लखनऊ के अलावा कानपुर में ब्राह्मण समागम का आयोजन भी किया गया, जिसमें उत्तर प्रदेश भर से तमाम ब्राह्मणों को बुलाया गया. अच्छी खासी तादाद में ब्राह्मण इस समागम में हिस्सा लेने पहुंचे भी थे. कार्यक्रम में कई ब्राह्मणों का कांग्रेस नेताओं ने मंच पर शाल ओढ़ाकर और स्मृति चिन्ह देकर सम्मान भी किया.

कांग्रेस पार्टी के बड़े नेता कैमरे पर तो न सही लेकिन अनौपचारिक बातचीत में बताते हैं कि इस तरह के समागम से पार्टी के साथ ब्राह्मण वर्ग जुड़ने भी लगा, लेकिन इसी बीच कांग्रेस ने जो ब्राह्मणों को संजोने का सपना देखा था वह पार्टी के एक बड़े दिग्गज नेता गुलाम नबी आजाद के अलावा कांग्रेस के अन्य फ्रंटल के नेताओं की नाराजगी के बाद चकनाचूर हो गया. कहा जाने लगा कि अगर इस तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे तो अन्य वर्ग कांग्रेस पार्टी से रूठ जाएंगे, जिसका कांग्रेस पार्टी को खामियाजा भुगतना पड़ेगा. यही वजह थी कि दो समागम होने के बाद आगे के सभी कार्यक्रम स्थगित हो गए.

नेताओं ने बना डाला गठबंधन का प्लान
उधर रणनीतिकार प्रशांत किशोर ब्राह्मणों को कांग्रेस पार्टी के साथ जोड़ने की कवायद में जुटे थे, इधर कांग्रेस पार्टी के बड़े नेता समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन की नींव रख रहे थे. यही वजह है कि प्रशांत किशोर को बैकफुट पर जाना पड़ गया और इन बड़े नेताओं की रणनीति सफल हो गई. कांग्रेस पार्टी और समाजवादी पार्टी का गठबंधन हो गया. इसके बाद जो ब्राह्मण कांग्रेस की तरफ आने का मूड बना रहे थे, उन्होंने फिर अपना फैसला वापस ले लिया. इसका खामियाजा कांग्रेस को 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में उठाना भी पड़ा. कांग्रेस पार्टी और ब्राह्मणों के बीच यह खाई अब तक भर नहीं पाई है. अभी भी ब्राह्मण कांग्रेस की तरफ आता हुआ नजर नहीं आ रहा है.

कांग्रेस के इन नेताओं का था अहम योगदान
कांग्रेस पार्टी ने जिन ब्राह्मण समागमों का आयोजन किया था, उसकी जिम्मेदारी कांग्रेस की अनदेखी से रूठ कर हाल ही में भाजपा में शामिल हुए जितिन प्रसाद के कंधों पर थी. इसके साथ ही कांग्रेस की नेता विधानमंडल दल आराधना मिश्रा 'मोना' की भी इन ब्राह्मण समागमों में अहम भूमिका रही थी. मंच पर इन दोनों बड़े नेताओं के साथ पार्टी के तमाम अन्य ब्राह्मण नेता और प्रदेश भर के कार्यकर्ता और ब्राह्मण मौजूद थे.

पार्टी ने उपलब्ध कराया था बजट
कांग्रेस पार्टी के विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि ब्राह्मण समागमों का आयोजित करने के लिए बाकायदा ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी की तरफ से धनराशि भी उपलब्ध कराई गई थी. इसी बजट से दो जगहों पर समागम आयोजित भी हुए थे. हालांकि अब कांग्रेस के ही नेता कहते हैं कि वह समागम पूरी तरह से अराजनैतिक थे.

क्या कहती हैं कांग्रेस की नेता विधानमंडल दल
कांग्रेस पार्टी की नेता विधानमंडल दल आराधना मिश्रा 'मोना' कांग्रेस पार्टी की तरफ से 2017 में इस तरह के ब्राह्मण समागमों को लेकर कहती हैं कि यह पूरी तरह से अराजनैतिक थे. कांग्रेस पार्टी अभी भी सम्मेलनों का आयोजन कर रही है, लेकिन पार्टी में विभिन्न सेल हैं उनके सम्मेलन आयोजित होते हैं. जो पार्टियां ब्राह्मणों को रिझाने के लिए ब्राह्मण सम्मेलन आयोजित कर रही हैं उनमें समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और भारतीय जनता पार्टी से वह पूछना चाहती हैं कि उन्होंने कई बार सरकार बनने के बावजूद क्या किसी ब्राह्मण चेहरे को मुख्यमंत्री के रूप में आगे पेश किया? क्या उनमें 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए इतनी हिम्मत है कि वे मुख्यमंत्री के रूप में ब्राह्मण चेहरा पेश कर सकें? कांग्रेस पार्टी ने अब तक कई ब्राह्मण मुख्यमंत्री प्रदेश को दिए हैं. ऐसे में जो पार्टियां ब्राह्मण सम्मेलन आयोजित कर रही हैं, वह सिर्फ ब्राह्मणों को ठगने का काम कर रही हैं.

इस तरह के आयोजन का विचार नहीं
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ओंकार नाथ सिंह ने बताया कि फिलहाल ब्राह्मण सम्मेलन आयोजित करने का कोई विचार नहीं है. पार्टी में जो सम्मेलन आयोजित होते हैं, उनमें किसी तरह का कोई प्रलोभन नहीं दिया जाता है. कांग्रेस पूरी तरह से सेक्यूलर पार्टी है. वह सभी वर्गों को साथ लेकर चलती है.

इसे भी पढ़ें:- ब्राह्मण सम्मेलन की सफलता से उड़ी विरोधियों की नींद : मायावती

राष्ट्रीय लोक दल के वरिष्ठ नेता सुरेंद्रनाथ त्रिवेदी ने बताया कि उत्तर प्रदेश में पांच साल तक पार्टियां ढोंग करती हैं कि वे जाति की राजनीति नहीं करती हैं. किसी जाति के साथ नहीं हैं बल्कि सभी जातियों को साथ लेकर चलती हैं, लेकिन सभी पार्टियों का एजेंडा पहले से ही सेट होता है. चुनाव आते ही जातियों की बात होने लगती है और यह सभी पार्टियां करती हैं. सिर्फ राष्ट्रीय लोक दल ऐसी पार्टी है, जो पांच नहीं पिछले 50 सालों से लगातार किसान हित की ही बात करती है. किसान के साथ वह सभी वर्गों को साथ लेकर चलती है. रालोद को न जातीय सम्मेलन से मतलब होता है और न ही जातीय जनगणना से.

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