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UP Assembly Election : ...तो अब 'PK' के सहारे नैया पार लगाने की तैयारी में कांग्रेस

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में जीत के लिए कांग्रेस पार्टी कोई कसर छोड़ना नहीं चाहती. 2022 के रण में जीत हासिल करने के लिए कांग्रेस एक बार फिर 'पीके' यानि प्रशांत किशोर का सहारा ले सकती है. पार्टी सूत्रों के मुताबिक जल्द ही इस बात पर मुहर लग सकती है.

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Published : Jul 15, 2021, 7:53 PM IST

UP Assembly Election
UP Assembly Election

लखनऊ : राजनीतिक शतरंज की बिसात पर मोहरे सजने शुरू हो गये हैं. मौका है उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव का. 2022 में होने वाला विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election) का परिणाम 2024 में दिल्ली दरबार के लिए रास्ता बनाएगा. जाहिर है कोई भी राजनीतिक दल अपनी जीत के लिए कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहता. 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) यानि 'पीके' का सहारा लिया था. अब 2022 के विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election) के लिए फिर से पार्टी को 'पीके' याद आए हैं.

कुछ ही माह बाद यूपी विधानसभा चुनाव होने हैं. पार्टी की मजबूती के लिए राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) भी जुट गई हैं. सत्ता पर काबिज होने के लिए कांग्रेस भले ही प्रियंका गांधी को आगे रख रही हो, लेकिन मंजिल पाने के लिए फिर से प्रशांत किशोर का सहारा लेने की तैयारी भी चल रही है. पार्टी के विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि इसके लिए उच्च स्तर पर बातचीत चल रही है और जल्द ही इस पर मुहर भी लग जाएगी.

वीडियो रिपोर्ट
PK यानि जीत की गारंटी!

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के बाद चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर का सियासी वजन और भी ज्यादा बढ़ गया. भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी को हराने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी. इधर ममता बनर्जी के चुनावी रणनीति की बागडोर प्रशांत किशोर के हाथों में थी. जब चुनाव परिणाम आए तो ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी ने शानदार जीत दर्ज की. साल 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार NDA से अलग होकर RJD के साथ गठबंधन में चुनाव लड़े थे. इस गठबंधन की चुनावी रणनीति की बागडोर भी प्रशांत किशोर के हाथों में थी और इस महागठबंधन को शानदार जीत मिली थी. ऐसे ही पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ मिलकर राज्य में कांग्रेस (Congress) को जीत दिला चुके हैं. कांग्रेस को उम्मीद है कि उत्तर प्रदेश में प्रियंका और पीके यानि प्रशांत किशोर कांग्रेस को सत्ता के गलियारे तक पहुंचा सकते हैं.

प्रशांत किशोर
प्रशांत किशोर

इस बार बन सकता है '32 साल, यूपी बेहाल' का नारा

कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश में करीब 32 साल से सत्ता से दूर है. पिछले विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के साथ उत्तर प्रदेश की नब्ज टटोलने उतरे प्रशांत किशोर ने नारा दिया था, '27 साल यूपी बेहाल'. कहा जा रहा है कि इस बार के विधानसभा चुनाव में '32 साल यूपी बेहाल' के नारे के साथ पीके कांग्रेस को जीत की मंजिल तक पहुंचाने की रणनीति पर काम कर सकते हैं.


जब विपक्षी दलों में मच गयी थी हलचल

2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में किला फतह करने के लिए कांग्रेस पार्टी ने रणनीतिकार प्रशांत किशोर की मदद ली थी. इधर 14 साल बाद सत्ता में आने को बेताब भारतीय जनता पार्टी भी पूरा जोर लगाए हुए थी. तब सत्ता पर विराजमान समाजवादी पार्टी अपनी गद्दी न जाने देने के लिए पुरजोर तरीके से जुटी थी. इन सबके बीच मायावती भी सत्ता में वापसी करने को लालायित थीं. ऐसे में कांग्रेस के लिए चुनौती आसान नहीं थी. लेकिन, प्रशांत किशोर ने उत्तर प्रदेश में डेरा डालते हुए जब अपनी रणनीति जमीन पर लागू करने की शुरुआत की तो सभी पार्टियों में हलचल मच गयी.


'27 साल, यूपी बेहाल' स्लोगन ने मचाया था धमाल

प्रशांत किशोर ने भारतीय जनता पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी की सरकार के दौरान 27 सालों में प्रदेश की दुर्दशा को लेकर एक स्लोगन दिया था. यह स्लोगन था '27 साल, यूपी बेहाल'. कांग्रेस के इस स्लोगन ने जहां पार्टियों की नींद उड़ा दी थी, वहीं जनता के बीच भी धमाल मचा दिया था. आम जनता को भी ये स्लोगन काफी रास आया था और लोग कांग्रेस से भी जुड़ने लगे थे.

उत्तर प्रदेश कांग्रेस दफ्तर
उत्तर प्रदेश कांग्रेस दफ्तर



इस तरह बनायी थी रणनीति

यूपी में कांग्रेस के सिर पर जीत का सेहरा सजाने के लिए प्रशांत किशोर ने अपना जाल बिछाना शुरू किया. सबसे पहले उन्होंने कांग्रेस के संगठन को किनारे रखकर अपनी टीम को मैदान में उतारा. पार्टी मुख्यालय से लेकर प्रदेश भर में टीम ने काम करना शुरू कर दिया. जिन विधानसभा सीटों पर पार्टी ने प्रत्याशियों के नाम का ऐलान कर दिया था, उन प्रत्याशियों से प्रशांत किशोर ने दो-दो बूथ प्रभारियों के नाम मांगे. इनमें से 80 फीसदी नाम सही होने पर फिर से प्रत्याशियों से पांच-पांच और नाम लिए गए. इसके बाद इन सभी बूथ प्रभारियों की लखनऊ के रमाबाई आंबेडकर पार्क में प्रशांत किशोर ने मीटिंग आयोजित करायी.



हर एक बात का रखा ख्याल


रमाबाई आंबेडकर पार्क में आयोजित बूथ प्रभारियों के इस मीटिंग में प्रशांत किशोर ने सभी प्रत्याशियों से प्रदेश भर से अपने साथ सिर्फ 15-15 लोगों को लाने के लिए कहा और इन्हीं लोगों से पूरा मैदान भर गया था. पीके की रणनीति का एक हिस्सा यहां पर बनाया गया मंच भी था. मंच को पार्क के बराबर लंबाई का बनाया गया था, जिस पर राहुल गांधी टहल-टहल कर भाषण और बूथ प्रभारियों के सवालों का जवाब दे रहे थे. इसका फायदा यह था कि मंच बड़ा होने से राहुल गांधी एक से दूसरे छोर पर सभी से रूबरू हो रहे थे.



प्रदेश भर में आयोजित की 'खाट सभा'

चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने राहुल गांधी को साथ में रखकर प्रदेश भर में 'खाट सभा' का आयोजन किया. इस सभा में कोई मंच बनाने के बजाय खाट पर बैठकर सभाएं हो रही थीं. इसमें किसान भी खाट पर बैठते थे और राहुल गांधी के साथ कांग्रेस के बड़े नेता भी. यह 'खाट सभा' भी चुनाव पर चर्चा का विषय बनी रही. 'खाट सभा' के आयोजन के पीछे मकसद यही था कि सभी किसान, गरीब और मजदूर बड़े नेता के साथ खाट पर बैठ सकें और खुद को नेता के बराबर ही समझ सकें.

राहुल गांधी
राहुल गांधी



कर्जा माफ, बिजली बिल हाफ

कांग्रेस पार्टी के लिए प्रशांत किशोर ने 'किसान मांग पत्र' लांच किया और इसका स्लोगन दिया 'कर्जा माफ, बिजली बिल हाफ'. किसानों से एक फॉर्म भरवाया जाता था, जिसमें जो किसान कर्जा माफी चाहते थे और बिजली का बिल हाफ चाहते थे, ऐसे किसानों ने फॉर्म भरे और लाखों की संख्या में फॉर्म प्रशांत किशोर के पास आ गए. हर विधानसभा से 30,000 फॉर्म भरवाए गए थे. हजारों के फोन नंबर भी मौजूद थे. इनसे लगातार संपर्क किया जाता था, जिससे यह कांग्रेस से पूरी तरह जुड़े रहें और किसी भी पार्टी की तरफ रुख ना कर पाएं.



यूपी को दो भागों में बांटा

प्रशांत किशोर ने अपनी रणनीति के तहत उत्तर प्रदेश को दो भागों में बांट दिया था. आठ-आठ बड़े नेताओं को दोनों भागों की जिम्मेदारी सौंपी गयी थी. एक तरफ शीला दीक्षित तो दूसरी तरफ राजबब्बर नेतृत्व कर रहे थे. समीकरण साधने के लिए शीला दीक्षित को ब्राह्मण चेहरे के रूप में तो उनके साथ क्षत्रिय वोटरों को लुभाने के लिए डॉक्टर संजय सिंह को लगाया गया था. उधर राजबब्बर के साथ ब्राह्मण चेहरे प्रमोद तिवारी को लगा दिया और रोड शो कराया. ये नेता आम जनता से लगातार संपर्क कर रहे थे, जिसका असर भी साफ दिखाई देने लगा था.

...और फिर शुरू हुआ पीके का विरोध

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के लिए पीके की रणनीति अभी जारी ही थी कि अचानक कांग्रेस पार्टी के नेता दो खेमों में बंटने लगे. एक खेमे के सीनियर नेताओं ने प्रशांत किशोर पर आरोप लगाने शुरू कर दिए कि वह बड़े नेताओं की कोई इज्जत ही नहीं करते हैं. सम्मान देना तो दूर नेताओं से सही बात भी नहीं करते हैं. यहीं से पीके के विरोध के साथ समझौते की इबारत लिखनी शुरू हो गयी.

उत्तर प्रदेश विधानसभा
उत्तर प्रदेश विधानसभा
इस समझौते ने फेल कर दी रणनीतिकार की रणनीति रणनीतिकार प्रशांत किशोर कांग्रेस को सत्ता पर काबिज कराने की रणनीति बना रहे थे, लेकिन इधर कांग्रेस पार्टी के नेता समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर समझौते की रणनीति बना रहे थे. 'पीके' को इस रणनीति की खबर भी न लगी और उधर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी और समाजवादी पार्टी के बीच समझौता हो गया. राहुल गांधी और अखिलेश यादव ने हाथ मिला लिया और रणनीतिकार की सारी रणनीति धरी रह गयी. हालांकि चुनाव परिणाम आने के बाद कांग्रेस को समझ में आ गया कि उसका फैसला गलत था. कांग्रेस पार्टी के नेता बताते हैं कि 2017 में अगर समाजवादी पार्टी के साथ कांग्रेस का समझौता न हुआ होता तो हर हाल में पार्टी 50 से 55 सीटें जीतने में कामयाब हो जाती. इतना सब कुछ होने के बाद पार्टी सिर्फ सात सीटें ही जीतने में सफल हो पायी. कांग्रेस कुल 121 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. वहीं अगर समझौता न होता और पीके की रणनीति पर चलते तो उत्तर प्रदेश में सभी सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशी चुनाव लड़ते और जीत का आंकड़ा कहीं ज्यादा होने की उम्मीद भी थी.

अपनी पिछली भूल सुधारना चाहती है कांग्रेस

कांग्रेस पार्टी से 2017 में समझौते की जो भूल हुई थी और पीके को दरकिनार कर दिया गया था, उसी भूल को सुधारने के लिए अब 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव से पहले फिर से पार्टी 'पीके' को आमंत्रित करने का प्लान बना रही है. विश्वस्त सूत्रों की मानें तो शीघ्र ही प्रशांत किशोर फिर से यूपी कांग्रेस के साथ जुड़ेंगे. 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में प्रियंका गांधी सक्रिय राजनीति में नहीं थीं, लेकिन इस बार वे राष्ट्रीय महासचिव के साथ ही यूपी प्रभारी का भी दायित्व भी निभा रही हैं. उम्मीद जतायी जा रही है कि उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री का चेहरा भी पार्टी उन्हीं को बना सकती है. ऐसे में इस बार प्रशांत किशोर और प्रियंका गांधी साथ मिलकर मैदान में उतर सकते हैं.



कौन हैं प्रशांत किशोर ?

प्रशांत किशोर यानी पीके का नाम पहली बार 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारी जीत के बाद चर्चा में आया था. इसके बाद हर राजनीतिक दल प्रशांत किशोर की मांग करने लगे. जैसे प्रशांत किशोर जीत की गारंटी हो गए हों. 2015 में नीतीश कुमार ने पीके को लिया और चुनाव में जीत हासिल की. यहां पर बीजेपी को सत्ता से दूर होना पड़ा. दो साल बाद उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब में कांग्रेस ने अपनी हालत सुधारने के लिए पीके को रणनीतिकार बनाया. हालांकि कांग्रेस ने पंजाब तो जीत लिया, लेकिन समझौते के चलते उत्तर प्रदेश में कुछ नहीं हो पाया और उत्तराखंड में कांग्रेस खंड-खंड हो गयी. हाल ही में बंगाल में उनका करिश्माई प्रदर्शन कांग्रेस को यूपी में संजीवनी देने वाला साबित हो सकता है और भारतीय जनता पार्टी समेत अन्य दलों के लिए झटका.


क्या कहते हैं भाजपा नेता

भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता हरिश्चंद्र श्रीवास्ताव कहते हैं कि प्रशांत किशोर की एंट्री से उत्तर प्रदेश की जनता पर कोई असर नहीं पड़ने वाला. जनता का विश्वास भारतीय जनता पार्टी के साथ जुड़ा है. योगी सरकार के काम की वजह से पार्टी को उम्मीद है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर कमल ही खिलेगा.

'पीके से मिलेगी कांग्रेस को मजबूती'

उत्तर प्रदेश कांग्रेस अल्पसंख्यक के चेयरमैन शाहनवाज आलम का मानना है हाल के दिनों में कांग्रेस पार्टी यूपी में काफी मजबूत हुई है. न्याय पंचायत स्तर तक संगठन मजबूत हुआ है. लगातार जमीन पर पार्टी ने काम किया है. अब रणनीतिकार पीके साथ में जुड़ जाएंगे तो कांग्रेस और मजबूत हो जाएगी और इसका लाभ 2022 के विधानसभा चुनाव में मिलेगा. कांग्रेस पार्टी सत्ता में वापसी कर सकेगी. हालांकि 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के साथ फिर से रणनीतिकार प्रशांत किशोर के जुड़ने का कोई फायदा वरिष्ठ पत्रकार अशोक मिश्रा को नजर नहीं आता है. उनका कहना है कि यूपी में कांग्रेस काफी कमजोर है और पीके के आने से कुछ फायदा नहीं होने वाला है. 2022 में तो पीके का कोई जादू नहीं चलेगा. हां, 2024 में कुछ जरुर हो सकता है.

इसे भी पढ़ें - यूपी की सियासी जमीन पर पसीना बहाने को प्रियंका तैयार, पार्टी नेताओं को परंपरा पर भरोसा बरकरार

लखनऊ : राजनीतिक शतरंज की बिसात पर मोहरे सजने शुरू हो गये हैं. मौका है उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव का. 2022 में होने वाला विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election) का परिणाम 2024 में दिल्ली दरबार के लिए रास्ता बनाएगा. जाहिर है कोई भी राजनीतिक दल अपनी जीत के लिए कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहता. 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) यानि 'पीके' का सहारा लिया था. अब 2022 के विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election) के लिए फिर से पार्टी को 'पीके' याद आए हैं.

कुछ ही माह बाद यूपी विधानसभा चुनाव होने हैं. पार्टी की मजबूती के लिए राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) भी जुट गई हैं. सत्ता पर काबिज होने के लिए कांग्रेस भले ही प्रियंका गांधी को आगे रख रही हो, लेकिन मंजिल पाने के लिए फिर से प्रशांत किशोर का सहारा लेने की तैयारी भी चल रही है. पार्टी के विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि इसके लिए उच्च स्तर पर बातचीत चल रही है और जल्द ही इस पर मुहर भी लग जाएगी.

वीडियो रिपोर्ट
PK यानि जीत की गारंटी!

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के बाद चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर का सियासी वजन और भी ज्यादा बढ़ गया. भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी को हराने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी. इधर ममता बनर्जी के चुनावी रणनीति की बागडोर प्रशांत किशोर के हाथों में थी. जब चुनाव परिणाम आए तो ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी ने शानदार जीत दर्ज की. साल 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार NDA से अलग होकर RJD के साथ गठबंधन में चुनाव लड़े थे. इस गठबंधन की चुनावी रणनीति की बागडोर भी प्रशांत किशोर के हाथों में थी और इस महागठबंधन को शानदार जीत मिली थी. ऐसे ही पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ मिलकर राज्य में कांग्रेस (Congress) को जीत दिला चुके हैं. कांग्रेस को उम्मीद है कि उत्तर प्रदेश में प्रियंका और पीके यानि प्रशांत किशोर कांग्रेस को सत्ता के गलियारे तक पहुंचा सकते हैं.

प्रशांत किशोर
प्रशांत किशोर

इस बार बन सकता है '32 साल, यूपी बेहाल' का नारा

कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश में करीब 32 साल से सत्ता से दूर है. पिछले विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के साथ उत्तर प्रदेश की नब्ज टटोलने उतरे प्रशांत किशोर ने नारा दिया था, '27 साल यूपी बेहाल'. कहा जा रहा है कि इस बार के विधानसभा चुनाव में '32 साल यूपी बेहाल' के नारे के साथ पीके कांग्रेस को जीत की मंजिल तक पहुंचाने की रणनीति पर काम कर सकते हैं.


जब विपक्षी दलों में मच गयी थी हलचल

2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में किला फतह करने के लिए कांग्रेस पार्टी ने रणनीतिकार प्रशांत किशोर की मदद ली थी. इधर 14 साल बाद सत्ता में आने को बेताब भारतीय जनता पार्टी भी पूरा जोर लगाए हुए थी. तब सत्ता पर विराजमान समाजवादी पार्टी अपनी गद्दी न जाने देने के लिए पुरजोर तरीके से जुटी थी. इन सबके बीच मायावती भी सत्ता में वापसी करने को लालायित थीं. ऐसे में कांग्रेस के लिए चुनौती आसान नहीं थी. लेकिन, प्रशांत किशोर ने उत्तर प्रदेश में डेरा डालते हुए जब अपनी रणनीति जमीन पर लागू करने की शुरुआत की तो सभी पार्टियों में हलचल मच गयी.


'27 साल, यूपी बेहाल' स्लोगन ने मचाया था धमाल

प्रशांत किशोर ने भारतीय जनता पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी की सरकार के दौरान 27 सालों में प्रदेश की दुर्दशा को लेकर एक स्लोगन दिया था. यह स्लोगन था '27 साल, यूपी बेहाल'. कांग्रेस के इस स्लोगन ने जहां पार्टियों की नींद उड़ा दी थी, वहीं जनता के बीच भी धमाल मचा दिया था. आम जनता को भी ये स्लोगन काफी रास आया था और लोग कांग्रेस से भी जुड़ने लगे थे.

उत्तर प्रदेश कांग्रेस दफ्तर
उत्तर प्रदेश कांग्रेस दफ्तर



इस तरह बनायी थी रणनीति

यूपी में कांग्रेस के सिर पर जीत का सेहरा सजाने के लिए प्रशांत किशोर ने अपना जाल बिछाना शुरू किया. सबसे पहले उन्होंने कांग्रेस के संगठन को किनारे रखकर अपनी टीम को मैदान में उतारा. पार्टी मुख्यालय से लेकर प्रदेश भर में टीम ने काम करना शुरू कर दिया. जिन विधानसभा सीटों पर पार्टी ने प्रत्याशियों के नाम का ऐलान कर दिया था, उन प्रत्याशियों से प्रशांत किशोर ने दो-दो बूथ प्रभारियों के नाम मांगे. इनमें से 80 फीसदी नाम सही होने पर फिर से प्रत्याशियों से पांच-पांच और नाम लिए गए. इसके बाद इन सभी बूथ प्रभारियों की लखनऊ के रमाबाई आंबेडकर पार्क में प्रशांत किशोर ने मीटिंग आयोजित करायी.



हर एक बात का रखा ख्याल


रमाबाई आंबेडकर पार्क में आयोजित बूथ प्रभारियों के इस मीटिंग में प्रशांत किशोर ने सभी प्रत्याशियों से प्रदेश भर से अपने साथ सिर्फ 15-15 लोगों को लाने के लिए कहा और इन्हीं लोगों से पूरा मैदान भर गया था. पीके की रणनीति का एक हिस्सा यहां पर बनाया गया मंच भी था. मंच को पार्क के बराबर लंबाई का बनाया गया था, जिस पर राहुल गांधी टहल-टहल कर भाषण और बूथ प्रभारियों के सवालों का जवाब दे रहे थे. इसका फायदा यह था कि मंच बड़ा होने से राहुल गांधी एक से दूसरे छोर पर सभी से रूबरू हो रहे थे.



प्रदेश भर में आयोजित की 'खाट सभा'

चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने राहुल गांधी को साथ में रखकर प्रदेश भर में 'खाट सभा' का आयोजन किया. इस सभा में कोई मंच बनाने के बजाय खाट पर बैठकर सभाएं हो रही थीं. इसमें किसान भी खाट पर बैठते थे और राहुल गांधी के साथ कांग्रेस के बड़े नेता भी. यह 'खाट सभा' भी चुनाव पर चर्चा का विषय बनी रही. 'खाट सभा' के आयोजन के पीछे मकसद यही था कि सभी किसान, गरीब और मजदूर बड़े नेता के साथ खाट पर बैठ सकें और खुद को नेता के बराबर ही समझ सकें.

राहुल गांधी
राहुल गांधी



कर्जा माफ, बिजली बिल हाफ

कांग्रेस पार्टी के लिए प्रशांत किशोर ने 'किसान मांग पत्र' लांच किया और इसका स्लोगन दिया 'कर्जा माफ, बिजली बिल हाफ'. किसानों से एक फॉर्म भरवाया जाता था, जिसमें जो किसान कर्जा माफी चाहते थे और बिजली का बिल हाफ चाहते थे, ऐसे किसानों ने फॉर्म भरे और लाखों की संख्या में फॉर्म प्रशांत किशोर के पास आ गए. हर विधानसभा से 30,000 फॉर्म भरवाए गए थे. हजारों के फोन नंबर भी मौजूद थे. इनसे लगातार संपर्क किया जाता था, जिससे यह कांग्रेस से पूरी तरह जुड़े रहें और किसी भी पार्टी की तरफ रुख ना कर पाएं.



यूपी को दो भागों में बांटा

प्रशांत किशोर ने अपनी रणनीति के तहत उत्तर प्रदेश को दो भागों में बांट दिया था. आठ-आठ बड़े नेताओं को दोनों भागों की जिम्मेदारी सौंपी गयी थी. एक तरफ शीला दीक्षित तो दूसरी तरफ राजबब्बर नेतृत्व कर रहे थे. समीकरण साधने के लिए शीला दीक्षित को ब्राह्मण चेहरे के रूप में तो उनके साथ क्षत्रिय वोटरों को लुभाने के लिए डॉक्टर संजय सिंह को लगाया गया था. उधर राजबब्बर के साथ ब्राह्मण चेहरे प्रमोद तिवारी को लगा दिया और रोड शो कराया. ये नेता आम जनता से लगातार संपर्क कर रहे थे, जिसका असर भी साफ दिखाई देने लगा था.

...और फिर शुरू हुआ पीके का विरोध

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के लिए पीके की रणनीति अभी जारी ही थी कि अचानक कांग्रेस पार्टी के नेता दो खेमों में बंटने लगे. एक खेमे के सीनियर नेताओं ने प्रशांत किशोर पर आरोप लगाने शुरू कर दिए कि वह बड़े नेताओं की कोई इज्जत ही नहीं करते हैं. सम्मान देना तो दूर नेताओं से सही बात भी नहीं करते हैं. यहीं से पीके के विरोध के साथ समझौते की इबारत लिखनी शुरू हो गयी.

उत्तर प्रदेश विधानसभा
उत्तर प्रदेश विधानसभा
इस समझौते ने फेल कर दी रणनीतिकार की रणनीति रणनीतिकार प्रशांत किशोर कांग्रेस को सत्ता पर काबिज कराने की रणनीति बना रहे थे, लेकिन इधर कांग्रेस पार्टी के नेता समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर समझौते की रणनीति बना रहे थे. 'पीके' को इस रणनीति की खबर भी न लगी और उधर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी और समाजवादी पार्टी के बीच समझौता हो गया. राहुल गांधी और अखिलेश यादव ने हाथ मिला लिया और रणनीतिकार की सारी रणनीति धरी रह गयी. हालांकि चुनाव परिणाम आने के बाद कांग्रेस को समझ में आ गया कि उसका फैसला गलत था. कांग्रेस पार्टी के नेता बताते हैं कि 2017 में अगर समाजवादी पार्टी के साथ कांग्रेस का समझौता न हुआ होता तो हर हाल में पार्टी 50 से 55 सीटें जीतने में कामयाब हो जाती. इतना सब कुछ होने के बाद पार्टी सिर्फ सात सीटें ही जीतने में सफल हो पायी. कांग्रेस कुल 121 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. वहीं अगर समझौता न होता और पीके की रणनीति पर चलते तो उत्तर प्रदेश में सभी सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशी चुनाव लड़ते और जीत का आंकड़ा कहीं ज्यादा होने की उम्मीद भी थी.

अपनी पिछली भूल सुधारना चाहती है कांग्रेस

कांग्रेस पार्टी से 2017 में समझौते की जो भूल हुई थी और पीके को दरकिनार कर दिया गया था, उसी भूल को सुधारने के लिए अब 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव से पहले फिर से पार्टी 'पीके' को आमंत्रित करने का प्लान बना रही है. विश्वस्त सूत्रों की मानें तो शीघ्र ही प्रशांत किशोर फिर से यूपी कांग्रेस के साथ जुड़ेंगे. 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में प्रियंका गांधी सक्रिय राजनीति में नहीं थीं, लेकिन इस बार वे राष्ट्रीय महासचिव के साथ ही यूपी प्रभारी का भी दायित्व भी निभा रही हैं. उम्मीद जतायी जा रही है कि उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री का चेहरा भी पार्टी उन्हीं को बना सकती है. ऐसे में इस बार प्रशांत किशोर और प्रियंका गांधी साथ मिलकर मैदान में उतर सकते हैं.



कौन हैं प्रशांत किशोर ?

प्रशांत किशोर यानी पीके का नाम पहली बार 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारी जीत के बाद चर्चा में आया था. इसके बाद हर राजनीतिक दल प्रशांत किशोर की मांग करने लगे. जैसे प्रशांत किशोर जीत की गारंटी हो गए हों. 2015 में नीतीश कुमार ने पीके को लिया और चुनाव में जीत हासिल की. यहां पर बीजेपी को सत्ता से दूर होना पड़ा. दो साल बाद उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब में कांग्रेस ने अपनी हालत सुधारने के लिए पीके को रणनीतिकार बनाया. हालांकि कांग्रेस ने पंजाब तो जीत लिया, लेकिन समझौते के चलते उत्तर प्रदेश में कुछ नहीं हो पाया और उत्तराखंड में कांग्रेस खंड-खंड हो गयी. हाल ही में बंगाल में उनका करिश्माई प्रदर्शन कांग्रेस को यूपी में संजीवनी देने वाला साबित हो सकता है और भारतीय जनता पार्टी समेत अन्य दलों के लिए झटका.


क्या कहते हैं भाजपा नेता

भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता हरिश्चंद्र श्रीवास्ताव कहते हैं कि प्रशांत किशोर की एंट्री से उत्तर प्रदेश की जनता पर कोई असर नहीं पड़ने वाला. जनता का विश्वास भारतीय जनता पार्टी के साथ जुड़ा है. योगी सरकार के काम की वजह से पार्टी को उम्मीद है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर कमल ही खिलेगा.

'पीके से मिलेगी कांग्रेस को मजबूती'

उत्तर प्रदेश कांग्रेस अल्पसंख्यक के चेयरमैन शाहनवाज आलम का मानना है हाल के दिनों में कांग्रेस पार्टी यूपी में काफी मजबूत हुई है. न्याय पंचायत स्तर तक संगठन मजबूत हुआ है. लगातार जमीन पर पार्टी ने काम किया है. अब रणनीतिकार पीके साथ में जुड़ जाएंगे तो कांग्रेस और मजबूत हो जाएगी और इसका लाभ 2022 के विधानसभा चुनाव में मिलेगा. कांग्रेस पार्टी सत्ता में वापसी कर सकेगी. हालांकि 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के साथ फिर से रणनीतिकार प्रशांत किशोर के जुड़ने का कोई फायदा वरिष्ठ पत्रकार अशोक मिश्रा को नजर नहीं आता है. उनका कहना है कि यूपी में कांग्रेस काफी कमजोर है और पीके के आने से कुछ फायदा नहीं होने वाला है. 2022 में तो पीके का कोई जादू नहीं चलेगा. हां, 2024 में कुछ जरुर हो सकता है.

इसे भी पढ़ें - यूपी की सियासी जमीन पर पसीना बहाने को प्रियंका तैयार, पार्टी नेताओं को परंपरा पर भरोसा बरकरार

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