लखनऊ: एक बार फिर चुनावी बिसात बिछ चुकी है, ऐसे में सभी राजनीतिक दल लोक-लुभावन वादों के साथ जनता को अपनी तरफ आकर्षित करने में पुरजोर तरीके से जुट गए हैं. सत्ता के केंद्र माने जाने वाले देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की तरफ सभी राजनीतिक दलो की निगाहें हैं. हों भी भला क्यों नहीं, इस राज्य के पास सत्ता की चाबी जो है.
यूपी के बारे में ये बात जगजाहिर है कि यहां से जिस पार्टी को पटखनी मिली, वह औंधे मुंह जमीन पर आ गई और जो पार्टी यहां से चुनावी रेस जीती, वह केंद्र की सत्ता पर काबिज हुई है. सबसे बड़े राज्य होने के नाते सबसे ज्यादा लोकसभा सीटें उत्तर प्रदेश में ही हैं. ऐसे में पार्टियां उत्तर प्रदेश को ही जीतने का खासतौर पर हर जतन करती हैं. फिर चाहे धुर विरोधी होने के बावजूद उन्हें गठबंधन ही क्यों न करना पड़े या फिर जनता को इस तरह का लालच क्यों न देना पड़े कि हमारी सरकार ही जनता की सबसे बड़ी हितैषी होगी. कांग्रेस पार्टी की बात की जाए तो उत्तर प्रदेश में भले ही कांग्रेस की स्थिति पिछले लोकसभा चुनाव में अनुकूल न रही हो, लेकिन इस बार आकर्षक मेनिफेस्टो के साथ कांग्रेस केंद्र की सत्ता की राह जरूर निहार रही है.
पिछले लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में बुरी तरह से हार का दंश झेलने वाली कांग्रेस भी लोक लुभावन वादों के साथ इस बार की चुनावी रेस जीतने का दम भर रही है हालांकि उत्तर प्रदेश में कई पार्टियों से गठबंधन के बाद भी कांग्रेस की स्थिति बेहतर नजर नहीं आ रही है, लेकिन यह जरूर माना जा रहा है कि 2009 का इतिहास भले न सही पर 2014 से बेहतर परिणाम इस लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश से आने की उम्मीद कांग्रेसियों को जरूर है. 2009 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस ने 21 सीटों पर जीत हासिल कर चमत्कारिक प्रदर्शन किया था. उपचुनाव में कांग्रेस ने एक और सीट जीतकर यह आंकड़ा 22 पहुंचा दिया, लेकिन इस प्रदर्शन को 2014 लोकसभा चुनाव में दौरान में कांग्रेस पूरी तरह नाकाम साबित हुई और उत्तर प्रदेश में सीटों की रेस जीतने के मामले में फिसड्डी रह गई. इसके बाद केंद्र की सत्ता की चाबी भारतीय जनता पार्टी के हाथ चली गई. वर्ष 2014 में कांग्रेस उत्तर प्रदेश से सिर्फ दो ही सीटें जीत पाई, जिसमें 1 सीट तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की रायबरेली और दूसरी सीट उनके बेटे और वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की अमेठी रही. 2009 में कांग्रेस ने कुल 543 लोकसभा सीटों में से 206 सीटें अपने नाम कीं और सहयोगी दलों से मिलकर यूपीए की सरकार केंद्र में गठित की, लेकिन 2014 में कांग्रेस का सारा खेल बिगड़ गया क्योंकि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस 22 से घटकर 2 सीट पर आ गई.
पिछले दो लोकसभा चुनावों में ये रही कांग्रेस की स्थिति
2009 में कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में 78 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ कर 21 सीटें जीती थीं और उसे कुल 18.2 फीसदी वोट मिले थे. 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 67 सीटों पर लड़ी और 2 सीटों के साथ 7.5 फीसदी ही वोट हासिल कर पाई. कांग्रेस को इन दोनों लोकसभा चुनाव के बीच 10.7 फीसद के साथ 19 सीटों का घाटा झेलना पड़ा.
पिछले दो विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की स्थिति
2012 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 355 सीटों पर लड़ी और 28 सीटों पर जीत प्राप्त की कांग्रेस को कुल 11.6 फीसदी वोट प्राप्त हुए. 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी से हाथ मिलाया और 114 सीटों पर मैदान में उतरी, लेकिन सपा की दोस्ती कांग्रेस पर ही भारी पड़ गई. 114 में से सिर्फ सात सीटें ही कांग्रेस के हिस्से आईं और उसका वोट बैंक सिमटकर सिर्फ 6.25 फीसदी रह गया. इन दोनों चुनावों में कांग्रेस को 21 सीटों के साथ 5.35 फीसदी का नुकसान हुआ.
जनता को इन वादों से लुभाएगी कांग्रेस
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने जनता से इस बार के मेनिफेस्टो के जरिए जो वादे किए उनमें किसानों को ₹72000 हर साल यानी 5 साल में ₹360000, शिक्षा के लिए जीडीपी का 6% खर्च करना, मार्च 2020 तक 22 लाख युवाओं को रोजगार देना और ग्राम पंचायत में 10 लाख युवाओं को रोजगार देने के साथ ही महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने जैसे वादे शामिल हैं.
क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक
प्रसिद्ध राजनीतिक विश्लेषक व लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व विभागाध्यक्ष एसके द्विवेदी कांग्रेस के मेनिफेस्टो को सकारात्मक कम और नकारात्मक तौर पर ज्यादा देखते हैं. उन्हें लगता है कि जनता वादों पर विश्वास नहीं करती क्योंकि वादे धरातल पर पूर्ण रूप से खरे उतरें या नहीं. जनता वर्तमान में जो चल रहा होता है, उस पर यकीन करती है. राहुल गांधी ने मेनिफेस्टो में किसानों को पैसे देने की बात कही है साथ ही जीडीपी का 6% खर्च करने का वादा किया है, जो अच्छे कदम हो सकते हैं, लेकिन इसके साथ ही उन्होंने जम्मू कश्मीर में आतंकवादियों के खिलाफ लागू अफस्पा एक्ट को रिवाइज करने की जो बात कही, उसका नकारात्मक संदेश जाएगा. जनता इसे पसंद नहीं करेगी. दूसरी बात पुलवामा और बालाकोट में जो हुआ और आतंकियों के खिलाफ जो कार्रवाई हुई, उसका संदेश जनता के बीच सकारात्मक जरूर जाएगा. मुझे लगता है कि चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को फायदा ज्यादा हो सकता है. इसके अलावा जहां तक बात गठबंधन से कांग्रेस के नफा नुकसान की है तो मुझे लगता है कि अगर कांग्रेस गठबंधन से मिलकर लड़ती तो विपक्ष और सशक्त होता और हो सकता है कि भारतीय जनता पार्टी को हराने में कामयाब होते.
रालोद को मिल सकता है कांग्रेस का फायदा
राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार अतुल चंद्रा कांग्रेस के मेनिफेस्टो में किसानों के साथ किए गए वायदों सही मानते हैं लेकिन यह भी मानते हैं कि इसका फायदा शायद ही कांग्रेस को चुनाव में मिले. वजह है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोक दल का बोलबाला है. गठबंधन उनके साथ है. ऐसे में किसान कांग्रेस की तुलना में इन्हें अपने ज्यादा करीब आता है तो हो सकता है कि कांग्रेस के बजाय किसान रालोद के साथ रहे. वे कहते हैं कि हां जहां तक कांग्रेस के न्याय स्क्रीन की बात है तो यह जरूर बेहतर साबित हो सकती है क्योंकि इसमें मोदी जी के स्कीम की तुलना में कुछ बेहतर जरूर है अगर यह सिर्फ नारे भर सीमित नहीं रहती है तो इसका फायदा कांग्रेस को चुनाव में मिल सकता है.
राहुल गांधी ने मेनिफेस्टो में किसानों, गरीबों महिलाओं, युवा बेरोजगारों के साथ ही शिक्षा पर विशेष ध्यान जरूर दिया है, लेकिन अब देखने वाली बात यह होगी कि पहली बार सक्रिय राजनीति में प्रियंका गांधी के साथ राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में संसदीय चुनाव का सामना कर रहे राहुल गांधी उत्तर प्रदेश में 2009 का इतिहास दोहरा पाते हैं या फिर 2014 की तरह 2 सीटों या फिर इससे कम या ज्यादा पर ही ठहर जाते हैं.