लखनऊ : उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. ऐसा लगता है कि हालिया विधान सभा चुनावों में करारी शिकस्त के बाद पार्टी सदमे से गुजर रही है. पार्टी नेतृत्व को नहीं सूझ रहा है कि वह इस संकट से उबरने के लिए क्या करे. अब तक की सबसे बुरी पराजय के कारणों को जानने के लिए कोई खास कवायद भी नहीं दिखाई दी है. यही नहीं पार्टी की महासचिव और उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा भी आठ मार्च 2022 के बाद उत्तर प्रदेश नहीं आई हैं. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रहे अजय कुमार लल्लू, जो खुद भी चुनाव मैदान में थे, अपनी सीट भी नहीं बचा पाए. उनके इस्तीफा देने को लगभग दो माह होने को हैं और पार्टी प्रदेश संगठन को नया अध्यक्ष भी नहीं दे पाई है.
भारतीय जनता पार्टी के देश में लगातार बढ़ते जनाधार को देखते हुए एक बड़ा तबका कांग्रेस की ओर विकल्प के लिए देखता है. राष्ट्रीय दल होने के साथ ही कई राज्यों में अच्छी स्थिति में होने के कारण कांग्रेस पार्टी से भाजपा का विकल्प देने की अपेक्षा करना कोई बेजा बात भी नहीं है. इसके बावजूद पार्टी अपनी आंतरिक उलझनों के कारण पूरे मनोयोग से लड़ाई लड़ ही नहीं पा रही है. कांग्रेस में उत्तर प्रदेश ही नहीं राष्ट्रीय नेतृत्व को लेकर भी सवाल उठते रहे हैं. पार्टी के कई बड़े नेता नेतृत्व को लेकर सार्वजनिक तौर पर बयान देने से भी गुरेज नहीं करते. वहीं उत्तर प्रदेश की राजनीति भी दिल्ली से ही चलती है. ऐन चुनाव के समय प्रियंका गांधी प्रदेश के कुछ जिलों में दौरे करके क्रांति नहीं ला सकतीं. इसके लिए एक मजबूत संगठन की जरूरत होती है. हालांकि पार्टी में एक अच्छे संगठन की कमी लंबे अर्से से महसूस की जा रही है, जिसकी बूथ स्तर पर पकड़ हो. जो पार्टी से आम लोगों को जोड़ सके. ऐसा संगठन फिलहाल बनता दिखाई नहीं देता. पार्टी के बड़े नेताओं और सक्रिय कार्यकर्ताओं का भी प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी से मिलना कठिन होता है. ऐसे में अन्य कार्यकर्ताओं की बात ही क्या.
प्रदेश अध्यक्ष के नामों की बात करें तो इनमें प्रमोद तिवारी, पीएल पुनिया, विधायक वीरेंद्र चौधरी, आचार्य प्रमोद कृष्णम और एमएलसी दीपक सिंह के नामों की चर्चा है. हालांकि कांग्रेस पार्टी समझ ही नहीं पा रही है कि किसको प्रदेश अध्यक्ष बनाए, जो पार्टी को संजीवनी दे सके. कांग्रेस पार्टी की तरफ से आराधना मिश्रा मोना को नेता विधानमंडल दल का पद सौंपा गया है. वह पिछली बार भी यह पद संभालती थीं. इनके अलावा किसी को भी नए पद की जिम्मेदारी नहीं दी जा सकी है.प्रदेश कांग्रेस से लोकसभा में सांसद के रूप में सोनिया गांधी, राज्यसभा सांसद के रूप में कपिल सिब्बल, विधान परिषद सदस्य के रूप में दीपक सिंह के साथ सिर्फ दो विधायक आराधना मिश्रा मोना और वीरेंद्र चौधरी चुनकर आए हैं.
इनमें से भी जुलाई माह में एमएलसी दीपक सिंह और इसी माह में राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल का भी कार्यकाल खत्म हो जाएगा. साफ है कि जुलाई के बाद राज्यसभा और विधान परिषद से कांग्रेस का नेतृत्व करने वाला कोई नहीं होगा.इस विषय में पूछे जाने पर उत्तर प्रदेश कांग्रेस मीडिया कम्युनिकेशन विभाग के वाइस चेयरमैन पंकज श्रीवास्तव कहते हैं कि देखिए, नए अध्यक्ष को लेकर शीर्ष नेतृत्व में विचार-विमर्श हो रहा है. राज्य के नेताओं के साथ भी चर्चा चल रही है. एक ऐसे नाम पर सहमति बनाने की कोशिश हो रही है, जो उत्तर प्रदेश कांग्रेस में एक नई ऊर्जा भरे. इस में थोड़ा समय जरूर लग रहा है, लेकिन यह फैसले जल्दबाजी में होते भी नहीं हैं. प्रियंका जी यहां जरूर नहीं आईं, लेकिन प्रदेश के नेताओं से क्षेत्रवार तरीके से उनकी मुलाकात का सिलसिला लगातार जारी है. आपको भले ही ऐसा लग रहा हो, लेकिन चूंकि 2024 को लेकर राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में भी तैयारियां होनी हैं और उप्र को लेकर भी बड़े फैसले होने की उम्मीद है. इसको लेकर पार्टी का नेतृत्व लगातार बैठकों और विचार का सिलसिला चलता रहता है. अभी चिंतन शिविर होने जा रहा है, जिसमें पार्टी के तमाम वरिष्ठ लोग बैठकर तीन दिन तक चर्चा करेंगे.
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