ETV Bharat / state

लोकसभा चुनाव 2019 : 34 साल से लखनऊ सीट पर कांग्रेस को नसीब नहीं हुई जीत - लखनऊ न्यूज

देश पर 60 साल तक शासन करने वाली कांग्रेस का पिछले 34 साल से उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की लोकसभा सीट पर हाल बेहाल है. इस सीट पर 1984 में कांग्रेस प्रत्याशी ने आखिरी बार जीत हासिल की थी. इस बार प्रियंका गांधी के सक्रिय राजनीति में आने से कांग्रेसी उत्साहित हैं और लखनऊ सीट जीतने का दावा कर रहे हैं.

जानकारी देते राजनीतिक विश्लेषक डॉ. रविकांत.
author img

By

Published : Apr 20, 2019, 2:41 PM IST

Updated : Apr 20, 2019, 3:25 PM IST

लखनऊ : देश के पहले आम चुनाव से लेकर 1984 तक लखनऊ लोकसभा सीट पर कांग्रेस जीत हासिल करती रही, लेकिन नौवीं लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के सिर से इस सीट का ताज छिना तो अब तक वापस नहीं हुआ. इस बार प्रियंका गांधी के कांग्रेस में शामिल होने के बाद से पार्टी लखनऊ सीट जीतने का दावा कर रही है.

जानकारी देते राजनीतिक विश्लेषक डॉ. रविकांत.
  • 1951 के चुनाव में इस सीट पर कांग्रेस की विजय लक्ष्मी पंडित विजयी हुई थीं. 1952 में शिवराजवती नेहरू ने लखनऊ लोकसभा सीट जीती.
  • 1957 में पुलिन बिहारी बनर्जी लखनऊ सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशी के तौर पर जीत पाने में कामयाब हुए.
  • तीसरी लोकसभा 1962 में कांग्रेस के ही बीके धवन ने जीत हासिल की, लेकिन चौथी लोकसभा 1967 में कांग्रेस की जीत का सिलसिला एक इंडिपेंडेंट कैंडिडेट आनंद नारायण 'मुल्ला'ने तोड़ दिया.
  • उन्होंने लखनऊ लोकसभा सीट पर किसी भी पार्टी का राज नहीं रहने दिया. लेकिन 1971 के चुनाव में फिर से कांग्रेस ने वापसी कर ली. कांग्रेस प्रत्याशी शीला कौल ने लखनऊ सीट कांग्रेस के नाम कर दी.
  • छठी लोकसभा 1977 में फिर से कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा, जब भारतीय लोक दल के प्रत्याशी के तौर पर हेमवती नंदन बहुगुणा ने इस सीट पर कब्जा कर लिया.
  • लेकिन 1980 की सातवीं लोकसभा के चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस ने बाजी पलट दी और शीला कौल ने फिर से कांग्रेस को हारी हुई सीट वापस करा दी.
  • 1984 में आठवीं लोकसभा में शीला कौल ने सभी अटकलों पर विराम लगाते हुए कांग्रेस की जीत का सिलसिला जारी रखा.
  • 9 वीं लोकसभा 1989 के चुनाव में जनता दल के मांधाता सिंह ने जीत हासिल की और फिर शुरू हुआ भारतीय जनता पार्टी के इस सीट को जीतने का सफर.
  • 10 वीं लोकसभा में अटल बिहारी वाजपेयी ने यह सीट थामी और तब से लेकर अब तक लगातार लखनऊ लोकसभा सीट पर भाजपा का ही कमल खिल रहा है.

यह बात सही है कि 1984 के बाद से लखनऊ सीट पर कांग्रेस जीत नहीं पाई है. 1989 में बोफोर्स तोप घोटाले से यहां पर मांधाता सिंह ने चुनाव जीत लिया था. इसके बाद 1991 में अटल बिहारी वाजपेयी यहां से चुनाव लड़े. उनका कद काफी बड़ा था, हालांकि मुझे याद है जब कांग्रेस से राजा कर्ण सिंह यहां से चुनाव लड़े तो अटल जी को भी गली-गली में में वोट मांगने के लिए निकलना पड़ा. कांग्रेस ने कभी भी भारतीय जनता पार्टी को वाक ओवर नहीं दिया. इस बार राहुल गांधी और प्रियंका गांधी एक्टिव है तो राजनाथ सिंह को पसीना आना तय है.
पंकज तिवारी, प्रवक्ता, कांग्रेस


भारतीय राजनीति में ऐसा कहा जाता है कि केंद्र का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है. लखनऊ में भाजपा इसलिए जीतती रही क्योंकि यहां पर अटल बिहारी वाजपेयी जी जैसे कद्दावर नेता चुनाव लड़ने के लिए आए थे. उन्हें सभी वर्गों के लोग पसंद भी करते थे. कांग्रेस इसीलिए यहां पर नहीं जीत रही क्योंकि शहरी मतदाता उच्च मध्य वर्ग का होता है और लखनऊ में उच्च मध्य वर्ग मौजूद है. यह भाजपा की जीत की बड़ी वजह रही. जहां तक इस बार की बात है तो प्रियंका गांधी इस बार राजनीति में एक्टिव हैं. उनकी रैलियों में काफी भीड़ भी जुट रही है. राजनाथ पिछले 5 साल से सांसद रहे हैं. ऐसे में एंटी इनकंबेंसी का भी सामना करना पड़ेगा. अगर कांग्रेस और गठबंधन साथ देते हैं तो यहां पर परिदृश्य बदल भी सकता है.
डॉ. रविकांत, राजनीतिक विश्लेषक

लखनऊ : देश के पहले आम चुनाव से लेकर 1984 तक लखनऊ लोकसभा सीट पर कांग्रेस जीत हासिल करती रही, लेकिन नौवीं लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के सिर से इस सीट का ताज छिना तो अब तक वापस नहीं हुआ. इस बार प्रियंका गांधी के कांग्रेस में शामिल होने के बाद से पार्टी लखनऊ सीट जीतने का दावा कर रही है.

जानकारी देते राजनीतिक विश्लेषक डॉ. रविकांत.
  • 1951 के चुनाव में इस सीट पर कांग्रेस की विजय लक्ष्मी पंडित विजयी हुई थीं. 1952 में शिवराजवती नेहरू ने लखनऊ लोकसभा सीट जीती.
  • 1957 में पुलिन बिहारी बनर्जी लखनऊ सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशी के तौर पर जीत पाने में कामयाब हुए.
  • तीसरी लोकसभा 1962 में कांग्रेस के ही बीके धवन ने जीत हासिल की, लेकिन चौथी लोकसभा 1967 में कांग्रेस की जीत का सिलसिला एक इंडिपेंडेंट कैंडिडेट आनंद नारायण 'मुल्ला'ने तोड़ दिया.
  • उन्होंने लखनऊ लोकसभा सीट पर किसी भी पार्टी का राज नहीं रहने दिया. लेकिन 1971 के चुनाव में फिर से कांग्रेस ने वापसी कर ली. कांग्रेस प्रत्याशी शीला कौल ने लखनऊ सीट कांग्रेस के नाम कर दी.
  • छठी लोकसभा 1977 में फिर से कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा, जब भारतीय लोक दल के प्रत्याशी के तौर पर हेमवती नंदन बहुगुणा ने इस सीट पर कब्जा कर लिया.
  • लेकिन 1980 की सातवीं लोकसभा के चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस ने बाजी पलट दी और शीला कौल ने फिर से कांग्रेस को हारी हुई सीट वापस करा दी.
  • 1984 में आठवीं लोकसभा में शीला कौल ने सभी अटकलों पर विराम लगाते हुए कांग्रेस की जीत का सिलसिला जारी रखा.
  • 9 वीं लोकसभा 1989 के चुनाव में जनता दल के मांधाता सिंह ने जीत हासिल की और फिर शुरू हुआ भारतीय जनता पार्टी के इस सीट को जीतने का सफर.
  • 10 वीं लोकसभा में अटल बिहारी वाजपेयी ने यह सीट थामी और तब से लेकर अब तक लगातार लखनऊ लोकसभा सीट पर भाजपा का ही कमल खिल रहा है.

यह बात सही है कि 1984 के बाद से लखनऊ सीट पर कांग्रेस जीत नहीं पाई है. 1989 में बोफोर्स तोप घोटाले से यहां पर मांधाता सिंह ने चुनाव जीत लिया था. इसके बाद 1991 में अटल बिहारी वाजपेयी यहां से चुनाव लड़े. उनका कद काफी बड़ा था, हालांकि मुझे याद है जब कांग्रेस से राजा कर्ण सिंह यहां से चुनाव लड़े तो अटल जी को भी गली-गली में में वोट मांगने के लिए निकलना पड़ा. कांग्रेस ने कभी भी भारतीय जनता पार्टी को वाक ओवर नहीं दिया. इस बार राहुल गांधी और प्रियंका गांधी एक्टिव है तो राजनाथ सिंह को पसीना आना तय है.
पंकज तिवारी, प्रवक्ता, कांग्रेस


भारतीय राजनीति में ऐसा कहा जाता है कि केंद्र का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है. लखनऊ में भाजपा इसलिए जीतती रही क्योंकि यहां पर अटल बिहारी वाजपेयी जी जैसे कद्दावर नेता चुनाव लड़ने के लिए आए थे. उन्हें सभी वर्गों के लोग पसंद भी करते थे. कांग्रेस इसीलिए यहां पर नहीं जीत रही क्योंकि शहरी मतदाता उच्च मध्य वर्ग का होता है और लखनऊ में उच्च मध्य वर्ग मौजूद है. यह भाजपा की जीत की बड़ी वजह रही. जहां तक इस बार की बात है तो प्रियंका गांधी इस बार राजनीति में एक्टिव हैं. उनकी रैलियों में काफी भीड़ भी जुट रही है. राजनाथ पिछले 5 साल से सांसद रहे हैं. ऐसे में एंटी इनकंबेंसी का भी सामना करना पड़ेगा. अगर कांग्रेस और गठबंधन साथ देते हैं तो यहां पर परिदृश्य बदल भी सकता है.
डॉ. रविकांत, राजनीतिक विश्लेषक

Intro:लखनऊ सीट पर 34 साल से कांग्रेस का हाल-बेहाल

लखनऊ। देश पर 60 साल तक शासन करने वाली कांग्रेस का पिछले 34 साल से उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की लोकसभा सीट पर हाल बेहाल है। इस सीट पर 1984 में कांग्रेस प्रत्याशी ने आखिरी बार विजय श्री हासिल की थी। उसके बाद लगातार कांग्रेस को हार का ही मुंह देखना पड़ा। इस बार प्रियंका गांधी के सक्रिय राजनीति में आने से कांग्रेसी उत्साहित हैं और लखनऊ सीट जीतने का दावा कर रहे हैं। 34 सालों से कांग्रेस के हारने की वजह कांग्रेसी स्वर्गीय अटल बिहारी बाजपेई को मानते हैं। उनका मानना है कि अटल जी का कद काफी बड़ा था। उनके सामने कोई प्रत्याशी टिक नहीं पाया, लेकिन अब कांग्रेस लोकसभा चुनाव में लखनऊ सीट भी जीतेगी।


Body:देश के पहले आम चुनाव से लेकर 1984 तक लखनऊ लोकसभा सीट पर कांग्रेस जीत हासिल करती रही, लेकिन नौवीं लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के सिर से इस सीट का ताज छिना तो अब तक वापस नहीं हुआ। 1951 के चुनाव में इस सीट पर कांग्रेस के विजय लक्ष्मी पंडित विजयी हुई थीं। 1952 में शिवराजवती नेहरू ने लखनऊ लोकसभा सीट जीती। 1957 में पुलिन बिहारी बनर्जी लखनऊ सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशी के तौर पर जीत पाने में कामयाब हुए। तीसरी लोकसभा 1962 में कांग्रेस के ही बीके धवन ने जीत हासिल की, लेकिन चौथी लोकसभा 1967 में कांग्रेस की जीत का सिलसिला एक इंडिपेंडेंट कैंडिडेट आनंद नारायण 'मुल्ला'ने तोड़ दिया। उन्होंने लखनऊ लोकसभा सीट पर किसी भी पार्टी का राज नहीं रहने दिया, लेकिन 1971 के चुनाव में फिर से कांग्रेस ने वापसी कर ली। कांग्रेस प्रत्याशी शीला कौल ने लखनऊ सीट कांग्रेस के नाम कर दी। छठी लोकसभा 1977 में फिर से कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा, जब भारतीय लोक दल के प्रत्याशी के तौर पर हेमवती नंदन बहुगुणा ने इस सीट पर कब्जा कर लिया, लेकिन 1980 की सातवीं लोकसभा के चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस ने बाजी पलट दी और शीला कौल ने फिर से कांग्रेस को हारी हुई सीट वापस करा दी। इसके बाद 1984 में आठवीं लोकसभा के लिए चुनाव हुए तो लखनऊ सीट फिर चर्चा का विषय बनी, लेकिन शीला कौल ने सभी अटकलों पर विराम लगाते हुए कांग्रेस की जीत का सिलसिला जारी रखा, लेकिन आठवीं लोकसभा की जीत कांग्रेस के लिए आखिरी जीत साबित हुई। 9वीं लोकसभा 1989 के चुनाव में जनता दल के मांधाता सिंह ने जीत हासिल की और फिर शुरू हुआ भारतीय जनता पार्टी का इस सीट को जीतने का सफर। 10 वीं लोकसभा में अटल बिहारी वाजपेई ने यह सीट थामी और तब से लेकर अब तक लगातार लखनऊ लोकसभा सीट पर भाजपा का ही कमल खिल रहा है।


Conclusion:अब तक हुए 16 लोकसभा चुनाव में लखनऊ लोकसभा सीट की बात की जाए तो यहां पर सात लोकसभा चुनाव में लखनऊ की सीट कांग्रेस के नाम रही तो सात ही बार लखनऊ ने भारतीय जनता पार्टी का साथ दिया। एक बार इंडिपेंडेंट, एक बार जनता दल और एक बार भारतीय लोक दल ने यहां पर जीत का स्वाद चखा।

बाइट

यह बात सही है कि 1984 के बाद से लखनऊ सीट पर कांग्रेस जीत नहीं पाई है। 1989 में बोफोर्स तोप घोटाले से यहां पर मांधाता सिंह ने चुनाव जीत लिया था। इसके बाद 1991 में अटल बिहारी वाजपेई यहां से चुनाव लड़ने आ गए। उनका कद काफी बड़ा था, हालांकि मुझे याद है जब कांग्रेस से राजा कर्ण सिंह यहां से चुनाव लड़े तो अटल जी को भी गली-गली में में वोट मांगने के लिए निकलना पड़ गया। कांग्रेस ने कभी भी भारतीय जनता पार्टी को वाक ओवर नहीं दिया। इस बार राहुल गांधी और प्रियंका गांधी एक्टिव है तो राजनाथ सिंह को पसीना आना तय है।

पंकज तिवारी प्रवक्ता, कांग्रेस

बाइट

भारतीय राजनीति में ऐसा कहा जाता है कि केंद्र का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है। लखनऊ में भाजपा इसलिए जीतती रही क्योंकि यहां पर अटल बिहारी वाजपेई जी जैसे कद्दावर नेता चुनाव लड़ने के लिए आए थे। उन्हें सभी वर्गों के लोग पसंद भी करते थे। कांग्रेस इसीलिए यहां पर नहीं जीत रही क्योंकि शहरी मतदाता उच्च मध्य वर्ग का होता है और लखनऊ में उच्च मध्य वर्ग मौजूद है। यह भाजपा की जीत की बड़ी वजह रही। जहां तक इस बार की बात है तो प्रियंका गांधी इस बार राजनीति में एक्टिव हैं। उनकी रैलियों में काफी भीड़ भी जुट रही है लोगों ने पसंद भी कर रहे हैं और राजनाथ पिछले 5 साल से सांसद रहे हैं। ऐसे में एंटी इनकंबेंसी का भी सामना करना पड़ेगा। अगर कांग्रेस और गठबंधन साथ देते हैं तो यहां पर परिदृश्य बदल भी सकता है।

डॉ रविकांत, राजनीतिक विश्लेषक
Last Updated : Apr 20, 2019, 3:25 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.