लखनऊ : जलवायु परिवर्तन विश्व को प्रभावित कर रहा है, लेकिन 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान उन तीन अरब से अधिक लोगों के लिए विनाशकारी साबित होगा जो जलवायु परिवर्तन के लिए अत्यधिक संवेदनशील स्थानों में हैं. जैसा कि जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की रिपोर्ट में बताया गया है. यह जानकारी शुक्रवार को डॉ. संजीव यादव वरिष्ठ वैज्ञानिक सीडीआरआई ने दी. सीएसआईआर-सीडीआरआई, लखनऊ में जलवायु घड़ी और इसका महत्व, जलवायु परिवर्तन और इसके परिणाम की जानकारी देने के लिए युवाओं के लिए ऊर्जा साक्षरता प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित हुआ. कार्यक्रम में हाइजिया कॉलेज ऑफ फार्मेसी, लखनऊ, हाइजिया इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मेसी, लखनऊ और विवेक कॉलेज ऑफ टेक्नोलॉजी एजुकेशन बिजनौर, उत्तर प्रदेश के छात्र आयोजित जिज्ञासा कार्यक्रमों में सम्मिलित हुए. 24 से 27 अप्रैल तक आयोजित ऊर्जा साक्षरता प्रशिक्षण कार्यक्रम में तीन अलग-अलग कॉलेजों के लगभग 150 छात्रों और 12 फैकल्टी ने भाग लिया.
क्लाइमेट क्लॉक हमें क्लाइमेट चेंज के लिए कर रही अलर्ट
प्रतिभागियों को वेबसाइट (https://climateclock.world/) के जरिए क्लाइमेट क्लॉक के रियल टाइम डेटा के बारें में जानकारी दी गई. क्लाइमेट क्लॉक हमें यह बताती है कि वास्तविक समय के आंकड़ों के आधार पर वैश्विक तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने में कितना कम समय बचा है और यदि तापमान में वृद्धि हुई तो इसका परिणाम अपरिवर्तनीय होगा. इस कार्यक्रम मे प्रतिभागियों को ऊर्जा साक्षरता प्रशिक्षण लेने और जलवायु को बचाने के लिए प्रेरित किया गया. प्रतिभागियों ने जलवायु को बचाने और कार्बन फुटप्रिंट को कम करने की शपथ ली. डॉ. संजीव यादव वरिष्ठ वैज्ञानिक सीडीआरआई लखनऊ ने जलवायु परिवर्तन से होने वाले दुष्प्रभावों पर चर्चा की. उन्होने कहा कि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन मुख्य रूप से CO2 से पृथ्वी का तापमान प्रतिदिन बढ़ रहा है. जिससे ग्लेशियर पिघल रहे हैं और समुद्र का स्तर बढ़ रहा है. जिससे कई देशों के तटीय क्षेत्र लगभग जलमग्न होने के कगार पर हैं.
स्टूडेंट-साइंटिस्ट कनेक्ट हुआ था प्रोग्राम
विश्व पृथ्वी दिवस के मौके पर आयोजित ये छात्र-वैज्ञानिक कनेक्ट कार्यक्रम, सीएसआईआर-जिज्ञासा के तहत आयोजित किया गया था. जिसमें फार्मेसी छात्रों के लिए कॅरियर के विभिन्न अवसरों की भी जानकारी साझा की गई. डॉ संजीव यादव ने विभिन्न क्षेत्रों के बारें में बताया. जहां छात्र अपनी सामर्थ एवं अपनी कमजोरियों को ध्यान में रखते हुए देखते हुए खुद के लिए उपयुक्त विकल्प चुन सकते हैं. जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं जैसे बायोमेडिकल रिसर्चर, मेडिसिन एडवाइजर, पेटेंट अटॉर्नी, फोरेंसिक साइंटिस्ट, रेगुलेटरी अटॉर्नी, क्वालिटी कंट्रोल केमिस्ट, क्वालिटी एश्योरेंस, मेडिकल साइंस लाइजनिंग और फार्माकोविजिलेंस इत्यादि. फिर उन्होंने समझाया कि कैसे एक नवीन यौगिक एक दावा के रूप में परिवर्तित या विकसित किया जाता है और किस तरह से औषधि अनुसंधान एवं विकास के विभिन्न क्षेत्र इसमें शामिल होते हैं. उन्होंने विद्यार्थियों के ये भी बताया कि कैसे वे सीएसआईआर-सीडीआरआई के साथ अपनी यात्रा शुरू कर सकते हैं.
इसके अलावा प्रतिभागियों ने विभिन्न प्रयोगशालाओं का दौरा किया. वैज्ञानिकों के साथ बातचीत की और विभिन प्रयोगों के बारे में जाना. विष विज्ञान विभाग में डॉ. एसके रथ ने औषधि खोज और विकास में विष विज्ञान अनुसंधान के महत्व को समझाया. फार्मास्यूटिक्स और फार्माकोकाइनेटिक्स में वैज्ञानिक डॉ. पीआर मिश्रा और उनके शोधकर्ताओं की टीम ने ड्रग फॉर्मूलेशन और संबंधित शोध की बारीकियों को समझाया है. इसके बाद छात्र न्यूरोसाइंस एंड एजिंग बायोलॉजी विभाग की लैब गए. जहां डॉ. शीबा सैमुअल (पीटीओ सीडीआरआई) ने विभिन्न न्यूरोलॉजिकल विकारों पर डिवीजन में किए जा रहे शोध कार्य के बारें में बताया. उन्होंने औषधि अनुसंधान में छात्रों की रुचि जगाने के लिए सुरुचिपूर्ण परिचर्चा की.
प्रतिभागियों ने जन्तु प्रयोगशाला सुविधा का भी दौरा किया. जहां डॉ. धनंजय हंसदा और चंद्रशेखर यादव ने दवा अनुसंधान में शामिल विभिन्न जन्तु मॉडल जैसे कि खरगोश, गिनी पिग, हेम्सटर और चूहों की विभिन्न प्रजातियों को दिखाया है. स्टूडेंट्स खूब एंजॉय कर रहे थे. उन्होंने कहा कि हाल ही में सीडीआरआई ने जन्तु के वैकल्पिक उपयोग पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया. जन्तु हमारे लिए अपना बलिदान करते हैं. इसलिए हमें उनका सम्मान करना चाहिए और यदि संभव हो तो हमें एक विकल्प का उपयोग करना चाहिए. कार्यक्रम छात्रों एवं शिक्षकों की प्रतिक्रिया (फीडबेक) और संस्थान में बिताए पलों को यादगार बनाने के लिए समूहिक फोटो के साथ समाप्त हुआ.