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Lucknow Infant Home : अव्यवस्थाओं ने लील ली चार मासूमों की जिंदगी, अनट्रेंड नर्स और आया कर रहीं ड्यूटी

राजधानी लखनऊ राजकीय बाल गृह शिशु (Government Children Home Shishu Lucknow) में चार बच्चों की मौत से शासन प्रशासन की गंभीरता और बच्चों के प्रति संवेदनशीलता की पोल खुल गई है. शिशु गृह की प्राथमिक जांच में जो बात सामने आई है वह काफी हैरान करने वाली है.

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Published : Feb 18, 2023, 5:54 PM IST

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लखनऊ : उत्तर प्रदेश की राजधानी के शिशु गृह में चार बच्चों की मौत के मामले ने सवाल खड़ा कर दिया है, क्या लावारिस मिले नौनिहालों को उनके माता पिता की ही तरह विभाग ने भी बेपरवाह छोड़ दिया है. यह इसलिए कहा जा रहा है क्यों कि इस शिशु केंद्र में अव्यवस्थाओं का अंबार है. क्लर्क से बने अधीक्षक को फिलहाल निलंबित कर दिया गया है. अब व्यवस्था कब ठीक होंगी यह भविष्य की गर्त में है. आइए जानते हैं कि राजकीय शिशु केंद्र में किस तरह की अव्यवस्थाएं हैं.

एक कमरे में 10 की जगह 50 बच्चे : बाल कल्याण समिति (CWC) के सदस्य ने चार बच्चों की मौतों महज 12 दिन पहले इसी केंद्र का निरक्षण किया था. समिति के सदस्य संजीव बताते हैं कि निरीक्षण के दौरान उन्होंने यह पाया था कि यहां पर जो मानक हैं उसके अनुसार नौनिहालों को नहीं रखा जा रहा है. वे बताते हैं कि वैसे तो एक कमरे जिसे एक यूनिट भी कहते हैं वहां 10 ही बच्चों को होना चाहिए उसी हिसाब से झूलों को रखा जाता है, लेकिन वहां हालात यह हैं कि एक कमरे में चार गुना बच्चों को रखा गया था. इसके लिए कई बार जिलाधिकारी और मंडलायुक्त को जानकारी दी थी, लेकिन इस और ध्यान ही नहीं दिया गया.

बिना ट्रेनिंग नर्स और आया तैनात : राज्य बाल आयोग की सदस्य डॉ. सुचिता चतुर्वेदी कहती हैं कि वे खुद कई बार इसी शिशु केंद्र में जा चुकी हैं. यहां एक यूनिट में पांच यूनिट चलाई जा रही थीं. एक झूले में दो दो बच्चे पाले जाते हैं. डाॅ. सुचिता कहती हैं कि जो नौनिहाल इस तरह के शिशु केंद्र भेजे जाते हैं वे पहले से ही बीमार होते हैं. जिन्हे भेड़ बकरियों की तरह रखा जाएगा तो बच्चों के स्वास्थ पर असर होना लाजमी है. उन्होंने कहा कि कई बार आयोग की ओर से कहा गया है कि शिशु केंद्रों में बच्चों की देख रेख करने में कोई भी लापरवाही न बरती जाए. जिस केंद्र में कर्मचारियों की लापरवाही के चलते चार नौनिहालों की मौत हुई है. वहां सिर्फ बच्चों को रखने के लिए कमरों की ही कमी नहीं है. इस केंद्र में तैनात कर्मचारियों को बच्चों को पालने की न ही किसी प्रकार की ट्रेनिंग दी गई है और इलाज करने वाले नर्सों को कोई कोर्स ही कराया गया है.

बाल आयोग की सदस्य डॉ. सुचिता चतुर्वेदी बताती हैं कि राजकीय शिशु गृह में पांच नर्स तैनात हैं. इनमें दो ऐसी नर्स हैं, जिन्होंने न ही कहीं से ट्रेनिंग ली और न ही कोई नर्सिंग कोर्स ही किया है. जबकि जिस अवस्था में बच्चों को इस गृह में लाया जाता है. उनकी देखभाल के लिए प्रशिक्षित नर्स होनी चाहिए. न सिर्फ नर्स बल्कि वहां तैनात आया को भी बकायदा ट्रेनिंग दी जानी चाहिए कि इस तरह के बच्चों को कैसे पालना होता है. जबकि यहां तैनात किसी भी आया को ट्रेनिंग दी ही नहीं गई.

DM ने गठित की है जांच टीम : फिलहाल शिशु गृह में चार बच्चों की मौत के बाद यहां के अधीक्षक किशकुं त्रिपाठी को लापरवाही बरतने पर निलंबित कर दिया है. हालांकि किशकुं त्रिपाठी के चयन होने पर भी सवाल उठ रहे हैं. अधीक्षक से पहले वो बाल एवं महिला कल्याण विभाग में क्लर्क थे, जिन्हे वहां ट्रांसफर कर अधीक्षक बना दिया गया था. बच्चों की मौत के मामले में डीएम ने घटना की मजिस्ट्रियल जांच के आदेश दिए थे. जिसकी जिम्मेदारी एसीएम फर्स्ट को सौंपी गई है. एसीएम जांच करने के लिए राजकीय शिशु गृह पहुंचे जहां उन्होंने स्टाफ के बयान लिए. एसीएम अब वो बच्चो का इलाज करने वाले डॉक्टरों का बयान लेंगे. जिसके बाद जांच की विस्तृत रिपोर्ट डीएम को सौंपी जाएगी.


यह भी पढ़ें : ED Raid In UP : दिव्यांगों व एससी एसटी की स्कॉलरशिप डकारने के लिए खोले गए थे 3 हजार बैंक अकाउंट, जमकर हुई बंदरबांट

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लखनऊ : उत्तर प्रदेश की राजधानी के शिशु गृह में चार बच्चों की मौत के मामले ने सवाल खड़ा कर दिया है, क्या लावारिस मिले नौनिहालों को उनके माता पिता की ही तरह विभाग ने भी बेपरवाह छोड़ दिया है. यह इसलिए कहा जा रहा है क्यों कि इस शिशु केंद्र में अव्यवस्थाओं का अंबार है. क्लर्क से बने अधीक्षक को फिलहाल निलंबित कर दिया गया है. अब व्यवस्था कब ठीक होंगी यह भविष्य की गर्त में है. आइए जानते हैं कि राजकीय शिशु केंद्र में किस तरह की अव्यवस्थाएं हैं.

एक कमरे में 10 की जगह 50 बच्चे : बाल कल्याण समिति (CWC) के सदस्य ने चार बच्चों की मौतों महज 12 दिन पहले इसी केंद्र का निरक्षण किया था. समिति के सदस्य संजीव बताते हैं कि निरीक्षण के दौरान उन्होंने यह पाया था कि यहां पर जो मानक हैं उसके अनुसार नौनिहालों को नहीं रखा जा रहा है. वे बताते हैं कि वैसे तो एक कमरे जिसे एक यूनिट भी कहते हैं वहां 10 ही बच्चों को होना चाहिए उसी हिसाब से झूलों को रखा जाता है, लेकिन वहां हालात यह हैं कि एक कमरे में चार गुना बच्चों को रखा गया था. इसके लिए कई बार जिलाधिकारी और मंडलायुक्त को जानकारी दी थी, लेकिन इस और ध्यान ही नहीं दिया गया.

बिना ट्रेनिंग नर्स और आया तैनात : राज्य बाल आयोग की सदस्य डॉ. सुचिता चतुर्वेदी कहती हैं कि वे खुद कई बार इसी शिशु केंद्र में जा चुकी हैं. यहां एक यूनिट में पांच यूनिट चलाई जा रही थीं. एक झूले में दो दो बच्चे पाले जाते हैं. डाॅ. सुचिता कहती हैं कि जो नौनिहाल इस तरह के शिशु केंद्र भेजे जाते हैं वे पहले से ही बीमार होते हैं. जिन्हे भेड़ बकरियों की तरह रखा जाएगा तो बच्चों के स्वास्थ पर असर होना लाजमी है. उन्होंने कहा कि कई बार आयोग की ओर से कहा गया है कि शिशु केंद्रों में बच्चों की देख रेख करने में कोई भी लापरवाही न बरती जाए. जिस केंद्र में कर्मचारियों की लापरवाही के चलते चार नौनिहालों की मौत हुई है. वहां सिर्फ बच्चों को रखने के लिए कमरों की ही कमी नहीं है. इस केंद्र में तैनात कर्मचारियों को बच्चों को पालने की न ही किसी प्रकार की ट्रेनिंग दी गई है और इलाज करने वाले नर्सों को कोई कोर्स ही कराया गया है.

बाल आयोग की सदस्य डॉ. सुचिता चतुर्वेदी बताती हैं कि राजकीय शिशु गृह में पांच नर्स तैनात हैं. इनमें दो ऐसी नर्स हैं, जिन्होंने न ही कहीं से ट्रेनिंग ली और न ही कोई नर्सिंग कोर्स ही किया है. जबकि जिस अवस्था में बच्चों को इस गृह में लाया जाता है. उनकी देखभाल के लिए प्रशिक्षित नर्स होनी चाहिए. न सिर्फ नर्स बल्कि वहां तैनात आया को भी बकायदा ट्रेनिंग दी जानी चाहिए कि इस तरह के बच्चों को कैसे पालना होता है. जबकि यहां तैनात किसी भी आया को ट्रेनिंग दी ही नहीं गई.

DM ने गठित की है जांच टीम : फिलहाल शिशु गृह में चार बच्चों की मौत के बाद यहां के अधीक्षक किशकुं त्रिपाठी को लापरवाही बरतने पर निलंबित कर दिया है. हालांकि किशकुं त्रिपाठी के चयन होने पर भी सवाल उठ रहे हैं. अधीक्षक से पहले वो बाल एवं महिला कल्याण विभाग में क्लर्क थे, जिन्हे वहां ट्रांसफर कर अधीक्षक बना दिया गया था. बच्चों की मौत के मामले में डीएम ने घटना की मजिस्ट्रियल जांच के आदेश दिए थे. जिसकी जिम्मेदारी एसीएम फर्स्ट को सौंपी गई है. एसीएम जांच करने के लिए राजकीय शिशु गृह पहुंचे जहां उन्होंने स्टाफ के बयान लिए. एसीएम अब वो बच्चो का इलाज करने वाले डॉक्टरों का बयान लेंगे. जिसके बाद जांच की विस्तृत रिपोर्ट डीएम को सौंपी जाएगी.


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