लखनऊ : जिला बाल संरक्षण इकाई एवं बाल अधिकारिता विभाग के निर्देशानुसार बाल नशा मुक्ति की प्रभावी रोकथाम के लिए विद्यालयों में बाल आयोग के द्वारा नशामुक्त बनाने के लिए कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं. स्कूल पहुंच रहे बाल आयोग के सदस्यों का उद्देश्य शैक्षणिक संस्थानों में बच्चों के बीच नशीली दवाओं और मादक द्रव्यों के सेवन की रिपोर्टिंग और रोकथाम करना है.
बाल आयोग के अध्यक्ष डॉ. देवेंद्र शर्मा ने बताया कि प्रदेश के तमाम जिलों के स्कूलों में नशा मुक्ति के लिए कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं. बहुत सारे केस देखे गए हैं कि स्कूल के बच्चे नशे की लत में बहुत अधिक आ रहे हैं. इस तरह के केस भी बहुत ज्यादा है हैं. जिसको देखते हुए उत्तर प्रदेश बाल संरक्षण आयोग ने नशा मुक्ति कार्यक्रम शुरू किया. जिसके तहत आयोग के सदस्य जिलों के स्कूलों में जाकर बच्चों को नशे से होने वाले सभी दुष्प्रभावों के बारे में जानकारी देते हैं. इसके अलावा ऐसे बच्चे जो नशे की लत में होते हैं कई बार खुद आगे आकर अपनी बात को सदस्यों के सामने रखते हैं और उस दौरान विशेषज्ञ भी सदस्यों के साथ होते हैं, जो नशे को मुक्त कराने में उनकी सहायता करते हैं.
हाव भाव से भी पता चलता है बच्चे का बदलाव
सिविल अस्पताल की मनोरोग विशेषज्ञ डाॅ. दीप्ति सिंह ने बताया कि जो भी बच्चा नशे की लत का शिकार होगा उसके रहन सहन बोलचाल भाषा तमाम चीजों से संकेत मिल सकता है. ऐसा बच्चा कुछ अलग तरह का व्यवहार करता है, उसके व्यवहार में बदलाव आएंगे. पढ़ाई करने में उसका मन नहीं लगेगा. कई देशों में देखा जाता है कि बच्चे अकेले-अकेले घूमते रहते हैं किसी काम में उनका मन नहीं लगता है. छोटी-छोटी बात पर चिड़चिड़ा जाते हैं. अचानक से उनके अंदर गुस्सा बहुत ज्यादा हो जाता है. घर के बड़े सदस्यों पर कोई सही बात पर भी भिनक जाते हैं. इस तरह की तमाम ऐसे संकेत होते हैं जिससे पहचाना जा सकता है कि बच्चे में कुछ बदलाव हो रहे हैं. स्कूली बच्चों के नशे की लत बहुत ही आसानी से पहचानी जा सकती है. बच्चा स्कूल जाने में हिचकिचाएगा और अगर जा रहा है तो स्कूल जाने के बहाने अपने दोस्तों के साथ कहीं नुक्कड़ पर तफरी करने जाएगा. बहुत दिन से स्कूल में एब्सेंट होने की वजह से स्कूल के टीचर्स या प्रिंसिपल कंप्लेंट करें तो इन बातों से पकड़ा जा सकता है कि बच्चा कहीं न कहीं झूठ बोल रहा है.
बिना काउंसिलिंग दवा कर सकती है नुकसान
डाॅ. दीप्ति सिंह ने बताया कि सबसे अहम बात हो जाती है कि जो भी व्यक्ति नशा कर रहे हैं, वह खुद उसे छोड़ने के लिए तैयार हों. ऐसे तो आयुर्वेदिक यूनानी और होम्योपैथिक विधा में बहुत सारी ऐसी दवाएं हैं जो यह दावा करते हैं कि खाने के साथ इसे मिलाकर बच्चे को खिला दें या जिस व्यक्ति को नशे की लत है उसे खिला दें तो दिन-ब-दिन उसे व्यक्ति कि नशे की लत छूट जाएगी. इस तरह की दवाएं एलोपैथ में भी हैं, लेकिन उसे हम देना उचित नहीं समझते हैं. दवा देना उस जगह पर सही है जब नशा कर रहे व्यक्ति को यह मालूम हो कि उसकी दवाइयां चल रही हैं, क्योंकि उन दवाइयों के साथ बहुत सारी चीजों का परहेज करना होता है और अगर परहेज नहीं किया गया तो शरीर पर बुरा प्रभाव भी तेजी से पड़ता है. व्यक्ति का दम घुट सकता है उसे एंजायटी हो सकती है और कई बार यह एंजायटी का स्तर इतना बढ़ जाती है कि मरीज कोमा में भी चला जाता है या फिर उसे आईसीयू में भर्ती करने की नौबत आ जाती है. इस तरह के कई केस ओपीडी में आते हैं, कुछ पेरेंट्स अपने बच्चों को लेकर आते हैं या कुछ पत्नियां अपने पतियों को लेकर आती हैं. ऐसे जो भी मरीज ओपीडी में आते हैं उनकी हम काउंसिलिंग करते हैं तब उसकी दवा दी जाती है और समय के हिसाब से उसे दवा का डोज घटाया या बढ़ाया जाता है.
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