लखनऊ : शिवपाल सिंह यादव की 'घर वापसी' के बाद समाजवादी पार्टी पूरे उत्साह में है. अखिलेश यादव उन्हें वह सम्मान भी दे रहे हैं, जिसकी शिवपाल सिंह यादव को अपेक्षा थी. उम्मीद है जल्द ही उन्हें संगठन में भी जगह मिल जाएगी. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के पदाधिकारियों का भी पार्टी में विलय कर उन्हें यथोचित स्थान देने के लिए तैयार हैं. अब प्रश्न यह है कि इस मेल का समाजवादी पार्टी को कितना लाभ मिल पाएगा? इस बात में कोई दो राय नहीं शिवपाल यादव की घर वापसी के बाद यादव परिवार और पार्टी में जबरदस्त उत्साह देखा जा रहा है. मैनपुरी संसदीय सीट पर हुए उपचुनाव इस उत्साह का असर भी देखने को मिला. अभी लोकसभा चुनाव के लिए एक वर्ष का समय है. इस दौरान पार्टी अपने संगठन और जनता पर अपनी पकड़ को मजबूत करेगी. उसे कितना जन समर्थन मिलता है यह देखने वाली बात होगी.
अखिलेश यादव और शिवपाल के बीच जब मतभेद उभरने शुरू हुए, तब पार्टी की छवि को काफी नुकसान पहुंचा. वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में शिवपाल अपनी पार्टी बनाकर चुनाव मैदान में उतरे. हालांकि उन्हें कोई सफलता नहीं मिली, जबकि अखिलेश यादव ने बसपा से गठबंधन कर चुनाव लड़ा. इस गठबंधन में बसपा तो शून्य से 10 सीटों का सफर तय करने में कामयाब हुई, लेकिन सपा को महज पांच सीटों पर सफलता मिली. वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में भी अखिलेश के कई गलत फैसलों और अकेले पूरा दायित्व संभालने के कारण पार्टी सत्ता से दूर ही रही. इस अवध में दोनों पार्टियों और नेताओं को यह समझ में आ चुका था कि अकेले किसी भी दल और नेता को सफलता मिल पाना कठिन है. मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद जब शोक संतृप्त परिवार के लोग एक साथ बैठे तो गिले-शिकवे भी दूर हुए और भविष्य में एक साथ आने का रास्ता भी बना. यह फैसला दोनों ही नेताओं के लिए फायदे का सौदा है.
शिवपाल यादव के सपा में लौट आने से पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव को एक विश्वसनीय सहयोगी और कुशल संगठन करता मिल गया है. शिवपाल प्रदेश में सपा को मजबूत करने के लिए जी-जान से जुटेंगे. वहीं अखिलेश यादव को राष्ट्रीय राजनीति में भाजपा के खिलाफ गठबंधन बनाने के लिए पर्याप्त समय भी मिल सकेगा. माना जा रहा है कि शिवपाल यादव पार्टी के पुराने नेताओं और कार्यकर्ताओं को दोबारा जोड़ने में काफी हद तक सफल होंगे. प्रदेश में आज की स्थिति में भाजपा को यदि कोई दल चुनौती दे सकता है तो वह सिर्फ और सिर्फ समाजवादी पार्टी है. बसपा और कांग्रेस हाशिए पर पहुंच चुके हैं और फिलहाल कोई चमत्कार ही इन दोनों दलों को दोबारा राज्य में खड़ा कर सकता है. वर्ष 2019 के चुनाव में राहुल गांधी खुद अपनी सीट तक नहीं बचा सके थे. वहीं विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को दो तो बहुजन समाज पार्टी को मात्र एक सीट मिल पाई है. विधान परिषद से दोनों ही दलों का सूपड़ा साफ हो चुका है. ऐसे में यदि भारतीय जनता पार्टी की सरकार के खिलाफ माहौल बना तो निश्चित रूप से इसका सबसे बड़ा लाभ समाजवादी पार्टी को होगा. साफ है कि शिवपाल की सपा में वापसी भारतीय जनता पार्टी के लिए अच्छी खबर नहीं है.
इस संबंध में राजनीतिक विश्लेषक मनमोहन का कहना है कि 'शिवपाल सिंह यादव वह राजनेता हैं, जिन्होंने समाजवादी पार्टी को खड़ा करने में मुलायम सिंह के साथ अहम रोल निभाया है. उनके जमीनी अनुभव का लाभ निश्चितरूप से समाजवादी पार्टी को मिलेगा. कुछ दिन बाद स्थानीय निकाय के चुनाव होने हैं, लोकसभा चुनाव भी अब दूर नहीं हैं. जिस तरह भारतीय जनता पार्टी ने अपनी तैयारी शुरू की है, ठीक वैसे ही समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी लोकसभा चुनावों को लेकर अपनी तैयारी तेज कर दी है. अब समाजवादी पार्टी और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी मिल गए हैं. शिवपाल सिंह यादव और अखिलेश यादव अब एकजुट हैं. ऐसे में जब मैनपुरी उपचुनाव था उस समय शिवपाल सिंह यादव ने अपना भरपूर सहयोग और समर्थन दिया साथ ही पार्टी का भी विलय कर लिया. उसी समय यह तय हो गया था कि शिवपाल सिंह यादव को सपा में अहम जिम्मेदारी मिलेगी. समाजवादी पार्टी का संगठनात्मक ढांचा नए सिरे से तैयार होना है. यह देखने वाली बात होगी कि शिवपाल यादव को किस स्तर पर क्या जिम्मेदारी मिलती है, लेकिन यह तय है कि अब समाजवादी पार्टी मुख्य विपक्षी दल के तौर पर अपना जमीनी संघर्ष जरूर शुरू करेगी. मेरा ऐसा मानना है कि इस आंदोलन की अगुवाई शिवपाल सिंह यादव करेंगे. वहीं अखिलेश यादव वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ बनने वाले देश के तीसरे मोर्चे में अपनी भूमिका का निर्वहन करेंगे. शायद यही वजह है कि आज वह तेलंगाना में केसीआर जो वहां के मुख्यमंत्री हैं के साथ कल खम्मम में रैली करेंगे. इस रैली में अखिलेश की भूमिका थर्ड फ्रंट के सहभागी की होगी.
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