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वातावरण में हो रहा परिवर्तन किसानों के लिए बना अभिशाप

वातावरण में हो रहा परिवर्तन किसानों के लिए अभिशाप बन रहा है. किसानों की बहुत सी फसलें प्रभावित हो रही हैं. इसमें सबसे ज्यादा उड़द की फसलें प्रभावित हुई हैं.

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वातावरण में हो रहा परिवर्तन किसानों के लिए बना अभिशाप
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Published : Jun 20, 2022, 3:35 PM IST

लखनऊ: वातावरण में हो रहा परिवर्तन किसानों के लिए अभिशाप बन रहा है. बढ़ता हुआ तापमान जनमानस के लिए घातक हो रहा है. वहीं, इससे बहुत सी फसलें भी प्रभावित हो रही हैं. उड़द प्रदेश की एक प्रमुख दलहनी फसल है. मुख्य रूप से इसकी खेती अधिकतर किसान खरीफ में करता है. लेकिन, जिन किसानों के पास सिंचाई का अच्छा साधन होता है जायद में भी इसकी बुवाई सघन पद्धतियों को अपनाकर की जाती है. बढ़ते तापमान ने किसानों की मुश्किल बड़ा दी हैं.

इस पूरे मामले पर ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान कृषि विशेषज्ञ डॉ. सत्येंद्र कुमार सिंह ने जानकारी देते हुए बताया कि, उड़द प्रदेश की एक प्रमुख दलहनी फसल है. मुख्य रूप से इसकी खेती अधिकतर किसान खरीफ में करते हैं, लेकिन जिन किसानों के पास सिंचाई का अच्छा साधन होता हैं जायद में भी इसकी बुवाई करता है. वातावरण का तापमान 27 से 32 डिग्री सेल्सियस रहता है तो इसका उत्पादन अच्छा होता है. माना जाता है कि वातावरण के गर्म न होने पर 6 से 7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर का उत्पादन होता है.

वातावरण में हो रहा परिवर्तन किसानों के लिए बना अभिशाप

अधिक गर्मी के कारण इस वर्ष उड़द की फसल प्रभावित हुई है. प्रमुख रूप से अधिक तापमान होने के कारण उड़द की फसल पर पुष्प तो हुआ लेकिन गर्मी के कारण फलियां नहीं बन पाई हैं. साथ ही बेमौसम बारिश के कारण पौधों की बड़वार रुक गई. जिससे उत्पादन प्रभावित हो गया. उन्होंने बताया कि उड़द की खेती के लिए हल्की दोमट भूमि उपयुक्त रहती है और सिंचाई के साधन जायद में ना होने से मिट्टी जल्दी सूख जाती है. मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ समाप्त हो रहे हैं. इस वर्ष 45 डिग्री सेल्सियस के ऊपर कई दिनों तक तापक्रम रहा. जिसे उड़द की फसल काफी प्रभावित हुई है. उत्पादन बहुत कम होने की संभावना है. किसानों ने समय से बुवाई की थी. बावजूद इसके कीट एवं बीमारियों का प्रकोप रहा. बेमौसम बारिश होने से कीटों की संख्या बढ़ती गई. इससे उत्पादन अधिक प्रभावित हुआ. जिन किसानों ने 15 फरवरी से 15 मार्च तक बुआई का कार्य पूरा कर लिया था उनकी फसल में 20 से 25% उत्पादन होने की आवश्यक संभावनाएं है. जिन्होंने लेट बुवाई की उनका उत्पादन शून्य हो गया .बढ़ता हुआ तापमान प्रमुख रूप से जायद में दलहनी फसलों के लिए अभिशाप बनता चला जा रहा है. वैज्ञानिकों के लिए भी यह एक चिंता का विषय है.

इसे भी पढ़े-मूंग और उड़द की फसल खेतों में भीग कर हुए अंकुरित, किसानों का हुआ भारी नुकसान

बख्शी का तालाब क्षेत्र में रहने वाले किसान बरसाती ने बताया कि, बढ़ते हुए तापमान के चलते उड़द की फसल पूरी तरह से बर्बाद हो चुकी है. इस फसल से अब कुछ भी आय की उम्मीद नहीं दिखाई दे रही है.वहीं,फसलों पर लगने वाले कीटो ने सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है. बाजारों में मिलावटी दवाइयां मिल रही है. जिनका फसलों पर छिड़काव भी काम नहीं कर रही हैं. फसलों पर जब कीटनाशक दवाइयों का छिड़काव किया जाता है तो कुछ देर तक कीट फसलों से गायब हो जाते हैं ,लेकिन जैसे ही दवाइयों का असर खत्म होता है वैसे ही कीटों की संख्या बढ़ने लगती है. कीट फसलों को पूरी तरह से नष्ट कर रहे हैं.

ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत ऐप

लखनऊ: वातावरण में हो रहा परिवर्तन किसानों के लिए अभिशाप बन रहा है. बढ़ता हुआ तापमान जनमानस के लिए घातक हो रहा है. वहीं, इससे बहुत सी फसलें भी प्रभावित हो रही हैं. उड़द प्रदेश की एक प्रमुख दलहनी फसल है. मुख्य रूप से इसकी खेती अधिकतर किसान खरीफ में करता है. लेकिन, जिन किसानों के पास सिंचाई का अच्छा साधन होता है जायद में भी इसकी बुवाई सघन पद्धतियों को अपनाकर की जाती है. बढ़ते तापमान ने किसानों की मुश्किल बड़ा दी हैं.

इस पूरे मामले पर ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान कृषि विशेषज्ञ डॉ. सत्येंद्र कुमार सिंह ने जानकारी देते हुए बताया कि, उड़द प्रदेश की एक प्रमुख दलहनी फसल है. मुख्य रूप से इसकी खेती अधिकतर किसान खरीफ में करते हैं, लेकिन जिन किसानों के पास सिंचाई का अच्छा साधन होता हैं जायद में भी इसकी बुवाई करता है. वातावरण का तापमान 27 से 32 डिग्री सेल्सियस रहता है तो इसका उत्पादन अच्छा होता है. माना जाता है कि वातावरण के गर्म न होने पर 6 से 7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर का उत्पादन होता है.

वातावरण में हो रहा परिवर्तन किसानों के लिए बना अभिशाप

अधिक गर्मी के कारण इस वर्ष उड़द की फसल प्रभावित हुई है. प्रमुख रूप से अधिक तापमान होने के कारण उड़द की फसल पर पुष्प तो हुआ लेकिन गर्मी के कारण फलियां नहीं बन पाई हैं. साथ ही बेमौसम बारिश के कारण पौधों की बड़वार रुक गई. जिससे उत्पादन प्रभावित हो गया. उन्होंने बताया कि उड़द की खेती के लिए हल्की दोमट भूमि उपयुक्त रहती है और सिंचाई के साधन जायद में ना होने से मिट्टी जल्दी सूख जाती है. मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ समाप्त हो रहे हैं. इस वर्ष 45 डिग्री सेल्सियस के ऊपर कई दिनों तक तापक्रम रहा. जिसे उड़द की फसल काफी प्रभावित हुई है. उत्पादन बहुत कम होने की संभावना है. किसानों ने समय से बुवाई की थी. बावजूद इसके कीट एवं बीमारियों का प्रकोप रहा. बेमौसम बारिश होने से कीटों की संख्या बढ़ती गई. इससे उत्पादन अधिक प्रभावित हुआ. जिन किसानों ने 15 फरवरी से 15 मार्च तक बुआई का कार्य पूरा कर लिया था उनकी फसल में 20 से 25% उत्पादन होने की आवश्यक संभावनाएं है. जिन्होंने लेट बुवाई की उनका उत्पादन शून्य हो गया .बढ़ता हुआ तापमान प्रमुख रूप से जायद में दलहनी फसलों के लिए अभिशाप बनता चला जा रहा है. वैज्ञानिकों के लिए भी यह एक चिंता का विषय है.

इसे भी पढ़े-मूंग और उड़द की फसल खेतों में भीग कर हुए अंकुरित, किसानों का हुआ भारी नुकसान

बख्शी का तालाब क्षेत्र में रहने वाले किसान बरसाती ने बताया कि, बढ़ते हुए तापमान के चलते उड़द की फसल पूरी तरह से बर्बाद हो चुकी है. इस फसल से अब कुछ भी आय की उम्मीद नहीं दिखाई दे रही है.वहीं,फसलों पर लगने वाले कीटो ने सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है. बाजारों में मिलावटी दवाइयां मिल रही है. जिनका फसलों पर छिड़काव भी काम नहीं कर रही हैं. फसलों पर जब कीटनाशक दवाइयों का छिड़काव किया जाता है तो कुछ देर तक कीट फसलों से गायब हो जाते हैं ,लेकिन जैसे ही दवाइयों का असर खत्म होता है वैसे ही कीटों की संख्या बढ़ने लगती है. कीट फसलों को पूरी तरह से नष्ट कर रहे हैं.

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