लखनऊ: राजधानी के बख्शी का तालाब स्थित चंद्रभानु गुप्ता कृषि स्नातकोत्तर महाविद्यालय ने एक पहल शुरू की है. अब महाविद्यालय की छात्राएं प्रशिक्षित होकर समसामयिक फसलों में लगने वाले कीट एवं बीमारियों को प्रबंधित किए जाने की जानकारी किसानों को उपलब्ध कराएंगी.
इको फ्रेंडली फसलों को बढ़ावा
महाविद्यालय के कीट विज्ञान विभाग के सहायक आचार्य डॉ. सत्येंद्र कुमार सिंह ने बताया कि आज के परिवेश में कीटनाशकों का बहुत अधिक प्रयोग हो रहा है. इसे रोकने के लिहाज से महाविद्यालय की छात्राओं को प्रशिक्षित किया जा रहा है, जिससे इको फ्रेंडली तरीके से किसान अपनी फसल को उत्पादित कर सकें. डॉ. सिंह ने बताया कि इस पहल के तहत किसानों तक शीघ्र तकनीकी जानकारी पहुंचेगी, जिससे किसान अधिक लाभान्वित होंगे. किसान छात्राओं की बात बहुत अच्छी तरह से सुनते हैं और समझते हैं फिर उनका अनुपालन करते हैं.
आवारा मवेशियों से फसलों को बचाने के लिए भांग की पत्ती और गाय के गोबर का करें छिड़काव
चंद्र भानु गुप्ता महाविद्यालय की BSC एग्रीकल्चर फिफ्थ सेमेस्टर की छात्रा आरुषी मौर्य ने बताया की कीट विज्ञान विभाग के सहायक आचार्य डॉ. सत्येंद्र कुमार सिंह सभी छात्राओं को जैविक उत्पाद को लेकर प्रशिक्षण दे रहे हैं. इस प्रशिक्षण में प्रमुख रूप से रसायनों के प्रयोग को कम करने के लिए जैविक उत्पाद को बनाने उनके प्रयोग करने के तरीके तथा प्रयोग करने के समय पर विधिवत प्रशिक्षण दिया जा रहा है. छात्रा ने बताया कि आवारा मवेशियों को प्रबंधित करने के लिए भांग की पत्ती तथा गाय के गोबर का प्रयोग करके फसलों के चारों तरफ छिड़काव करने से आवारा मवेशी फसलों के पास नहीं आते है.
इसे भी पढ़ें-मौसम के मिजाज से बढ़ी किसानों की टेंशन, मार्च के पहले सप्ताह में अप्रैल जैसा तापमान
केले, आम की फसल पर बीमारियां
बीएससी की छात्रा आयुषी सिंह ने बताया कि वातावरण में परिवर्तन हो रहा है. आम की फसल पर भुनगा कीट का प्रकोप बढ़ता जा रहा है. इसके सफल प्रबंधन के लिए इमिडाक्लोप्रिड 0.5 एम एल कीटनाशक, दो ग्राम सल्फर को एक लीटर पानी के साथ घोल बनाकर छिड़काव करने का प्रशिक्षण लिया. इस समय केले की फसल पर बनाना बिल्ट का अधिक प्रकोप है. इसको प्रबंधित करने के लिए प्रॉपिकॉनाजोले 25 ई सी की 1.5 एम ए मात्रा को एक लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करने पर प्रशिक्षण लिया है. जिन किसानों के खेतों में केले की फसल पर बीमारियां लगी हुई हैं, उसके लिए ट्राइकोडर्मा 5 ग्राम मात्रा को पौधों की जड़ों के पास मिलाकर मिट्टी चढ़ाने उसे बचाया जा सकता है.
मशरूम की खेती के लिए छात्राएं होंगी प्रशिक्षित
महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफेसर योगेश कुमार शर्मा ने बताया कि यह एक बहुत अच्छी पहल है. इससे छात्राएं प्रशिक्षण लेने के बाद अपने गांव में किसानों को नई तकनीकी बताएंगी, जिससे किसान जरूर लाभान्वित होंगे. प्रोफेसर शर्मा ने बताया कि विभाग द्वारा जैविक उत्पाद तैयार किए गए हैं. शीघ्र ही छात्राओं को मधुमक्खी पालन, बरबरी बकरी पालन, कड़कनाथ मुर्गा पालन, मशरूम की खेती तथा संरक्षित सब्जियों की खेती का प्रशिक्षण दिया जाएगा.