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पारिवारिक विवाद से जूझ रहे हैं तो ये सलाह आपके काम आ सकती है... - लखनऊ ताजा खबर

अगर आप पारिवारिक विवाद से जूझ रहे है तो पारिवारिक न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता की यह सलाह आपके काम आ सकती है. चलिए जानते हैं इसके बारे में.

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पेंडिंग रह जाते हैं केस
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Published : Mar 13, 2022, 4:03 PM IST

लखनऊः पारिवारिक न्यायालय में सालों से न जाने कितने केस पेंडिंग पड़े हैं. सुनवाई के लिए एक केस में सालों साल लग जाते हैं. बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो एक बार कोर्ट कचहरी के चक्कर में पड़ जाते हैं तो पिसते ही जाते हैं. आपने सुना होगा की कोर्ट कचहरी के चक्कर में कभी नहीं पढ़ना चाहिए, ऐसा लोग क्यों कहते हैं, इसके बारे में भी हमने पता लगाया. बड़े बुजुर्ग कह गए हैं कि कोर्ट के मामले में न फंसे तो ही बेहतर है वरना कोर्ट के चक्कर लगाते-लगाते जूते घिस जाते हैं. परिवारिक न्यायालय के वरिष्ठ वकील सिद्धांत कुमार ने बताया कि जब सालों साल ऐसे केस चलते रहते हैं तो शिकायतकर्ता के मन को चोट लगती है. वह जितना जल्दी हो सके उतनी जल्दी सुनवाई चाहता है.

पेंडिंग रह जाते हैं केस
उन्होंने बताया कि लोगों को बहुत आसान लगता है कि तलाक ले लेंगे लेकिन जब कोई मामला कोर्ट में आता है, तो उसकी तह तक जाना हमारी जिम्मेदारी हैं. हर केस के अलग-अलग पहलू होते हैं, अलग-अलग धाराएं लगती हैं, अलग-अलग केस बन जाता है. जब एक केस में चार पांच धाराएं लग जाती हैं, वाद विवाद बढ़ जाता है, आरोप-प्रत्यारोप बढ़ जाते हैं और मांग बढ़ जाती है या फिर सामने वाला डिवोर्स नहीं देना चाहता है. तरह-तरह के पहलू सामने आते हैं इसलिए कोर्ट में मामला देर तक चलता है. यही कारण है कि सालों साल केस चलता रहता है.

यह भी पढ़ेंः जेल में मनेगी लालू की होली, अगली सुनवाई एक अप्रैल को



सिद्धांत बताते हैं कि हमारे पास रोज ऐसे केस आते हैं, जिसमें लोग कहते हैं कि उन्हें कोर्ट के मामले में नहीं पड़ना चाहिए हैं. पहले तो हम उन्हें समझाते हैं और कोशिश करते हैं कि बात समझा-बुझाकर समझौता कराकर ही निपटा दें. हम खुद ही उनसे कहते हैं कि आपस में ही पहले बात अगर बन सकती है तो बना ले. लेकिन जब पहले पूरा इरादा बना लेते हैं कि अब साथ नहीं रह सकते हैं तो फिर केस फाइल करते हैं. लड़का लड़की दोनों की तरफ से अलग-अलग दलीलें पेश होती हैं. जब अलग-अलग दलील पेश होती हैं, तो अलग-अलग बातें निकल कर सामने होती हैं. जिस पर सामने वाला राजी नहीं होता है, वह अपनी बात को रखता है. इसी तरह से केस उलझता चला जाता है. कोविड काल में कोर्ट चला ही नही. अभी हाल ही में खुला है. 4 महीने में या 3 महीने में एक बार मामले की तारीख तय होती है. अब अगर 4 महीने में एक बार केस कोर्ट में लग रहा है ऐसे में दलीले ज्यादा है, कोर्ट के पास भी केस ज्यादा है तो ज्यादा समय नहीं दे पाते हैं. फिर अगली तारीख कोर्ट से मिल जाती है. यही कारण है कि तारीख पे तारीख मामले का रिजल्ट आगे बढ़ता जाता है और मामला शांत नहीं हो पाता है.




सीधे तौर पर सिद्धांत ने बताया कि हम लोगों को समझाने की कोशिश करते हैं कि अगर आप डिवोर्स चाहते हैं अलग होने का पूरा मन बना चुके हैं तो आपस में बात करें ज्यादा दलीलें अगर अदालत तक पहुंचेंगी तो केस लंबे समय तक चलेगा और जज को भी सुनवाई देने में असहजता होगी. जब न कोई विवाद होगा, न कोई मांग होगी, न कोई शिकायत होगी, दोनों सहमत होगें और उन्हें सिर्फ डिवोर्स चाहिए हैं तो वह जल्द हो जाती है. लेकिन जब मामले की दलीले बढ़ जाती हैं तो केस लंबा सालों साल तक चलता रहता है.

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लखनऊः पारिवारिक न्यायालय में सालों से न जाने कितने केस पेंडिंग पड़े हैं. सुनवाई के लिए एक केस में सालों साल लग जाते हैं. बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो एक बार कोर्ट कचहरी के चक्कर में पड़ जाते हैं तो पिसते ही जाते हैं. आपने सुना होगा की कोर्ट कचहरी के चक्कर में कभी नहीं पढ़ना चाहिए, ऐसा लोग क्यों कहते हैं, इसके बारे में भी हमने पता लगाया. बड़े बुजुर्ग कह गए हैं कि कोर्ट के मामले में न फंसे तो ही बेहतर है वरना कोर्ट के चक्कर लगाते-लगाते जूते घिस जाते हैं. परिवारिक न्यायालय के वरिष्ठ वकील सिद्धांत कुमार ने बताया कि जब सालों साल ऐसे केस चलते रहते हैं तो शिकायतकर्ता के मन को चोट लगती है. वह जितना जल्दी हो सके उतनी जल्दी सुनवाई चाहता है.

पेंडिंग रह जाते हैं केस
उन्होंने बताया कि लोगों को बहुत आसान लगता है कि तलाक ले लेंगे लेकिन जब कोई मामला कोर्ट में आता है, तो उसकी तह तक जाना हमारी जिम्मेदारी हैं. हर केस के अलग-अलग पहलू होते हैं, अलग-अलग धाराएं लगती हैं, अलग-अलग केस बन जाता है. जब एक केस में चार पांच धाराएं लग जाती हैं, वाद विवाद बढ़ जाता है, आरोप-प्रत्यारोप बढ़ जाते हैं और मांग बढ़ जाती है या फिर सामने वाला डिवोर्स नहीं देना चाहता है. तरह-तरह के पहलू सामने आते हैं इसलिए कोर्ट में मामला देर तक चलता है. यही कारण है कि सालों साल केस चलता रहता है.

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सिद्धांत बताते हैं कि हमारे पास रोज ऐसे केस आते हैं, जिसमें लोग कहते हैं कि उन्हें कोर्ट के मामले में नहीं पड़ना चाहिए हैं. पहले तो हम उन्हें समझाते हैं और कोशिश करते हैं कि बात समझा-बुझाकर समझौता कराकर ही निपटा दें. हम खुद ही उनसे कहते हैं कि आपस में ही पहले बात अगर बन सकती है तो बना ले. लेकिन जब पहले पूरा इरादा बना लेते हैं कि अब साथ नहीं रह सकते हैं तो फिर केस फाइल करते हैं. लड़का लड़की दोनों की तरफ से अलग-अलग दलीलें पेश होती हैं. जब अलग-अलग दलील पेश होती हैं, तो अलग-अलग बातें निकल कर सामने होती हैं. जिस पर सामने वाला राजी नहीं होता है, वह अपनी बात को रखता है. इसी तरह से केस उलझता चला जाता है. कोविड काल में कोर्ट चला ही नही. अभी हाल ही में खुला है. 4 महीने में या 3 महीने में एक बार मामले की तारीख तय होती है. अब अगर 4 महीने में एक बार केस कोर्ट में लग रहा है ऐसे में दलीले ज्यादा है, कोर्ट के पास भी केस ज्यादा है तो ज्यादा समय नहीं दे पाते हैं. फिर अगली तारीख कोर्ट से मिल जाती है. यही कारण है कि तारीख पे तारीख मामले का रिजल्ट आगे बढ़ता जाता है और मामला शांत नहीं हो पाता है.




सीधे तौर पर सिद्धांत ने बताया कि हम लोगों को समझाने की कोशिश करते हैं कि अगर आप डिवोर्स चाहते हैं अलग होने का पूरा मन बना चुके हैं तो आपस में बात करें ज्यादा दलीलें अगर अदालत तक पहुंचेंगी तो केस लंबे समय तक चलेगा और जज को भी सुनवाई देने में असहजता होगी. जब न कोई विवाद होगा, न कोई मांग होगी, न कोई शिकायत होगी, दोनों सहमत होगें और उन्हें सिर्फ डिवोर्स चाहिए हैं तो वह जल्द हो जाती है. लेकिन जब मामले की दलीले बढ़ जाती हैं तो केस लंबा सालों साल तक चलता रहता है.

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