लखनऊः मायावती सरकार में लखनऊ और नोएडा में हुए 1400 करोड़ रुपये से अधिक के स्मारक घोटाले में पूर्व में लखनऊ में तैनात रहे दो बड़े अधिकारियों के खिलाफ केस चलाने की अनुमति शासन से अब तक नहीं मिली है. जबकि, इस मामले में कई लोगों के खिलाफ विजिलेंस जांच की अनुमति मिल गई है.
60 से अधिक आरोपियों पर केस चलाने की अनुमति
सूत्रों के मुताबिक स्मारक घोटाले में रिटायर्ड आईएएस रामबोध और हरभजन सिंह के खिलाफ विजिलेंस ने कार्रवाई के लिए शासन से अनुमति मांगी है. लेकिन, शासन ने अब तक अनुमति नहीं दी है. राम बोध उस समय निर्माण निगम के एमडी थे, जबकि हरभजन सिंह लखनऊ विकास प्राधिकरण के वीसी थे. विजिलेंस को 60 से अधिक आरोपियों के खिलाफ केस चलाने की अनुमति मिल चुकी है. इसमें कई तत्कालीन इंजीनियर, उपनिदेशक, कंसोटिर्यम, प्रमुख ठेकेदार और बिचौलिये शामिल हैं. अब इन लोगों की गिरफ्तारी होगी और इन्हें न्यायालय में पेश किया जाएगा.
लोकायुक्त जांच में हुआ था घोटाले का खुलासा
लखनऊ और नोएडा में स्मारकों के निर्माण में 1400 करोड़ रुपये का घोटाला हुआ था. इसकी शुरुआती जांच तत्कालीन लोकायुक्त जस्टिस एनके मेहरोत्रा ने की थी. उन्होंने अपनी रिपोर्ट 20 मई 2013 को तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को सौंपी थी, जिसमें उन्होंने पूर्व मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी और बाबू सिंह कुशवाहा समेत 199 लोगों को जिम्मेदार ठहराया था. अखिलेश सरकार ने विजिलेंस को जांच सौंप थी. विजिलेंस की जांच इतनी धीमी गति से चलती रही कि चार वर्षों में इसमें कोई प्रगति नहीं हुई. इसी बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट के दखल के बाद विजिलेंस ने जांच पूरी की और अभियोजन की स्वीकृति के लिए प्रकरण शासन को भेजा.
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