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सकारात्मक सोच के साथ लोगों में बढ़ रही है देहदान के प्रति जागरूकता

कैडेवर डोनेशन के प्रति जागरूकता की वजह से मेडिकल स्टूडेंट्स को प्रैक्टिकल ट्रेनिंग के लिए पर्याप्त मात्रा में कैडेवर मिलती हैं. कैडेवर डोनेशन के प्रति जागरूकता के लिए KGMU और गायत्री परिवार साथ-साथ मिलकर काम कर रहा है.

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Published : Jul 1, 2019, 12:48 PM IST

KGMU लखनऊ.

लखनऊ: भ्रांतियां समाज में कहीं न कहीं लोगों की सोच पर जहां प्रभाव डालती हैं, वहीं इससे समाज का भी विकास बाधित होता है. यह भ्रांतियां समाज के किसी भी हिस्से में और किसी भी चीज के लिए फैल सकती हैं. पिछले कुछ दशकों में देहदान के प्रति लोगों में कई तरह की भ्रांतियां फैली हुई थीं, जिसके बाद जागरूकता कार्यक्रम और मेडिकल फ्रेटरनिटी के प्रयास से लोगों में कैडेवर डोनेशन के प्रति सकारात्मक सोच आई है और भ्रांतियां टूट रही हैं.

जानकारी देतीं एनाटॉमी विभाग KGMU की विभागाध्यक्ष.

लावारिस शवों पर छात्रों को दी जाती थी प्रैक्टिकल ट्रेनिंग
देहदान के प्रति जागरूकता के बारे में KGMU के एनाटॉमी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. एम शकील कहते हैं कि देहदान के प्रति न लोगों को पहले जानकारी थी और न ही इतनी जरूरत होती थी. 90 के दशक में लावारिस शवों को लोग खुद-ब-खुद मेडिकल कॉलेज के मर्चरी में छोड़ जाया करते थे, जिस पर छात्रों को हैंड्स ऑन ट्रेनिंग या प्रैक्टिकल ट्रेनिंग दे दी जाती थी. कुछ वर्षों बाद बिना पोस्टमार्टम के किसी भी बॉडी को देने पर मनाही हो गई थी. एक समय ऐसा भी आया कि KGMU में प्रैक्टिकल ट्रेनिंग के लिए एक भी कैडेवर मौजूद नहीं था.

2006 में जागरूकता कार्यक्रम को बढ़ाने से मिली सफलता
एनाटॉमी विभाग की वर्तमान की विभागाध्यक्ष डॉ. पुनीता मानिक कहती हैं कि 2006 से कैडेवर डोनेशन के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाने का काम शुरू किया गया और एनाटॉमी विभाग की यह मेहनत सफल भी हुई. डॉ. मानिक कहती हैं कि 2006 से अब तक के आंकड़ों को यदि देखा जाए तो अब तक 299 देहदान KGMU में किए जा चुके हैं. इसके साथ ही फरवरी 2019 तक में किए गए देहदान जागरूकता कार्यक्रम के तहत 2,778 देहदान के लिए रजिस्ट्रेशन भी हुए हैं.

कैडेवर डोनेशन के लिए गात्रयी परिवार के साथ काम कर रहा KGMU
डॉ. पुनीता मानिक कहती हैं कि देहदान को लेकर समाज में कई तरह की भ्रांतियां फैली हुई हैं. कुछ लोगों का मानना है कि अंतिम संस्कार किए बिना उनकी आत्मा को मोक्ष नहीं मिलेगा तो किसी-किसी को लगता है कि पिंडदान करने के लिए हमें अस्थियों की जरूरत है और उसके लिए अंतिम संस्कार करना पड़ेगा. इसके अलावा कई अन्य भ्रांतियां भी समाज में फैली हुई हैं, जिनको दूर करने के लिए हम लगातार जागरूकता कार्यक्रम करते रहते हैं. यह जागरूकता कार्यक्रम KGMU गायत्री परिवार के साथ मिलकर करता है.

रजिस्ट्रेशन फॉर्म पर ली जाती है परिवार की सहमति
डॉ. पुनीता कहती हैं कि जागरूकता कार्यक्रम के साथ-साथ देहदान के लिए रजिस्ट्रेशन करवाने के तहत हम लोगों से उनके परिवार का कंसेंट भी मांगते हैं, क्योंकि यह हमारी जरूरत है. कई बार ऐसी स्थितियां भी आई हैं, जहां पर देहदान के लिए रजिस्ट्रेशन करवा चुके लोगों की देह को जब हम लेने जाते हैं तो वहां परिवार वाले इस बात की गवाही नहीं देते हैं. ऐसे में हम अब रजिस्ट्रेशन फॉर्म पर कंसेंट भी लेते हैं, ताकि परिवार वालों को कैडेवर को देने में कोई तकलीफ न हो या उन्हें किसी भी तरह का संशय न रहे.

जागरूकता से लोगों में आई सकारात्मकता
डॉ. पुनीता बताती हैं कि कैडवर डोनेशन के प्रति जागरूकता की वजह से ही अब न केवल मेडिकल स्टूडेंट्स को प्रैक्टिकल ट्रेनिंग के लिए पर्याप्त मात्रा में कैडेवर मिलती है. साथ ही नेशनल और इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंसेस में हैंड्स ऑन ट्रेनिंग के लिए भी KGMU अग्रणी रहता है. डॉ. पुनीता और डॉ. शकील इस बात पर जरूर जोर देते हैं कि जागरूकता की वजह से ही कैडेवर डोनेशन के प्रति लोगों में सकारात्मकता भी आई है और अब लोग आगे बढ़कर इसके लिए रजिस्ट्रेशन करवा रहे हैं. साथ ही अन्य लोगों को भी इसके प्रति जागरूक कर रहे हैं. यह मेडिकल फ्रेटरनिटी के लिए एक अच्छी पहल है.

लखनऊ: भ्रांतियां समाज में कहीं न कहीं लोगों की सोच पर जहां प्रभाव डालती हैं, वहीं इससे समाज का भी विकास बाधित होता है. यह भ्रांतियां समाज के किसी भी हिस्से में और किसी भी चीज के लिए फैल सकती हैं. पिछले कुछ दशकों में देहदान के प्रति लोगों में कई तरह की भ्रांतियां फैली हुई थीं, जिसके बाद जागरूकता कार्यक्रम और मेडिकल फ्रेटरनिटी के प्रयास से लोगों में कैडेवर डोनेशन के प्रति सकारात्मक सोच आई है और भ्रांतियां टूट रही हैं.

जानकारी देतीं एनाटॉमी विभाग KGMU की विभागाध्यक्ष.

लावारिस शवों पर छात्रों को दी जाती थी प्रैक्टिकल ट्रेनिंग
देहदान के प्रति जागरूकता के बारे में KGMU के एनाटॉमी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. एम शकील कहते हैं कि देहदान के प्रति न लोगों को पहले जानकारी थी और न ही इतनी जरूरत होती थी. 90 के दशक में लावारिस शवों को लोग खुद-ब-खुद मेडिकल कॉलेज के मर्चरी में छोड़ जाया करते थे, जिस पर छात्रों को हैंड्स ऑन ट्रेनिंग या प्रैक्टिकल ट्रेनिंग दे दी जाती थी. कुछ वर्षों बाद बिना पोस्टमार्टम के किसी भी बॉडी को देने पर मनाही हो गई थी. एक समय ऐसा भी आया कि KGMU में प्रैक्टिकल ट्रेनिंग के लिए एक भी कैडेवर मौजूद नहीं था.

2006 में जागरूकता कार्यक्रम को बढ़ाने से मिली सफलता
एनाटॉमी विभाग की वर्तमान की विभागाध्यक्ष डॉ. पुनीता मानिक कहती हैं कि 2006 से कैडेवर डोनेशन के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाने का काम शुरू किया गया और एनाटॉमी विभाग की यह मेहनत सफल भी हुई. डॉ. मानिक कहती हैं कि 2006 से अब तक के आंकड़ों को यदि देखा जाए तो अब तक 299 देहदान KGMU में किए जा चुके हैं. इसके साथ ही फरवरी 2019 तक में किए गए देहदान जागरूकता कार्यक्रम के तहत 2,778 देहदान के लिए रजिस्ट्रेशन भी हुए हैं.

कैडेवर डोनेशन के लिए गात्रयी परिवार के साथ काम कर रहा KGMU
डॉ. पुनीता मानिक कहती हैं कि देहदान को लेकर समाज में कई तरह की भ्रांतियां फैली हुई हैं. कुछ लोगों का मानना है कि अंतिम संस्कार किए बिना उनकी आत्मा को मोक्ष नहीं मिलेगा तो किसी-किसी को लगता है कि पिंडदान करने के लिए हमें अस्थियों की जरूरत है और उसके लिए अंतिम संस्कार करना पड़ेगा. इसके अलावा कई अन्य भ्रांतियां भी समाज में फैली हुई हैं, जिनको दूर करने के लिए हम लगातार जागरूकता कार्यक्रम करते रहते हैं. यह जागरूकता कार्यक्रम KGMU गायत्री परिवार के साथ मिलकर करता है.

रजिस्ट्रेशन फॉर्म पर ली जाती है परिवार की सहमति
डॉ. पुनीता कहती हैं कि जागरूकता कार्यक्रम के साथ-साथ देहदान के लिए रजिस्ट्रेशन करवाने के तहत हम लोगों से उनके परिवार का कंसेंट भी मांगते हैं, क्योंकि यह हमारी जरूरत है. कई बार ऐसी स्थितियां भी आई हैं, जहां पर देहदान के लिए रजिस्ट्रेशन करवा चुके लोगों की देह को जब हम लेने जाते हैं तो वहां परिवार वाले इस बात की गवाही नहीं देते हैं. ऐसे में हम अब रजिस्ट्रेशन फॉर्म पर कंसेंट भी लेते हैं, ताकि परिवार वालों को कैडेवर को देने में कोई तकलीफ न हो या उन्हें किसी भी तरह का संशय न रहे.

जागरूकता से लोगों में आई सकारात्मकता
डॉ. पुनीता बताती हैं कि कैडवर डोनेशन के प्रति जागरूकता की वजह से ही अब न केवल मेडिकल स्टूडेंट्स को प्रैक्टिकल ट्रेनिंग के लिए पर्याप्त मात्रा में कैडेवर मिलती है. साथ ही नेशनल और इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंसेस में हैंड्स ऑन ट्रेनिंग के लिए भी KGMU अग्रणी रहता है. डॉ. पुनीता और डॉ. शकील इस बात पर जरूर जोर देते हैं कि जागरूकता की वजह से ही कैडेवर डोनेशन के प्रति लोगों में सकारात्मकता भी आई है और अब लोग आगे बढ़कर इसके लिए रजिस्ट्रेशन करवा रहे हैं. साथ ही अन्य लोगों को भी इसके प्रति जागरूक कर रहे हैं. यह मेडिकल फ्रेटरनिटी के लिए एक अच्छी पहल है.

Intro:नोट- सभी वीडियो और बाइट रॉ फॉर्म में भेजी जा रही हैं क्योंकि पैकेज गाइडलाइन के समयानुसार नहीं बन पा रहा है। कृपया डेस्क गाइडलाइन के अनुसार बना ले।



लखनऊ। भ्रांतियां समाज में कहीं न कहीं लोगों के सोच पर जहां प्रभाव डालती हैं वहीं इससे समाज का भी विकास बाधित होता है। यह भ्रांतियां समाज के किसी भी हिस्से में और किसी भी चीज के लिए फैल सकती हैं। पिछले दशकों में देहदान के प्रति लोगों में कई तरह की भ्रांतियां फैली हुई थी। जिसके बाद जागरूकता कार्यक्रम और मेडिकल फ्रेटरनिटी के प्रयास से लोगों में कैडेवर डोनेशन के प्रति सकारात्मक सोच आई है और भ्रांतियां टूट रही हैं।


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देह दान के प्रति जागरूकता के बारे में किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के एनाटॉमी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ एम शकील कहते हैं कि देहदान के प्रति न लोगों को पहले जानकारी थी और न ही इतनी जरूरत होती थी। 90 के दशक में लावारिस लाशों को लोग खुद-ब-खुद मेडिकल कॉलेज के मर्चरी में छोड़ जाया करते थे, जिस पर बच्चों को हैंड्स ऑन ट्रेनिंग या प्रैक्टिकल ट्रेनिंग दे दी जाती थी। कुछ वर्षों बाद बिना पोस्टमार्टम के किसी भी बॉडी को देने पर मनाही हो गई थी। एक समय ऐसा भी आया कि केजीएमयू में प्रैक्टिकल ट्रेनिंग के लिए एक भी कैडेवर मौजूद नहीं था हालांकि बाद में स्थिति सुधरी ।

इसके बाबत एनाटॉमी विभाग की वर्तमान की विभागाध्यक्ष डॉ पुनीता मानिक कहती हैं की 2006 से कैडेवर डोनेशन के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाने का काम शुरू किया गया और एनाटॉमी विभाग की यह मेहनत सफल भी हुई दमानी कहती है कि 2006 से अब तक के आंकड़ों को यदि देखा जाए तो अब तक 299 दे दान केजीएमयू में किए जा चुके हैं इसके साथ ही फरवरी 2019 तक में किए गए दे दान जागरूकता कार्यक्रम के तहत 2778 देहदान के लिए रजिस्ट्रेशन भी हुए हैं।

कहती है कि देहदान को लेकर समाज में कई तरह की भ्रांतियां फैली हुई है कुछ लोगों का मानना है कि अंतिम संस्कार किए बिना उनकी आत्मा को मोक्ष नहीं मिलेगा तो किसी किसी को लगता है कि पिंड दान करने के लिए हमें अस्थियों की जरूरत है और उसके लिए अंतिम संस्कार करना पड़ेगा। इसके अलावा कई अन्य भ्रांतियां भी समाज में फैली हुई हैं जिन को दूर करने के लिए हम लगातार जागरूकता कार्यक्रम करते रहते हैं। यह जागरूकता कार्यक्रम किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी गायत्री परिवार के साथ मिलकर करता है।

डॉक्टर पुनीता कहती हैं कि जागरूकता कार्यक्रम के साथ-साथ देहदान के लिए रजिस्ट्रेशन करवाने के तहत हम लोगों से उनके परिवार का कंसेंट भी मांगते हैं क्योंकि यह हमारी जरूरत है। वह बताती है कि कई बार ऐसी स्थितियां भी आई है जहां पर देह दान के लिए रजिस्ट्रेशन करवा चुके लोगों की जब हम देह को लेने जाते हैं तो वहां परिवार वाले इस बात की गवाही नहीं देते। ऐसे में हम अब रजिस्ट्रेशन फॉर्म पर कंसेंट भी लेते हैं ताकि परिवार वालों को कैडेवर को देने में कोई तकलीफ न हो या उन्हें किसी भी तरह का संशय न रहे।

डॉक्टर पुनीता बताती है कैडवर डोनेशन के प्रति जागरूकता की वजह से ही अब न केवल मेडिकल स्टूडेंट्स को प्रैक्टिकल ट्रेनिंग के लिए पर्याप्त मात्रा में कैडेवर मिलती है। साथ ही नेशनल और इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंसेस में हैंड्स ऑन ट्रेनिंग के लिए भी केजीएमयू अग्रणी रहता है।


Conclusion:डॉ पुनीता और डॉक्टर शकील इस बात पर जरूर जोर देते हैं कि जागरूकता की वजह से ही कैडेवर डोनेशन के प्रति लोगों में सकारात्मकता भी आई है और अब लोग आगे बढ़कर इसके लिए रजिस्ट्रेशन कर रहे है। साथ ही अन्य लोगों को भी इसके प्रति जागरूक कर रहे हैं। यह मेडिकल फ्रेटरनिटी के लिए एक अच्छी पहल है।

बाइट- डॉ एम शकील पूर्व विभागाध्यक्ष एनाटॉमी विभाग केजीएमयू
बाइट- डॉ पुनिता मानिक, विभागाध्यक्ष एनाटॉमी विभाग केजीएमयू
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