लखनऊ : बहुजन समाज पार्टी (Bahujan samaj party) की अध्यक्ष मायावती ने निकाय चुनाव (Mayawati and civic elections) को लेकर अपनी सक्रियता बढ़ा दी है. वह जोन और मंडलवार पार्टी कार्यकर्ताओं (Mandal and zone workers of BSP) के साथ बैठकर कर रही हैं. साथ ही निचले स्तर पर टूटा पार्टी का काॅडर फिर से ठीक करने की कवायद में लगी हुई हैं. गौरतलब है कि मायावती 4 बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रही हैं. उन्होंने वर्ष 2007 में अपने दम पर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी. हालांकि 15 वर्ष में ही पार्टी रसातल में पहुंच गई है. बसपा निरंतर हो रहे नुकसान के कारणों की समीक्षा के साथ अपने आधार वोट (BSP's base voter and cadre) को वापस पाना चाहती है.
लगभग ढाई दशक तक उत्तर प्रदेश की राजनीति (Representation of BSP in UP) के केंद्र में रही बहुजन समाज पार्टी (existence of BSP) आज हाशिए पर है. वर्ष 2022 के विधानसभा चुनावों में पार्टी सिर्फ एक सीट जीतने में कामयाब हो सकी. विधान परिषद में पार्टी का प्रतिनिधित्व भी नहीं रह गया है. वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में बसपा ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा था. उस वक्त माना जा रहा था कि यह गठबंधन कोई बड़ा चमत्कार कर सकता है, हालांकि नतीजे कुछ खास नहीं रहे. इस गठबंधन वाले चुनाव में बसपा को तो ज्यादा फायदा हुआ, लेकिन सपा को विशेष लाभ नहीं मिल सका. बसपा के 10 सांसद सुनकर लोकसभा पहुंचे, वहीं समाजवादी पार्टी सिर्फ पांच सीटें ही जीत सकी. बावजूद इसके मायावती ने सपा पर अपना वोट बसपा में ट्रांसफर न करा पाने का आरोप लगाते हुए गठबंधन तोड़ दिया. कांग्रेस पार्टी पहले से रसातल में है. वह सिर्फ सोनिया गांधी की रायबरेली संसदीय सीट ही जीत पाई थी. राहुल गांधी को भी अमेठी से हार का सामना करना पड़ा था. ऐसे में उत्तर प्रदेश में बेहद मजबूत स्थित में दिखाई दे रही भाजपा से मुकाबले के लिए राजनीतिक दलों (Challenge for BSP) के सामने चुनौतियां कम नहीं हैं.
वर्ष 2007 का विधानसभा चुनाव मायावती ने दलित-ब्राह्मण समीकरण (Mayawati and Dalit Brahmin equation) पर जीता था. माना जा रहा था कि बसपा के आधार वोट यानी दलित समुदाय के साथ ब्राह्मण व अन्य अगड़ी जातियां एकजुट होकर आईं. यही कारण है कि मायावती प्रदेश में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में कामयाब हुईं. वर्ष 2012 के विधानसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी को बहुमत मिला और अखिलेश यादव प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. प्रदेश की स्थितियां वर्ष 2014 से बदलनी शुरू हुईं, जब नरेंद्र मोदी की लहर में केंद्र में भाजपा की सरकार बनी और मोदी सरकार कई ऐसी योजनाएं लेकर आई जिससे बहुजन समाज पार्टी का आधा वोट खिसकने लगा. यह क्रम वर्ष 2019 में भी दिखाई दिया. दलितों और पिछड़ों सहित समाज के अधिकांश वर्गों ने भाजपा पर विश्वास जताया और नरेंद्र मोदी दोबारा सत्ता में आए. ऐसे में दलित और पिछड़े समाज की अगुवाई करने वाले दलों के सामने बड़ी चुनौतियां खड़ी हो गईं कि आखिर वह कैसे अपना अस्तित्व बचाएं.
राजनीतिक विश्लेषक डॉक्टर विवेक गौतम (Political analyst Dr. Vivek Gautam) कहते हैं कि ढाई दशक से भी ज्यादा समय तक दलित समाज के मतदाताओं ने बसपा का साथ दिया. हिंदुत्व की लहर में जब जातीय बांध टूटे और केंद्र में भाजपा की सरकार बनी, तो केंद्र की कुछ नीतियां भी वंचित वर्ग को लाभ देने वाली दिखाई देने लगीं. चाहे वह आवासों का मामला हो अथवा खाद्यान्न और अन्य सरकारी योजनाओं का. किसान सम्मान निधि, किसान बीमा योजना और चिकित्सा से जुड़ी ऐसी योजनाएं हैं, जो आम वंचित वर्ग को खासी मदद पहुंचाती हैं. यही कारण है कि बड़ा समुदाय जो पहले भाजपा को वोट नहीं करता था, अब उसके साथ जुड़ा है. डॉक्टर विवेक गौतम कहते हैं कि बहुजन समाज पार्टी को दोबारा जनता का विश्वास जीतने के लिए ठोस नीतियां लेकर आना होगा. अब पहले वाली बात नहीं रही और लोग समझदार हो रहे हैं. इसलिए बसपा सुप्रीमो मायावती को अभी से ठोस नीतियां बनाकर लोगों में या विश्वास पैदा करना होगा कि यदि बात समझानी होगी की दोबारा सत्ता में आईं तो वर्तमान सरकार से बेहतर काम करके दिखाएंगी. यही कारण है कि बसपा निकाय चुनाव से ही अपनी तैयारियों में जुटी है, ताकि लोकसभा चुनाव तक उसकी जमीन तैयार हो जाए और वह पहले से बेहतर स्थिति में खड़ी हो सके.
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