लखनऊ: बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने आज दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और झारखण्ड में पार्टी को मजबूत करने, जनाधार बढ़ाने को लेकर समीक्षा बैठक की. उन्होंने कहा कि गरीबों, मेहनतकशों व अन्य उपेक्षित समाज के आपेक्षित सामाजिक विकास व आर्थिक तरक्की के सम्बंध में सरकार की सही नीयत व नीति के अभाव के कारण ही इनकी हालात में कोई सुधर नहीं हुआ है, जो सरकारों के विकास के दावे को खोखला साबित करता है.
देश या राज्यों में चाहे किसी भी पार्टी की सरकार हो, खासकर करोड़ों एससी, एसटी, ओबीसी, अल्पसंख्यक समाज के लोगों को न्याय व बराबरी के उनके संवैधानिक हक से वंचित रखना तथा शिक्षा व सरकारी नौकरी में आरक्षण के जरिये उनका जीवन थोड़ा संतृप्त करने के मामले में उनकी उपेक्षा से लोगों में बेचैनी है, जो उनकी चिन्ताओं को और गंभीर बना रही है.
बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने कहा कि विभिन्न सरकारों द्वारा सरकारी नौकरी में आरक्षण को जिस प्रकार से निष्क्रीय व निष्प्रभावी बना दिया गया है. वह एससी, एसटी व ओबीसी वर्ग के परिवारों को उद्वेलित कर रहा है. बैकलॉग के नहीं भरे जाने से भी इनका सरकार के प्रति अविश्वास बढ़ा है. ऐसे में उनके बीच बीएसपी को अपना मिशनरी प्रयास और तेज व तीव्र करना होगा.
पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने कहा कि इसी प्रकार, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के मामले में केन्द्र व दिल्ली की सरकार के बीच आपसी अविश्वास, असहयोग एवं टकराव के काफी तूल पकड़ने से वहां रहने वाले लोगों में भी खासकर गरीबों, छोटे व्यापारियों व अन्य मेहनतकश समाज के लोगों का हित व कल्याण लगातार बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है, जबकि दिल्ली को केन्द्र व दिल्ली की सरकार के बीच आपसी सहयोग, तालमेल व विकास का उत्तम नमूना होना चाहिए था.
दो भिन्न पार्टियों की सरकार के बीच बात-बात पर खासकर कथित भ्रष्टाचार व सरकारी शक्ति को लेकर विवाद एवं टकराव का हमेशा बने रहना तथा जिसको लेकर माननीय सुप्रीम कोर्ट का बार-बार हस्तक्षेप 'सहकारी संघवाद का अच्छा उदाहरण कैसे हो सकता है? केन्द्र व दिल्ली सरकार के बीच इस प्रकार के टकराव का अन्तहीन बना रहना अति - दुःखद है. अतः पहले कांग्रेस, बीजेपी और अब आप की सरकार से भी दिल्ली की जनता को निराशा हो रही है.
जहां तक जम्मू-कश्मीर का मामला है, वहां आपेक्षित विकास, शान्ति, स्थिरता, विधानसभा आमचुनाव आदि के बारे में चर्चा होने की बजाय भ्रष्टाचार, सरकारी पद के दुरुपयोग आदि के चर्चे ही मीडिया में छाए रहते हैं. इसके अलावा, वैसे तो वहां सभी राजनीतिक गतिविधियां ज्यादातर ठप पड़ी हुई हैं, किन्तु जम्मू-कश्मीर में पार्टी के लोगों को अपनी राजनीतिक सरगर्मी पर समुचित ध्यान देने की जरूरत है. अपनी पार्टी की तैयारी पूरी रखनी चाहिए. क्योंकि और अधिक समय तक चुनाव को टालते रहने के बजाय वहां विधानसभा का आम चुनाव आने वाले वक्त में कभी भी संभव है.
इसी प्रकार हिमाचल प्रदेश में विधानसभा आम चुनाव के बाद वहां सरकार का बदलना इस बात को साबित करता है कि आम जनता अपनी समस्याओं के प्रति जागरुक है. जहां बीएसपी को अपनी तमाम कमियों को दूर करके आगे बढ़ने का प्रयास लगातार जारी रखना चाहिए. पहले संयुक्त तौर पर और फिर सभी राज्यों की अलग-अलग से हुई बैठक में झारखण्ड में भी एसटी, एससी व ओबीसी समाज की तरक्की व विकास के किस्से आम होने के बजाय वहां भी सरकार के कार्यकलापों के बारे में निगेटिव फीडबैक का बने रहना बड़े दुःख की बात है. झारखण्ड में भी पार्टी की कमियों को दूर करके आगे बढ़ने के लिए सख्त हिदायत देते हुए मायावती ने कहा कि पार्टी में यंग ब्लड को जोड़कर आगे की रणनीति बनाने की जरूरत है.
पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने कहा कि देश में बढ़ती हुई महंगाई, गरीबी, बेरोजगारी, शिक्षा व स्वास्थ्य आदि की बदहाल व्यवस्था आदि से लोग त्रस्त हैं. किन्तु सरकारों द्वारा जनहित के इन खास मुद्दों पर समुचित प्रभावी ध्यान नहीं देने को लेकर लोग अब अपनी रोष को चुनाव में भी थोड़ा व्यक्त करने लगे हैं, जो लोकतंत्र व देशहित की बेहतरी के लिए शुभ संकेत जरूर है. विभिन्न पार्टियों द्वारा जुमलेबाजी, चुनावी वादों का प्रलोभन, वादाखिलाफी, विषैले भाषणों आदि के अलावा इनके द्वारा धर्म का राजनीतिक स्वार्थ के लिए अत्याधिक व अनुचित इस्तेमाल के प्रति लोगों की जागरुकता से संभव है कि आने वाले समय में देश की राजनीति करवट बदले और जनता की मूल समस्याओं से जुड़े अहम मुद्दों को सुलझाने पर पार्टियां व इनकी सरकारें अपना ध्यान केन्द्रित करें, जिससे फिर बीएसपी को थोड़ी बराबरी वाले धरातल पर चुनाव लड़ने का मौका मिलेगा.
दो हजार के नोट बंद होने पर किया ट्वीटः बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष ने ₹2000 के नोट बंद किए जाने के फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त की है. उन्होंने ट्वीट करके कहा कि करेन्सी व उसकी विश्व बाजार में कीमत का सम्बंध देश का हित व प्रतिष्ठा से जुड़ा होने के कारण इसमें जल्दी-जल्दी बदलाव करना जनहित को सीधे तौर पर प्रभावित करता है. इसीलिए ऐसा करने से पहले इसके प्रभाव व परिणाम पर समुचित अध्ययन जरूरी. सरकार इस पर जरूर ध्यान दे.