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मायावती AIMIM से कर सकती हैं गठबंधन, दलित-मुस्लिम कार्ड की तैयारी

2022 के विधानसभा चुनाव से पहले बसपा सुप्रीमो मायावती हर स्तर पर अपनी न सिर्फ चुनावी तैयारियां कर रही हैं, बल्कि संगठन को भी धरातल पर मजबूत करने पर पूरी नजर बनाए हुई हैं. पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से विचार-विमर्श और संगठन को बूथ स्तर तक कैसे मजबूत किया जाय इसको लेकर वह लगातार रणनीति बनाने में जुटी हुई हैं.

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Published : Feb 14, 2021, 3:55 AM IST

बसपा सुप्रीमो मायावती
बसपा सुप्रीमो मायावती

लखनऊ : विधानसभा चुनाव 2022 को लेकर बहुजन समाज पार्टी हर स्तर पर मंथन कर रही है. बसपा सूत्रों के अनुसार पूर्व मुख्यमंत्री मायावती उत्तर प्रदेश की 140 से अधिक मुस्लिम बहुल सीटों पर एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी व सुहलदेव समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर के नेतृत्व में बने संकल्प भागीदारी मोर्चा के साथ चुनाव लड़ने पर विचार कर रही हैं. इसको लेकर उन्होंने पार्टी के वरिष्ठ नेता सतीश चंद्र मिश्रा, प्रदेश अध्यक्ष भीम राजभर सहित मंडल कोऑर्डिनेटर के स्तर पर बातचीत कर फीडबैक लिया है.

दलित-मुस्लिम-अति पिछड़ा दांव चलने की कोशिश

दरअसल, उत्तर प्रदेश की 140 से अधिक मुस्लिम बहुल सीट है. मुस्लिम वोटों को बसपा के साथ लाने के लिए मायावती प्रयासरत हैं. ओवैसी व राजभर के नेतृत्व में बने गठबंधन के सहारे वो चुनाव में जीत दर्ज करना चाहती हैं. बसपा सुप्रीमो की यह रणनीति है कि प्रदेश की 140 सीटों पर जहां पर मुस्लिमों की संख्या अधिक है वहां पर वह दलित पिछड़ा व मुस्लिम समीकरण के आधार पर चुनाव लड़ें और जीत दर्ज करें.

अन्य सीटों पर समीकरण तलाशने की कोशिश

इसका लाभ उन्हें प्रदेश की अन्य सीटों पर भी होगा. दलित-अति पिछड़ा व ब्राह्मण कार्ड के सहारे मायावती प्रदेश के अन्य विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव लड़ने पर विचार कर रही हैं. यही कारण है कि मायावती लगातार पार्टी नेताओं से गठबंधन में किससे कैसे फायदा होगा उस पर अधिक से अधिक जोर दे रही हैं.

वोटबैंक को सहेजकर चुनाव में सफलता मिल सकती है

राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर रविकांत कहते हैं कि दरअसल, मायावती की कोशिश है कि मुस्लिम वोटों का बिखराव ना हो और उन वोटों को सहेजकर भारतीय जनता पार्टी को हराया जा सके. इस चिंता के साथ मायावती ओवैसी के नेतृत्व वाले गठबंधन के साथ जुड़ सकती हैं. मायावती की कोशिश है कि जो मुस्लिम वोट थोड़ा-थोड़ा करके कांग्रेस और समाजवादी पार्टी की तरफ जाता है, उसे सहेजकर इस गठबंधन के साथ लाया जा सके, और इसी के सहारे सत्ता हासिल किया जा सके.

मुस्लिम वोटों को सहेजकर चुनाव में जीत की रणनीति

इसी रणनीति के तहत वह ओमप्रकाश राजभर व ओवैसी के नेतृत्व में बने संकल्प भागीदारी मोर्चा के साथ गठबंधन करके चुनाव मैदान में आना चाहती हैं. इससे स्वाभाविक रूप से जब मुस्लिम वोट बैंक के साथ-साथ बसपा का जो आधार वोट बैंक दलित है और ओमप्रकाश राजभर का जो वोट बैंक अति पिछड़ा वह जब एक होगा तो स्वाभाविक रूप से इससे सफलता मिल सकती है. यही कारण है कि इस समीकरण पर मायावती न सिर्फ पार्टी नेताओं के साथ विचार विमर्श कर रही हैं बल्कि इस पर रणनीति बनाकर जल्द ही इसे अमल भी करने में जुटी हुई हैं.

लखनऊ : विधानसभा चुनाव 2022 को लेकर बहुजन समाज पार्टी हर स्तर पर मंथन कर रही है. बसपा सूत्रों के अनुसार पूर्व मुख्यमंत्री मायावती उत्तर प्रदेश की 140 से अधिक मुस्लिम बहुल सीटों पर एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी व सुहलदेव समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर के नेतृत्व में बने संकल्प भागीदारी मोर्चा के साथ चुनाव लड़ने पर विचार कर रही हैं. इसको लेकर उन्होंने पार्टी के वरिष्ठ नेता सतीश चंद्र मिश्रा, प्रदेश अध्यक्ष भीम राजभर सहित मंडल कोऑर्डिनेटर के स्तर पर बातचीत कर फीडबैक लिया है.

दलित-मुस्लिम-अति पिछड़ा दांव चलने की कोशिश

दरअसल, उत्तर प्रदेश की 140 से अधिक मुस्लिम बहुल सीट है. मुस्लिम वोटों को बसपा के साथ लाने के लिए मायावती प्रयासरत हैं. ओवैसी व राजभर के नेतृत्व में बने गठबंधन के सहारे वो चुनाव में जीत दर्ज करना चाहती हैं. बसपा सुप्रीमो की यह रणनीति है कि प्रदेश की 140 सीटों पर जहां पर मुस्लिमों की संख्या अधिक है वहां पर वह दलित पिछड़ा व मुस्लिम समीकरण के आधार पर चुनाव लड़ें और जीत दर्ज करें.

अन्य सीटों पर समीकरण तलाशने की कोशिश

इसका लाभ उन्हें प्रदेश की अन्य सीटों पर भी होगा. दलित-अति पिछड़ा व ब्राह्मण कार्ड के सहारे मायावती प्रदेश के अन्य विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव लड़ने पर विचार कर रही हैं. यही कारण है कि मायावती लगातार पार्टी नेताओं से गठबंधन में किससे कैसे फायदा होगा उस पर अधिक से अधिक जोर दे रही हैं.

वोटबैंक को सहेजकर चुनाव में सफलता मिल सकती है

राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर रविकांत कहते हैं कि दरअसल, मायावती की कोशिश है कि मुस्लिम वोटों का बिखराव ना हो और उन वोटों को सहेजकर भारतीय जनता पार्टी को हराया जा सके. इस चिंता के साथ मायावती ओवैसी के नेतृत्व वाले गठबंधन के साथ जुड़ सकती हैं. मायावती की कोशिश है कि जो मुस्लिम वोट थोड़ा-थोड़ा करके कांग्रेस और समाजवादी पार्टी की तरफ जाता है, उसे सहेजकर इस गठबंधन के साथ लाया जा सके, और इसी के सहारे सत्ता हासिल किया जा सके.

मुस्लिम वोटों को सहेजकर चुनाव में जीत की रणनीति

इसी रणनीति के तहत वह ओमप्रकाश राजभर व ओवैसी के नेतृत्व में बने संकल्प भागीदारी मोर्चा के साथ गठबंधन करके चुनाव मैदान में आना चाहती हैं. इससे स्वाभाविक रूप से जब मुस्लिम वोट बैंक के साथ-साथ बसपा का जो आधार वोट बैंक दलित है और ओमप्रकाश राजभर का जो वोट बैंक अति पिछड़ा वह जब एक होगा तो स्वाभाविक रूप से इससे सफलता मिल सकती है. यही कारण है कि इस समीकरण पर मायावती न सिर्फ पार्टी नेताओं के साथ विचार विमर्श कर रही हैं बल्कि इस पर रणनीति बनाकर जल्द ही इसे अमल भी करने में जुटी हुई हैं.

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