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सत्ता की कुर्सी पर काबिज होने के लिए सोशल इंजीनियरिंग पर बसपा का फोकस

यूपी में 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में सारी राजनैतिक पार्टियों ने अभी से कमर कस ली है. पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने भी पार्टी के सभी वरिष्ठ नेताओं को दिशा निर्देश दिए हैं कि मुख्य रूप से ब्राम्हण दलित और अति पिछड़े के साथ अल्पसंख्यकों के साथ अपने कामकाज किये जाएं. बसपा नेता जिलों में संगठन को मजबूत करते हुए सोशल इंजीनियरिंग के तहत चुनावी मैदान में उतरने की तैयारियां करें.

सोशल इंजीनियरिंग पर बसपा का फोकस
सोशल इंजीनियरिंग पर बसपा का फोकस
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Published : Dec 2, 2020, 4:35 PM IST

Updated : Dec 2, 2020, 5:07 PM IST

लखनऊ: 2022 में होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी सत्ता की कुर्सी तक पहुंचने के लिए सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले पर अपनी चुनावी रणनीति को आगे बढ़ा रही है. बसपा इसी सोशल इंजीनियरिंग पर फोकस करते हुए संगठन के अभियान और सभी वर्गों को जोड़कर चुनाव में उतरने की तैयारियां करने पर ध्यान दे रही है. इसको लेकर बसपा की तरफ से पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को दिशा निर्देश भी दिए गए हैं.

सोशल इंजीनियरिंग पर बसपा का फोकस.

उपचुनाव में मिली असफलता से बसपा ने बदली रणनीति

बसपा सुप्रीमो मायावती ने पिछले महीने आए विधानसभा उपचुनाव के परिणाम से सबक लेते हुए एक बार फिर सोशल इंजीनियरिंग पर फोकस करने का मन बनाया है. इसी आधार पर बसपा अब अपनी चुनावी तैयारियां आगे बढ़ाएगी. इसको लेकर बसपा सुप्रीमो मायावती ने पार्टी के सभी प्रमुख पदाधिकारियों व अन्य नेताओं को संगठन निर्माण के लिए निर्देश दिए हैं. मायावती ने कहा है कि सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले के तहत संगठन में सबको समायोजित करते हुए चुनावी मैदान में उतरा जाए.

ब्राह्मण, दलित, अति पिछड़े व अल्पसंख्यक को साथ लेकर चुनाव में उतरने पर फोकस
पूर्व मुख्यमंत्री ने पार्टी के सभी वरिष्ठ नेताओं को दिशा निर्देश दिए हैं कि मुख्य रूप से ब्राम्हण दलित और अति पिछड़े के साथ अल्पसंख्यकों के साथ अपने कामकाज किये जाएं. बसपा नेता जिलों में संगठन को मजबूत करते हुए सोशल इंजीनियरिंग के तहत चुनावी मैदान में उतरने की तैयारियां करें.

भाईचारा कमेटियों के गठन पर ध्यान देने के निर्देश
मायावती ने कहा है कि भाईचारा कमेटियां बनाई जाएं और सभी वर्गों को साथ लेकर चुनावी मैदान में उतरा जाए. इसी को रणनीति मानकर अपनी चुनावी तैयारियों को अमली जामा पहनाया जाए. संगठन के कामकाज धरातल तक हों. बसपा की सभी जिला मंडल इकाइयां भी सक्रिय होकर काम करें.

सरकार में आने पर सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय ही रहेगी नीति
बसपा सुप्रीमो मायावती ने पार्टी नेताओं और अन्य प्रमुख पदाधिकारियों से कहा है कि लोगों को यह समझाया जाए कि बसपा पहले की तरह अपने संगठन को मजबूत कर के 2020 के विधानसभा चुनाव में सफलता हासिल करने के लिए तेजी से काम कर रही है. सबके साथ और सबके सहयोग से बसपा 2022 के विधानसभा चुनाव में सफलता हासिल करेगी और सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय की नीति को आगे बढ़ाएगी.

2007 में सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले ने बनाई थी बसपा सरकार
2007 के विधानसभा चुनाव से पहले बसपा ने बेहतर रणनीति बनाई थी. तब सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले पर चुनाव मैदान में उतरने का फायदा बहुजन समाज पार्टी को मिला था. 2007 के चुनाव में बसपा ब्राम्हण, दलित, अल्पसंख्यक वर्ग को साथ लेकर चुनाव मैदान में उतरी थी और टिकट में बराबर की भागीदारी देते हुए अपने इस एजेंडे को आगे बढ़ाया. इसका असर यह रहा कि 2007 में बहुजन समाज पार्टी उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने में सफल रही और बसपा सुप्रीमो मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी.


राजनीतिक समीकरण और परिस्थितियों को देखकर सोशल इंजीनियरिंग पर मायावती का ध्यान
अब एक बार फिर 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले बसपा सुप्रीमो मायावती ने प्रदेश की राजनीतिक परिस्थितियों और समीकरण को दृष्टिगत रखते हुए सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले पर चुनाव लड़ने का मन बनाया है. उन्होंने इसी रणनीति के तहत पार्टी नेताओं और पदाधिकारियों को चुनाव की तैयारियां करने, संगठन निर्माण करने और धरातल तक लोगों को पार्टी से जोड़ने के दिशा निर्देश दिए हैं. जिससे बसपा मजबूत हो और चुनाव में सफलता मिल सके.

योगी सरकार से ब्राह्मणों की नाराजगी का फायदा उठाने की भी कोशिश
उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार में ब्राह्मण उत्पीड़न की बात कही जाती है और काफी संख्या में ब्राह्मणों की नाराजगी समय-समय पर सामने भी आती रही है. भाजपा के अंदर विधायक और अन्य नेताओं की तरफ से इसको लेकर सवाल भी उठाए जा चुके हैं. ऐसे में बसपा सुप्रीमो मायावती इस वर्ग के हित की बात करते हुए सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले में पहले की तरह ब्राह्मणों को अपने एजेंडे में रखना चाहती हैं.

ब्राह्मणों के साथ होने से मिल सकता है बसपा को फायदा
2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में इस बार अगर बसपा को 2007 के विधानसभा चुनाव की तरह ब्राह्मणों का साथ मिल सके तो इससे उसे लाभ मिलेगा. मायावती को यह पता है कि सत्ता की कुर्सी तक पहुंचने में ब्राह्मण एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं. यही कारण है कि मायावती मे तमाम परिस्थितियों और समीकरणों का आकलन करते हुए चुनावी मैदान में उतरने का मन बनाया है, इसीलिए उन्होंने सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले पर काम करना भी शुरू कर दिया है.

सोशल इंजीनियरिंग से मिल सकती है कामयाबी: प्रोफेसर रविकांत
राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर रविकांत कहते हैं कि बसपा सुप्रीमो मायावती ने चुनाव को लेकर काम करना शुरू कर दिया है.इसी कारण उन्होंने अति पिछड़ी जाति से आने वाले भीम राजभर को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया है. इससे वह यह संकेत दे रही हैं कि जो गैर यादव अति पिछड़ा समाज है उसे वह साथ लेकर आगे बढ़ना चाहती हैं. इसके साथ ही ब्राह्मण मतदाता भी पिछले कुछ समय से योगी सरकार से नाराज हैं. ऐसे में उस वर्ग को भी मायावती अपने साथ रख कर अपनी चुनावी तैयारियां आगे बढ़ा रही हैं. मायावती 2007 के विधानसभा चुनाव की तरह सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले पर ब्राह्मण, दलित, अति पिछड़े और अल्पसंख्यकों को साथ लेकर अपनी चुनावी तैयारियां कर रही हैं. इस तरह उन्हें कामयाबी भी मिल सकती है. यही कारण है कि वह इसी आधार पर अपनी चुनावी तैयारियों को आगे बढ़ा रही हैं.

लखनऊ: 2022 में होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी सत्ता की कुर्सी तक पहुंचने के लिए सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले पर अपनी चुनावी रणनीति को आगे बढ़ा रही है. बसपा इसी सोशल इंजीनियरिंग पर फोकस करते हुए संगठन के अभियान और सभी वर्गों को जोड़कर चुनाव में उतरने की तैयारियां करने पर ध्यान दे रही है. इसको लेकर बसपा की तरफ से पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को दिशा निर्देश भी दिए गए हैं.

सोशल इंजीनियरिंग पर बसपा का फोकस.

उपचुनाव में मिली असफलता से बसपा ने बदली रणनीति

बसपा सुप्रीमो मायावती ने पिछले महीने आए विधानसभा उपचुनाव के परिणाम से सबक लेते हुए एक बार फिर सोशल इंजीनियरिंग पर फोकस करने का मन बनाया है. इसी आधार पर बसपा अब अपनी चुनावी तैयारियां आगे बढ़ाएगी. इसको लेकर बसपा सुप्रीमो मायावती ने पार्टी के सभी प्रमुख पदाधिकारियों व अन्य नेताओं को संगठन निर्माण के लिए निर्देश दिए हैं. मायावती ने कहा है कि सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले के तहत संगठन में सबको समायोजित करते हुए चुनावी मैदान में उतरा जाए.

ब्राह्मण, दलित, अति पिछड़े व अल्पसंख्यक को साथ लेकर चुनाव में उतरने पर फोकस
पूर्व मुख्यमंत्री ने पार्टी के सभी वरिष्ठ नेताओं को दिशा निर्देश दिए हैं कि मुख्य रूप से ब्राम्हण दलित और अति पिछड़े के साथ अल्पसंख्यकों के साथ अपने कामकाज किये जाएं. बसपा नेता जिलों में संगठन को मजबूत करते हुए सोशल इंजीनियरिंग के तहत चुनावी मैदान में उतरने की तैयारियां करें.

भाईचारा कमेटियों के गठन पर ध्यान देने के निर्देश
मायावती ने कहा है कि भाईचारा कमेटियां बनाई जाएं और सभी वर्गों को साथ लेकर चुनावी मैदान में उतरा जाए. इसी को रणनीति मानकर अपनी चुनावी तैयारियों को अमली जामा पहनाया जाए. संगठन के कामकाज धरातल तक हों. बसपा की सभी जिला मंडल इकाइयां भी सक्रिय होकर काम करें.

सरकार में आने पर सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय ही रहेगी नीति
बसपा सुप्रीमो मायावती ने पार्टी नेताओं और अन्य प्रमुख पदाधिकारियों से कहा है कि लोगों को यह समझाया जाए कि बसपा पहले की तरह अपने संगठन को मजबूत कर के 2020 के विधानसभा चुनाव में सफलता हासिल करने के लिए तेजी से काम कर रही है. सबके साथ और सबके सहयोग से बसपा 2022 के विधानसभा चुनाव में सफलता हासिल करेगी और सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय की नीति को आगे बढ़ाएगी.

2007 में सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले ने बनाई थी बसपा सरकार
2007 के विधानसभा चुनाव से पहले बसपा ने बेहतर रणनीति बनाई थी. तब सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले पर चुनाव मैदान में उतरने का फायदा बहुजन समाज पार्टी को मिला था. 2007 के चुनाव में बसपा ब्राम्हण, दलित, अल्पसंख्यक वर्ग को साथ लेकर चुनाव मैदान में उतरी थी और टिकट में बराबर की भागीदारी देते हुए अपने इस एजेंडे को आगे बढ़ाया. इसका असर यह रहा कि 2007 में बहुजन समाज पार्टी उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने में सफल रही और बसपा सुप्रीमो मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी.


राजनीतिक समीकरण और परिस्थितियों को देखकर सोशल इंजीनियरिंग पर मायावती का ध्यान
अब एक बार फिर 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले बसपा सुप्रीमो मायावती ने प्रदेश की राजनीतिक परिस्थितियों और समीकरण को दृष्टिगत रखते हुए सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले पर चुनाव लड़ने का मन बनाया है. उन्होंने इसी रणनीति के तहत पार्टी नेताओं और पदाधिकारियों को चुनाव की तैयारियां करने, संगठन निर्माण करने और धरातल तक लोगों को पार्टी से जोड़ने के दिशा निर्देश दिए हैं. जिससे बसपा मजबूत हो और चुनाव में सफलता मिल सके.

योगी सरकार से ब्राह्मणों की नाराजगी का फायदा उठाने की भी कोशिश
उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार में ब्राह्मण उत्पीड़न की बात कही जाती है और काफी संख्या में ब्राह्मणों की नाराजगी समय-समय पर सामने भी आती रही है. भाजपा के अंदर विधायक और अन्य नेताओं की तरफ से इसको लेकर सवाल भी उठाए जा चुके हैं. ऐसे में बसपा सुप्रीमो मायावती इस वर्ग के हित की बात करते हुए सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले में पहले की तरह ब्राह्मणों को अपने एजेंडे में रखना चाहती हैं.

ब्राह्मणों के साथ होने से मिल सकता है बसपा को फायदा
2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में इस बार अगर बसपा को 2007 के विधानसभा चुनाव की तरह ब्राह्मणों का साथ मिल सके तो इससे उसे लाभ मिलेगा. मायावती को यह पता है कि सत्ता की कुर्सी तक पहुंचने में ब्राह्मण एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं. यही कारण है कि मायावती मे तमाम परिस्थितियों और समीकरणों का आकलन करते हुए चुनावी मैदान में उतरने का मन बनाया है, इसीलिए उन्होंने सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले पर काम करना भी शुरू कर दिया है.

सोशल इंजीनियरिंग से मिल सकती है कामयाबी: प्रोफेसर रविकांत
राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर रविकांत कहते हैं कि बसपा सुप्रीमो मायावती ने चुनाव को लेकर काम करना शुरू कर दिया है.इसी कारण उन्होंने अति पिछड़ी जाति से आने वाले भीम राजभर को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया है. इससे वह यह संकेत दे रही हैं कि जो गैर यादव अति पिछड़ा समाज है उसे वह साथ लेकर आगे बढ़ना चाहती हैं. इसके साथ ही ब्राह्मण मतदाता भी पिछले कुछ समय से योगी सरकार से नाराज हैं. ऐसे में उस वर्ग को भी मायावती अपने साथ रख कर अपनी चुनावी तैयारियां आगे बढ़ा रही हैं. मायावती 2007 के विधानसभा चुनाव की तरह सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले पर ब्राह्मण, दलित, अति पिछड़े और अल्पसंख्यकों को साथ लेकर अपनी चुनावी तैयारियां कर रही हैं. इस तरह उन्हें कामयाबी भी मिल सकती है. यही कारण है कि वह इसी आधार पर अपनी चुनावी तैयारियों को आगे बढ़ा रही हैं.

Last Updated : Dec 2, 2020, 5:07 PM IST
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