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यूपी में बसपा के प्रत्याशी उतारने से दिलचस्प हुआ राज्यसभा चुनाव

यूपी में राज्यसभा की 10 सीटों के हो रहे चुनाव में बसपा ने अपना उम्मीदवार घोषित किया. इससे यूपी का राज्यसभा चुनाव बेहद दिलचस्प हो गया है. पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा की मौजूदगी में नेशनल कोऑर्डिनेटर रामजी गौतम ने सोमवार को विधानसभा में अपना नामांकन पत्र दाखिल किया.

राम जी गौतम ने सोमवार को विधानसभा में अपना नामांकन पत्र दाखिल किया.
राम जी गौतम ने सोमवार को विधानसभा में अपना नामांकन पत्र दाखिल किया.
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Published : Oct 26, 2020, 1:19 PM IST

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में राज्यसभा की 10 सीटों के लिए हो रहे चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने अपना उम्मीदवार उतारकर पूरे चुनाव में नया मोड़ ला दिया है. इससे यूपी का राज्यसभा चुनाव बेहद दिलचस्प हो गया है. पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा की मौजूदगी में नेशनल कोऑर्डिनेटर रामजी गौतम ने सोमवार को विधानसभा में अपना नामांकन पत्र दाखिल किया. इसके साथ ही निर्विरोध निर्वाचन की संभावना खत्म होती दिख रही है.


बहुजन समाज पार्टी के अध्यक्ष मायावती के इस दांव से भारतीय जनता पार्टी के नौ सदस्यों के जीतने की राह कठिन हो जाएगी. विधायकों की संख्या के आधार पर भाजपा की आठ सीट पक्की है. दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के सामने दुविधा की स्थिति होगी. बसपा राज्यसभा के लिए प्रत्याशी उतारकर एक तीर से कई निशाना साध रही है.

बसपा नेतृत्व ने पार्टी विधायकों की बैठक कर नामांकन पत्र पर पहले ही प्रस्तावकों के हस्ताक्षर करा लिए थे. बहुजन समाज पार्टी के विधायकों की संख्या 18 ही है. इनमें भी मुख्तार अंसारी और अनिल सिंह जैसे दो-तीन विधायक पार्टी से दूरी बनाते दिख रहे हैं. इनके वोट मिल पाना मुश्किल है.

राज्यसभा की एक सीट जीतने के लिए पार्टी के पास कम से कम 36 विधायक होने ही चाहिए. ऐसे में सवाल उठता है कि जब बहुजन समाज पार्टी के पास केवल 18 सदस्य ही विधानसभा में हैं तो फिर उम्मीदवार क्यों ? किस रणनीति के तहत पार्टी ने प्रत्याशी उतारा है. क्या उसे अन्य दलों का समर्थन प्राप्त है, उनसे आश्वासन मिला है ?

इसलिए मैदान में उतरी बसपा

इन सभी सवालों के जवाब फिलहाल स्पष्ट नहीं है, लेकिन बहुत सारी चीजें दिखाई दे रही हैं. दरअसल, पार्टी चाहती है कि बहुजन समाज पार्टी की किसी से संबद्धता नहीं है, इसका संदेश जनता के बीच जाना चाहिए. पार्टी के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि कांग्रेस और समाजवादी पार्टी जैसे विपक्षी दल बसपा पर भाजपा की बी टीम होने का आरोप लगाकर प्रचारित कर रहे हैं. मायावती के इस फैसले से विपक्ष के दुष्प्रचार पर खुद-ब-खुद ब्रेक लग जाएगा. दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का बहुजन समाज पार्टी को राज्यसभा में समर्थन नहीं मिला तो मायावती को इन दलों पर पलटवार करने का मौका रहेगा.

ऐसे जीत सकती है बसपा

बसपा यदि राज्यसभा चुनाव मैदान में बनी रही तो भाजपा के नौवीं सीट पर जीत दर्ज करने के सपने को झटका लग सकता है. बीजेपी को नौवीं सीट पर जीत दर्ज करने से रोकने के लिए सभी विपक्षी दल बहुजन समाज पार्टी को समर्थन भी दे सकते हैं. सूत्रों का कहना है कि पूर्व मंत्री ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस जैसे दल बसपा प्रत्यशी के समर्थन में वोट कर सकते हैं.


बसपा के लिए अपने प्रत्याशी को राज्यसभा पहुंचा पाना आसान नहीं

कांग्रेस ने पहले से ही स्पष्ट कर रखा है कि बीजेपी से चुनाव लड़ने वाले विपक्ष के प्रत्याशी को ही उसका समर्थन होगा. हालांकि कांग्रेस के सात विधायकों में से पांच विधायक ही उसके साथ दिख रहे हैं. ऐसे में कांग्रेस के पांच और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के चार सदस्यों को मिलाकर बसपा के करीब 27 वोट ही हो पा रहे हैं. इसके बाद सपा का समर्थन चाहिए ही. इन सब के बावजूद बसपा के लिए अपने प्रत्याशी को राज्यसभा पहुंचा पाना इतना आसान नहीं है. फिर भी गुण गणित की इस राजनीति में होने को तो कुछ भी हो सकता है.

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में राज्यसभा की 10 सीटों के लिए हो रहे चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने अपना उम्मीदवार उतारकर पूरे चुनाव में नया मोड़ ला दिया है. इससे यूपी का राज्यसभा चुनाव बेहद दिलचस्प हो गया है. पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा की मौजूदगी में नेशनल कोऑर्डिनेटर रामजी गौतम ने सोमवार को विधानसभा में अपना नामांकन पत्र दाखिल किया. इसके साथ ही निर्विरोध निर्वाचन की संभावना खत्म होती दिख रही है.


बहुजन समाज पार्टी के अध्यक्ष मायावती के इस दांव से भारतीय जनता पार्टी के नौ सदस्यों के जीतने की राह कठिन हो जाएगी. विधायकों की संख्या के आधार पर भाजपा की आठ सीट पक्की है. दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के सामने दुविधा की स्थिति होगी. बसपा राज्यसभा के लिए प्रत्याशी उतारकर एक तीर से कई निशाना साध रही है.

बसपा नेतृत्व ने पार्टी विधायकों की बैठक कर नामांकन पत्र पर पहले ही प्रस्तावकों के हस्ताक्षर करा लिए थे. बहुजन समाज पार्टी के विधायकों की संख्या 18 ही है. इनमें भी मुख्तार अंसारी और अनिल सिंह जैसे दो-तीन विधायक पार्टी से दूरी बनाते दिख रहे हैं. इनके वोट मिल पाना मुश्किल है.

राज्यसभा की एक सीट जीतने के लिए पार्टी के पास कम से कम 36 विधायक होने ही चाहिए. ऐसे में सवाल उठता है कि जब बहुजन समाज पार्टी के पास केवल 18 सदस्य ही विधानसभा में हैं तो फिर उम्मीदवार क्यों ? किस रणनीति के तहत पार्टी ने प्रत्याशी उतारा है. क्या उसे अन्य दलों का समर्थन प्राप्त है, उनसे आश्वासन मिला है ?

इसलिए मैदान में उतरी बसपा

इन सभी सवालों के जवाब फिलहाल स्पष्ट नहीं है, लेकिन बहुत सारी चीजें दिखाई दे रही हैं. दरअसल, पार्टी चाहती है कि बहुजन समाज पार्टी की किसी से संबद्धता नहीं है, इसका संदेश जनता के बीच जाना चाहिए. पार्टी के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि कांग्रेस और समाजवादी पार्टी जैसे विपक्षी दल बसपा पर भाजपा की बी टीम होने का आरोप लगाकर प्रचारित कर रहे हैं. मायावती के इस फैसले से विपक्ष के दुष्प्रचार पर खुद-ब-खुद ब्रेक लग जाएगा. दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का बहुजन समाज पार्टी को राज्यसभा में समर्थन नहीं मिला तो मायावती को इन दलों पर पलटवार करने का मौका रहेगा.

ऐसे जीत सकती है बसपा

बसपा यदि राज्यसभा चुनाव मैदान में बनी रही तो भाजपा के नौवीं सीट पर जीत दर्ज करने के सपने को झटका लग सकता है. बीजेपी को नौवीं सीट पर जीत दर्ज करने से रोकने के लिए सभी विपक्षी दल बहुजन समाज पार्टी को समर्थन भी दे सकते हैं. सूत्रों का कहना है कि पूर्व मंत्री ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस जैसे दल बसपा प्रत्यशी के समर्थन में वोट कर सकते हैं.


बसपा के लिए अपने प्रत्याशी को राज्यसभा पहुंचा पाना आसान नहीं

कांग्रेस ने पहले से ही स्पष्ट कर रखा है कि बीजेपी से चुनाव लड़ने वाले विपक्ष के प्रत्याशी को ही उसका समर्थन होगा. हालांकि कांग्रेस के सात विधायकों में से पांच विधायक ही उसके साथ दिख रहे हैं. ऐसे में कांग्रेस के पांच और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के चार सदस्यों को मिलाकर बसपा के करीब 27 वोट ही हो पा रहे हैं. इसके बाद सपा का समर्थन चाहिए ही. इन सब के बावजूद बसपा के लिए अपने प्रत्याशी को राज्यसभा पहुंचा पाना इतना आसान नहीं है. फिर भी गुण गणित की इस राजनीति में होने को तो कुछ भी हो सकता है.

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