लखनऊ : हाईकोर्ट के बिना पिछड़ा वर्ग के आरक्षण के निकाय चुनाव कराने के आदेश के बाद उत्तर प्रदेश सरकार के सामने असमंजस की स्थिति है. पिछड़े वर्ग को नाराज करके चुनाव का ऐलान कराना भाजपा सरकार के लिए टेढ़ी खीर साबित हो सकता है. माना जा रहा है कि फिलहाल निकाय चुनाव होना संभव नहीं है. इस आदेश के खिलाफ याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट (Petitioner Supreme Court) जाएगा. इसके अलावा सरकार किस फार्मूले के आधार पर चुनाव लड़ेगी इस पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं. दूसरी ओर सरकार ने कहा कि एक अलग आयोग बना कर पूरी आरक्षण व्यवस्था को समझा जाएगा. उसके बाद में चुनाव का एलान होगा. इस मामले में वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक उमाशंकर दुबे का कहना है कि फिलहाल चुनाव करा पाना सरकार के लिए संभव नहीं है. सरकार इतने बड़े वर्ग को नाराज करके बिना आरक्षण के चुनाव कराएगी मुझे ऐसा लगता नहीं है.
हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच (Lucknow Bench of the High Court) में करीब 15 दिन बाद इस मामले में फैसला तो आया है, मगर इस फैसले ने सरकार को हरी झंडी दिखाने की जगह सरकार के सामने एक नई चुनौती खड़ी कर दी है. कोर्ट ने सरकार से कहा है कि ट्रिपल टी व्यवस्था के तहत जब तक आरक्षण लागू नहीं किया जा सकता तब तक सरकार बिना पिछड़े वर्ग के आरक्षण के ही चुनाव करा दिया जाए. गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में पिछड़े वर्ग की संख्या लगभग 60 फ़ीसदी है. ऐसे में सरकार ओबीसी वर्ग को नाराज करके कैसे आगे बढ़ेगी यह एक बड़ा सवाल है.
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आज आरक्षण विरोधी भाजपा निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण के विषय पर घड़ियाली सहानुभूति दिखा रही है। आज भाजपा ने पिछड़ों के आरक्षण का हक़ छीना है,कल भाजपा बाबा साहब द्वारा दिए गये दलितों का आरक्षण भी छीन लेगी।
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) December 27, 2022 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
आरक्षण को बचाने की लड़ाई में पिछडों व दलितों से सपा का साथ देने की अपील है।
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— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) December 27, 2022
आरक्षण को बचाने की लड़ाई में पिछडों व दलितों से सपा का साथ देने की अपील है।आज आरक्षण विरोधी भाजपा निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण के विषय पर घड़ियाली सहानुभूति दिखा रही है। आज भाजपा ने पिछड़ों के आरक्षण का हक़ छीना है,कल भाजपा बाबा साहब द्वारा दिए गये दलितों का आरक्षण भी छीन लेगी।
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आरक्षण को बचाने की लड़ाई में पिछडों व दलितों से सपा का साथ देने की अपील है।
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उत्तर प्रदेश के नगरीय निकाय चुनाव में विधि सम्मत तरीके से प्रत्येक वर्ग और समुदाय की सहभागिता सुनिश्चित करते हुए इसे समय पर संपन्न कराना हमारी शीर्ष प्राथमिकता है।
— Bhupendra Singh Chaudhary (@Bhupendraupbjp) December 27, 2022 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
प्रत्येक समुदाय व वर्ग के अधिकारों के संरक्षण हेतु भाजपा प्रतिबद्ध है। किसी के साथ कोई भी अन्याय नहीं होगा।
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प्रत्येक समुदाय व वर्ग के अधिकारों के संरक्षण हेतु भाजपा प्रतिबद्ध है। किसी के साथ कोई भी अन्याय नहीं होगा।उत्तर प्रदेश के नगरीय निकाय चुनाव में विधि सम्मत तरीके से प्रत्येक वर्ग और समुदाय की सहभागिता सुनिश्चित करते हुए इसे समय पर संपन्न कराना हमारी शीर्ष प्राथमिकता है।
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प्रत्येक समुदाय व वर्ग के अधिकारों के संरक्षण हेतु भाजपा प्रतिबद्ध है। किसी के साथ कोई भी अन्याय नहीं होगा।
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नगरीय निकाय चुनाव के संबंध में माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद के आदेश का विस्तृत अध्ययन कर विधि विशेषज्ञों से परामर्श के बाद सरकार के स्तर पर अंतिम निर्णय लिया जाएगा,परंतु पिछड़े वर्ग के अधिकारों को लेकर कोई समझौता नहीं किया जाएगा!
— Keshav Prasad Maurya (@kpmaurya1) December 27, 2022 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
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इस मामले में वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक उमाशंकर दुबे (Senior journalist and political analyst Umashankar Dubey) ने बताया कि निश्चित तौर पर सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती है. मैं निश्चित तौर पर यह मानता हूं कि फिलहाल चुनाव करा पाना सरकार के लिए संभव नहीं है. सरकार इतने बड़े वर्ग को नाराज करके बिना आरक्षण के चुनाव कराएगी मुझे ऐसा लगता नहीं है. सरकार को समय रहते इस बात का ख्याल रखना चाहिए था. उसी आधार पर आरक्षण घोषित होना चाहिए था. मगर अब सरकार के सामने चुनाव कराना टेढ़ी खीर है. निश्चित तौर पर सरकार ने एक आयोग बनाने का फैसला किया है. इसके बाद में आरक्षण की व्यवस्था को सूत्रण करने के लिए सरकार को समय चाहिए होगा. ऐसे में सरकार को हाईकोर्ट के उस आदेश जिसमें यह कहा गया है कि सरकार समय पर चुनाव कराए. उसमें सुप्रीम कोर्ट जाकर के चुनाव कराने को लेकर समय लेना पड़ेगा.
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2. यूपी सरकार को मा. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का पूरी निष्ठा व ईमानदारी से अनुपालन करते हुए ट्रिपल टेस्ट द्वारा ओबीसी आरक्षण की व्यवस्था को समय से निर्धारित करके चुनाव की प्रक्रिया को अन्तिम रूप दिया जाना था, जो सही से नहीं हुआ। इस गलती की सजा ओबीसी समाज बीजेपी को जरूर देगा। 2/2
— Mayawati (@Mayawati) December 27, 2022 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
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दूसरी ओर हाईकोर्ट के इस आदेश पर डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य (Deputy CM Keshav Prasad Maurya) ने ट्वीट में लिखा कि नगरीय निकाय चुनाव के संबंध में माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद के आदेश का विस्तृत अध्ययन कर विधि विशेषज्ञों से परामर्श के बाद सरकार के स्तर पर अंतिम निर्णय लिया जाएगा. दूसरी ओर उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक (Deputy Chief Minister Brijesh Pathak) ने कहा है कि हम चुनाव कराने से पहले विधिक राय के संबंध में एक आयोग का गठन करेंगे. जिसकी सिफारिशों के आधार पर चुनाव कराया जाएगा.
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उत्तर प्रदेश निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण की समाप्ति का फैसला दुर्भाग्यपूर्ण है। सामाजिक न्याय की लड़ाई को इतनी आसानी से कमजोर होने नहीं दिया जा सकता है। आरक्षण पाने के लिए जितना बड़ा आंदोलन करना पड़ा था, उससे बड़ा आंदोलन इसे बचाने के लिए करना पड़ेगा। कार्यकर्ता तैयार रहें।
— Shivpal Singh Yadav (@shivpalsinghyad) December 27, 2022 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
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'ओबीसी आरक्षण का संविधान में कोई प्रावधान नहीं' : आरक्षण के संवैधानिक पहलुओं को समझने के लिए ईटीवी भारत ने पूर्व न्यायाधीश व पूर्व सलाहकार राज्यपाल उत्तर प्रदेश अधिवक्ता हाईकोर्ट सीबी पांडे से बातचीत की. सीबी पांडे ने जानकारी देते हुए बताया कि 'ओबीसी आरक्षण का संविधान में कोई प्रावधान नहीं है. संविधान में संसोधन के बाद ओबीसी आरक्षण को लेकर ये प्रावधान है कि राज्य यदि चाहे तो वह प्रदेश में ओबीसी आरक्षण को लागू कर सकता है. इसके लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश है कि ट्रिपल टेस्ट के आधार पर ओबीसी आरक्षण दिया जा सकता है. ऐसे में ओबीसी आरक्षण के तरीके को लेकर हाईकोर्ट ने निर्देश दिए हैं कि ओबीसी आरक्षण को रद्द किया जा सकता है. ऐसे में यदि सरकार चाहे तो ट्रिपल टेस्ट कराकर ओबीसी आरक्षण को दोबारा से लागू करा कर निकाय चुनाव कराए जा सकते हैं. सरकार चाहे तो हाईकोर्ट के आदेश के बाद बिना ओबीसी आरक्षण के भी चुनाव कराए जा सकते हैं. ऐसे में संविधान की अवहेलना नहीं होगी. यदि एससी-एसटी आरक्षण के बगैर चुनाव कराए जाएं तो वह संविधान की अवहेलना में शामिल होगा'.
1992 में मुलायम सिंह ने लागू किया था ओबीसी आरक्षण : वर्ष 1992 में 73वें संशोधन के तहत संविधान में यह प्रावधान किया गया कि अगर राज्य चाहे तो वह अपने राज्य में ओबीसी की स्थिति के आधार पर आरक्षण लागू कर सकता है. संविधान में हुए संशोधन के बाद उत्तर प्रदेश के तात्कालिक मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने राज्य में ओबीसी आरक्षण को लागू कर दिया था, जिसके बाद पंचायती चुनाव व नगर निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण शुरू हो गया.